B.Com 2nd Year Cost Ascertainment Long Notes
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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न –
प्रश्न 1 – टेण्डर मूल्य से आप क्या समझते हैं? टेण्डर मूल्य की गणना किस प्रकार की जाती है?
What do you mean by Tender Price ? How will you calculate it?
अथवा निविदा तैयार करने में किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
What elements should be kept in mind in the preparation of tender?
टेण्डर मूल्य का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning & Definition of Tender Price)
प्राय: एक ठेकेदार ठेका कार्य शुरु करने से पूर्व ही उसकी अनुमानित लागत पर विचार करता है, उत्पादकों को प्राय: ग्राहकों से आदेश प्राप्त करने के लिए उन्हें अनुमानित मूल्य बताना -पड़ता है जो कि अनुमानित लागत में कुछ लाभ जोड़कर बताया जाता है। इसी को निविदा करना अथवा टेण्डर मूल्य कहते हैं। बड़े-बड़े व्यापारिक संस्थानों में कार्यों के लिए वास्तविक क्रय से पूर्व उत्पादकों से टेण्डर मूल्य की माँग की जाती है और जिस उत्पादक के द्वारा बनाए ‘गए माल की किस्म सर्वश्रेष्ठ तथा टेण्डर मूल्य न्यूनतम होता है उसे ही माल की पूर्ति हेतु आदेश दिया जाता है।
इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट एण्ड वर्क्स एकाउण्ट्स इंग्लैण्ड के अनुसार – “लागत अनुमान-पत्र एक प्रलेख है जो सम्पूर्ण उत्पादन अथवा इकाई की अनुमानित लागत बताता है।”
टेण्डर मूल्य का निर्धारण अत्यन्त सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए क्योंकि टेण्डर मूल्य लनात्मक रूप से अधिक होने पर उत्पादक को आदेश नहीं प्राप्त होगा तथा लागत से कम होने पर उसे हानि उठानी पड़ेगी। चूंकि निविदा मूल्य का निर्धारण उत्पादन से पूर्व ही करना पड़ता है, अत: इसके लिए मुख्यत: पूर्व अनुभव एवं गत लागतों को आधार के रूप में प्रयोग किया जाता है। गत वर्ष या गत अवधि में उसी प्रकार की वस्तुओं के निर्माण पर हुई लागत में सम्भावित परिवर्तनों को दृष्टि में रखकर टेण्डर तैयार किया जाता है।
निविदा तैयार करते समय ध्यान रखने योग्य बातें
(Elements should be kept in mind in the preparation of Tender)
1. मूल्य परिवर्तन (Change in Price) सामान्यत: बाजार में प्रतिदिन श्रम, सामग्री तथा उत्पादन के अन्य साधनों की कीमतों में परिवर्तन होता रहता है। अत: ठेकेदार को वर्तमान में निविदा मूल्य निर्धारित करते समय इन परिवर्तनों की जानकारी होना अति आवश्यक है ताकि उचित मूल्य निर्धारित किया जा सके।
2. प्रति-इकाई लागत (Cost per Unit) – ठेकेदार को प्रति इकाई लागत ज्ञात करते समय पर्याप्त सावधानी रखनी चाहिए क्योंकि एक पैसे के अन्तर का भी आदेश पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
3. उत्पादन की मात्रा (Quantity Produced) – कुछ लागतों का उत्पादन की मात्रा कम होने या अधिक होने का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। ये लागतें स्थायी प्रकृति की होती हैं जबकि कुछ लागतें उत्पादन की मात्रा घटने पर घट जाती हैं व बढ़ने पर बढ़ जाती हैं। ये लागते परिवर्तनशील लागतें होती हैं। उत्पादन की मात्रा अधिक होने पर स्थिर लागतों का भार प्रति इकाई कम हो जाता है।
