B.Com 3rd Year Depreciation And Reserve Auditing Notes
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हास एवं (Meaning of Depreciation)
किसी सम्पत्ति के मूल्य में उसके अप्रचलित अथवा निरन्तर प्रयोग के कारण होने वाली कमी हो ह्रास कहते हैं। व्यापक अर्थ में, सम्पत्ति के मूल्य में क्रमिक एवं स्थायी गिरावट को ह्रास कहते हैं। आर० जी० विलियम्स के अनुसार, “निरन्तर प्रयोग के कारण सम्पत्ति के मूल्य में आने वाली कमी को ह्रास कहते हैं।” कार्टर के अनुसार, “एक सम्पत्ति के मूल्य में किसी भी कारण होने वाली शनैः शनैः और स्थायी कमी को ह्रास कहते हैं।
“ हास की विशेषताएँ (Characteristics of Depreciation)
- ह्रास की व्यवस्था केवल स्थायी सम्पत्तियों के सम्बन्ध में की जाती है।
- ह्रास से आशय सम्पत्ति के पुस्तक मूल्य में कमी से है न कि बाजार मूल्य से।
- सम्पत्ति के मूल्य में होने वाली यह कमी धीरे-धीरे एवं स्थायी होती है। 4. ह्रास किसी भी कारण से हो सकता है।
ह्रास के कारण (Causes of Depreciation) ह्रास उत्पन्न होने के कारणों को निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- (अ) आन्तरिक कारण (Internal Causes)—ऐसे कारण जो किसी सम्पत्ति के स्वभाव से ही सम्बन्धित होते हैं, आन्तरिक कारण कहलाते हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं- (i) सम्पत्तियों के लगातार प्रयोग किये जाने के कारण (Continuous use) (ii) खदानों की रिक्तता के कारण ह्रास (Depletion of Mines) (iii) समाप्त होने के कारण ह्रास (Due to Exhaustion) 10000 (iv) शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं का ह्रास
(ब) बाह्य कारण (External Causes)—ये ऐसे कारण हैं, जो सम्पत्ति की प्रकृति से प्रभावित न होकर बाहरी कारणों से प्रभावित होते हैं। इन कारणों में सामान्यतया निम्नलिखित को शामिल किया जाता हैं।- (i) सम्पत्तियों का अप्रचलन (Obsolescence of Assets) (ii) समय बीतने से ह्रास (Effluxion of the Time) (iii) दुर्घटना से ह्रास (Depreciation Due to Accident) (iv) सम्पत्ति के बाजार मूल्य में स्थायी गिरावट से ह्रास (Permanent fall in the market value of the assets)
ह्रास के आयोजन की आवश्यकता (Need of Provision for Depreciation) हास का प्रावधान एवं लेखांकन भारतीय लेखांकन प्रमाप 6 (IAS-6) के अनुसार किया जाता है। ह्रास का आयोजन अनिवार्य रूप से किया जाता है। सामान्यतया निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु ह्रास का आयोजन किया जाता है-
- सही/ठीक उत्पादन लागत ज्ञात करने के लिए
- सही लाभ या हानि ज्ञात करने के लिए
- चिट्ठ द्वारा सही आर्थिक स्थिति प्रदर्शित करने के लिए
- सम्पत्तियों के प्रतिस्थापन की व्यवस्था करने हेतु
- लाभांश के रूप में पूँजी का वितरण रोकने हेतु
- कर-भार में वृद्धि से बचने के लिए
- वैधानिक आवश्यकता को पूरा करने के लिए।
ह्रास की विधियाँ (Methods of Depreciation) ह्रास की व्यवस्था करने के लिए व्यवहार में अनेक विधियाँ प्रचलित हैं। उनमें से कुछ प्रमख विधियाँ निम्नलिखित हैं –
