Marketing Environment B.Com 3rd Year Study Material Notes

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विपणन पर्यावरण का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Marketing Environment) 

विपणन पर्यावरण से आशय उन घटकों व शक्तियों से है जो फर्म की विपणन रीति-नीतियों प्रभावित करती हैं। यद्यपि प्रत्येक विपणन फर्म का आन्तरिक एवं बाह्य वातावरण होता है जो प्रभावित करता है, परन्त वास्तविकता यह है कि बाह्य वातावरण ही विपणन वातावरण कहलाता अत: विपणन वातावरण में वह समस्त घटक अथवा शक्तियाँ सम्मिलित होती हैं जो किसी फर्म विपणन प्रयासों को प्रभावित करते हैं।

फिलिप कोटलर के अनुसार, “विपणन पर्यावरण में फर्म के विपणन प्रबन्धन कार्य के बाहरी घटक व शक्तियाँ सम्मिलित हैं जो लक्षित ग्राहकों के साथ सफल व्यवहारों का विकास करने और उन्हें बनाये रखने की विपणन प्रबन्ध की योग्यता को आगे बढ़ाती हैं।” इस प्रकार स्पष्ट है कि विपणन पर्यावरण में बाहरी अनियन्त्रणीय शक्तियों को सम्मिलित किया जाता है और इस पर्यावरण के उचित अध्ययन पर ही विपणन प्रबन्ध की सफलता निर्भर करती है।

विपणन वातावरण की प्रकृति

(Nature of Marketing Environment) 

विपणन प्रबन्ध या विपणन कार्य तथा वातावरण के बीच एक विशिष्ट सम्बन्ध पाया जाता है। इनके बीच पारस्परिक सम्बन्धों की प्रकृति को निम्नलिखित प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. गतिशील वातावरण-प्रत्येक संस्था के विपणन प्रबन्ध का एक गतिशील वातावरण होता है। उसे अपने इसी वातावरण में कार्य करना पड़ता है।
  2. आन्तरिक एवं बाह्य वातावरण-विपणन प्रबन्ध का अपना आन्तरिक एवं बाह्य दोनों ही प्रकार का वातावरण होता है। विपणन प्रबन्ध अपने आन्तरिक वातावरण पर प्रायः नियन्त्रण कर लेता है। अत: वह उसे बहुत अधिक प्रभावित नहीं करता है। किन्तु, बाह्य वातावरण पर विपणन प्रबन्ध का कोई नियन्त्रण नहीं होता है। अत: उसे बाह्य वातावरण के अनुरूप अपने आपको ढालना ही पड़ता है।
  3. भौगोलिक सीमा-प्रत्येक विपणन प्रबन्ध के बाह्य वातावरण की एक भौगोलिक सीमा (Geographical limit) होती है। यह सीमा विपणन प्रबन्ध के कार्य-क्षेत्र के अनुसार विस्तृत एव संकुचित हो सकती है।
  4. गतिशील घटक-विपणन प्रबन्ध का वातावरण गतिशील घटकों से बनता है। ये घटक आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, भौगोलिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, तकनीकी आदि प्रकृति के होते हैं। ये घटक निरन्तर परिवर्तनशील या गतिशील होते हैं न कि स्थिर या चिरस्थायी।
  5. परस्पर निर्भर घटक-गतिशील वातावरण के घटकों की एक प्रमुख विशेषता यह है कि ये सभी घटक एक-दूसरे को परस्पर प्रभावित करते हैं तथा परस्पर निर्भर भी होते हैं। आर्थिक घटक सामाजिक घटकों को, राजनीतिक घटक तकनीकी घटकों को, धार्मिक पटक सामाजिक घटकों को तथा इसी प्रकार अन्य सभी घटक आपस में एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं तथा एक-दूसरे पर निर्भर भा रहते हैं।
  6. संसाधनों का विनिमय-प्रत्येक संस्था का विपणन विभाग अपने संसाधन बाह्य वातावरण स प्राप्त करता है। श्रम, पूँजी, यन्त्र, उपकरण, कच्चा माल, मानव संसाधन, वित्त आदि सभी संसाधन अपन वातावरण से ही प्राप्त करते हैं। इसके पश्चात् इनका उपयोग कर वातावरण को वितरण (विक्रय) कर ग्राहकों एवं समाज की आवश्यकताओं तथा अपेक्षाओं को सन्तुष्टि प्रदान करते है।
  7. चुनौतियाँ एवं बाधाएँ–प्रत्येक संस्था के विपणन प्रबन्ध को अपने वातावरण में कार्य करन और उसकी अपेक्षाओं का सन्तुष्ट करने में अनेक चुनौतियों एवं बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
  8. निरन्तर सम्पर्क प्रत्येक संस्था को अपने पातावरण से निरन्तर सम्पर्क बनाए रखना पड़ता है। इस हेतु उसे द्विमागीय संचार की व्यवस्था करनी पड़ती है।

