B.Com 2nd Year Winding Up Of Companies Long Notes

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1- कम्पनी के समापन और विघटन में अन्तर बताइए। संक्षेप में समापन की विभिन्न विधियाँ बताइए।

Distinguish between Winding-up and Dissolution of A Company. State briefly the various methods of winding-up.

उत्तर – कम्पनी के समापन का अर्थ एवं परिभाषाएँ

(Meaning and Definitions of Winding-up of A Company) __

 कम्पनी के समापन का आशय एक ऐसी कार्यवाही से है जिसमें कम्पनी का व्यापार बन्द कर दिया जाता है और उसकी सम्पत्तियों को बेचकर लेनदारों का भुगतान करने के बाद यदि कुछ शेष बचता है तो उसे कम्पनी के अन्तर्नियमों की व्यवस्था के अनुसार अंशधारियों में बाँट दिया जाता है। यदि कम्पनी के पास समापन के समय इतना धन एकत्र नहीं हो पाता है कि वह सभी लेनदारों का पूरा-पूरा भुगतान कर सके तो ऐसी स्थिति में कम्पनी अपने अंशधारियों से उनके दायित्वों के अनुसार रकम माँगती है। जैसा कि हम जानते ही हैं कि कम्पनी विधान द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है, अत: इसका समापन भी विधान द्वारा ही किया जा सकता है। संक्षेप में, कम्पनी के समापन से अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा कम्पनी का वैधानिक रूप से अन्त अथवा समापन हो जाता है।

प्रोफेसर गोवर के अनुसार, “कम्पनी का समापन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा उसका जीवन समाप्त किया जाता है और उसकी सम्पत्ति उसके ऋणदाताओं तथा सदस्यों के लाभ के लिए प्रयुक्त की जाती है। एक प्रशासक जिसे निस्तारक कहते हैं, नियुक्त किया जाता है जो (i) कम्पनी का नियन्त्रण अपने हाथ में ले लेता है, (ii) सम्पत्ति को एकत्र करता है, (ii) ऋणदाताओं को भुगतान करता है, (iv) यदि कोई शेष बचता है तो उसे सदस्यों में उनके अधिकारों के अनुसार बाँट देता है।”

पैनीगटन के अनुसार, “समापन एक प्रक्रिया है जिसके अनुसार कम्पनी का प्रबन्ध उसके संचालकों के हाथों से छीन लिया जाता है, निस्तारक द्वारा कम्पनी की सम्पत्तियों से धन वसूल किया जाता है तथा इस धन में से उसके ऋणों का भुगतान करके शेष बची राशि सदस्यों अथवा अंशधारियों को वापस लौटा दी जाती है।”

एम०सी० कुच्छल के अनुसार, “कम्पनी के समापन अथवा समाप्ति से आशय उस प्रक्रिया से है जो एक कम्पनी के जीवन का अन्त करती है।”

निष्कर्ष – उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात् निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि “कम्पनी के समापन से आशय ऐसी प्रक्रिया से है जिसके द्वारा कम्पनी के जीवन का अन्त हो जाता है तथा उसकी सम्पत्तियों से धन वसूल करके उसमें से ऋणदाताओं का भुगतान किया जाता है एवं जो कुछ शेष बचता है उसे उसके सदस्यों को उनके अधिकारों के अनुपात में लौटा दिया जाता है।”

कम्पनी के विघटन/समाप्ति से आशय

(Meaning of Dissolution of A Company) 

‘समाप्ति’ अथवा ‘विघटन’ से आशय कम्पनी के अस्तित्व का पूर्णरूपेण अन्त हा जा से है। इस प्रकार कम्पनी का विघटन, समापन की तुलना में एक व्यापक शब्द है जिसमें का का समापन भी सम्मिलित है। विघटन के पश्चात् कम्पनी से सम्बन्धित कोई कार्य नहीं । जाता है। कम्पनी का विघटन उसी तिथि से हुआ माना जाता है जिस तिथि को विद्या आदेश निर्गमित किया जाता है।

 कम्पनी के समापन तथा विघटन में अन्तर 

(Differences between Winding-up and Dissolution of A Company)

सामान्यतया कम्पनी के समापन तथा विघटन दोनों शब्दों को एक-दूसरे के पर्यायवाचा शब्दों के रूप में प्रयोग किया जाता है परन्तु इन दोनों में अन्तर है। समापन के द्वारा कम्पनी का वैधानिक अस्तित्व समाप्त हो जाता है जबकि विघटन के द्वारा कम्पनी का पूर्ण अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। इन दोनों का अन्तर निम्न तालिका से स्पष्ट हो जाता है –

प्रश्न 2 – किन दशाओं में न्यायालय द्वारा कम्पनी का समापन किया जा सकता है? अनिवार्य समापन से सम्बन्धित वैधानिक व्यवस्थाओं को स्पष्ट कीजिए।

Under what circumstances may a company be wound-up by the court ? Explain the legal provisions relating to compulsory “winding-up. 

