B.Com 3rd Year Liabilities Of An Auditor Study Material Notes

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अंकेक्षक के दायित्व 

  1. (Liabilities of An Auditor)

एक सीमित दायित्व वाली कम्पनी के अंकेक्षक की स्थिति निजी संस्था (एकाकी व्यापार अथ साझेदारी संस्था) के अंकेक्षक से भिन्न है। कम्पनी के अंकेक्षक की नियुक्ति, कम्पनी अधिनियम प्रावधानों के अधीन की जाती है इसलिए कम्पनी अधिनियम में उसके दायित्वों को भी स्पष्ट रूप वर्णित किया गया है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से कम्पनी अंकेक्षक के दायित्व को हम निम्नाला वर्गों में विभक्त कर सकते हैं-

(1) दीवानी दायित्व (Civil Liability)  (क) लापरवाही के लिए दायित्व (Liability for Negligence) (ख) कर्तव्य-भंग के लिए दायित्व (Liability for Misfeasance) 

(II) सापराध कार्यों के लिए दायित्व (Criminal Liability)

(III)  अन्य पक्षों के प्रति दायित्व (Liability to Third Parties) 

(1)  दीवानी दायित्व (Civil Liability) (1)  दीवानी दायित्व को पुन: दो भागों में विभाजित किया जा सकता है (अ) लापरवाही के लिए दायित्व (Liability for Negligence), और (ब) कर्त्तव्य भंग के लिए दायित्व (Liability for Misfeasance)।

(क) लापरवाही के लिए दायित्व (Liability for Negligence)  एजेन्सी अनुबन्ध के अधीन प्रत्येक एजेन्ट का यह कर्त्तव्य होता है कि वह अपने नियोक्ता द्वारा गए कार्य को समुचित सावधानी तथा बुद्धिमानी से करे। एक अंकेक्षक कम्पनी द्वारा नियुक्त किया जाता है और कम्पनी के हितों की रक्षा करने वाला उसका एजेन्ट होता है। यदि वह अपना कार्य करने में लापरवाही दिखलाता है और उसके लापरवाह होने से कम्पनी को आर्थिक हानि हो जाती है तो अंकेक्षक उसके लिए उत्तरदायी होगा। ऐसी स्थिति में कम्पनी अंकेक्षक से क्षतिपूर्ति करवा सकती है। कम्पनी एवं अंकेक्षक के मध्य प्रधान व एजेण्ट का सम्बन्ध होता है। सामान्यतः, एक अंकेक्षक की नियुक्ति कम्पनी के सदस्यों द्वारा की जाती है और इस नाते वें ही उसके प्रधान (Principal) हैं। एजेन्सी अनुबन्ध के अन्तर्गत प्रत्येक एजेण्ट का यह कर्त्तव्य होता है कि वह अपने नियोक्ता द्वारा सौंपे हुए कार्य को पूर्ण विवेक, सावधानी तथा चातुर्य के साथ करे, इसी सिद्धान्त के आधार पर प्रत्येक अंकेक्षक का यह कर्त्तव्य हो जाता है कि अंशधारियों के प्रति अपने दायित्व को निभाने में वह पूर्ण सावधानी, सतर्कता एवं ईमानदारी से काम करे। यदि ऐसा करने में वह लापरवाही दिखाता है तथा उसके नियोक्ता (अंशधारियों अर्थात् कम्पनी) को उसकी लापरवाही के परिणामस्वरूप कोई हानि उठानी पड़ती है, तो वह कम्पनी द्वारा उसके विरुद्ध कार्यवाही करने पर क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी होगा। अंकेक्षक को कितनी सावधानी व विवेक से काम करना चाहिए, यह प्रत्येक समस्या की विभिन्न परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। दूसरे, यह भी स्मरणीय है कि अंकेक्षक की लापरवाही सिद्ध होने पर उस समय तक वह उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है, जब तक कम्पनी को उसकी लापरवाही के कारण हानि न हुई हो। इसी प्रकार आर्थिक हानि होते हुए भी यदि उसकी लापरवाही सिद्ध न हो जाय, तो उस हानि के लिए वह उत्तरदव्यी नहीं ठहराया जा सकता। संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि हानि के बिना लापरवाही के सिद्ध होने पर अंकेक्षक उत्तरदायी नहीं होता है, और ऐसे ही लापरवाही सिद्ध हुए बिना हानि होने पर भी अंकेक्षक का कोई दायत्व नहीं होगा। [An Auditor is not liable for (a) loss without negligence, and (b) negligence without loss.] इस प्रकार लापरवाही के सम्बन्ध में अंकेक्षक से क्षतिपूर्ति कराने हेतु निम्नलिखित दो शर्ते पूरी होनी चाहिये (i) अंकेक्षक के कार्य में लापरवाही सिद्ध होना,  (ii) अंकेक्षक की उस लापरवाही से वास्तव में नियोक्ता को क्षति पहुँचना। अंकेक्षण के सम्बन्ध में विभिन्न वादों में दिए गए निर्णयों के आधार पर निम्नलिखित को असावधानी माना गया है- (1) संचालकों द्वारा उनकी शक्ति के बाहर किए गए लेन-देनों का पता न लगा पाना,  (ii) खुदरा रोकड़ के शेष का सत्यापन न करना,  (iii) त्रुटियों एवं कपटों का पता न लगा पाना,  (iv) संचालकों या अंशधारियों द्वारा पूँजी में से लाभांश बाँटे जाने पर विरोध न करना,  (v) अन्तर्नियमों की अवहेलना का विरोध न करना,  (VI) अप्राप्य ऋणों व इनके विषय में किए गए प्रावधानों की जाँच न करना, (vii) उचित सावधानी तथा कशलता से कार्य न करना। 

