B.Com 2nd Year Planning Short Notes In Hindi

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B.Com 2nd Year Planning Short Notes In Hindi
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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1 – नियोजन की प्रकृति पर सूक्ष्म लेख लिखिए। 

Write a short note on Nature of Planning. 

उत्तर – नियोजन का स्वभाव या प्रकृति

(Nature of Planning) 

नियोजन एक निर्धारणात्मक एवं चयनात्मक प्रक्रिया है जो पूर्वानुमानों पर आधारित होती है। नियोजन हमेशा आने वाले समय अर्थात् भविष्य के लिए किया जाता है तथा प्रबन्ध के प्रत्येक स्तर पर अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों की सीमा के अन्तर्गत किया जाता है। नियोजन एक बौद्धिक प्रक्रिया है जो निरन्तर रूप से प्रत्येक व्यवसाय, चाहे वह वृहद् हो, लघु में चलती रहती है। नियोजन की प्रकृति के अन्तर्गत निम्नलिखित को सम्मिलित किया जा सकता है

(1) नियोजन पूर्वानुमानों (Forecasting) पर आधारित होता है। 

(2) नियोजन प्रबन्धकीय कुशलता का आधार है। 

(3) नियोजन एक सार्वभौमिक (Universal) क्रिया है। 

(4) नियोजन संगठन का एक अभिन्न अंग है। 

(5) प्रबन्ध के कार्यों में नियोजन प्रथम कार्य है। 

(6) नियोजन एक बौद्धिक एवं निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। 

(7 नियोजन सदैव आने वाले समय अर्थात् भविष्य के लिए किया जाता है।

हेरॉल्ड कण्ट्ज ओडोनेल ने नियोजन की प्रकृति के निम्नलिखित पाँच तत्त्व बताए है –

(i) लक्ष्यों की पूर्ति में योगदान, (ii) नियोजन की सर्वव्यापकता, (iii) आयोजन की सर्वोपरिता, (iv) योजनाओं की कुशलता, एवं (v) निरन्तर प्रक्रिया।

प्रश्न – 2 निगमित नियोजन से क्या आशय है

What is meant by Corporate Planning ?

उत्तर – एन्डरसन के अनुसार, “निगम नियोजन का आशय ऐसी अग्रोन्मुखी रणनीतिक योजनाओं के निर्माण से लगाया जाता है जो सम्पूर्ण व्यवसाय के लिए संचालक मण्डल द्वारा स्थापित निगमित-नीति संरचना के अन्तर्गत दीर्घकालीन, मध्यमकालीन तथा अल्पकालीन उद्देश्यों को परिभाषित करती है।”

पीटर ड्कर के अनुसार, “निगम नियोजन सर्वोत्तम सम्भव भावी ज्ञान के आधार पर क्रमबद्ध रूप में साहसिक निर्णय करने, उन निर्णयों को लागू करने के लिए आवश्यक प्रयासों को क्रमबद्ध रूप में संगठित करने तथा संगठित क्रमबद्ध फीडबैक द्वारा लक्ष्यों के विरुद्ध परिणामों को मापने की एक सतत प्रक्रिया है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर निगम-नियोजन के निम्न लक्षणों को प्रमुख लक्षण कहा जा सकता है

(1) यह एक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत उपक्रम के उद्देश्यों या लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उपक्रम की मूल नीतियों के अन्तर्गत एक विस्तृत कार्य-योजना बनायी जाती है।

(2) प्रबन्ध के लिए यह एक जीवनदर्शन है जिससे वह नियोजन प्रक्रिया से उत्पन्न निर्णयों के प्रति समर्पित रहें।

(3) यह सम्पूर्ण उपक्रम के भावी नियोजन से सम्बन्ध रखती है। इसमें पर्यावरण में व्याप्त कठिनाइयों तथा अवसरों का विश्लेषण कर भविष्य के लिए योजना बनायी जाती है।

(4) यह उपक्रम की रणनीतिक योजना को अल्पकालीन परिचालन योजनाओं से एकीकृत करती है। इसीलिए प्रबन्धशास्त्री इसे एक ही अर्थ में रणनीतिक योजना, दीर्घकालीन योजना, सर्वांगीण प्रबन्धकीय योजना आदि नामों से पुकारते रहे हैं।

प्रश्न – 3 प्ररिसीमित विवेकता क्या है? What is bounded rationality ? 