4. परिवर्तन की लागत (Cost of Alteration) – यदि आदेशित माल की किस्म, रंग, रूप, पैकिंग मूल्य, फैशन, वजन आदि में परिवर्तन की माँग की गई है तो उस परिवर्तन पर आने वाली लागत को भी ध्यान रखना चाहिए।
5. लाभ (Profit) – टेण्डर की लागत निकाल कर उसमें एक निश्चित प्रतिशत लाभ सम्मिलित किया जाता है। लाभ लागत का एक निश्चित प्रतिशत हो सकता है। लाभ दो आधारों पर लगाया जा सकता है
(i) लागत पर लाभ का प्रतिशत तथा
(i) बिक्री पर लाभ का प्रतिशत।
टेण्डर मूल्य की गणना
(Calculation of Tender Price)
कभी-कभी कुछ वस्तुओं के उत्पादन की गत अवधि की लागत अथवा बिक्री आदि के पूर्ण विवरण दिए होते हैं और इन्हीं विवरणों के आधार पर समान प्रकार की वस्तुओं के टेण्डर मूल्य की गणना की जाती है। यदि गत अवधि के उत्पादन लागत के विभिन्न व्यय पूर्ण राशि में
आते हैं तो टेण्डर मूल्य की गणना प्रति इकाई लागत के आधार पर करनी चाहिए। टेण्डर व अनुमान के प्रश्नों में अनेक स्वरूप देखने को मिलते हैं। प्रमुख स्वरूप निम्नलिखित हैं
1. जब सामग्री या श्रम या दोनों की लागतों में परिवर्तन हो (When there is a change in the price of materials and labour)-टेण्डर की वस्तुओं में प्रयुक्त होने वाली सामग्री, श्रम एवं अन्य व्यय, गत अवधि की लागत के अनुपात में निकालने चाहिए। फिर जिस व्यय में वृद्धि हो उसमें उतना प्रतिशत जोड़ देना चाहिए, जिस व्यय में कमी होने की सम्भावना हो उसमें उतना प्रतिशत कम कर देना चाहिए तथा जिस व्यय के बारे में कुछ न दिया हो उसका वही अनुपात रखना चाहिए जो गत अवधि में था। लाभ का प्रतिशत वही रहेगा जो गत अवधि में था। लागत या बिक्री मूल्य पर जो भी सुविधाजनक हो, लाभ का प्रतिशत निकाल लेना चाहिए।
2. जब टेण्डर गत अवधि के आधार पर तैयार किया जाए (When tender is prepared on the basis of last period profit)-इस प्रकार के निविदा स्वरूप को तभी प्रयोग किया जाता है जब टेण्डर या निर्ख मूल्य के निर्धारण हेतु गत अवधि की लागत सम्बन्धी सूचनाओं के साथ-साथ गत अवधि में उत्पादित संख्या भी बतायी गयी हो और निविदा हेतु वस्तु की वांछित संख्या भी दे रखी हो। सामान्यतः ऐसी दशा में गत अवधि में उत्पादित तथा निविदा वाली वस्तु की किस्म, आकार, स्वरूप तथा गुण समान होते हैं। इस ढंग में गत अवधि की लागत सूचनाओं के आधार पर लागत-पत्रक तैयार करके लागत के विभिन्न अंगों की प्रति इकाई लागत ज्ञात कर ली जाती है, तत्पश्चात् निविदा से सम्बन्धित वस्तु की संख्या का लागत के प्रत्येक अंग की प्रति इकाई से गुणा करके सम्भावित कुल लागत प्राप्त हो जाती है।
3. स्थिर, परिवर्तनशील व अर्द्धपरिवर्तनशील लागतें (Fixed, variable and semi-variable costs) स्थिर व्ययों पर उत्पादन की मात्रा घटाने या बढ़ाने से कोई प्रभाव नहीं पड़ता; जैसे-फैक्ट्री का किराया, मैनेजर का वेतन आदि। परिवर्तनशील व्यय उत्पादन की मात्रा के अनुसार आनुपातिक रूप से कम या अधिक होते हैं। यदि इन व्ययों के अनुपात से कम या अधिक होने का स्पष्ट निर्देश हो तो उसके अनुसार ही समायोजन कर लेना चाहिए। इस प्रकार के व्यय परिवर्तनशीलता तो रखते हैं किन्तु उत्पादन के साथ उनका प्रत्यक्ष आनुपातिक सम्बन्ध न होकर अनुपात से कम परिवर्तनशीलता होती है। इनके सम्बन्ध में स्पष्ट निर्देश दिए हुए होते हैं। जब प्रश्न में लागत सम्बन्धी सूचनाएँ उपयुक्त आधार पर दी गयी हों तो प्रश्न में दिए हुए निर्देशों को ध्यान में रखते हुए ही टेण्डर मूल्य की गणना की जाती है।
