Teaching Aptitude U.P B.Ed Entrance Exam – शिक्षण अभिरुचि
शिक्षण अभिरुचि U.P B.Ed Entrance Exam Notes 2023 :- शिक्षण अभिरुचि उस प्राकृतिक क्षमता या संभावना को संदर्भित करती है जो किसी व्यक्ति में शिक्षण क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करने की क्षमता होती है। यह शिक्षण और सफल छात्र अधिगम के लिए आवश्यक अनेक कौशल, गुण और गुणधर्मों को सम्मिलित करती है। शिक्षण अभिरुचि विषय ज्ञान से आगे जाती है और इसमें शिक्षण विधि की गहरी समझ, संचार कौशल, कक्षा प्रबंधन, सहानुभूति और शिक्षण में वास्तविक रुचि सम्मिलित होती है।
Table of Contents
शिक्षण अभिरुचि (Teaching Aptitude)
Introduction:
शिक्षण अभिरुचि विषय एक महत्वपूर्ण विषय है जो शिक्षकों के लिए विशेष महत्व रखता है। यह विषय उनकी शिक्षण योग्यता और शिक्षा प्रक्रिया को समझने में मदद करता है। इस लेख में, हम शिक्षण अभिरुचि के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।
शिक्षण अभिरुचि क्या है?
शिक्षण अभिरुचि एक शिक्षक की योग्यता है जो उन्हें शिक्षा प्रक्रिया को संचालित करने और छात्रों को समझाने में सहायता करती है। शिक्षण अभिरुचि का मतलब है एक शिक्षक की क्षमता जिसमें वह अपने छात्रों के प्रति रुचि प्रकट कर सकता है और उन्हें सभी विषयों में सफल बना सकता है।
शिक्षण अभिरुचि क्यों महत्वपूर्ण है?
शिक्षण अभिरुचि का होना शिक्षक के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उनकी प्रभावशीलता को बढ़ाता है। यदि एक शिक्षक शिक्षण अभिरुचि के साथ संपन्न होता है, तो वह अपने छात्रों के साथ अच्छे संबंध बना सकता है और उन्हें प्रासंगिक ज्ञान और ज्ञान का प्रदान कर सकता है। शिक्षण अभिरुचि एक अच्छे शिक्षक की पहचान है जो छात्रों को प्रेरित करने और समर्थन करने के लिए उनकी आवश्यकताओं को समझता है।
शिक्षण अभिरुचि के गुण:
संवेदनशीलता: एक अच्छे शिक्षक में संवेदनशीलता की क्षमता होती है। वह अपने छात्रों की भावनाओं को समझता है और उन्हें सही मार्गदर्शन प्रदान करने का प्रयास करता है। शिक्षक की संवेदनशीलता उनके छात्रों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
ज्ञान: शिक्षण अभिरुचि वाले शिक्षक को अपने विषय के गहराई में ज्ञान होना चाहिए। वह अपने छात्रों को सटीक और सम्पूर्ण जानकारी प्रदान कर सकते हैं जो उनके विषय के संबंध में आवश्यक है।
स्पष्टता: शिक्षण अभिरुचि वाले शिक्षक को विषय को स्पष्ट तरीके से समझाने की क्षमता होनी चाहिए। वह अपने छात्रों के सामर्थ्य को समझते हुए सारांश और महत्वपूर्ण तत्वों को प्राथमिकता देते हैं।
उदारता: शिक्षण अभिरुचि वाले शिक्षक को उदार होना चाहिए। वह छात्रों की विभिन्न विचारों और प्रतिभाओं का सम्मान करते हुए उन्हें स्वतंत्रता और स्वाधीनता प्रदान करने की क्षमता रखते हैं।
संपर्क कौशल: शिक्षण अभिरुचि वाले शिक्षक को अच्छी संपर्क कौशल होनी चाहिए। वह अपने छात्रों के साथ संवाद स्थापित करने में सक्षम होते हैं और उन्हें समर्थन देने और प्रेरित करने के लिए सक्रिय रहते हैं।
शिक्षण अभिरुचि के महत्वपूर्ण तत्व:
स्वयं विकास: शिक्षण अभिरुचि के साथ शिक्षक अपने स्वयं का विकास करता है। वह नवीनतम शिक्षण विधियों और तकनीकों के बारे में अवगत होता है और अपनी शिक्षा प्रक्रिया को सुधारता रहता है।
छात्रों की प्रेरणा: शिक्षण अभिरुचि वाले शिक्षक छात्रों को प्रेरित करने की क्षमता रखते हैं। वे अपने छात्रों को मार्गदर्शन और प्रोत्साहन प्रदान करते हैं जो उनके शिक्षा-करियर के लिए महत्वपूर्ण है।
समर्थन: शिक्षण अभिरुचि वाले शिक्षक अपने छात्रों को समर्थन देने की क्षमता रखते हैं। वे अपने छात्रों की जरूरतों को समझते हैं और उन्हें सही मार्गदर्शन प्रदान करके उनकी सफलता का समर्थन करते हैं।
समय-प्रबंधन: शिक्षण अभिरुचि वाले शिक्षक समय का समय-प्रबंधन कर सकते हैं। वे अपनी शिक्षा प्रक्रिया को संगठित रखते हैं और छात्रों को उचित समय और संसाधनों का उपयोग करने की सिखाते हैं।
रूपांतरण: शिक्षण अभिरुचि वाले शिक्षक रूपांतरण की क्षमता रखते हैं। वे सूक्ष्म रूप से छात्रों की गतिविधियों को मापते हैं और उन्हें आवश्यक संशोधनों के साथ आगे बढ़ाते हैं।
शिक्षण अभिरुचि की विभिन्न विधाएं:
दृश्याधारित शिक्षण: दृश्याधारित शिक्षण विधि में, शिक्षक छात्रों के लिए रूपांतरणात्मक सामग्री तैयार करते हैं जिससे वे आसानी से समझ सकें। इसमें चार्ट, ग्राफ, मॉडल्स, और प्रदर्शनी का उपयोग किया जाता है।
गतिविधि-मूलक शिक्षण: इस विधि में, शिक्षक छात्रों को विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से सीखने का मौका देते हैं। यह छात्रों के सहयोगी बनाने, समूह कार्य करने, समस्याओं को हल करने और सूचना प्राप्त करने की क्षमता को विकसित करती है।
आदर्श-मूलक शिक्षण: इस विधि में, शिक्षक छात्रों के लिए एकाधिकार आदर्शों और मूल्यों का संग्रह प्रदान करते हैं। यह उन्हें सही मार्गदर्शन प्रदान करती है और उच्च मानसिकता, नैतिकता, और सामाजिकता को समझाती है।
संचार-मूलक शिक्षण: इस विधि में, शिक्षक छात्रों के साथ संवाद स्थापित करते हैं। वे छात्रों के सवालों का समय-समय पर समाधान करते हैं, विचार-विमर्श में हिस्सा लेते हैं, और विपणन कौशल का उपयोग करते हैं। शिक्षण अभिरुचि का विकास कैसे किया जा सकता है?
स्वयं जागरूकता: शिक्षण अभिरुचि का विकास करने के लिए, शिक्षकों को स्वयं जागरूक होना चाहिए। वे नए शिक्षण तंत्रों, तकनीकों, और अद्यतनों के साथ अवगत रहना चाहिए। संगठित कक्षा व्यवस्था, अद्यतित पाठ्यक्रम, और शिक्षण तकनीकों का उपयोग करके शिक्षक अपने शिक्षा-करियर को सुधार सकते हैं।
प्रशिक्षण और कोचिंग: शिक्षक अभिरुचि का विकास करने के लिए, शिक्षकों को नियमित रूप से प्रशिक्षण और कोचिंग प्राप्त करनी चाहिए। यह उन्हें नई शिक्षण विधियों, तकनीकों, और उपायों के बारे में जागरूक रखने में मदद करेगा। शिक्षा-संबंधी कार्यशालाओं, सेमिनारों, और विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों का हिस्सा बनने से शिक्षक अपने दक्षता को विकसित कर सकते हैं।
सहयोगी संगठन: शिक्षकों को सहयोगी संगठनों की खोज करनी चाहिए जो उन्हें शिक्षण अभिरुचि के विकास में सहायता कर सकते हैं। ये संगठन विभिन्न शिक्षण संस्थानों, उन्नति केंद्रों, और अध्यापक संघों हो सकते हैं। इन संगठनों के माध्यम से शिक्षक अनुभवी और उद्योगपति शिक्षकों से मिल सकते हैं और उनसे मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं।