उत्तर – नियन्त्रित तर्कशक्ति अथवा परिसीमित विवेकता

(Bounded Rationality) 

प्राय: यह कहा जाता है कि प्रभावी निर्णयन तर्कसंगत होना चाहिए। यहाँ सामान्यतया यह प्रश्न उठता है कि तर्कसंगत (rationale) होने का क्या आशय है? वास्तव में निर्णय तर्कसंगत तभी माने जाते हैं जब निर्णयकर्ता को लक्ष्य प्राप्ति के सभी विकल्पों की स्पष्ट समझ हो, सभी विकल्पों के विश्लेषण हेतु आवश्यक सूचनाएँ उपलब्ध हों तथा उसके अन्तर्गत

सर्वोत्तम विकल्प पर पहुँचने की पर्याप्त इच्छाशक्ति हो, परन्तु वास्तव में प्रबन्ध में पर तर्कसंगतता पाया जाना मुश्किल से ही कभी सम्भव हो पाता है, क्योंकि निर्णयन भविष्य सम्बन्ध रखते है जिसमें अपार अनिश्चितताएँ विद्यमान होती हैं। इसके अतिरिक्त लक्ष्य प्राप्ति के सभी विकल्पों की जानकारी कर पाना तथा उनका विश्लेषण कर पाना असम्भव है। _

इसीलिए एक प्रबन्धक नियन्त्रित तर्कशक्ति (bounded rationality) तक सीमित हो जाता है अर्थात् समय, सूचना व निश्चितता की सीमाएँ उसे एक सीमित दायरे तक ही तर्कशक्ति का प्रयोग करने की अनुमति देती है भले ही वह दिल से पूर्ण तर्कयुक्त रहकर निर्णय लेना चाहता हो। व्यवहार में प्रबन्धक जोखिम को न्यूनतम रखते हुए सर्वोत्तम निर्णय करने का प्रयास करते है। प्रबन्धक सुरक्षित चलना चाहते हैं और जोखिम से बचना चाहते हैं। अत: निर्णय लेने में पूर्ण तर्कयुक्त नहीं रह पाते।

प्रश्न 4 – निर्णयन क्या है? इसकी विशेषताएँ भी लिखिए। 

What is decision-making ? Write its characteristics also. 

उत्तर – निर्णयन की परिभाषा

(Definitions of Decision-making) 

(1) जार्ज आर० टेरी के अनुसार, “निर्णयन दो या अधिक सम्भावित विकल्पों में से स कुछ सिद्धान्तों के आधार पर एक का चयन करना है।”

(2) कण्ट्ज एवं ओ’डोनेल के अनुसार, “निर्णयन एक कार्य को करने के विभिन्न विकल्पों में से किसी एक का वास्तविक चयन है, यह नियोजन का अन्त:करण है।”

(3) एलन के अनुसार, “निर्णयन ऐसा कार्य है जिसे एक प्रबन्धक निष्कर्ष और फैसले पर पहुंचने के लिए करता है।”

निर्णयन की मुख्य विशेषताएँ 

(Main Characteristics of Decision-making)

निर्णयन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. प्रबन्धन में निर्णयन का कार्य सर्वप्रमख होता है – डकर का कथन है कि प्रबन्धक जो कुछ भी करता है वह निर्णयों द्वारा ही सम्पन्न होता है।

2.निर्णयन एक प्रक्रिया है (Decision-making is a Process)-नण अन्तर्गत प्रबन्धक का सर्वप्रथम समस्या का निदान करना होता है तब वह समाधान विभिन्न विकल्पों का खाज करता है और फिर उनमें से सर्वाधिक उचित किसी एक चुनाव कर समस्या का निराकरण करता है।

3. निर्णयन  प्रबन्ध क सभी कार्यों में लाग होता है – कछ लोग निर्णयन नियोजन का ही अंग मानते है, परन्तु निर्णयन कार्य नियोजन के अतिरिक्त संगठन-सरचना, अभिप्रेरणा, निर्देशन, समन्वय व नियन्त्रण सभी कार्यों पर लागू होता है।

