B.Com 2nd Year Tax Management Long Notes In Hindi

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1 – कर-निर्धारण के विभिन्न प्रकारों को संक्षेप में समझाइए। 

Explain briefly the different types of Assessment. 

उत्तर – कर-निर्धारण के प्रकार

(Types of Assessment) 

धारा 139 (A) के अनुसार कर-निर्धारण निम्न प्रकार के होते हैं

I स्वयं कर-निर्धारण (Self Assessment) 

II. नियमित कर-निर्धारण (Regular Assessment)

III. सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण (Best Judgement Assessment) _

IV. पुन: कर-निर्धारण (Re-assessment) 

1. स्वयं कर-निर्धारण (Self Assessment)

धारा 140 (A) के अनुसार दाखिल किए जाने वाले आय के विवरण के आधार पर देय कर में से पूर्व चुकाए गए कर को घटाकर कर की जो देय राशि बचे, वह राशि तथा यदि आय का विवरण दाखिल करने में हुए विलम्ब या अग्रिम कर चुकाने में चूक अथवा देर हुई हो तो इसके कारण देय ब्याज विवरण दाखिल करने के पूर्व चुकाना होगा और दोनों राशियों को चुकाने का प्रमाण आय के विवरण के साथ नत्थी करना होगा।

इस प्रकार के कर-निर्धारण को स्व कर-निर्धारण इसलिए कहते हैं कि इसमें करदाता स्वयं अपनी कुल आय की गणना करता है और इस आय पर कर की गणना करता है तथा कर की राशि का भुगतान करता है। 

स्वयं कर-निर्धारण पर देय ब्याज की गणना 

(Computation of the Interest given on Self Assessment)

धारा 234-A एवं 234-B के अन्तर्गत देय ब्याज की गणना –

(1) रिटर्न में घोषित आय पर देय कर 

(2) घटाया – अग्रिम कर की राशि

उद्गम स्थान पर कर की राशि 

(3) घटाया – भारत से बाहर दिया गया कर

(धारा 90, 90A, 91 के अधीन) कटौती एवं संग्रह की

वह राशि जिस पर ब्याज लगेगा 

नोट – (i) आय का विवरण देय तिथि के बाद दाखिल करने पर धारा 234-A के अन्तर्गत ब्याज लगता है।

(ii) अग्रिम कर भुगतान चूक करने पर धारा 234-B के अन्तर्गत ब्याज लगता है।

II. नियमित कर-निर्धारण (Regular Assessment)

धारा 143 (1) के अनुसार

1. संक्षिप्त कर-निर्धारण अथवा आय के विवरण के आधार पर कर-निर्धारण (Assessment on the basis of evidence or Scrutiny Assessment)-जब आय का विवरण दाखिल कर दिया जाता है और कर-निर्धारण अधिकारी विवरण से सन्तुष्ट हो तो वह बिना करदाता को बुलाए तथा बिना पूछताछ के कर-निर्धारण कर देता है। इसे संक्षिप्त कर-निर्धारण अथवा आय के विवरण के आधार पर कर-निर्धारण कहते हैं।

(i) यदि विवरण के आधार पर कोई कर अथवा ब्याज देय है तो करदाता को ऐसी राशि चुकाने की सूचना दी जाएगी और यह सूचना माँग का नोटिस मानी जाएगी।

(ii) यदि विवरण के आधार पर करदाता की कोई वापसी देय निकलती है तो ऐसी वापसी उसे कर दी जाएगी और इसकी सूचना करदाता को दी जाएगी।

(iii) अन्य दशा में विवरणी की अभिस्वीकृति सूचना मानी जाएगी।

जिस वित्तीय वर्ष में रिटर्न दाखिल किया गया है, उपर्युक्त सूचना उसकी समाप्ति से एक वर्ष के पश्चात् नहीं भेजी जा सकती।

