Market Segmentation Notes – B.Com 3rd Year Principal Of Marketing

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बाजार विभक्तीकरण का अर्थ एवं परिभाषाएँ

(Meaning and Definitions of Market Segmentation) 

बाजार विभक्तीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें किसी बाजार के विभिन्न ग्राहकों को उनल विशेषताओं, आवश्यकताओं, व्यवहार आदि के अनुसार समजातीय समूहों में विभाजित किया जाता ताकि प्रत्येक समूह के लिए सही विपणन कार्यक्रम एवं व्यूहरचना का निर्माण किया जा सके। वा विभक्तीकरण उपभोक्ता केन्द्रित होता है। आर० एस० डावर के अनुसार, “ग्राहकों का समूहीकरण अथवा बाजार को टकड़ों में बाटा बाजार विभक्तीकरण कहलाता है।” राबर्ट के अनुसार, “बाजार विभक्तीकरण बाजारों को टुकड़ों में विभाजित करने की रीति ना ताकि उस पर विजय प्राप्त की जा सके।”

बाजार विभक्तीकरण के उद्देश्य

(Objectives of Market Segmentation) 

फिलिप कोटलर के अनुसार, “बाजार विभक्तीकरण का उद्देश्य उपभोक्ताओं के बीच ऐस को ज्ञात करना है जो उन्हें चयन करने अथवा उन्हें विपणन करने में निर्णायक हो सकता है। में, बाजार विभक्तीकरण के प्रमुख उद्देश्य अग्रांकित हैं।

  1. बाजार के सही स्वरूप को समझना। 
  2. बाजार में विद्यमान एवं भावी उपभोक्ताओं में से एकसमान आवश्यकताओं, विशेषताओं, व्यवहार वाले उपभोक्ताओं के समूह बनाना। 
  3. प्रत्येक समूह के उपभोक्ताओं की रुचियों, आवश्यकताओं, पसन्द-नापसन्द की जानकारी करना। 
  4. उन नये बाजार क्षेत्रों को ज्ञात करना जिनमें संस्था की विपणन क्रियाओं का विस्तार किया जा सके। 
  5. समुचित एवं सर्वोत्तम बाजार क्षेत्रों का चयन एवं विकास करना। 
  6. बाजार के प्रत्येक वर्ग के ग्राहकों के लिये विपणन मिश्रण एवं विपणन व्यूहरचना तैयार करना। 
  7. विपणन क्रियाओं को ग्राहक-अभिमुखी बनाना। 
  8. सम्भावित ग्राहकों को वास्तविक ग्राहक बनाना।

बाजार विभक्तीकरण के आधार

(Bases for Market Segmentation) 

बाजार विभक्तीकरण विभिन्न आधारों पर किया जा सकता है। फिलिप कोटलर के अनुसार बाजार विभक्तीकरण के मुख्य आधार निम्नलिखित हैं –

  1. भौगोलिक आधार, 
  2. जनांकिकी आधार, 
  3. मनोवैज्ञानिक आधार, 
  4. क्रेता-व्यवहार सम्बन्धी आधार।

1. भौगोलिक आधार (Geographic Basis)-बाजार विभक्तीकरण भौगोलिक तत्वों, । जैसे-क्षेत्र, जलवायु, घनत्व, राष्ट्र, राज्य, प्रदेश, नगरों एवं गाँवों आदि के आधार पर भी किया जा सकता है। क्षेत्र के आधार पर-ग्रामीण क्षेत्र, अर्द्धशहरी क्षेत्र, शहरी क्षेत्र, जलवायु के आधार पर गर्म क्षेत्र तथा ठण्डे क्षेत्र आदि। भौगोलिक तत्वों के आधार पर बाजार विभक्तीकरण तब ही करना चाहिए – जबकि उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाना हो तथा उसका वितरण दूर-दूर बिखरे हुए उपभोक्ताओं को करना हो। इस प्रकार के बाजार विभक्तीकरण की सहायता से विपणनकर्ता प्रत्येक क्षेत्र की विशेषताओं के अनुरूप अपना विपणन कार्यक्रम समायोजित कर सकता है। 2. जनांकिकी आधार (Demographic Basis)-वर्तमान समय में जनांकिकी तत्वों के आधार पर बाजार विभक्तीकरण करना काफी लोकप्रिय है। इसके अन्तर्गत एक निर्माता विभिन्न समूहों में । जनांकिकी तत्वों के आधार पर अन्तर करने का प्रयास करता है, जैसे-आयु, लिंग, परिवार का – आकार, आय, शैक्षिक स्तर, जाति या धर्म, व्यवसाय आदि।   3. मनोवैज्ञानिक आधार (Psychographic Basis)-जब बाजार को उपभोक्ताओ की जी.. शैली या उनके व्यक्तित्व, जीवन मूल्य आदि के आधार पर विभाजित किया जाता है तो उसे बाजार का मनोवैज्ञानिक आधार पर विभक्तीकरण कहते हैं-