लापरवाही के दायित्वों सम्बन्धित निर्णय-(i) आइरिश वलन कम्पनी बनाम टाइसन एवं अन्य – इस विवाद में अंकेक्षक त्रटियों व कपटों का पता न लगा सका जिसके फलस्वरूप पूंजी में से भारत कर दिया गया। न्यायालय ने निर्णय दिया कि यदि अंकेक्षक सावधानी एवं चतुराई से ” गड़बड़ी का पता चल सकता था। अत: अंकेक्षक को लापरवाही के लिए दोषी ठहराया गया।

(ii) इसी प्रकार लन्दन आयल स्टोरेज क० लि० बनाम सीयर हैसलक एण्ड क० के विवाद में न्यायालय ने अंकेक्षक को दोषी ठहराया क्योंकि उसने यह नहीं देखा कि खुदरा रोकड़िये के गल्ले में उतनी धनराशि है या नहीं जितनी खुदरा रोकड़बही के अनुसार होनी चाहिए और इस लापरवाही के लिए अंकेक्षक को हर्जाना देना पड़ा।

(iii) आरमीटेज बनाम ब्रीवर एण्ड नाट, 1933 (Armitage Vs. Brewer and Knott, 1933)-इस मामले में अंकेक्षकों को क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी ठहराया गया। कारण, उन्होंने कुछ लेखा-पत्रों यथा-Wage sheet की जाँच पूर्ण सावधानी तथा विवेक से नहीं की थी, फलतः क्षति उठानी पड़ी। यदि अंकेक्षक सतर्कता से कार्य करता तो मजदूरी सूचियों (Wage Sheets) की गलती पकड़ी जा सकती थी।

(iv) किंग्स्टन कॉटन मिल कम्पनी लि., 1896 (Kingston Cotton Mills Co. Ltd.,1896)-इस मामले में यह निर्णय दिया गया था कि स्टॉक निकालना अंकेक्षक का कर्त्तव्य नहीं है यदि वह सन्देहात्मक परिस्थितियों के अभाव में किसी उत्तरदायी अधिकारी के प्रमाण-पत्रों को स्वीकार कर लेता है, तो उसे लापरवाही के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जायेगा। इस मामले में प्रबन्धक द्वारा स्टॉक का अधिक मूल्य दिखाकर स्टॉक को असत्य बना दिया गया था। स्टॉक को प्रबन्धक ने प्रमाणित किया था। ऐसे प्रमाण-पत्रों को अंकेक्षक स्वीकार कर सकता था। अत: वह स्टॉक की गड़बड़ी के कारण पूँजी में से दिये गये लाभांश के लिए उत्तरदायी नहीं है।

(ख) कर्त्तव्य भंग के लिए दायित्व (Liabilities for Misfeasance) कर्त्तव्य भंग से आशय ऐसे कर्त्तव्य भंग से है, जिसके परिणामस्वरूप कम्पनी को आर्थिक हानि उठानी पड़े। कोई भी अंकेक्षक कर्त्तव्य भंग अथवा विश्वास भंग का अपराध सिद्ध होने पर क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी माना जा सकता है। कर्त्तव्य भंग की दशा में यदि कम्पनी को आर्थिक हानि उठानी पड़े तो अंकेक्षक के अतिरिक्त कम्पनी के संचालक, प्रवर्तक तथा अन्य पदाधिकारी भी उत्तरदायी ठहराये जा सकते हैं। – 

