B.Com 2nd Year Company Management And Meetings Short Notes

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लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1 – निदेशक कौन है? उनके क्या कर्त्तव्य हैं? 

Who is director ? What are their duties ?

उत्तर – निदेशक/संचालक से आशय (Meaning of Director) कम्पनी, एक कृत्रिम यक्ति होने के कारण स्वयं कोई कार्य नहीं कर सकती। वस्तुत: कम्पनी अपने सभी कार्यों को अपने एजेन्टों के द्वारा कराती है, जिन्हें संचालक/निदेशक कहते हैं। सरल शब्दों में, कम्पनी सन्दर्भ में संचालक से आशय ऐसे व्यक्ति से है जिसे कम्पनी के सदस्यों द्वारा कम्पनी का बिन्ध, संचालन, निर्देशन एवं नियन्त्रण करने के लिए नियुक्त किया जाता है। कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 (34) के अनुसार, “संचालक का आशय एक नदेशक (संचालक) से है जिसे निदेशक मण्डल पर नियुक्त किया जाता है।”

वेब्स्टर शब्दकोष के अनुसार, “संचालक से अभिप्राय किसी भी व्यक्ति से है जो कम्पनी के मामलों का प्रबन्ध करने के लिए नियुक्त किया जाता है।

निष्कर्ष – उपर्युक्त परिभाषा कम्पनी निदेशक का सही अर्थ और उसकी स्थिति को नहीं करती है। सरल शब्दों में, निदेशक कम्पनी के कारोबार का प्रबन्ध करने के लिए रियों द्वारा चुना हुआ एक व्यक्ति है। संयुक्त रूप से निदेशकों को ‘निदेशक मण्डल’ डल के नाम से पुकारा जाता है। निदेशक वास्तव में अपनी शक्तियों का प्रयोग संयुक्त मण्डल के रूप में कर सकते हैं। कुछ ऐसी शक्तियाँ हैं तो निदेशक मण्डल द्वारा मण्डल

की सभाओं में प्रस्ताव पारित करके उपयोग की जा सकती हैं, परन्तु निदेशक मण्डल का शक्तियों को निदेशक मण्डल की समिति को सौंप सकते हैं। जहाँ तक कम्पनी के प्रबन्धक प्रश्न है, वहाँ निदेशक मण्डल उच्चतम अधिकारी है। संचालक वह व्यक्ति है जो कम्पनी के संचालन, प्रबन्ध एवं नियन्त्रण के लिए उत्तरदायी है।

निदेशकों के कर्त्तव्य (धारा 166)

(Duties of Directors

(1) इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन एक निदेशक कम्पनी के अन्तर्नियमों के (v अनुसार कार्य करेगा।

(2) एक निदेशक समग्र रूप से कम्पनी के सदस्यों के लाभ के लिए कम्पनी के उद्देश्य का संवर्धन करने हेतु सद्विश्वास से काम करेगा एवं कम्पनी उसके कर्मचारियों, अंशधारियो के सर्वोत्तम हित में समाज और पर्यावरण को बचाने के लिए काम करेगी।

(3) एक कम्पनी का निदेशक अपना कर्त्तव्य उचित सावधानी, कौशल एवं लगन के साथ पूरा करेगा और स्वतन्त्र निर्णय लेगा।

(4) एक कम्पनी का निदेशक कम्पनी को उस स्थिति में नहीं ले जाएगा जिसमें उसक क्र अपना हित प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कम्पनी के हित के विरोध में होगा। ___

(5) एक कम्पनी का निदेशक अनुचित लाभ अपने लिए, रिश्तेदारों, साझेदारों य सहयोगियों के लिए प्राप्त करने का प्रयास नहीं करेगा और यदि उसे ऐसा करते हुए पाया गय तो वह कम्पनी को उस लाभ के बराबर राशि देने का उत्तरदायी होगा। ___

(6) एक कम्पनी का निदेशक अपना पद किसी को हस्तान्तरित (assign) नहीं करेग एवं कोई भी ऐसा किया गया हस्तान्तरण (assignment) व्यर्थ (void) होगा।

(7) दण्ड (Penalty)-यदि कम्पनी का कोई निदेशक इस धारा के प्रावधानों क उल्लंघन करता है तो वह जुर्माने से दण्डित किया जाएगा जो एक लाख रुपये से कम नहीं होग परन्तु जो पाँच लाख रुपये तक हो सकता है।

प्रश्न 2 – प्रबन्ध संचालक के पारिश्रमिक के सम्बन्ध में क्या नियम हैं ?