- स्थाई किस्त पद्धति या मूल-लागत पद्धति (Fixed Instalment Method or Original Cost Method) – इस विधि के अन्तर्गत सम्पत्ति के सम्बन्ध में एक निश्चित राशि प्रतिवर्ष ह्रास के रूप Write off) की जाती है। यह राशि इतनी होती है कि सम्पत्ति के उपयोगी जीवन के पर सम्पत्ति खाते में उसके अवशिष्ट मूल्य के बराबर राशि शेष रह जाए। इस विधि में ह्रास पति वर्ष समान रहती है। यही कारण है कि इसे ह्रास की सरल रेखा विधि (Straight Line Method) भी कहते हैं। इसके अन्तर्गत ह्रास की गणना के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जा सकता है
.Cost Price – Scrap Value/ Depreciation per Year = Number of Years उन सम्पत्तियों पर हास-व्यवस्था की यह प्रणाली अत्यन्त उपयुक्त सिद्ध होती है, जिनके जीवनकाल का अनुमान ठीक रीति से लगाया जा सकता है, जैसे-पेटेण्ट तथा पट्टे पर ली गयी भूमि अथवा भवन आदि।
- क्रमागत ह्रास पद्धति (Diminishing Balance Method)—इस पद्धति के अन्तर्गत ह्रास की टर प्रतिवर्ष समान रहती है, परन्तु इसकी राशि प्रतिवर्ष सम्पत्ति के ह्रासित मूल्य पर निकाली जाती है। जैसे-जैसे सम्पत्ति की आयु समाप्त (कम) होती जाती है, वैसे-वैसे ह्रास की राशि भी प्रतिवर्ष कम होती जाती है। इस विधि के अन्तर्गत सम्पत्ति का मूल्य कभी भी शून्य नहीं होता। ह्रास-व्यवस्था की पद्धति को मुख्यत: उन सम्पत्तियों के लिए प्रयोग किया जाता है, जो दीर्घकालीन होती हैं तथा जिनकी आयु का अनुमान सरलतापूर्वक नहीं लगाया जा सकता है, जैसे-संयन्त्र एवं मशीनरी, फर्नीचर तथा भवन आदि।
ह्रास के सम्बन्ध में अंकेक्षक के कर्त्तव्य (Duties of Auditor in Connection with Depreciation) हास के सम्बन्ध में अंकेक्षक के निम्नलिखित कर्त्तव्य हैं-
- ह्रास की पर्याप्तता की जाँच करना
- ह्रास की विधि के औचित्य पर विचार करना
- ह्रास की पद्धति में परिवर्तन की जाँच करना
- ह्रास की दर में परिवर्तन की जाँच करना
- प्रबन्धकों के ह्रास सम्बन्धी कर्त्तव्यों की जाँच करना
- प्लाण्ट रजिस्टर की जाँच करना
- कम्पनी के अन्तर्नियमों का पालन
- कम्पनी अधिनियम की व्यवस्थाओं के पालन की जाँच करना
- न्यायाधीशों के निर्णयों का अध्ययन
संचय (Reserve) का अर्थ लाभ का वह भाग जिसे अंशधारियों में वितरित नहीं किया गया है तथा संस्था की आर्थिक स्थिति बूत करने तथा कार्यशील पूंजी को बढ़ाने के उद्देश्य से संस्था में रोक कर रखा गया है, संचय है। आयोजन किसी अधिनियम के तहत अनिवार्य नहीं है वरन् यह पूर्णतया ऐच्छिक होता है।
संचय की विशेषताएँ (Characteristics of Reserve) (1) यह सामान्य उद्देश्य के लिए बनाया जाता है। (ii) यह व्यय अथवा हानि के रूप में नहीं होता है। (iii) इसका निर्माण भूत या वर्तमान लाभों में से ही किया जाता है। (iv) यह लाभों का नियोजन (Appropriation) होता है। (v) इसका प्रयोग संकटकालीन परिस्थिति में लाभांश के वितरण में भी किया जा सकता है। (vi) इससे व्यवसाय की आर्थिक स्थिति सदढ़ होती है, साथ ही कार्यशील पूँजी भी बढ़ती है। (vii) इसका निर्माण वैधानिकत: अनिवार्य नहीं है।