कर्त्तव्य भंग के दायित्वों से सम्बन्धित निर्णय-(i) चिट्टे की सही सूचना अंशधारियों को न देना कर्त्तव्य-भंग है (London and General Bank Case [No. 2], 1895)–उक्त मामले में यह निर्णय दिया गया था कि अंकेक्षक भी कम्पनी का अधिकारी है, और यदि वह अंशधारियों को यह सूचना नहीं देता है कि चिट्ठा उचित रीति से नहीं लिखा गया है, तो वह कर्त्तव्य-भंग के लिए उत्तरदायी है।

(ii) प्रबन्धकों द्वारा कोष के दुरूपयोग की रिपोर्ट न देना, कर्त्तव्य-भंग है (Naidu Vs. P.N. Raghvindra Rao., 1965)—उक्त मामले में प्रबन्धकों द्वारा कम्पनी के कोष व सम्पत्ति का दुरूपयोग किया गया था जिसका वर्णन अंकेक्षक ने अपनी रिपोर्ट में नहीं किया।

निर्णय का सार – न्यायाधीश महोदय ने अंकेक्षक को इस सम्पत्ति व कोष के दुरूपयोग के बारे में अपनी रिपोर्ट में सूचना न देने पर कर्त्तव्य-भंग के लिए दोषी ठहराया।

(II) सापराध कार्यों के लिए दायित्व (Criminal Liability)  जब कोई अंकेक्षक, अंकेक्षण करते समय ऐसे कार्य करता है, जिन्हें वैधानिक दृष्टि से अपराध माना जाता है, तो वे कार्य ‘सापराध कार्य’ कहे जाते हैं। ऐसे कार्यों के लिए अंकेक्षक को अन्य सापराध दोषियों (Criminals) की भाँति ही दण्डित किया जाता है। ऐसे कार्यों के लिए वह अर्थदण्ड का भी भाग हो सकता है तथा उसे जेल भी भेजा जा सकता है। कम्पनी अधिनियम में. अंकेक्षक के सापराध काया , लिए दायित्व के सम्बन्ध में निम्नलिखित दण्ड का प्रावधान है –

(i) प्रविवरण में गलत विवरण (धारा 34) – जब कम्पनी द्वारा जारी किए गए प्रविवरण म गलत कथन वर्णित है तो प्रत्येक व्यक्ति (अंकेक्षक को शामिल करते हए) जिसने उस प्रविवरण का मार करने का आदेश दिया हो उन पर धारा 447 के अन्तर्गत दण्डात्मक कार्यवाही की जा सकती है।

(ii) धारा 143 व 145 का अंकेक्षक द्वारा पालन न किए जाने पर – यदि कोई अंकेक्षक अधिनियम की धारा 143 व 145 के अनुपालन में त्रुटि करता है और वह इन धाराओं के अन्तगत प्रतिवेदन (Report) नहीं देता है या किसी प्रलेख पर हस्ताक्षर या उससे प्रमाणित नहीं करता ह पर 1 लाख रू. से 25 लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

(iii) निरीक्षक की जाँच कार्य में सहायता न करने पर [धारा 2171 – जब कम्पनी का अप केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त निरीक्षक की जाँच के कार्य में सहायता नहीं करता है. तो अंकेक्षक को न्यायालय के अपमान (Contempt of Court) के लिए दोषी माना जा सकता है। ऐसी दशा में उसे 6 भवा5 हजार से 1 लाख रू. तक का अर्थदण्ड या दोनों सजाएं दी जा सकती है. लगातार त्रुटी  करने पर 2,000 रू. प्रतिदिन के आधार पर अर्थदण्ड लगाया जा सकता है। 

(iv) काननी कार्यवाही में सहायता न करने पर [धारा 224] – जब केन्द्रीय सरकार उक्त निरीक्षक पर कम्पनी से सम्बन्धित किसी व्यक्ति पर कानूनी कार्रवाई करती है तो अंकेक्षक को इस कार्रवाई में सहायता करनी चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो उसे न्यायालय की अवमानना के लिए दोषी माना जा सकता है। 

(v)” पस्तकें तथा प्रलेख वापिस न करने पर – जब कम्पनी का समापन हो जाए तो अंकेक्षक को सभी पुस्तकें जो उसके अधिकार में हों, कम्पनी को वापिस कर देने चाहिएँ और यदि वह इस सम्बन्ध में मालय के सम्मुख उपस्थित नहीं होता, तो उसे गिरफ्तार करके न्यायालय में लाया जा सकता है।