What are the rules regarding remuneration of managing directors?

उत्तर – कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 197 के अनुसार, एक प्रबन्ध निदेशक, एक पर्णकालिक निदेशक या एक प्रबन्धक का पारिश्रमिक कम्पनी के शुद्ध लाभ के 5 प्रतिशत र अधिक नहीं होगा और यदि उनमें से एक से अधिक ऐसे निदेशक या प्रबन्धक हैं तो पारिश्रमिक ऐ सभी निदेशक और प्रबन्धक को मिलाकर शुद्ध लाभ के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा।

किसी वित्तीय वर्ष के लिए एक सार्वजनिक कम्पनी द्वारा अपने निदेशकों प्रबन्ध निदशा और पूर्णकालिक निदेशक और इसके प्रबन्धक सहित को दिया जाने वाला पारिश्रमिक कम के उस वित्तीय वर्ष के शुद्ध लाभ के 11 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा लाभ की गणना 198 के अनुसार की जाएगी सिवाय इसके कि सकल लाभ में से निदेशकों का पारिश्रमिक घटाया नहीं जाएगा।

प्रश्न 3 – संचालकों के सात मुख्य अधिकार लिखिए। 

Write seven main powers of directors.

उत्तर – संचालक द्वारा निम्नलिखित अधिकारों का प्रयोग संचालक मण्डल की सभा में प्रस्ताव पास करने के बाद ही किया जा सकता है—(i) अंशधारियों से याचनाएँ माँगने का अधिकार, (ii) ऋण-पत्र निर्गमित करने का अधिकार, (iii) ऋण-पत्रों के अतिरिक्त किसी अन्य विधि से ऋण लेने का अधिकार, (iv) कम्पनी के कोषों को विनियोग करने का अधिकार, के (1) ऋण देने का अधिकार, (vi) आकस्मिक रिक्त स्थानों की पूर्ति का अधिकार, (vii) कम्पनी के प्रथम अंकेक्षक की नियुक्ति का अधिकार।

प्रश्न 4 – प्रबन्धक तथा प्रबन्ध संचालक के बीच अन्तर बताइए। 

Differentiate between Managing Director and Manager. 

उत्तर – प्रबन्धक तथा प्रबन्ध संचालक में अन्तर 

(Differences Between Manager And Managing Director)

क्र.स. अन्तर का आधार प्रबन्धक (Manager) प्रबन्ध संचालक (Managing Director)
1 संचालक होना प्रबन्धक के लिए कम्पनी का संचालक होना आवश्यक नही होता है। प्रबन्ध संचालक के लिए कम्पनी का संचालक होना आवश्यक होता है।
2 सेवाओं के लिए अनुबन्ध प्रबन्धक की सेवाओं के लिए नियमानुसार विशेष अनुबन्ध का होना आवश्यक नही हैं। प्रबन्ध संचालक की सेवाओं के लिए कम्पनी के साथ नियमानुसार विशेष अनुबन्ध का होना आवश्यक है।
3 अधिकार क्षेत्र प्रबन्धक का अधिकार क्षेत्र व्यापक होता है। यह कम्पनी के समस्त मामलों का प्रबन्ध करता है। प्रबन्ध संचालक का अधिकार क्षेत्र प्रबन्धक की तुलना में संकुचित होता है।
4 नियुक्ति प्रबन्धक की नियुक्ति संचालक मणडल द्धारा की जाती है। प्रबन्ध संचालक की नियुक्ति कम्पनी के अन्तर्नियमों, संचालक मणडल अथवा व्यापक सभा में पारित प्रस्ताव द्धारा की जाती है।

प्रश्न 5 वार्षिक साधारण सभा क्या है? 

What is Annual General Meeting ?