2. सबूतों के आधार पर कर-निर्धारण (Assessment on the basis of Ju Evidence)-धारा 143 (3) के अनुसार यदि कर-निर्धारण अधिकारी आय के विवरण की अन सत्यता अथवा सम्पूर्णता का सत्यापन करना आवश्यक समझता है ताकि वह यह निश्चय कर सके कि आय कम नहीं दिखाई गई है अथवा हानि अधिक नहीं दिखाई गई है अथवा कर कम नहीं चुकाया गया है तो वह करदाता को धारा 143(2) के अन्तर्गत नोटिस देगा कि वह विनिर्दिष्ट तारीख को उसके कार्यालय में उपस्थित हो अथवा अपनी आय के विवरण के पक्ष में सबूत प्रस्तुत करे।

3. सबूतों के बाद कर-निर्धारण (Assessment after Evidence)-धारा 143 (3) के अनुसार नोटिस के उत्तर में करदाता द्वारा प्रस्तुत किए गए सबूतों तथा कर-निर्धारण अधिकारी द्वारा विशिष्ट बिन्दुओं पर माँगे गए सबतों को सुनकर तथा अन्य सम्बन्धित सामग्री को विचार में रखकर कर-निर्धारण अधिकारी उसकी कुल आय अथवा हानि | निर्धारित करेगा और इसके आधार पर करदाता द्वारा देय धन भी निर्धारित करेगा जिसका वह स लिखित में आदेश देगा। 

III. सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण (Best Judgement Assessment)

धारा 144 के अनुसार जब करदाता कर-निर्धारण के लिए कर-निर्धारण अधिकारी को | सहयोग नहीं करता है तो अधिकारी अपने पास एकत्रित सामग्री एवं तथ्यों के आधार पर अपन सर्वोत्तम विवेक से जो कर-निर्धारण करता है, उसे ‘सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण’ कहत हा ऐसे कर-निर्धारण को एकपक्षीय कर-निर्धारण (Ex-parte Assessment) भी कहते है।

सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण से पूर्व करदाता को नोटिस दिया जाएगा कि करदाता पर बताए कि उस पर सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण क्यों न कर दिया जाए। यदि करदाता । नोटिस का सन्तोषजनक उत्तर नहीं देता तो उसके विरुद्ध ऐसा निर्धारण कर दिया जाए।

सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण दो प्रकार का होता है-

1 अनिवार्य, 2. विवेकीय।

1 अनिवार्य सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण (Compulsory Best Judgement sessment)-कर-निर्धारण अधिकारी निम्नलिखित में से किसी भी दशा में सर्वोत्तम मर्णय कर-निर्धारण कर सकता है

(i) यदि करदाता अपनी आय का स्वैच्छिक अथवा नोटिस की प्राप्ति के बाद भी बवरण दाखिल नहीं करता है, अथवा

(ii) यदि करदाता नोटिस के अनुसार लेखे अथवा अन्य प्रपत्र अथवा माँगी गई सूचनाएँ प्रस्तुत नहीं करता है अथवा अपने लेखों का अंकेक्षण नहीं कराता है, अथवा

(iii) यदि करदाता नोटिस मिलने पर सुनवाई के लिए कार्यालय में उपस्थित नहीं होता है, अथवा आय के विवरण के पक्ष में सबूत प्रस्तुत नहीं करता है तो कर-निर्धारण अधिकारी सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण कर सकता है।

सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण के विरुद्ध उपाय (Remedy against Best Judgement Assessment)-अपील करना (Remedies against Ex-parte Judgement)-यदि करदाता की सम्मति में कर-निर्धारण अधिकारी ने ऐसे कर-निर्धारण में अनुचित रूप से अत्यधिक कर लगा दिया है तो

(1) करदाता को अधिकार है कि वह कमिश्नर (अपील) के यहाँ अपील कर सकता है।

(2) करदाता कमिश्नर (अपील) के निर्णय के विरुद्ध अपीलेट ट्रिब्यूनल में अपील कर कता है।