4. निर्णयन प्रबन्ध के सभी स्तरों पर किया जाता है निर्णयन केवल उच्च प्रबन्ध का ही कार्य नहीं है बल्कि विभिन्न दशाओं में मध्यम तथा निम्न श्रेणी प्रबन्धकों (Lower level managers) को भी अपने स्तर से निर्णय लेने होते है।

5. निर्णयन के ढंग भिन्न-भिन्न हो सकते हैं प्रत्येक प्रबन्धक निर्णयन का भिन्न ढंग अपना सकता है। कुछ प्रबन्धक स्वविवेक से शीघ्र निर्णय लेना चाहते हैं तो कुछ अन्य वैज्ञानिक _ पद्धति से निर्णय लेना पसन्द करते है, परन्तु प्रत्येक प्रबन्धक निर्णय विवेकपूर्ण तरीके से लेता है तभी उसे उसमें सफलता प्राप्त हो सकती है।

प्रश्न 5 – क्या भारत में समामेलित नियोजन सफल रहा है? संक्षेप में बताइए। 

Is corporate planning is successful in India ? Explain in brief.

उत्तर – भारत में निगमीय योजनाओं का क्रियान्वयन (Implementation of Corporate Planning in India)-हमारे देश में निगमीय योजनाओं को क्रियान्वित करने में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं को मुख्य रूप से दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-(1) योजना की कमियाँ, एवं (2) संस्था के बाहरी वातावरण में समय-समय पर होने वाले तीव्र परिवर्तन। इस सन्दर्भ में डी०एम० कोहली का यह कथन उल्लेखनीय है कि भारत में निगमीय योजनाएँ प्रथम तो इसलिए असफल होती हैं कि उन्हें आधुनिक विधियों से प्रारम्भ न किया जाकर परम्परागत विधियों से प्रारम्भ किया जाता है और दूसरे उनके उद्देश्य वास्तविकता से कहीं ऊँचे निर्धारित किए जाते हैं। दीर्घकालीन योजना तैयार करते समय इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता कि अल्पकालीन योजनाएँ जो दीर्घकालीन योजनाओं का ही अंग हैं, किस प्रकार लागू की जा सकती हैं।

प्रश्न 6 – व्यूह-रचना या रणनीतिक योजना क्या है

What is strategic planning ?

रणनीतिक योजना या व्यूह-रचना

(Strategic Planning) 

रणनीतिक योजना एक कम्पनी की सम्पूर्ण उपक्रम से सम्बन्धित आधारभूत दीर्घकालीन योजना है। यह उपक्रम के उन प्रमुख उत्पाद अथवा सेवाओं को इंगित करती है जो उपक्रम द्वारा समाज को प्रदान की जाएगी। साथ ही यह उपक्रम के क्रियाकलापों अथवा रणनीतियों जैसे भौगोलिक विस्तार अथवा विविधता पर प्रकाश डालती है जिसके द्वारा यह इन उत्पाद/सेवाओं का निर्माण तथा वितरण करेगी।

वास्तव में, रणनीतिक कम्पनी की एक ऐसी विस्तृत एवं एकीकृत योजना है जो वातावरण की चुनौतियों में से कम्पनी को रणनीतिक लाभ पहुँचा सके। यह इस प्रकार डिजाइन की जाती है ताकि कम्पनी के मूल उद्देश्यों की प्राप्ति सुनिश्चित हो सके।

प्रश्न 7 – उद्देश्य निहित प्रबन्ध क्या है

What is management by objectives ? 