उत्तर – वार्षिक साधारण सभा से आशय सदस्यों की ऐसी सभा से है जो कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार प्रतिवर्ष बुलाई जाती है। कम्पनी अधिनियम 2013, की धारा 96 के अनुसार, एक व्यक्ति वाली कम्पनी के अतिरिक्त प्रत्येक कम्पनी को वर्ष में एक बार वार्षिक साधारण सभा बुलाना आवश्यक है, लेकिन दो वार्षिक सभाओं में 15 माह से अधिक का अन्तर नहीं होना चाहिए। पहली वार्षिक साधारण सभा प्रथम वित्तीय वर्ष बन्द होने के 9 महीने के अन्दर की जाएगी एवं अन्य किसी मामले में 6 महीने के अन्दर। विशेष कारणों से कम्पनी रजिस्ट्रार इस सभा के करने की अवधि को 3 महीने तक बढ़ा सकता है, परन्तु कम्पनी की प्रथम वार्षिक साधारण सभा की अवधि बढ़ाने का उसे अधिकार नहीं है। इस सभा में कम्पनी के अन्तिम खाते प्रस्तुत करना, संचालक मण्डल व अंकेक्षक की रिपोर्ट पर विचार करना, लाभांश घोषित करना आदि निर्णय लिए जाते हैं। प्रस्तुत वार्षिक साधारण सभा व्यवसाय के समय के दौरान बुलाई जाएगी अर्थात् प्रात: 9 और सायं 6 बजे के बीच किसी भी दिन जो राष्ट्रीय

अवकाश नहीं होगा। सभा कम्पनी के पंजीकृत कार्यालय पर या किसी शहर, कस्बे और गाँव में या किसी अन्य स्थान पर की जा सकती है जहाँ कम्पनी का पंजीकृत कार्यालय स्थापित है।

प्रश्न 6 – ‘एक व्यक्ति की सभा’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 

Write a short note on One Man Meeting ? 

उत्तर – एक व्यक्ति की सभा

(One Man Meeting) 

सामान्यतया, एक सभा के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों की उपास्वार आवश्यक है। स्पष्ट है कि कोई भी एक व्यक्ति सभा नहीं कर सकता। परन्तु कुछ दशामा एक व्यक्ति भी वैधानिक सभा कर सकता है। ऐसी सभा को ‘एक व्यक्ति की सभा र man meeting) कहा जाता है। निम्नलिखित दशाओं में एक व्यक्ति की उपस्थिति मर सकती है

(i) यदि किसी सदस्य के आवेदन पर केन्द्रीय सरकार कम्पनी की वार्षिक बुलाती है या बुलाने के लिए कम्पनी को आदेश देती है तो केन्द्रीय सरकार यह सकती है कि इस प्रकार की सभा एक व्यक्ति की उपस्थिति में भी की जा सकेगी।

यदि कम्पनी को सभा बुलाने के लिए अधिकरण या न्यायालय आदेश देता है तो वह श में यह निर्देश दे सकता है कि सभा में एक व्यक्ति की उपस्थिति से भी सभा का गठन हो जाएगा तथा इसके द्वारा लिए गए निर्णय नियमित सभा की तरह कम्पनी तथा अन्य मागन्धित व्यक्तियों के लिए मान्य होंगे।

(iii) कभी-कभी ऐसा हो सकता है कि कम्पनी की विभिन्न प्रकार की अंश पूँजी में से मी एक वर्ग के समस्त अंश किसी एक ही व्यक्ति के पास हों। ऐसी स्थिति में उस एक सक्ति की उपस्थिति से भी सभा का गठन हो जाएगा। ऐसा ऋणपत्रधारियों के सम्बन्ध में भी हो कता है। एक व्यक्ति ही कम्पनी द्वारा निर्गमित समस्त ऋणपत्रों को खरीद सकता है। ऐसा होने र वह अकेला व्यक्ति ही ऋणपत्रधारियों की सभा का गठन कर सकता है।

(iv) यदि कम्पनी की किसी सभा में निश्चित समय पर न्यूनतम कार्यवाहक संख्या के बराबर सदस्य उपस्थित नहीं होते हैं तो आधे घण्टे तक प्रतीक्षा की जा सकती है। यदि आधे घण्टे में न्यूनतम कार्यवाहक संख्या में सदस्य उपस्थित नहीं होते हैं तो वह सभा अगले सप्ताह के लिए उसी समय, उसी दिन तथा उसी स्थान के लिए स्थगित हो जाती है। इस स्थगित सभा के -समय से आधे घण्टे तक प्रतीक्षा करने के बाद भी सभा में कार्यवाहक संख्या उपस्थित नहीं होती है तथा इस सभा में एक भी सदस्य उपस्थित है तो उस एक सदस्य को ही सभा मान लिया जाता है। यह सदस्य सभा के कार्यक्रम के सम्बन्ध में वैध निर्णय ले सकता है, जो वैधानिक रूप मान्य होते हैं। 

प्रश्न 7 – कम्पनी की दशा में सभा की गणपूर्ति से आपका क्या आशय है? 