नई शिक्षण तकनीकों का उपयोग: शिक्षकों को नवीनतम शिक्षण तकनीकों का उपयोग करके अपनी शिक्षा प्रक्रिया को सुधारना चाहिए। इंटरेक्टिव व्हाइटबोर्ड, संगणक, इंटरनेट, वीडियो और ऑडियो सामग्री, और मोबाइल ऐप्स जैसे तकनीकी साधनों का उपयोग करके शिक्षक अपने पाठ में रुचिकर बना सकते हैं।
नई पाठ्यक्रम और अद्यतन: शिक्षण अभिरुचि का विकास करने के लिए, शिक्षकों को नए पाठ्यक्रमों के बारे में अवगत होना चाहिए और उन्हें अद्यतन करने का समय निकालना चाहिए। संशोधित पाठ्यक्रम, नवीनतम शिक्षण विधियाँ, और विभिन्न शिक्षा-संबंधी संसाधनों का उपयोग करके शिक्षक अपने छात्रों को उचित और आधुनिक ज्ञान प्रदान कर सकते हैं।
स्वाधीन अध्ययन: शिक्षण अभिरुचि का विकास करने के लिए, शिक्षकों को स्वतं
Teaching Aptitude U.P B.Ed Entrance Exam – शिक्षण अभिरुचि
[PDF] B.Com 1st Year All Subject Notes Study Material PDF Download In English
B.Com 2nd Year Books Notes & PDF Download For Free English To Hindi
B.Com 1st Year Notes Books & PDF Free Download Hindi To English
B.Com 1st 2nd 3rd Year Notes Books English To Hindi Download Free PDF
- भारत में अशिक्षा का मूल कारण हजार वर्षों की गुलामी है।
- विदेशी शासकों ने यहाँ की भाषा, संस्कृति तथा जीवन दर्शन को नष्ट कर दिया।
- अंग्रेजों ने भी यहाँ की भाषा के स्थान पर अंग्रेजी भाषा को अधिक महत्व दिया।
- मैकाले की शिक्षा पद्धति ने शिक्षित बेकारों की संख्या बढ़ा दी जिससे वर्तमान शिक्षा के प्रति सामान्य जनता में स्नेह नहीं रहा।
- अशिक्षा के मुख्य कारण में गरीबी है।
- प्राथमिक विद्यालयों में उचित वातावरण का अभाव।
- विद्यालय भवन की जर्जर स्थिति।
- शिक्षकों का नियमित उपस्थित न होना।
- बोझिल तथा जटिल पाठ्यक्रम।
- शिक्षा में गुणवत्ता की कमी।
- बाल केन्द्रित शिक्षा का अभाव।
- शिक्षक राष्ट्र-निर्माण तथा छात्रों के जीवन का भाग्य विधाता है।
- विद्यालय एक समुदाय है और उसका रूप सुसंगठित परिवार से मिलता-जुलता है।
- स्कूल रूपी परिवार का मुखिया प्रधानाध्यापक होता है।
- किसी राष्ट्र का निर्माण विधान सभाओं एवं कारखानों में नहीं वरन् विद्यालय में होता है।
- गुणात्मक विकास के लिए आवश्यक है कि शिक्षकों में व्यावसायिक वृत्तियों का विकास
- (Professional Development) हो।
- शिक्षण-कार्य एक पवित्र पेशा है जिसमें प्रेम, सेवाभाव तथा सच्ची निष्ठा आवश्यक है।
- गुणात्मक शिक्षा एवं शैक्षिक प्रशासन की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षक अपने उत्तरदायित्व का पालन करें।
- व्यक्तियों का निर्माण करने वाला शिक्षक केवल एक व्यक्ति न होकर अपने आप में संगठन एक होता है।
- शिक्षक की प्रतिष्ठा तभी कायम रह सकती है जब वह इन गत्यात्मक आवश्यकताओं के। अनुकूल अपने आप को रख सके।
- शिक्षण कार्य को व्यावसायिक कार्य न समझकर सामाजिक सेवा एवं आध्यात्मिक कार्य समझना चाहिए।