उत्तर- उद्देश्य निहित प्रबन्ध की अवधारणा तथा आशय

(Concept and Meaning of MBO

सामान्यतः यह माना जाता है कि ‘उद्देश्य निहित प्रबन्ध’ (MBO) तकनीक का विकास पीटर एफ० ड्रकर द्वारा किया गया बाद में जार्ज एस० ओडिआर्ने ने इसको विकसित करने में अपना सहयोग दिया।

ड्रकर ने अपनी पुस्तक ‘Practice of Management’ में ‘उद्देश्य निहित प्रबन्ध’ की मूल भावना को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि “प्रत्येक व्यावसायिक उपक्रम को एक ही समूह का गठन करना चाहिए और वैयक्तिक प्रयासों को सामूहिक प्रयासों से जोड़ देना चाहिए। उपक्रम के प्रत्येक सदस्य का योगदान भिन्न-भिन्न हो सकता है, परन्तु उन सभी का योगदान सामान्य लक्ष्य प्राप्त करने की ओर होना चाहिए।” इस सम्बन्ध में ड्रकर द्वारा वर्णित पत्थर काटने वाले तीन व्यक्तियों की कहानी बड़ी ही सटीक प्रतीत होती है।

“एक गिरजाघर के निर्माण कार्य में एक स्थान पर पत्थर काटने वाले तीन व्यक्ति कार्य कर रहे थे जब उनसे एक प्रश्न पूछा गया कि वे क्या कर रहे हैं तो पहले ने उत्तर दिया कि मैं रोजी-रोटी कमा रहा हूँ, दूसरे ने उत्तर दिया कि मैं पत्थर काटने का सर्वोत्तम कार्य कर रहा हूँ तथा तीसरे ने उत्तर दिया कि मैं गिरजाघर का निर्माण कर रहा हूँ।” वास्तव में, तीसरा व्यक्ति उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध की मूल भावना का प्रतीक है जो अपने कार्य में संस्था के सामान्य लक्ष्य को देखता है।

उद्देश्य निहित प्रबन्ध क्या है

(What is MBO) 

प्रत्येक संस्था चाहे वह व्यावसायिक हो या गैर-व्यावसायिक, सरकारी हो या निजी क्षेत्र की, उसका कोई निश्चित लक्ष्य या उद्देश्य होता है जिसे प्राप्त करना प्रबन्ध का मुख्य कार्य है और उद्देश्य निहित प्रबन्ध’ वह तकनीक है जो संगठन के सभी प्रयासों को लक्ष्य प्राप्ति की ओर निर्देशित करती है जैसा कि विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं से स्पष्ट होता है

1. हेरॉल्ड कण्ट्ज के अनुसार, “उद्देश्य निहित प्रबन्ध साधारण रूप में ऐसा सामान्य विवेक है जो स्वयं को प्रबन्धित करने के उद्देश्य के रूप में प्रतिबिम्बित होता है।”

2. पीटर एफ० ड्रकर के अनुसार, “उद्देश्य निहित प्रबन्ध एक ऐसा सिद्धान्त है “जो वैयक्तिक दृढ़ता और दायित्व को पूर्ण क्षेत्र प्रदान करता है और उसके साथ ही दृष्टिकोण और प्रयास सम्बन्धी सामान्य निर्देशन प्रदान करता है, समूह कार्य की स्थापना करता है तथा वैयक्तिक लक्ष्यों का सामान्य समृद्धि से सामंजस्य स्थापित करता है।”

3.डब्ल्यू जे० रडिन के अनुसार, “उद्देश्य निहित प्रबन्ध सभी स्तरों पर लक्ष्य निर्दिष्ट करने तथा सभी की सहभागिता से ऐसे मानदण्डों (standards) को निर्धारित करने का पास है जो अन्ततः प्राप्त परिणामों के मूल्यांकन में प्रयोग किए जाते हैं।”

(1) यह वैयक्तिक लक्ष्यों को सामूहिक लक्ष्यों से जोड़ने की एक तकनीक है तथा नियोजन का एक प्रभावपूर्ण तरीका है।

(2) यह सामूहिक प्रयासों से लक्ष्य प्राप्ति की ओर अभिप्रेरित करता है।

(3) इसमें उपक्रम का लक्ष्य तथा उसके अनुरूप विभिन्न विभागों के लिए लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं।

(4) ये लक्ष्य कोई एक व्यक्ति निर्धारित नहीं करता बल्कि ये संचालक, प्रबन्धक, सहायक प्रबन्धक, विभागीय प्रबन्धक व उनके अधीनस्थों के सहयोग से निर्धारित किए जाते हैं।


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