What do you understand by quorum in a company?

उत्तर – सभा की गणपूर्ति (Quorum)

(i) पब्लिक कम्पनी में पाँच और प्राइवेट कम्पनी में दो होना – धारा 174 के अनुसार, एक कम्पनी में सभा की कार्यवाही तब तक नहीं हो सकती, जब तक कि उसमें पूति के लिए आवश्यक सदस्य उपस्थित न हों। एक पब्लिक कम्पनी में ( उस पब्लिक पना को छोड़कर जो धारा 43क के अनुसार पब्लिक कम्पनी मानी गयी है) व्यक्तिगत प.स उपस्थित कम-से-कम 5 व्यक्ति और एक प्राइवेट कम्पनी में व्यक्तिगत रूप से भास्थत कम-से-कम 2 व्यक्ति सभा की गणपूर्ति माने जाते हैं, जब तक कि अन्तर्नियमों इससे अधिक संख्या न दी हुई है। प्रॉक्सी द्वारा उपस्थिति गणपूर्ति के लिए नहीं मानी जाती है। अंशों के संयुक्त स्वामी (joint holders of shares) कार्य संख्या के लिए एक सदस्य की रह गिने जाते हैं।

(ii) संचालकों की सभा की गणपूर्ति – (अ) कुल संचालकों की संख्या का 1/3 दा संचालकों में से जो अधिक हो। यदि 1/3 भाग करने पर पूर्ण संख्या नहीं आती है तो । पूरा मान लिया जाएगा जैसे 27 एवं 2% को 3 माना जाएगा। 

(ब) यदि संचालकों की सभा में कुल संचालकों की संख्या % या इससे अधिक ऐसे पास्थत हों जिनके व्यक्तिगत हित वाले विषय की कार्यवाही उस सभा में होनी है तो

इसके अतिरिक्त जो भी संचालक शेष बचेंगे वही गणपूर्ति मानी जाएगी पर यह बचे हा संचालक दो से कम नहीं होने चाहिए।

(iii) कम्पनी की साधारण सभा के लिए यदि निश्चित समय के आधे घण्टे के अन्दर गणपूर्ति पूरी नहीं होती है तो यह सभा अगले सप्ताह उसी दिन, उसी समय व उसी स्थान पर होगी। यदि इस अगली सभा में भी आधे घण्टे में गणपूर्ति पूरी नहीं होती है तो इस सभा में जो भी सदस्य उपस्थित होंगे उन्हीं की संख्या को गणपूर्ति मान लिया जाएगा। उन्हीं के द्वार सभा चलाई जा सकती है।

(iv) यदि कम्पनी की सभा, माँग करने वालों (Requisitionists) के द्वारा बुलाई गयी है और इस सभा में आधे घण्टे के अन्दर गणपूर्ति पूरी नहीं होती है तो यह सभा भंग (Dissolved) हो जाती है।

प्रश्न 8 – प्रतिपुरुष से क्या आशय है?

What do you mean by proxy ?

उत्तर – ‘प्रतिपुरुष’ से आशय ऐसे व्यक्ति से है जिसे कम्पनी के किसी सदस्य द्वार अपनी ओर से कम्पनी की सभा में उपस्थित होने तथा मतदान करने के लिए अधिकृत किय जाता है। इस शब्द का प्रयोग उस प्रपत्र (Instrument) के लिए भी किया जाता है जिसर्वे द्वारा किसी सदस्य द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को अपनी ओर से मतदान करने के लिए नियुक किया जाता है। इस प्रकार प्रतिपुरुष शब्द का प्रयोग न केवल नामांकित व्यक्ति के लिए बल्वि एक प्रलेख के लिए भी किया जाता है।