  1. क्रेता व्यवहार सम्बन्धी आधार (Buyer Behaviour Segmentation)-क्रेताओं के उत्पालि क्रय सम्बन्धी निर्णयों के आधार पर बाजार का विभाजन क्रेता-व्यवहार विभक्तांकरण कहलाता के निम्तलिखित घटकों के आधार पर क्रेता-व्यवहार विभक्तीकरण किया जा सकता है—–

(i) क्रय अवसर (Buying Occasions)-क्रेताओं को किसी उत्पाद या सेवा को क्रय करने जा उपयोग करने के अवसरों के आधार पर विभाजित किया जा सकता है, जैसे-शादी विवाह, जन्मदिन वेलेन्टाइन्स डे आदि के अवसरों पर उत्पादों/सेवाओं को खरीदने का निर्णय करते हैं। (ii) लाभ अभिलाषा (Benefits Sought) ग्राहक उत्पाद या सेवा को खरीदते समय उससे कई लाभों की प्राप्ति की अभिलाषा भी रखते हैं, जैसे- बिस्कुट से पेट भरने के साथ शक्ति की अभिलाषा, दाँत साफ करने के साथ दाँतों की तकलीफ से राहत पाने की अभिलाषा के साथ उत्पाद क्रय किया जाता है। (iii) प्रयोग दर (Usage Rate)-कुछ ग्राहक उत्पादों का बहुत अधिक उपयोग करते हैं कुछ कम। अत: बाजार के लोगों को उनके द्वारा उत्पाद के उपयोग करने की दर के आधार पर विभाजित किया जा सकता है। (iv) ब्राण्ड निष्ठा (Brand Loyalty)—ग्राहकों को ब्राण्ड की लोकप्रियता के आधार पर विभक्त किया जाता है।  (v) क्रेता अभिप्रेरक (Buyer Motivation)-इसके अन्तर्गत उन तत्वों को सम्मिलित करते हैं जिनसे प्रभावित होकर क्रेता वस्तु खरीदता है, जैसे-मितव्ययिता, वस्तु के गुण, विश्वसनीयता, प्रतिष्ठा प्राप्ति आदि। _ (vi) प्रवृत्ति (Attitude)-बाजार में उत्पाद के प्रति भिन्न-भिन्न प्रवृत्ति के लोग पाये जाते हैं। इनमें से कुछ उत्पाद के प्रति अति उत्साही, कुछ सकारात्मक, कुछ तटस्थ, कुछ नकारात्मक प्रवृत्ति के हो सकते हैं। अत: उपभोक्ता की इन्हीं प्रवृत्तियों के आधार पर बाजार का विभक्तीकरण किया जा सकता है। बाजार विभक्तीकरण के सम्बन्ध में विपणन रीति-नीतियाँ (Market Strategies towards Market Segmentation)  किसी वस्तु बाजार के क्रेताओं में समानता नहीं पायी जाती है। इस कारण बाजार विभक्तीकरण किया जाता है। अत: क्रेताओं की भिन्नता के अनुसार एक व्यवसायी अपनी विपणन रीति-नीति में भी प अन्तर कर सकता है। बाजार विभक्तीकरण के सम्बन्ध में विपणन प्रबन्धक प्रायः अग्र विपणन रीति-नीतियों का प्रयोग करते हैं –