9. विपणन प्रबन्ध भी वातावरण को प्रभावित करता है प्रत्येक संस्था का विपणन प्रब बाह्य वातावरण की शक्ति एवं प्रभाव से प्रभावित होता है तथा कुछ सीमा तक वह स्वयं भी बार वातावरण को प्रभावित करता है।

आन्तरिक या नियन्त्रण योग्य विपणन वातावरण

(Internal or Controllable Marketing Environment) 

आन्तरिक वातावरण में किसी संस्था के भीतर विद्यमान उन सभी शक्तियों को सम्मिलित किया हा जाता है जो उस संस्था के विपणन प्रबन्ध की सफलता को प्रभावित करती है। विपणन विभाग संस्था का एक महत्वपूर्ण विभाग है। अत: इसका आन्तरिक वातावरण इस विभाग की आन्तरिक संरचना एवं प्रबन्ध व्यवस्था से तो प्रभावित होता ही है, साथ ही सम्पूर्ण संस्था की संगठन संरचना, नीतियों, व्यूहरचनाओं आदि से भी प्रभावित होता है। प्रत्येक संस्था के दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलापों का संचालन इसी आन्तरिक वातावरण में किया जाता है। इसमें भी परिवर्तन होते हैं किन्तु इसमें होने वाले परिवर्तनों पर विपणन प्रबन्धक का सामान्यत: नियन्त्रण होता है।

बाह्य या अनियन्त्रणीय विपणन वातावरण

(External or Uncontrollable Marketing Environment) 

बाह्य वातावरण ही विपणन का वास्तविक वातावरण होता है जिसमें रहकर विपणन प्रबन्धकों को ने अपना कार्य-संचालन करना होता है। इस वातावरण पर फर्म अथवा संस्था का अपना कोई नियन्त्रण ने नहीं होता। बाह्य वातावरण को दो भागों में बाँटा जा सकता है-सूक्ष्म वातावरण तथा बृहत् वातावरण। सूक्ष्म वातावरण में ग्राहक, प्रतिस्पर्धी, आपूर्तिकर्ता, विपणन मध्यस्थ, जनसमूह को सम्मिलित किया जाता है। बृहत् वातावरण में आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी, प्राकृतिक, जनांकिकी आदि को शामिल किया ने जाता है। इनको निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है।

1. बाजार या बाजार माँग (Market or Market Demand)-विपणन प्रबन्ध एवं विपणन ॥ क्रियाओं पर बाजार के स्वरूप या बाजार की माँग की स्थिति का भी प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। अत: विपणन प्रबन्धक बाजार के निम्नांकित पहलुओं का अध्ययन एवं विश्लेषण करते हैं, – जैसे-उत्पादों/सेवाओं के लिए माँग की प्रकृति, माँग का आकार, माँग में हो रहे परिवर्तन, उत्पादों की हा आपूर्ति आदि।