अथवा एक कम्पनी के समापन की विभिन्न विधियाँ कौन-सी हैं? न्यायालय द्वारा अनिवार्य समापन की प्रक्रिया का विवरण दीजिए।

What are the various modes of winding-up of a company ? Describe the procedure of compulsory winding-up by the court. 

उत्तर – कम्पनी समापन का अर्थ (Meaning of Winding-up of a Company) 

कम्पनी, विधान द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है अत: इसका समापन भी विधान द्वारा ही किया जा सकता है। कभी-कभी कम्पनी के लगातार घाटे में चलने पर यह आवश्यक हो जाता है कि कम्पनी का समापन कर दिया जाए और उसकी विभिन्न सम्पत्तियों को बेचकर लेनदारों का भुगतान करने पर यदि कुछ राशि बचे तो उसे सदस्यों में बाँट दिया जाए।

अत: संक्षेप में, “समापन से आशय उस वैधानिक रीति से है जिसके द्वारा एक कम्पनी का अन्त हो जाता है।”

कम्पनी भंग से आशय

(Concept of Dissolution of a Company)

कम्पनी भंग से आशय व्यापार के विघटन के फलस्वरूप उसके बन्द हो जाने सहा कोई कम्पनी एकीकरण अथवा पुनर्निर्माण की योजना के अधीन किसी अन्य कम्पनी हस्तान्तरित हो जाती है तो न्यायालय ऐसी कम्पनी का समापन किए बगैर उसे भग आज्ञा दे देता है।

कम्पनी समापन एवं कम्पनी भंग में अन्तर 

(Difference between Winding-up and Dissolution of a Company) 

सामान्यत: समापन’ और ‘भंग’ दोनों शब्दों को एक ही अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है परन्तु ‘कम्पनी अधिनियम’ की दृष्टि से कम्पनी के समापन और भंग में महत्त्वपूर्ण अन्तर है। वास्तव में ‘कम्पनी समापन’ की स्थिति में कम्पनी का अस्तित्व उस समय तक बना रहता है जब तक कि समापन पूर्ण नहीं हो जाता, जबकि ‘कम्पनी भंग’ की दशा में कम्पनी का अस्तित्व तुरन्त ही समाप्त हो जाता है।

कम्पनी के समापन की विधियाँ या रीतियाँ

(Modes of Winding-up of A Company) 

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 270 के अनुसार, कम्पनी के समापन की निम्नलिखित रीतियाँ हैं

I. अधिकरण द्वारा समापन या अनिवार्य समापन, अथवा 

II. कम्पनियों का स्वेच्छा से या ऐच्छिक समापन

(i) सदस्यों द्वारा ऐच्छिक समापन, अथवा

(ii) ऋणदाताओं द्वारा ऐच्छिक समापन, अथवा

नोट – कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 552 के अन्तर्गत न्यायालय के निरीक्षण में समापन के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है।

I. अधिकरण द्वारा समापन या अनिवार्य समापन [धारा 271] 

(Winding-up By Court or Compulsory Winding-up)

जब कम्पनी का समापन अधिकरण द्वारा होता है तो वह अधिकरण द्वारा समापन या अनिवार्य समापन कहलाता है। धारा 271 के अनुसार, अधिकरण निम्नलिखित दशाओं में कम्पनी के अनिवार्य समापन के लिए आदेश दे सकता है –

1. ऋण चुकाने में असमर्थता (Inability to pay Debts)[धारा 271(a)]-यदि कम्पनी अपने ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाए तो अधिकरण (Tribunal) समापन का आदेश दे सकता है। धारा 271 के अनुसार, निम्नलिखित दशाओं में यह माना जाएगा कि कम्पनी अपने ऋण चुकाने में असमर्थ है

(i) वैधानिक सूचना (Statutory Notice)-एक लाख रुपये या इससे अधिक का ऋण देने वाले व्यक्ति द्वारा लिखित सूचना देने के पश्चात् यदि कम्पनी 21 दिन के भीतर ऋण का भुगतान नहीं करती या उसको अन्य प्रकार से सन्तुष्ट नहीं करती तो यह माना जाएगा कि कम्पनी ऋण चुकाने के अयोग्य है। परन्तु यदि कम्पनी सत्यनिष्ठा से ऋण को विवादास्पद मानती है एवं अधिकरण इससे सन्तुष्ट है तो वह समापन का आदेश नहीं देगा।