4.जब गत कुछ सप्ताहों, महीनों या वर्षों के व्ययों तथा उत्पादन के विवरण दिए हुए हों और उनके आधार पर अनुमान लगाना हो (When particulars of cost and output of the preceeding years or months or weeks are given, and on a 3taferit their basis estimate is required to be calculated)-791-74 की लागत व उत्पादन की मात्रा के वितरण दिए होते हैं। उनके आधार पर चालू अवधि में कुछ निश्चित मात्रा का अनुमान लगाना होता है। लाभ का प्रतिशत भी प्रश्न में दिया होता है।
5. सामग्री, श्रम, अप्रत्यक्ष व्यय तथा लाभ-हानि के वितरण दिए होने पर (When all details are given)-इसमें अग्रलिखित तीन मुख्य बातें होती हैं-
(i) निर्माण व्यय में सामग्री व श्रम की मिश्रित लागत के अनुपात में परिवर्तन – यदि गत अवधि में सामग्री व श्रम की लागत रू. 2,00,000 थी तथा निर्माण व्यय रू. 40,000 था तो निर्माण व्यय सामग्री तथा श्रम की मिश्रित लागत का 20% होगा। यदि चालू अवधि में सामग्री व श्रम की मिश्रित लागत रू. 50,000 हो तो निर्माण व्यय इस लागत का 20% होगा अर्थात् रू.10,000 होगा। अत: जिस अनुपात में सामग्री तथा श्रम की मिश्रित लागत में परिवर्तन होता है, उसी अनुपात में निर्माणी व्यय में भी परिवर्तन होगा।
(ii) प्रति इकाई बिक्री व्यय पूर्ववत् रहेंगे – प्रति इकाई बिक्री व्यय निश्चित रहते हैं, यदि गत अवधि में कुल बिक्री व्यय रू. 36,000 तथा उत्पादित इकाइयाँ 12,000 थीं तो प्रति इकाई बिक्री व्यय रू. 3 हुआ। यदि चालू अवधि में अनुमानित उत्पादन 15,000 इकाइयाँ हैं तो कुल बिक्री व्यय 15,000 x 3 = .रू. 45,000 होगा।
(iii) अन्य व्ययों में स्थिरता – अन्य व्यय कार्यालय व प्रशासन से सम्बन्धित होते हैं जो कि अधिकांशत: स्थिर प्रकृति के होते हैं अर्थात् उत्पादन में परिवर्तन होने पर भी रहते हैं।
6. जब टेण्डर में काम आने वाली सामग्री व श्रम का मूल्य तथा लाभ का प्रतिशत दिया हो, अप्रत्यक्ष व्यय न दिए हों (When the amount of materials and labour required for tender is given percentage of profit is given. Oncost for tender not given)—इस प्रकार के प्रश्न का हल भी पूर्व स्वरूप की भाँति होगा। गत अवधि का जो विवरण तैयार होगा उसमें तैयार माल का आरम्भिक एवं अन्तिम रहतिया नहीं होगा और न ही बिक्री मूल्य होगा, अत: गत अवधि का लाभ मालूम नहीं होगा। लागत व लाभ का विवरण मूल लागत कार्यालय, लागत तथा कुल लागत दिखाएगा। टेण्डर के अप्रत्यक्ष व्यय उन्हीं आधारों अर्थात् कारखाना परिव्यय श्रम पर प्रतिशत तथा प्रशासन परिव्यय का कारखाना लागत पर प्रतिशत आधार पर लिए जाएंगे।
प्रश्न 2 – सामान्य क्षय, असामान्य क्षय तथा असामान्य बचत की परिभाषा दीजिए और स्पष्ट कीजिए कि एक वस्तु की लागत पर इनका क्या प्रभाव पड़ता है?
Define normal wastage, abnormal wastage and abnormal effectives and explain the effect of each of them on the cost of an article.