  1. ग्राहक/उपभोक्ता (Customers/Consumers)-उपभोक्ता मांग निरन्तर बदलती और इसका सही अनुमान लगाना सम्भव नहीं है। ग्राहक-अभिमुखी विपणन विचारधारा विपणन क्रियाओं का केन्द्र बिन्द ग्राहकों की आवश्यकताएँ व इच्छाएँ होती हैं। विपणन नीति कार्यक्रम ग्राहक सन्तुष्टि के उद्देश्य को ध्यान में रखकर ही संगठित व क्रियान्वित किये जाते हैं।
  2. प्रतिस्पर्धा (Competition) कम्पनी की विपणन रीति-नीतियों पर भी प्रतिस्पर्धा का पड़ता है। लक्षित बाजार, पर्तिकर्ता, विपणन वाहिका, उत्पाद अन्तर्लय, संवर्द्धन अन्तर्लय आदि करते समय प्रतिस्पर्धा की स्थिति का अध्ययन करना आवश्यक है।
  3. सरकारी नीतियाँ एवं नियम (Government Policies and Rules)-सरकारी नीतियाँ, नियम विपणन के व्यष्टि एवं समष्टि दोनों ही वातावरणों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर जैसे-क्रय नीति एवं नियम, विपणन सहायता, सरकारी उपक्रम द्वारा उत्पादन एवं वितरण की विपणन के नियमन की नीति, प्रतिस्पर्धा संरक्षण नीति एवं नियम आदि।
  4. जनांकिकी या जनसांख्यिकी वातावरण एवं उसके घटक (Demographic Environment its Components)-इसके अन्तर्गत जनसंख्या का आकार, निवास स्थान, आयु, लिंग, जाति एवं शैक्षिक स्तर, नौकरी या पेशा, आय, घरेलू इकाई आदि को सम्मिलित किया जाता है। जनसंख्या सम्बभी . घटकों में निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं। विपणन प्रबन्धक को इन सभी का निरन्तर अध्ययन करना पर है। सर्वप्रथम तो यह ग्राहकों की संतुष्टि द्वारा विपणन लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहते हैं। अतः उनके बारे सम्पूर्ण जानकारी होनी ही चाहिए। ऐसी जानकारी विपणन प्रबन्धकों को अपने सभी कार्यों को सफलतापर्व 3. सम्पन्न करने में महत्वपूर्ण रूप से योगदान देती है।
  5. सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण एवं इसके घटक (Socio-cultural Enviornment ar its Components)-सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण से तात्पर्य उस वातावरण से है जो समाज 4. सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों, आस्थाओं, परम्पराओं, रीति-रिवाजों, जीवन शैली, जीवनस्त दृष्टिकोण, आपसी व्यवहार एवं सहयोग, वर्ग भेद, लिंग भेद आदि घटकों से बनता है। अत: विपण प्रबन्धक के लिये आवश्यक है कि वह बदलती हुई मांग के अनुरूप विपणन योजनाएं तैयार कर नवीन सामाजिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करें।
  6. आर्थिक वातावरण एवं इसके घटक (Economic Environment and i Components) आर्थिक वातावरण से तात्पर्य उन समस्त बाह्य शक्तियों से है, जो किसी व्यावसायिः संस्था की कार्य-प्रणाली एवं सफलता को आर्थिक रूप से प्रभावित करती हैं। इसके अन्तर्गत आर्थिः प्रणाली, विकास की दशा, अर्थ चक्र, मुद्रा प्रसार एवं मूल्य स्तर, अर्थव्यवस्था की संरचना, विकास – गति, कर ढाँचा, ऊर्जा के स्रोत, मानव संसाधन विकास एवं उपलब्धता, आर्थिक एवं श्रम नीतियाँ, आ एवं खर्च हेतु उपलब्ध राशि आदि घटकों को सम्मिलित किया जाता है। विपणन प्रबन्धकों को इ. घटकों की स्थिति एवं इनमें होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करते रहना चाहिए।
  7. प्राकृतिक वातावरण एवं इसके घटक (Natural Environment and 1 Components)-प्राकृतिक वातावरण से तात्पर्य उन प्राकृतिक घटकों एवं शक्तियों से है जो कि संस्था के लिये आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों के क्रियाकलापों/आपर्ति को प्रभावित करती हैं। प्राकृति वातावरण के प्रमुख घटक निम्न प्रकार हैं

(i) प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता एवं स्थिति,  (ii) जलवाय,  (iii) प्राकृतिक परिस्थितिया,  (iv) ” प्रकृतिवाद,  (v) राजकीय नीतियाँ, कानून एवं नियम।

  1. वैज्ञानिक व तकनीकी पर्यावरण घटक (Scientific and Technology, Environment) तकनीकी वातावरण से तात्पर्य उन शक्तियों एवं घटकों से है, जो किसी सत्ता लिये तकनीकी संसाधनों की उपलब्धता को प्रभावित करते हैं। तकनीकी घटकों का प्रभाव बहुत होता है। ये संस्था की आर्थिक स्थिति पर तो प्रभाव डालते ही हैं साथ ही ग्राहकों, कर्मचारिया आदि पर भी गम्भीर प्रभाव उत्पन्न करते हैं। अत: तकनीकी घटकों के प्रभावों का बड़ी सूझबूत आंकलन करना चाहिए। विपणन प्रबन्धकों को उन प्रभावों को ध्यान में रखकर ही अपना । व्यूह-रचना तैयार करनी चाहिए।

विपणन वातावरण के विश्लेषण/अध्ययन की आवश्यकता/महत्व

(Need/Importance of Analysis/Study of Marketing Environment) 

वर्तमान युग में विपणन वातावरण का विश्लेषण एवं अध्ययन निम्नांकित प्रमुख कारणों के आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है –

  1. वातावरणीय जटिलताआ का मापन एवं ज्ञान करने के लिए।
  1. वातावरणीय परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त करने के लिए। 
  2. अनिश्चितताओं या जोखिमों के सही मापन के लिए। 
  3. विपणन वातावरण के विभिन्न घटकों के पारस्परिक प्रभाव का अध्ययन करने के लिए। 
  4. प्रभावकारी निर्णयन के लिए। 
  5. खतरों, संकटों एवं समस्याओं के प्रति सतर्कता। 
  6. दीर्घकालीन/व्यूहरचनात्मक नियोजन के लिए। 
  7. प्रतिस्पर्धी क्षमता का विकास। 
  8. प्रभावकारी विपणन प्रबन्ध के लिए।

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