(3) यदि किसी मामले में कानूनी प्रश्न सन्निहित हो तो वह उस मामले में उच्च न्यायालय अपील कर सकता है।

(4) करदाता कमिश्नर को पुनर्विचार हेतु प्रार्थना-पत्र दे सकता है।

2. विवेकीय सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण (Discretionary Best Judgement Assessment)-धारा 145 (2) के अनुसार निम्नलिखित दशाओं में विवेकीय सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण किया जाता है

(1) यदि कर-निर्धारण अधिकारी करदाता के हिसाब-किताब की शुद्धता तथा पूर्णता से सन्तुष्ट न हो, अथवा

(2) करदाता ने हिसाब की कोई पद्धति नियमितता से न अपनायी हो तो कर-निर्धारण अधिकारी अपने विवेक से धारा 144 के अन्तर्गत सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण कर सकता है। से कर-निर्धारण के विरुद्ध करदाता को अपील करने का अधिकार है। 

IV.पुनः कर-निर्धारण (Re-assessment)कर-निर्धारण से बची आय (Income Escaping Assessment)-धारा 147 अनुसार यदि कर-निर्धारण अधिकारी को यह विश्वास करने का कारण है कि किसी कर-निर्धारण वर्ष के सम्बन्ध में कोई कर-योग्य आय कर लगने से बच गई अथवा छूट गई है है (धारा 148 से 153 तक के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए) ऐसी आय का धारण अथवा पुन: कर-निर्धारण कर सकता है।

निम्नलिखित दशाओं में कर-निर्धारण से बची हुई अथवा छूटी हुई आय जाएगी

(1) यदि करदाता ने आय का विवरण दाखिल नहीं किया है, यद्यपि उसकी कल न्यूनतम कर-योग्य सीमा से अधिक है।

(2) यदि करदाता ने आय का विवरण तो दाखिल कर दिया है, परन्त उस कर-निर्धारण नहीं हुआ है तथा यह पाया जाता है कि करदाता ने विवरण में अपनी आय का दिखाई है अथवा अधिक हानि अथवा कटौती आदि की माँग की है।

(3) यदि कर-निर्धारण हो गया है, परन्तु (i) कर-योग्य आय कम निर्धारित की गई है। अथवा (ii) बहुत कम दर से कर लगा है, अथवा (iii) कोई हानि, छूट, ह्रास की छूट अथव इस अधिनियम के अन्तर्गत अन्य कोई छूट अधिक स्वीकार हो गई है।

(4) यदि किसी छूटी हुई आय के सम्बन्ध में एक बार कोई कर-निर्धारण पुन: खोल दिया जाता है तो इस धारा के अन्तर्गत चल रही कार्यवाही के दौरान यदि कर-निर्धारण अधिकारी को किसी अन्य छूटी हुई आय का पता चल जाता है तो ऐसी आय को भी वह क कर-निर्धारण में सम्मिलित कर सकता है।

प्रश्न 2-‘सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण’ से क्या तात्पर्य है? कर-निर्धारण की इस पद्धति को किन परिस्थितियों में अपनाया जाता है? क्या ऐसे कर-निर्धारण के विरुद्ध करदाता के पास कोई उपचार है?

What do you mean by ‘Best Judgement Assessment’? Under what circumstances it is made by the Assessing officer ? Are there remedies for open to the assessee against such assessment ? 