  1. अभेदित विपणन रीति-नीति (Undifferentiated Marketing Strategy), 
  2. भेदित विपणन रीति-नीति (Differentiated Marketing Strategy), 
  3. संकेन्द्रित विपणन रीति-नीति (Concentrated Marketing Strategy)|
  4. अभेदित विपणन रीति-नीति (Undifferentiated Marketing Strategy)—इस विपणन रीति-नीति के अन्तर्गत फर्म एक उत्पाद के लिये एक ही विपणन कार्यक्रम प्रस्तुत करती है। इसके अन्तर्गत ग्राहकों के मध्य अन्तर नहीं किया जाता और सभी के लिये एक ही विपणन कार्यक्रम, एक ही विज्ञापन माध्यम और एक ही ब्राण्ड व पैकिंग आदि का प्रयोग किया जाता है। भारत में अधिकांश फर्मे अभेदित विपणन रीति-नीति का ही प्रयोग करती हैं। उदाहरण के लिए, कोका कोला कई वर्षों तक एक ही स्वाद वाला और एक ही बोतल आकार में उपलब्ध रहा। इसी तरह सिगरेटों के सम्बन्ध में ब्राण्ड की भिन्नता के बाद भी सभी प्रकार की सिगरटें समान रूप से लम्बी, सफेद कागज में लपेटी हुई और हल्के ‘केटों में रखकर बेची जाती हैं।

अभेदित विपणन रणनीति में एक प्रकार की वस्तु बनायी जाती है। इसमें व्यक्तियों की समान (common) आवश्यकताओं पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है और उत्पाद का ऐसा आकार आरकार्यक्रम तैयार किया जाता है जो अधिकांश ग्राहकों को प्रभावित करें।

  1. भेदित विपणन रीति-नीति (Differentiated marketing strategy)-इस रणनीति वि अन्तर्गत विक्रेता विभिन्न ग्राहक वर्गों की विशेषताओं के अनुसार विभिन्न प्रकार और किस्म की वस्तु उत्पादित करता हे और बेचता है। पृथक-पृथक उत्पादों के लिये विभिन्न विपणन कार्यक्रम बनाये जा हैं। इस रीति-नीति का प्रयोग विक्रय को बढ़ाने और प्रत्येक बाजार खण्ड की गहराई तक पहुचन लिये किया जाता है।

उदाहरण के लिये अब सिगरेटें भिन्न-भिन्न लम्बाई की बनने लगी हैं। एक ही ब्राण्ड को सि फिल्टर्ड या अनफिल्टर्ड (filtered or unfiltered) बनायी जाने लगी हैं। गोल्डन टोबेको कम्पनी लिमिटेड दस नामों के सिगरेट बनाती व बेचती है। इसी तरह हिन्दुस्तान लीवर लिमिटेड अनेक प्रकार के साबुन बनाती है, जैसे-लाइफबॉय, लक्स, रेक्सोना, लिरिल, पीयर्स, सुप्रीम आदि। अभेदित विपणन रीति-नीति की तुलना में भेदित विपणन रीति-नीति द्वारा कुल बिक्री में वृद्धि की जा सकती है परन्तु इसके साथ ही इसके प्रयोग से उत्पाद परिवर्तन लागत, उत्पादन लागत, प्रशासनिक लागत व संवर्द्धन लागत भी बढ़ जाती है। यह रीति विक्रय-अभिमुखी तो है, परन्तु इसका ‘लाभ-अभिमुखी’ होना इस बात पर निर्भर करता है कि बढ़ी हुई लागतों की तुलना में विक्रय में किस अनुपात में वृद्धि होती है।

  1. संकेन्द्रित विपणन रीति-नीति (Concentrated Marketing Strategy)- इस नीति के अन्तर्गत सम्पूर्ण बाजार के स्थान पर किसी एक बाजार भाग या कुछ भागों पर ही सम्पूर्ण विपणन शक्ति केन्द्रित की जाती है। यह रीति-नीति उस समय अधिक उपयुक्त रहती है जब फर्म का आकार छोटा एवं वित्तीय साधन सीमित हों। फिलिप कोटलर के अनुसार, “इस रीति के अन्तर्गत फर्म एक बडे आकार के छोटे भाग की बजाय एक या कुछ उप-बाजारों के बड़े भाग के लिये प्रयास करती है। अन्य शब्दों में, बाजार के अनेक भागों में अपनी शक्ति बिखरने की बजाय फर्म कुछ ही क्षेत्रों में अपनी शक्ति को केन्द्रित करती है जिससे एक अच्छी बाजार स्थिति को प्राप्त किया जा सके।” भारत में अनेक संस्थाओं द्वारा इस नीति का पालन किया जा रहा है, जैसे-कई पुस्तक प्रकाशक सभी विषयों की पुस्तकें प्रकाशित न कर केवल कुछ ही विषयों की पुस्तकों के प्रकाशन का कार्य करते हैं। इनमें भी कुछ प्रकाशक महाविद्यालय स्तर की पुस्तकें व कुछ स्कूल स्तर की पुस्तकों के प्रकाशन का कार्य करते हैं। उदाहरण के लिये, स्वाति प्रकाशन ने महाविद्यालयीन स्तर की पुस्तकों के प्रकाशन के क्षेत्र में विशेषता प्राप्त कर ली है।