(ii) डिक्री ऋण (Decreed Debt)-यदि किसी ऋणदाता ने कम्पनी के विरुद्ध अधिकरण (Tribunal) से डिक्री आदेश (decree) प्राप्त किया है और कम्पनी उसका भुगतान करने में असमर्थ है तो यह माना जाएगा कि कम्पनी अपना ऋण चुकाने में असमर्थ है।

(iii) व्यापारिक दिवालियापन (Commercial Insolvency)-यदि अधिकरण (Tribunal) को यह प्रमाणित कर दिया जाता है कि कम्पनी ऋण चुकाने के अयोग्य है तो यह निर्धारित करने के लिए कि क्या कम्पनी ऋण चुकाने के अयोग्य है, अधिकरण (Tribunal) कम्पनी के संदिग्ध एवं भावी दायित्वों (Contingent and future liabilities) को ध्यान में रखेगा। इस धारा में यह प्रमाणित नहीं करना होता कि क्या कम्पनी की सम्पत्तियाँ, दायित्वों से मि अधिक हैं बल्कि यह प्रमाणित करना होता है कि क्या वह अपने वर्तमान दायित्वों को पूरा करने नि में समर्थ है। यदि कम्पनी अपने दायित्वों को पूरा करने में असमर्थ हो तो वह व्यापारिक रूप से ऐ दिवालिया (Commercially Insolvent) होगी तथा उसका समापन किया जा सकेगा।

2. कम्पनी के विशेष प्रस्ताव द्वारा [धारा 271(b)] (Special Resolution of the Company) यदि कम्पनी इस आशय का एक विशेष प्रस्ताव पारित कर देती है कि अधिकरण द्वारा कम्पनी का समापन कर दिया जाए तो ऐसी दशा में अधिकरण यदि उचित समझे तो कम्पनी का समापन कर सकता है। यद्यपि ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर अधिकरण अ कम्पनी का समापन करने हेतु बाध्य नहीं है तथा यह उसका स्वैच्छिक अधिकार है एवं वह अपने इस अधिकार का प्रयोग समापन हेतु भी करता है जब कम्पनी का समापन जनहित तथा ऐ कम्पनी के हित में हो। समापन सम्बन्धी निर्णय लेते समय ‘जनहित’ पर गम्भीर विचार | आवश्यक है।

3. भारत की सम्प्रभुता, अखण्डता एवं सुरक्षा आदि के विरुद्ध कार्य करने पर [धारा 281(c)]-यदि कम्पनी ने भारत की प्रभुसत्ता (Sovereignty) ओर अखण्डता (Integrity) के विरुद्ध राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध, सार्वजनिक शालीनता (Decency) या नैतिकता के विरुद्ध कार्य किया है।

4. अधिकरण द्वारा अध्याय XIX के अन्तर्गत बीमार कम्पनी के समापन का आदेश देने पर।

5. यदि रजिस्ट्रार द्वारा या अधिनियम के अन्तर्गत अधिसूचना के द्वारा केन्द्र सरकार द्वारा अधिकृत व्यक्ति के द्वारा अधिकरण को आवेदन किया जाता है, अधिकरण राय में कम्पनी का कार्य कपटपूर्ण तरीके से किया जा रहा है या कम्पनी का निर्माण कपटपूर्ण एवं अवैधानिक उद्देश्यों के लिए किया गया था या कम्पनी के निर्माण तथा इसके प्रबन्ध से सम्बन्धित व्यक्ति कपट, गलत कार्यों या दुराचार का दोषी है और यह उचित है कि कम्पनी का समापन कर दिया स जाए।

6. रजिस्ट्रार के पास वित्तीय विवरणों अथवा वार्षिक विवरणों को जमा न करना धारा 271(11] – यदि कम्पनी ने तुरन्त पूर्व के पाँच वित्तीय वर्षों के अपने वित्तीय विवरण या ज वार्षिक विवरणियाँ रजिस्ट्रार के यहाँ फाइल नहीं की हैं।

7. समापन उचित एवं न्यायसंगत होने पर (Just and Equitable) [धारा 271(g)] – यदि अधिकरण की दृष्टि में कम्पनी का समापन करना उचित एवं न्यायसंगत है तो अधिकरण द्वारा कम्पनी के समापन का आदेश दिया जा सकता है।

II. कम्पनियों का ऐच्छिक समापन 

(Voluntary Winding-up)

जब कम्पनी के सदस्य एवं ऋणदाता, अधिकरण के हस्तक्षेप के बिना आपस में मिलकर स्वयं ही कम्पनी को समाप्त करने एवं अपने मामलों को पारस्परिक समझौतों द्वारा निपटाने के लिए सहमत हो जाते हैं तो समापन को कम्पनी का ऐच्छिक समापन कहते हैं। 

ऐच्छिक समापन की दशाएँ (धारा 304) 

(Conditions of Voluntary Winding-up).