- शिक्षक और समुदाय में सम्पर्क स्थापित करने के लिए विद्यालय में शिक्षक-अभिभावक संघ की स्थापना होनी चाहिए।
- शिक्षण एक कला तथा तकनीक है जिसमें दक्षता प्राप्त करने के लिए अनेक तरीके अपनाए जा रहे हैं। बाल शिक्षण में बाल केन्द्रित शिक्षण विधि विशेष उपयोगी है।
- शिक्षा की आवश्यकता तथा लक्ष्य के उद्देश्य को ध्यान में रखकर शिक्षण विधि का उपयोग करना चाहिए।
- शिक्षण विधि विषय-वस्तु को सम्प्रेषित करने की तकनीक है।
- समवाय शिक्षण विधि के जन्मदाता महात्मा गाँधी हैं।
- प्राथमिक वर्ग तक के बच्चों के लिए प्रोजेक्ट विधि एक उपयोगी विधि है।
- आधुनिककाल में व्याख्यान शिक्षण विधि को अस्वीकार कर दिया गया है।
- एक सफल प्रधानाध्यापक उत्तम विद्यालय प्रबन्ध की कुंजी होता है।
- अध्यापक देश की संस्कृति का प्रतिनिधि होता है।
- किसी भी विद्यालय का भवन, छात्र, सहायक सामग्री आदि कितने भी प्रभावपूर्ण क्यों न हों, जब तक वहाँ के अध्यापक चरित्रवान तथा योग्य नहीं होंगे उस विद्यालय का शिक्षा स्तर नहीं उठ सकता।
- शिक्षक में दृष्टिकोण की उदारता, आत्मानुशासन, दृढ़ संकल्प, विद्वत्ता, मित्रता तथा शिक्षण कला की दक्षता होनी चाहिए।
- गुणात्मक शिक्षा एवं शैक्षिक प्रशासन की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षक अपने उत्तरदायित्व का पालन करें।
- उत्तम स्वास्थ्य, विनोदप्रियता एवं जीवन शक्ति आदर्श शिक्षक के विशिष्ट गुण हैं।
- शिक्षक के लिए आवश्यक है कि उसे प्रशिक्षण के द्वारा बालकों की प्रकृति को समझने तथा शिक्षण प्रदान करने के तरीकों का विधिवत् ज्ञान हो।
- कम्प्यूटर का पितामह चार्ल्स बेबेज को कहा जाता है।
- कम्प्यूटर के विकास में सर्वाधिक योगदान वॉन न्यूमान का है।
- आज की शिक्षा का स्वरूप दिन-प्रतिदिन तकनीकी, व्यावसायिक तथा व्यावहारिक होता जा रहा है जिसमें कम्प्यूटर कार्यक्रम की महत्वपूर्ण भूमिका है।
- प्राथमिक विद्यालय के पाठ्यक्रम में भी कम्प्यूटर शिक्षा को सम्मिलित किया जा रहा है।
- सूचना तकनीकी में भी कम्प्यूटर शिक्षा की उपयोगिता है।
- भारत में निर्मित पहला कम्प्यूटर सिद्धार्थ है।
- देश में नई कम्प्यूटर नीति की घोषणा नवम्बर, 1984 में की गई थी।
- देश का पहला कम्प्यूटर डाकघर नई दिल्ली में है।
- भारत में वर्ष 1982 में सर्वप्रथम कम्प्यूटर ‘मैगजीन’ ‘डेटा क्वेस्ट’ ने समाचार-पत्रों की दुनिया में प्रवेश किया।
- 1971 में जनसंख्या गणना के सर्वप्रथम आई० बी० एम० कम्प्यूटर का प्रयोग किया गया।
- पहली कम्प्यूटर रिजर्वेशन पद्धति नई दिल्ली में लागू की गई थी ।
- साइबर स्कूल इंटेल कार्पोरेशन ने 3 मई, 1996 में राष्ट्रीय विज्ञान केन्द्र, नई दिल्ली में कम्प्यूटर कार्यक्रम की शुरूआत की।
- भारत में सर्वाधिक कार्यक्रम का प्रसारण कम्प्यूटर के माध्यम से इन्टरनेट द्वारा किया जाता है। इंटरनेट की सहायता से विश्व की किसी भी प्रकार की जानकारी को कुछ ही क्षणों में प्राप्त किया जा सकता है।
- विद्यालय एक सुन्दर फुलवारी है तथा शिक्षक उस उद्यान के माली हैं।
- विद्यालय में शैक्षिक वातावरण हो।
- बच्चे स्वच्छन्द प्रकृति के होते हैं।
- बच्चे शरारती नहीं बल्कि स्वाभिमानी तथा हठधर्मी होते हैं।