उत्तर – सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण

(Best Judgement Assessment) 

धारा 144 के अनुसार, जब करदाता कर-निर्धारण के लिए कर-निर्धारण अधिकारी को सहयोग नहीं करता है तो अधिकारी अपने पास एकत्रित सामग्री एवं तथ्यों के आधार पर अपने सर्वोत्तम विवेक से जो कर-निर्धारण करता है, उसे ‘सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण’ कहते हैं। ऐसे कर-निर्धारण को एकपक्षीय कर-निर्धारण (Ex-parte Assessment) भी कहते हैं।

सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण से पूर्व करदाता को नोटिस दिया जाएगा कि करदाता यह बताए कि उसे सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण क्यों न कर दिया जाए। यदि करदाता इस नोटिस का सन्तोषजनक उत्तर नहीं देता तो उसके विरुद्ध ऐसा निर्धारण कर दिया जाएगा।

सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण दो प्रकार का होता है

1. अनिवार्य, 2. विवेकीय। 

I. अनिवार्य सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण 

(Compulsory Best Judgement Assessment)

कर-निर्धारण अधिकारी अग्रलिखित में से किसी भी दशा में सर्वोत्तम कर-निर्धारण कर सकता है –

(1) यदि करदाता अपनी आय का स्वैच्छिक अथवा नोटिस की प्राप्ति के बाद भी विवरण दाखिल नहीं करता है, अथवा

(2) यदि करदाता नोटिस के अनुसार लेखे अथवा अन्य प्रपत्र अथवा माँगी गई सूचनाएँ प्रस्तत नहीं करता है अथवा अपने लेखों का अंकेक्षण नहीं कराता है।

(3) यदि करदाता नोटिस मिलने पर सुनवाई के लिए कार्यालय में उपस्थित नहीं होता है, अथवा आय के विवरण के पक्ष में सबूत प्रस्तुत नहीं करता है तो कर-निर्धारण अधिकारी सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण कर सकता है।

सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण के परिणाम (Consequences of Best Judgement Assessment)-

सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण के निम्नलिखित परिणाम है।

(i) करदाता पर अर्थदण्ड लगाया जा सकता है। 

(ii) करदाता का अभियोजन (Prosecution) किया जा सकता है।

(iii) अधिक कर लगाने के सम्बन्ध में सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण के विरुद्ध अपील करने की दशा में करदाता को अपीलेट अधिकारी के समक्ष नए तथ्य प्रस्तुत करने से रोक दिया जाता है।

(iv) कर की वापसी अस्वीकृत की जा सकती है।

सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण के विरुद्ध उपाय अपील करना (Remedies against Best Judgement Assessment : To file an Appeal)-यदि करदाता की सम्मति में कर-निर्धारण अधिकारी ने ऐसे कर-निर्धारण में अनुचित रूप से अत्यधिक कर लगा दिया है तो

(i) करदाता को अधिकार है कि वह कमिश्नर (अपील) के यहाँ अपील कर सकता है।

(ii) करदाता कमिश्नर (अपील) के निर्णय के विरुद्ध अपीलेट ट्रिब्यूनल में अपील कर सकता है।

(iii) यदि किसी मामले में कानूनी प्रश्न सन्निहित हो तो वह उस मामले में उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।

(iv) करदाता. कमिश्नर को पुनर्विचार हेतु प्रार्थना-पत्र दे सकता है। 

II. विवेकीय सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण 

(Discretionary Best Judgement Assessment)

धारा 145 (2) के अनुसार निम्नलिखित दशाओं में विवेकीय सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण किया जाता है

(1) यदि कर-निर्धारण अधिकारी करदाता के हिसाब-किताब की शुद्धता तथा पूर्णता से सन्तुष्ट न हो, अथवा

(2) करदाता ने हिसाब की कोई पद्धति नियमितता से न अपनायी हो तो कर-निर्धारण अधिकारी अपने विवेक से धारा 144 के अन्तर्गत सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण कर सकता है। एस कर-निर्धारण के विरुद्ध करदाता को अपील करने का अधिकार है।

प्रश्न 3 – ‘कर के अग्रिम भुगतान’ से आप क्या समझते हैं? इस सम्बन्ध अधिनियम के प्रमुख आयोजनों को स्पष्ट कीजिए।

What do you understand by Advance Payment of Tax ? Explain clearly the provisions of the Act in this respect.