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 105 के अनुसार, “प्रतिपुरुष से आशय ऐक व्यक्ति से है जो कम्पनी के सदस्य की ओर से उसकी अनुपस्थिति में सभा में उपस्थित होने एक मत देने के लिए नियुक्त किया जाता है, किन्तु ऐसे व्यक्ति को सभा में बोलने का अधिकार नहर होता।”

प्रश्न 9 – साधारण प्रस्ताव व विशेष प्रस्ताव में अन्तर बताइए। 

Distinguish between Ordinary Resolution and Special Resolution 

उत्तर – साधारण प्रस्ताव तथा विशेष प्रस्ताव में अन्तर

(Differences Between Ordinary And Special Resolution)

क्र० स० अन्तर का आधार साधारण प्रस्ताव विशेष प्रस्ताव
1 प्रकृति साधारण प्रस्ताव सामान्यत नैत्यिक प्रकृति के होते है। विशेष प्रस्ताव विशिष्ट कार्यों को करने के लिए पारित किए जाते है।
2 आवश्यक बहुमत साधारण प्रस्ताव को पारित करने के लिए बहुमत की आवश्यकता होती है। विशेष प्रस्ताव को पारित कर के लिए 3/4 मतों की आवश्यकता होती हैं।
3 सभा की सूचना में उल्लेख साधारण प्रस्ताव का सभा की सूचना में उल्लेख करना आवश्यक नही है। विशेष प्रस्ताव का सभा की सूचना में उल्लेख करना आवश्यक है।
4. पंजीयन कम्पनी रजिस्ट्रार के पास साधारण प्रस्ताव का पंजीयन कराना आवश्यक नही है। विशेष प्रस्ताव पारित होने के 30 दिन के अन्दर उसका कम्पनी रजिस्ट्रार के पास पंजीयन कराना आवश्यक है।

प्रश्न 10 – विशेष प्रस्ताव क्या है? 

What is special resolution ?

उत्तर – कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 114 (2) के अनुसार, कोई प्रस्ताव के विशेष प्रस्ताव कहलाता है, जबकित –

(1) साधारण सभा की सूचना देते समय ही प्रस्ताव को विशेष प्रस्ताव के रूप में प्रस्तुत च करने का इरादा (Intention) स्पष्ट कर दिया गया हो।

(2) सभा को बुलाने की सूचना उचित रूप में दे दी गई हो। (अर्थात् सभा की सूचना से कम-से-कम 21 दिन पूर्व भेज दी गई हो।)

(3) प्रस्ताव के पक्ष में प्राप्त मतों की संख्या विपक्ष में प्राप्त मतों से कम-से-कम तीन होगुना हो (अर्थात् 3/4 या इससे अधिक मत प्रस्ताव के पक्ष में प्राप्त हों)।

प्रश्न 11 – सभा के स्थगन से क्या आशय है? इसके सम्बन्ध में क्या वैधानिक प्रावधान हैं?

What is adjournment of meeting ? What are legal provisions in – this regard? 

उत्तर – सभा का स्थगन से आशय

(Meaning of Adjournment of Meeting) 

जब निर्धारित तिथि पर किन्हीं कारणों से सभा की कार्यवाही नहीं की जा सकती है तो इसी सभा को किसी अन्य तिथि पर करना, सभा का स्थगन कहा जाता है और यह सभा को स्थगित सभा (adjourned meeting) कही जाती है। जब तक कानून द्वारा स्पष्टतया सभा हैं। पर रोक न हो, स्थगन किया जा सकता है। स्थगन की कुछ दशाएँ निम्नलिखित हैं

(i) कार्यवाहक संख्या पूरी न होने पर, (ii) सभा में गड़बड़ी होने पर, (iii) मतगणना के को सम्बन्ध में, (iv) किसी बहस वाले विषय पर अधिक सूचना पाने के लिए, (v) अन्य किसी कारण से, जिसे सदस्य उचित समझें।

स्थगन के बाद जो सभा की जाती है, उसमें वही काम किया जाता है जो उस समय नही किया जा सका था, जब इस सभा को मूल रूप में बुलाया गया था।

सभा के स्थगन सम्बन्धी वैधानिक प्रावधान 

(Legal Provisions as to Adjournment of Meeting) 