- बच्चों के लिए विद्यालय में कठोर दंड विधान न हो ।
- बच्चों के साथ प्रेम का बर्ताव होना चाहिए।
- बच्चों के माता-पिता से सदैव सम्पर्क बनाए रखना चाहिए।
- बच्चों के मनोविनोद के लिए विद्यालय में खेल-कूद के साधन हों।
- बच्चों को हमेशा किसी न किसी कार्य में व्यस्त रखा जाए।
- विद्यालय के विशेष कार्यक्रम में क्विज प्रतियोगिता, कविता पाठ, भाषण, लेख लेखन प्रतियोगिता आदि का आयोजन किया जाये।
- शिक्षण एक कला तथा तकनीक दोनों है। अतः उसकी जानकारी के लिए शिक्षकों को प्रशिक्षण लेना आवश्यक है।
- प्रशिक्षण के द्वारा उनमें व्यावसायिक गुणों का विकास होगा।
- प्रशिक्षण से शिक्षकों में शिक्षण कौशल का विकास होगा।
- छात्रों की बौद्धिक क्षमता तथा अभिरुचि की जानकारी मिलेगी।
- सभी विषयों की शिक्षण विधियों की जानकारी मिलती है।
- विद्यालय के वातावरण को शैक्षणिक तथा शांतिपूर्ण बनाने की जानकारी मिलती है।
- पठन-पाठन का सही उपयोग।
- मूल्यांकन की नई विधियों की जानकारी।
- बच्चों के संतुलित विकास के लिए शिशु शिक्षण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
- मनोवैज्ञानिक दृष्टि से शिशु पाठशाला में महिला शिक्षक की नियुक्ति अधिक लाभदायक होगी।
- शिक्षक केन्द्रित शिक्षा प्रणाली में शिक्षक प्रधान रहते हैं तथा छात्र गौण ।
- बाल केन्द्रित शिक्षा प्रणाली में शिक्षक और छात्र दोनों की सहभागिता रहती है।
- शिक्षक को अपने शिक्षण के द्वारा छात्रों के सृजनात्मक तथा रचनात्मक कौशल का विकास करना चाहिए।
- बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा में उनके घर पर मिलने वाली शिक्षा की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है जो शिक्षण की पूर्व भूमिका का रोल अदा करती है।
B.Sc Course Details In Hindi – Full Form, Fees, Admission, Syllabus
Download UP B.Ed Entrance Exam Notes Books PDF In Hindi – Parultech
- बालकों की शिक्षा प्रारंभ करने के पहले उनकी अभिरुचि, बौद्धिक क्षमता, उम्र, प्रवृत्ति आदि की जाँच करना आवश्यक है।
- बच्चों की शिक्षा प्रारम्भ करने के तरीके में सबसे सुगम और आसान तरीका है खेल-विधि अथवा खेल-खेल में शिक्षा देना।
- शिक्षण का स्वरूप आनन्दमय, सुखद, सरल तथा प्रभावपूर्ण हो।
- बच्चों की शिक्षा प्रारम्भ करने के तरीकों में मांटेसरी तथा किंडरगार्डेन शिक्षण प्रणाली अधिक उपयोगी है।
- बच्चों को भाषा, गणित तथा पर्यावरण अध्ययन का शिक्षण अलग-अलग तरीके से दिया जाय। प्राथमिक स्तर पर छीजन (Wastage) और स्थगन की गंभीर समस्या है।
- अनौपचारिक शिक्षाक्रम ऐसे बच्चों के लिए है जो या तो विद्यालय जाने में असमर्थ हैं अथवा दो वर्गों की पढ़ाई कर सामाजिक-आर्थिक परिस्थिति के कारण जिन्होंने पढ़ाई छोड़ दी है।
- बच्चे वर्ग में केन्द्रित रहे इसके लिए अभिभावक तथा शिक्षक दोनों का समवेत रूप से प्रयास होना चाहिए।
- विद्यालय के भवन आकर्षक हों।
- शिक्षकों की शिक्षण विधि मनोरंजक हो।
- विद्यालय में पर्याप्त मात्रा में खेल-कूद के सामान तथा शिक्षण उपादान करे।
- घरेलू काम में लग जानेवाले बच्चे अपनी पढ़ाई छोड़ देते हैं।
- सामाजिक-आर्थिक कारणों से बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं।