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 304 के अनुसार, निम्नलिखित दशाओं में कम्पनी का ऐच्छिक समापन हो सकता है-

(अ) जहाँ अन्तर्नियमों के अन्तर्गत कम्पनी के कार्य करने की अवधि समाप्त हो गई हो अथवा अन्तर्नियमों के अनुसार जिस घटना के घटित होने पर कम्पनी का समापन होना था, वह घटना घटित हो गई हो एवं जिसके परिणामस्वरूप यदि कम्पनी ने साधारण सभा में कम्पनी का । ऐच्छिक समापन करने हेतु साधारण प्रस्ताव पारित कर लिया हो;

(ब) यदि कम्पनी एक विशेष प्रस्ताव पारित करती है कि कम्पनी का स्वैच्छिक समापन कर दिया जाए। कम्पनी के लिए यह आवश्यक नहीं है कि जब इस प्रकार का विशेष प्रस्ताव पारित करे तो उन कारणों को बताए जिनके लिए यह प्रस्ताव पारित किया गया है।

ऐच्छिक समापन के प्रस्ताव की दशा में शोधन क्षमता की घोषणा (धारा 305) 

(Declaration of Solvency in case of Proposal to Wind-up Voluntary) 

1. शोधन क्षमता की घोषणा करना (Declaration of Solvency)-जहाँ कम्पनी का ऐच्छिक रूप से समापन किया जाना प्रस्तावित किया जाता है, इसका कोई निदेशक या निदेशक गण या यदि कम्पनी में दो से अधिक निदेशक हैं तो निदेशकों का बहुमत, मण्डल की सभा में शपथ-पत्र द्वारा सत्यापित घोषणा करेगा कि उन्होंने कम्पनी की स्थिति के बारे में पूर्ण पूछताछ कर ली है और उनकी राय में कोई ऐसा ऋण नहीं है या यह अपने ऋणों का ऐच्छिक समापन के दौरान, बेची गई सम्पत्तियों से प्राप्त धन से उनका पूर्ण भुगतान कर देगी।

2. घोषणा के आवश्यक तत्व (Essential Elements of Declaration)– उपधारा (1) के अन्तर्गत इस अधिनियम के उद्देश्यों के लिए की गई घोषणा प्रभावी नहीं होगी जब तक कि।, (अ) यह घोषणा कम्पनी के समापन के लिए पारित प्रस्ताव की तिथि के तुरन्त पूर्व के – सप्ताह के अन्दर न की गई हो और उस तिथि से पहले रजिस्ट्रार को पंजीकरण के लिए -उसकी सुपुर्दगी न दे दी गई हो;

(ब) इसमें यह घोषणा न हो कि कम्पनी का समापन किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को खा देने के लिए नहीं किया जा रहा है;

(स) इसके साथ तैयार की गई अंकेक्षण रिपोर्ट इस अधिनियम के प्रावधानों के अनसार कम्पनी के अंकेक्षक द्वारा बनाई गई रिपोर्ट की एक प्रति लगाई गई है जिसकी अवधि उस तिथि से आरम्भ होगी जिस पर ऐसा पिछला लाभ-हानि खाता बनाया गया था और घोषणा के तुरन्त पहले की किसी व्यावहारिक तिथि के साथ समाप्त होगी और उस तिथि को बनाए गए कम्पनी के स्थिति विवरण के साथ और उसमें उस तिथि को सम्पत्तियों और दायित्वों का विवरण भी होगा।

(द) जहाँ कम्पनी की सम्पत्तियाँ हैं, यह घोषणा पंजीकृत मूल्यांकक द्वारा बनाई मूल्यांकन रिपोर्ट के साथ न दी गई हो।

3. जहाँ एक कम्पनी का समापन, घोषणा करने के बाद 5 सप्ताह में किया जा रहा है परन्तु इसके ऋण का भुगतान नहीं किया गया है तो जब तक कि इसके विपरीत सिद्ध न कर दिया जाए यह माना जाएगा कि उपधारा (1) के अन्तर्गत की गई घोषणा के लिए निदेशक या निदेशकों के पास उनकी राय के लिए उचित आधार नहीं था।

4. दण्ड (Penalty)-यदि कोई भी निदेशक इस धारा के अन्तर्गत अपनी राय के लिए उचित आधार न होने पर भी यह घोषणा करता है कि ऐच्छिक समापन की दशा में कम्पनी, सम्पत्तियों की बिक्री से प्राप्त राशि में से ऋणों का पूर्ण भुगतान कर देगी तो वह सजा पाने का दायी होगा जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम नहीं होगी और जो पाँच वर्ष तक हो सकती है या जुर्माने के साथ जो पचास हजार रुपये से कम नहीं होगा परन्तु जो तीन लाख रुपये तक हो सकता है या दोनों के साथ।


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