(1) यदि अन्तर्नियमों के अन्तर्गत सभापति को सभा के स्थगन का अधिकार प्राप्त है तो सभा द्वारा स्थगन प्रस्ताव पारित करने पर सभापति सभा के स्थगन के लिए बाध्य है।

(2) सभा में अव्यवस्था होने पर और सभापति की बार-बार दी गई चेतावनी का भी सदस्यों पर प्रभाव न पड़ने पर सभापति द्वारा सभा की कार्यवाही को कुछ समय के लिए स्थगित किया जा सकता है।

(3) यदि कम्पनी की किसी सभा के निर्धारित समय के आधे घण्टे के भीतर भी कार्यवाहक संख्या (Quorum) उपस्थित नहीं होती तो सभा अगले सप्ताह के लिए उसी दिन, उसी स्थान एवं उसी समय तक के लिए स्थगित मानी जाती है। यदि ऐसा दिन सार्वजनिक अवकाश का दिन है तो सभा उसके अगले दिन के लिए स्थगित हो जाती है। __

(4) कार्यवाहक संख्या के अभाव में स्थगित सभा में कार्यवाहक संख्या उपस्थित न होने पर ऐसी सभा को पुनः स्थगित नहीं किया जाएगा। ऐसी सभा में उपस्थित सदस्यों की संख्या ही कार्यवाहक संख्या मान ली जाएगी भले ही सभा में एक सदस्य या प्रतिपुरुष ही उपस्थित क्यो न हो। __

प्राय: कम्पनी के अन्तर्नियमों में सभा के स्थगन सम्बन्धी नियम दिए हुए होते हैं। कम्पनी के अन्तर्नियमों में कोई व्यवस्था न होने पर स्थगन सम्बन्धी तालिका ‘अ’ के निम्नलिखित नियम लागू होते हैं –

(i) सभापति द्वारा सभा की सहमति से सभा को स्थगित किया जा सकता है।

(ii) स्थगित सभा में उन्हीं कार्यों को पूरा किया जाएगा जो मूल सभा में पूरे नहीं किए ज सके थे।

(iii) स्थगित सभा के लिए सदस्यों को सूचना देने की आवश्यकता नहीं होती।

(iv) यदि सभा का स्थगन 30 दिन या इससे अधिक अवधि के लिए किया जा रहा है त ऐसी स्थगित सभा की सूचना सदस्यों को मूल सभा की तरह देनी होगी।

प्रश्न 12 – अन्तरिम लाभांश क्या है? 

What is interim dividend ?

अन्तरिम लाभांश

(Interim Dividend) 

सामान्यतया कम्पनी अपने अंशधारियों को वर्ष में एक बार ही लाभांश का भुगतान के लेकिन यदि संचालक-गण यह समझते हैं कि वर्ष के अन्दर कम्पनी को पर्याप्त मात्रा में ला तो वे बिना अंशधारियों की स्वीकृति के वर्ष के मध्य में भी लाभांश घोषित कर देते हैं। इस प्र घोषित लाभांश ‘अन्तरिम लाभांश’ कहलाता है। यदि ऐसा लाभांश घोषित करने के बाद कम्पनी

को इतना लाभ नहीं होता, जितने का उन्होंने अनुमान लगाया है, तो इस अधिक दिए गए रुपये का संचालकों को स्वयं ही प्रबन्ध करना होता है अत: अन्तरिम लाभांश की घोषणा बहुत सोच-विचार के बाद ही की जानी चाहिए।

प्रश्न 13 – बोनस अंश क्या है? यह कब निर्गमित होता है?

What is bonus shares? When is it issued ? 

अथवा बोनस अंशों के निर्गमन की क्या शर्ते हैं?

What are the conditions for issue of bonus shares? 