- स्कूल भवन का अनाकर्षण होना, शैक्षणिक वातावरण का अभाव भी बच्चों के विद्यालय छोड़ने का प्रधान कारण है।
- पाठ्यक्रम का बोझिल होना तथा बालकेन्द्रित शिक्षा का अभाव भी इसका कारण है।
- प्राथमिक शिक्षा का अनिवार्य न होना भी प्राथमिक शिक्षा का अवरोधक कारण है जिसके कारण स्कूल भागने वाले बच्चों पर माता-पिता द्वारा अंकुश लगाना संभव नहीं हो पाता।
- रोचक शिक्षण प्रणाली के अभाव के कारण भी बच्चे स्कूल जाना छोड देते हैं।
- सरकारी स्कूल होने से स्कूल का सम्पर्क समुदाय से गम होता जा रहा है। इसका भी प्रभाव बच्चों के स्कूल छोडने पर पड़ रहा है।
- स्कूल ड्रेस स्कूल की पहचान का प्रतीक है।
- स्कूल ड्रेस एक प्रकार से स्कूल के प्रचार तथा विकास का भी कार्य करती हैं।
- स्कूल ड्रेस से बच्चों में समतामूलक सर्वोदयी भावना जाग्रत होती हैं।
- स्कूल ड्रेस से बच्चों में सामूहिक सर्वोदयी भावना जाग्रत होती है।
- समान रंग की ड्रेस से बच्चों की हीन भावना दूर हो जाती है।
- स्कूल ड्रेस से बच्चों की आपसी प्रेस भावना बढ़ती है।
- स्कूल ड्रेस से बच्चों में स्वच्छता की भावना जाग्रत होती है
- स्कूल ड्रेस से बच्चों में सामूहिक भावना तथा राष्ट्रीय एकता की भावना उत्पन्न होती हैं।
- खेल मनोरंजन के साथ-साथ शारीरिक तथा मानसिक विकास का साधन है।
- इसलिए शारीरिक तथा मानसिक विकास की दृष्टि से बच्चों के लिए खेल आवश्यक हैं।
- खेल के द्वारा बच्चों में आपसी प्रेम, अनुशासन तथा एकता की भावना जाग्रत होती हैं।
- बच्चों में उदार दृष्टिकोण, सेवाकार्य तथा सामाजिकता की भावना समूह में खेलने से उत्पन्न होती है।
- फ्रॉबेल ने सर्वप्रथम खेल को बच्चों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया।
- रूसो तथा मान्टेसरी ने बच्चों के पाठ्यक्रम में खेल-कूद को समाहित करने का सुझाव दिया गया।
- राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (1964-66) तथा नई राष्ट्रीय नीति, 1986 में भी प्राथमिक स्कूल के पाठ्यक्रम में खेल को एक विषय के रूप में रखने का सुझाव दिया गया।
- बच्चों के गुणों के स्वाभाविक विकास के लिए उनके माता-पिता तथा स्कूल के शिक्षकों को पर्याप्त प्रयत्न करने चाहिएं।
- विद्यालय का वातावरण स्वच्छ, शांत तथा मनोरंजक हो।
- विद्यालय में नैतिक शिक्षा का प्रावधान हो।
- बच्चों में स्व-अनुशासन जाग्रत करने का प्रयत्न करना चाहिए।
- बच्चों की स्वच्छता पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
- बच्चों के लिए कठोर दंड की व्यवस्था उचित नहीं है।
- बच्चों के सामने शिक्षकों को स्वयं अपने आदर्श गुणों का प्रदर्शन करना चाहिए, जिससे बच्चे भी उन गुणों को अपना सकें।
- बच्चों के समाजीकरण के लिए उन्हें समूहों में खेलने का अवसर देना चाहिए। इससे उनमें सहयोग, सद्भावना, सहनशीलता तथा आशावादिता जैसे गुणों का सम्यक् विकास होगा।
B.Sc Course Details In Hindi – Full Form, Fees, Admission, Syllabus
Bsc Agriculture All Semester ICAR Books Notes PDF – Download Free
B.Tech Syllabus, Books, PDF, Notes All Semester Download Free
Follow Me
Leave a Reply