उत्तर – इसे ‘कर का अग्रिम भगतान’ या ‘चुकाओ जैसे कमाओ’ कहा जाता है। ‘चुकाओ जैसे कमाओ’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि करदाता जैसे-जैसे आय कमाता है. वैसे-वैसे उस पर कर देता जाता है। यह कर चालू वर्ष की आय पर उसी वर्ष में दिया जाता है।

अग्रिम कर चुकाने के लिए आय

(Income for Tax Deducted at Source) 

धारा 207 के अनुसार अग्रिम कर किसी वित्तीय वर्ष में करदाता को अपनी उस कल आय पर चुकाना होता है जिस पर इस वित्तीय वर्ष के ठीक बाद आने वाले कर-निर्धारण वर्ष में कर लगेगा और इसे ‘चालू आय’ कहते हैं।

अग्रिम कर का दायित्व कब उत्पन्न होता है (When does Liability to Pay Advance Tax arises) 

यदि किसी वित्तीय वर्ष में करदाता द्वारा देय कर की राशि रू. 10,000 अथवा उससेअधिक हो तो उस वित्तीय वर्ष में अग्रिम कर चुकाना होगा।

अग्रिम कर की गणना

(Computation of Advance Tax) 

एक वित्तीय वर्ष में किसी करदाता द्वारा देय अग्रिम कर की रकम की गणना निम्न प्रकार की जाती है –

1. करदाता द्वारा कर की गणना (Computation by the Assessee)-यदि अग्रिम कर देय है तो करदाता स्वयं उस वित्तीय वर्ष में अपनी अनुमानित चालू आय पर उस वित्तीय वर्ष में लागू अग्रिम कर दरों से देय अग्रिम कर की गणना करेगा और उसे जमा कर देगा, भले ही उस पर कभी कर-निर्धारण हुआ हो अथवा नहीं। ___

2. कर-निर्धारण अधिकारी द्वारा कर की गणना (Computation by Assessing Officer)–यदि किसी करदाता पर नियमित कर निर्धारण पहले कभी हो चुका है और उसन अग्रिम कर नहीं चुकाया है तो कर-निर्धारण अधिकारी सबसे अन्त में हुए निर्धारण में निर्धारित कुल आय अथवा यदि बाद में किसी वर्ष का, करदाता ने आय का विवरण दाखिल कर दिया है। तो उसमें दिखाई गई कुल आय, जो दोनों में अधिक हो, के आधार पर उस वित्तीय वर्ष में लाग अग्रिम कर की दरों से अग्रिम कर की गणना करेगा।

3. उपयुक्त पेरा (1) अथवा (2) में गणना की गई आयकर की राशि में से उद्गम स्थान पर काटी जाने वाली आयकर की राशि घटाकर जो राशि बचे वह अग्रिम कर की देय राशि हा बशर्ते कि वह आय, जिस पर उद्गम स्थान पर कर की कटौती होनी है, चालू आय अथवा 3 आय की गणना करने में शामिल कर ली गई है।

पुँजीगत लाभ एवं आकस्मिक आय पर अग्रिम कर का भुगतान 

(Payment of Advance Tax on Capital Profits and on Casual Income)

कभी-कभी करदाता के लिए यह सम्भव नहीं होता है कि वह पूँजीगत लाभ अथवा शाकस्मिक आय (लॉटरी, वर्ग पहेली, दौड़ें) घुड़दौड़ सहित (ताश का खेल, जआ, शर्त आदि) का सही-सही अनुमान लगा सके। इन परिस्थितियों में यदि आय किसी देय किस्त की तिथि के पश्चात् होती है तो ऐसी आय पर देय कर शेष किस्तों में चुकाया जाएग यदि आय गत वर्ष मे 15 मार्च के पश्चात् होती है तो इसका भुगतान गत वर्ष में 31 मार्च तक किया जा सकता है।


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