(vi) रिपोर्ट में मिथ्या कथन देना [धारा 448] – यदि अंकेक्षक किसी विवरण, रिपोर्ट या माण-पत्र आदि पर झूठा कथन देता है अथवा इन प्रपत्रों में किसी सारभूत तथ्य (Material Fact) को जान बझ कर छिपा लिया गया है तो उसे कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 447 के अनुसार कम से कम 6 माह की सजा जो कि 10 वर्ष तक बढ़ायी जा सकती है, तथा घोटाले में शामिल राशि तक आर्थिक दण्ड जिसे तीन गुना तक बढ़ाया जा सकता है, की सजा दी जा सकती है।

(vii) झूठी गवाही देने पर [धारा 449]-यदि अंकेक्षक शपथ लेकर जान-बूझकर झूठी गवाही देता है तो उसे कम से कम 3 वर्ष का कारावास जिसे 7 वर्ष तक के लिए बढ़ाया जा सकता है तथा साथ में आर्थिक दण्ड जिसे 10 लाख रू. तक बढ़ाया जा सकता है, की सजा दी जा सकती है। भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत अंकेक्षक के सापराध दायित्व (Criminal Liabilities of the Auditor under Indian Penal Code) अंकेक्षक को अन्य व्यक्तियों के समान भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत भी दोषी ठहराया जा सकता है। इसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं :

  1. यदि अंकेक्षक झूठी गवाही (False Evidence) देता है तो उसे धारा 191 के अन्तर्गत अपराधी ठहराया जा सकता है।
  2. अंकेक्षक को जानबूझ कर झूठा प्रमाण-पत्र देने पर धारा 197 के अन्तर्गत अपराधी ठहराया जा सकता है। ___
  3. यदि अंकेक्षक कम्पनी की सम्पत्ति का गैर कानूनी ढंग से उपयोग करता है तो उसे परिस्थितियों अनुसार धारा 403 या धारा 405 के अन्तर्गत अपराधी ठहराया जा सकता है।
  4. यदि अंकेक्षक धोखा देकर कम्पनी की प्रतिष्ठा या सम्पत्ति को हानि पहुंचाता है तो उसे धारा 415 के अन्तर्गत अपराधी ठहराया जा सकता है।
  5. यदि अंकेक्षक हानि पहुँचाने के उद्देश्य से कम्पनी की सम्पत्ति को नष्ट करता है तो उसे धारा 425 के अन्तर्गत अपराधी ठहराया जा सकता है। .
  6. यदि अंकेक्षक जानबूझकर कम्पनी के हिसाब-किताब में गड़बड़ी करता है तो उसे धारा 477 गत अपराधी ठहराया जा सकता है। यदि अंकेक्षक पर कम्पनी के खातों को झूठा करने या जाल का आरोप हो तो उसको अधिक से अधिक 7 वर्ष की सजा तथा जुर्माना हो सकता है।

(III) अन्य पक्षों के प्रति दायित्व (Liability to Third Parties)  चूँकि अंकेक्षक नियोक्ता द्वारा नियक्त किया जाता है, इसलिए वह सिर्फ उसके प्रति ही उत्तरदायी किसी पक्ष के प्रति नहीं। यह उचित भी है, क्योंकि उन (बाह्य) लोगों ने न तो उसे नियुक्त आर न ही वे उसे पारिश्रमिक देते हैं अत: उनके प्रति वह क्यों उत्तरदायी हो। यदि अंकेक्षक करता है तब तो वह अवश्य दायी होगा। किन्तु किसी कपट के अभाव में न्यायालय अन्य पक्ष पाया नहीं ठहरा सकता। यह निर्णय लीलिवरी और डेनिस बनाम गोल्ड, 1893 के मामले में दिया गया था। हाँ, नैतिक दृष्टि से अवश्य अंकेक्षक अन्य पक्षों के प्रति भी दायी होगा। इस दृष्टि से उसका उत्तरदायित्तव केवल अपने नियोक्ता तक ही सीमित नहीं है, वरन् उन अन्य लोगों के प्रति भी होता है जो उसकी रिपोर्ट के आधार पर कम्पनी से व्यवहार करते हैं जैसे कम्पनी को ऋण देने वाले व्यक्ति या बैंक, विनियोजक अथवा संभावित साझेदार आदि।


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