प्रभावी बाजार विभक्तीकरण के आवश्यक तत्व (Essential Elements of Effective Market Segmentation)  बाजार विभक्तीकरण के समय विक्रेता के सामने यह प्रश्न उपस्थित होता है कि क्रेता के गुणों एवं विशेषताओं के अनुसार किस प्रकार प्रभावी बाजार विभक्तीकरण किया जाये ? इस प्रश्न के उत्तर में विलियम जे० स्टेन्टन ने कहा कि, “प्रभावी बाजार खण्डों के निर्माण हेतु इन बातों पर ध्यान देना आवश्यक है-मापने-योग्य, सुगम पहुँच एवं उचित आकार आदि।” ___ संक्षेप में, प्रभावी बाजार विभक्तीकरण के लिए निम्नलिखित अपेक्षाएँ या आवश्यक तत्व हैं, जिन पर ध्यान देना आवश्यक है –

  1. मापने-योग्य (Measurable)-प्रभावी बाजार विभक्तीकरण के लिए यह आवश्यक है कि विक्रेता को ग्राहकों से सम्बन्धित पर्याप्त मात्रा में सूचना मिलनी चाहिए। ये सूचनाएँ (आय, आयु, लिंग) ऐसी हों जिनको आसानी से मापा जा सके ताकि बाजार खण्डों का निर्माण किया जा सके।
  2. सुगम पहुँच (Easy Accessibility)-प्रभावी बाजार विभक्तीकरण के लिए यह आवश्यक है कि विक्रेता के लिए यह सम्भव होना चाहिए कि

(i) न्यूनतम व्यय पर सभी बाजार-खण्डों में पहुँच सके,  (ii) वह विपणन मिश्रण एवं कार्यक्रम के साथ वहाँ पहुँच सके एवं क्रियान्वयन कर सके,  (iii) वह संस्था के वितरण-माध्यमों की सहायता से पहुँच सके, एवं  (iv) विद्यमान संवर्द्धनात्मक साधनों एवं विक्रय दल की सहायता से पहुँच सके।

  1. बाजार-खण्डों का उचित आकार (Sufficient Size of Market Segment)-प्रत्येक बाजार खण्ड का आकार पर्याप्त बड़ा होना चाहिए ताकि प्रत्येक बाजार खण्ड के लिए उनमें किए जाने वाले विपणन प्रयास न केवल लाभदायक हो, अपितु अलग से विपणन कार्यक्रम बनाया जा सके।
  2. व्यावहारिक (Actionable)-प्रभावी बाजार विभक्तीकरण का व्यावहारिक होना भी आवश्यक है अर्थात् विभक्तीकरण के द्वारा जो भी बाजार खण्ड बनाये जाये, विपणन कार्यक्रम बनाये जार्य एवं उनका क्रियान्वयन किया जाये, वे व्यावहारिक दृष्टि से सही होने चाहिएँ।
  3. पहचानने एवं विभेद करने योग्य (Identifiable and Distinguishable)-प्रभावी बाजार विभक्तीकरण के लिए बाजार का प्रत्येक खण्ड पृथक रूप से पहचानने योग्य एवं एक-दूसरे से विभेद करने योग्य होना चाहिए।

6. विपणन कार्यक्रमों का मितव्ययितापूर्ण संचालन (Economically Operation of larketing Programmes)-प्रभावी बाजार विभक्तीकरण के लिए विपणन कार्यक्रमों का तव्ययितापूर्ण संचालन होना आवश्यक है। अत: बाजार खण्डों का निर्माण करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि बाजार खण्ड न छोटे एवं न बड़े हों, अन्यथा उनका संचालन करना बहुत महँगा होगा।

7. बाजार खण्डों का स्थायी अस्तित्व (Fixed Existence of Market Segment)-बाजार विभक्तीकरण को प्रभावी बनाने के लिए प्रत्येक बाजार खण्ड का अस्तित्व स्थाया अर्थात् दीर्घाव वाला होना आवश्यक है।


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