आयोजन (Provision) का अर्थ आयोजन वे रकमें हैं जो लाभ अथवा आगम खाता (Revenue Account) में से निकालकर निश्चित और विशिष्ट आवश्यकताओं या सम्भाव्य हानियों को पूरा करने के लिए सुरक्षित रखी जाती है। स्थायी सम्पत्तियों के मूल्यों में कमी की हानि या ह्रास के लिए व्यवस्था, अप्राप्य एवं संदिग्ध ऋणों के लिए आयोजन, संदिग्ध दायित्वों की पूर्ति के लिए व्यवस्था इसके उदाहरण हैं। आयोजन की दो प्रमख विशेषताएँ हैं- (i) आयोजन निश्चित तौर पर किया जाता है अर्थात् संस्था में लाभ हो या हानि, आयोजन पर इसका प्रभाव नहीं पड़ता है। (ii) इसका निर्माण किसी विशेष उद्देश्य से किया जाता है तथा प्रयोग भी उसी के लिये किया जाता हैं।
गुप्त संचय (Secret Reserve) का अर्थ
गुप्त संचय से आशय ऐसे संचय से है जो संस्था में विद्यमान रहते हुए भी प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक चिट्ठे में नहीं दिखाया जाता। जिस संस्था में गुप्त संचय विद्यमान रहता है उसकी आर्थिक स्थिति चिट्रे में दिखाई गई आर्थिक स्थिति की तुलना में कहीं अधिक अच्छी होती है। गुप्त संचय की स्थिति में व्यवसाय की सम्पत्तियों को वास्तविक मूल्य से कम मूल्य पर तथा दायित्वों को वास्तविक मूल्य से अधिक मूल्य पर दिखाया जाता है। डी पॉला के अनुसार, “गुप्त संचय वह है जिसे चिढे में नहीं दर्शाया जाता है जिसके फलस्वरूप चिट्टे में जो आर्थिक स्थिति दर्शायी जाती है, वह वास्तविक स्थिति की अपेक्षा कहीं अधिक अच्छी होती हैं।
गुप्त संचय के लाभ (1) गुप्त संचय के माध्यम से संस्था की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है। (2) गुप्त संचय से संस्था में कार्यशील पूँजी में वृद्धि हो जाती है। (3) इससे संस्था के प्रतियोगियों को वास्तविक लाभ की जानकारी नहीं हो पाती जिससे अनावश्यक प्रतियोगिता में कमी आती है। (4) गुप्त संचय के माध्यम से आर्थिक संकटों को आसानी से झेला जा सकता है। (5) इससे लाभों की दर को स्थिर बनाए रखा जा सकता है जिससे संस्था में जनता का विश्वास बढ़ता है। (6) गुप्त संचय के माध्यम से प्रबन्धहीनता के कारण होने वाली नीतियों को दबाया जा सकता है।
गुप्त संचय के दोष (1) गुप्त संचय के निर्माण से लाभ-हानि खाता संस्था का सही लाभ नहीं दर्शाता है। (2) इससे संस्था की सम्पत्तियों का गबन आसानी से किया जा सकता है। (3) गुप्त संचय के कारण चिट्ठा संस्था की सही आर्थिक स्थिति को प्रदर्शित नहीं करता। (4) गुप्त संचय के द्वारा प्रबन्धकीय अकुशलता को आसानी से छिपाया जा सकता है। (5) गुप्त संचय के निर्माण से लाभ की मात्रा घट जाती है जिससे अंशों का बाजार मूल्य र लगता है तथा संस्था की ख्याति धूमिल होती है। (6) गुप्त संचय की नीति के कारण चिट्ठे में सम्पत्तियाँ कम मूल्य पर दिखाई जाती हैं जिसस बात कम्पनियों से बीमे की राशि कम प्राप्त होती है।
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