उत्तर – अधिलाभांश अंश

(Bonus Shares) 

जब किसी कम्पनी का व्यवसाय सुचारु रूप से चलता है और उसके लाभ की बड़ी राशि कोष के रूप में एकत्र हो जाती है, तो वह कम्पनी अधिलाभांश अंश जारी करके इस अतिरिक्त लाभांश को अपनी पूँजी में परिवर्तित करा लेती है। यह बोनस शेयर कम्पनी द्वारा समता (Equity) या अधिमान (Preference) अंशों के अंशधारकों को उनके पास अंशों के . अनुपात में जारी किए जाते हैं। कम्पनी बोनस शेयर केवल अपने अंशधारकों को ही जारी कर सकती है और कम्पनी बोनस शेयरों के बदले में अपने अंशधारकों से कोई मूल्य नहीं लेती है।

बोनस अंशों के निर्गमन हेतु शर्ते 

(Conditions for the issue of Bonus Shares) 

बोनस अंशों का निर्गमन करने के लिए निम्नलिखित शर्तों का पालन किया जाना आवश्यक है –

(1) कम्पनी के पास काफी मात्रा में संचित लाभ होने चाहिए। 

(2) संचालक मण्डल द्वारा उपयुक्त प्रस्ताव पारित किया जाना चाहिए। 

(3) अन्तनियमावली में ऐसे अंशों के निर्गमन की व्यवस्था होनी आवश्यक है।

(4) यदि कम्पनी की अन्तर्नियमावली में इस हेतु अंशधारियों की स्वीकृति प्राप्त करने का प्रावधान हो तो साधारण सभा में अंशधारियों की स्वीकृति प्राप्त की जानी चाहिए।

(5) बोनस अंश निर्गमन के सम्बन्ध में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड‘ द्वारा जारी किए गए निर्देशक सिद्धान्तों का अनुपालन किया जाना चाहिए।

29 मई, 1992 को पूँजी निर्गमन नियन्त्रण अधिनियम 1947 के रद्द कर दिए जाने से बोनस अंशों के निर्गमन को पूँजी निर्गमन नियन्त्रक की पूर्व-अनुमति प्राप्त करने के बन्धन से मुक्त कर दिया गया है। __

13 अप्रैल, 1994 को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय के लिए जारी किए गए बोनस अश निर्गमन सम्बन्धी संशोधित निर्देशक सिद्धान्तों का पालन करना आवश्यक है। ये निर्देशक सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

(1) ये निर्देशक सिद्धान्त केवल सूचीबद्ध सार्वजनिक कम्पनियों पर ही लागू होंगे।

(2) सार्वजनिक निर्गमन या अधिकार अंश निर्गमन के 12 महीने के अन्दर-अन्दर किसी कम्पनी द्वारा बोनस अंश जारी नहीं किए जाने चाहिए।

(3) पूर्णतया परिवर्तनीय या आंशिक परिवर्तनीय ऋणपत्रधारियों के अधिकारों को किसी प्रकार कम न करने पर ही बोनस अंश जारी किए जाने चाहिए। ___

(4) बोनस अंशों का निर्गमन मुक्त आरक्षित निधि अथवा नकद प्राप्त की गई अंश प्रीमियम राशि में से ही हो सकता है।

(5) कम्पनी की स्थायी सम्पत्ति के पुनर्मूल्यांकन से बनाई गई आरक्षित निधि का बोनस अंशों के निर्गमन के लिए प्रयोग नहीं हो सकता।

(6) बोनस अंशों का निर्गमन, लाभांश के स्थानापन्न के रूप में नहीं किया जा सकता।

(7) बोनस अंशों का निर्गमन तब तक सम्भव नहीं जब तक कि आंशिक दत्त अंश, पूर्णदत्त नहीं हो जाते। ___

(8) कम्पनी बोनस अंश तब ही जारी कर सकती है जबकि

(अ) उसने स्थायी निक्षेपों पर ब्याज या मूल तथा विद्यमान ऋणपत्रों पर ब्याज तथा उनके विमोचन पर मूल के भुगतान में चूक न की हो।

(ब) उसने अपने कर्मचारियों की वैधानिक देयता (Statutory Dues); यथाप्रॉवीडेण्ट फण्ड, ग्रेच्युटी, बोनस आदि के भुगतान में चूक न की हो।

(9) आरक्षित निधियों के पूँजीकरण सम्बन्धी व्यवस्था, कम्पनी की अन्तर्नियमावली में होनी चाहिए।

(10) यदि बोनस अंश जारी करने के फलस्वरूप कम्पनी की अभिदत्त एवं प्रदत्त पूँजी उसकी अधिकृत पूँजी से अधिक हो जाने की स्थिति में हो तो पहले साधारण सभा में अधिकृत पूँजी में वृद्धि करने सम्बन्धी प्रस्ताव पारित करना होगा।


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