उत्तर – सामान्य क्षय से आशय
(Concept of Normal Wastage) जो क्षय सामान्य परिस्थितियों में कार्य करने पर भी आवश्यक रूप से होता है, वह . ‘सामान्य अथवा साधारण क्षय’ कहलाता है। इस क्षय के कारण निर्मित वस्तु की मात्रा कम हो जाती है, जिससे तैयार माल का प्रति इकाई लागत मूल्य बढ़ जाता है। यदि क्षय हुए माल के विक्रय से कुछ राशि प्राप्त होती है तो उसे प्रक्रिया खाते (Process Account) के जमा (Cr.) पक्ष में दर्शाते हैं।
असामान्य क्षय से आशय
(Concept of Abnormal Wastage)
कभी-कभी किसी वस्तु के उत्पादन में सामान्य से अधिक क्षय हो जाता ‘असामान्य क्षय’ कहते हैं जैसे किसी उत्पादन में सामान्यत: 4% का क्षय होता है और प्रक्रिया में 2,000 इकाइयाँ डाली गई हों, किन्तु वास्तविक उत्पादन 1,880 इकाइयों का हो। सामान्य क्षय 2,000 इकाइयों पर 4% से 80 इकाइयों का हुआ, अत: 2,000 1,920 इकाइयों का सामान्य उत्पादन हुआ, किन्तु वास्तविक उत्पादन केवल 1.880 टका ही हैं। अत: 1,920 – 1,880 = 40 इकाइयों का असामान्य क्षय हुआ। यदि इसे सामान्य भी की भाँति ही प्रक्रिया खाते में विक्रय मूल्य (Realisable value) पर दिखाएँ तो लागत बन जाएगी और बाजार में प्रतिस्पर्धा में पीछे रह जाएँगे, अत: असामान्य क्षय को सम्बन्धित प्रक्रिया की उत्पादन लागत पर मल्यांकित करके प्रक्रिया खाते में क्रेडिट करते हैं और इस मल्य से प्राप्त मल्य जितना कम होता है वह लाभ-हानि खाते में डेबिट किया जाता है। इस प्रकार असामान्य क्षय को व्यवसाय की हानि माना जाता है तथा इससे लागत को बढ़ने नहीं दिया जाता।
असामान्य क्षय का मूल्यांकन निम्नलिखित ढंग से किया जाता है

असामान्य बचत से आशय
(Concept of Abnormal Effectives)
कभी-कभी किसी वस्तु के उत्पादन में क्षय की मात्रा सामान्य से कम होती है, इसे ‘असामान्य बचत’ कहते हैं। जैसे सामान्यत: एक प्रक्रिया में 5% का क्षय होता है, उसमें 5,000 इकाइयाँ डाली गईं और वास्तविक उत्पादन 4,800 इकाइयाँ हुआ। सामान्य क्षय 5,000 इकाइयों पर 5% से 250 इकाई होना चाहिए तथा 5,000-250 = 4,750 इकाइयों के उत्पादन का आशा थी, किन्तु वास्तविक उत्पादन 4,800-4,750 = 50 इकाइयाँ अधिक हुआ। यह आधिक्य ही असामान्य बचत कहलाता है। यदि असामान्य बचत पर ध्यान न देकर केवल -200 इकाइयों के वास्तविक क्षय के आधार पर प्रक्रिया लागत खाता तैयार करें तो लागत कम हो जाएगी और यदि उसके आधार पर विक्रय निर्धारित करके बिक्री की तो असामान्य बचत के लाभ से व्यवसाय वंचित रह जाएगा, जो बहुत ही अदूरदर्शितापूर्ण माना जाएगा, अत: असामान्य बचत की इकाइयों तथा उसके लागत मूल्य से प्रक्रिया खाता डेबिट किया जाना चाहिए तथा उस लाभ को लाभ-हानि खाते में क्रेडिट किया जाना चाहिए।
उत्पादन व्यय में क्षय का लेखा
(Accounting of Wastage in Production Expenses)
किसी भी वस्तु का लागत मूल्य ज्ञात करने के लिए साधारण क्षय एवं असाधारण क्षय का अध्ययन अलग-अलग किया जाता है।
1. सामान्य क्षय का लेखा
(Accounting of Normal Wastage)
सामान्य क्षय, जो पूर्ण अनुभव के अनुसार होता है उसका लेखा करने में कोई आपत्ति नहीं आती है। इस क्षय की इकाइयों के कारण उत्पादित वस्तु की मात्रा या इकाइयाँ निश्चित रूप से कम हो जाती हैं और उत्पादन व्यय का भार इन उत्पादित इकाइयों पर पड़ने से प्रति इकाई लागत मूल्य बढ़ जाता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि सामान्य क्षय के कारण उत्पादित वस्तु का प्रति इकाई लागत मूल्य बढ़ जाता है। (Normal wastage increases the cost of production per unit)
सामान्य क्षय का मूल्य ज्ञात करना (Determination of Price of Normal Wastage)-कभी-कभी विधि से जो सामान्य क्षय होता है उसका कुछ-न-कुछ मूल्य प्राप्त हो जाता है। ऐसी दशा में जो भी रकम उसके बेचने से प्राप्त होती है उसे सम्बन्धित खाते में जमा पक्ष (Credit side) की ओर लिख दिया जाता है। ऐसा होने से तैयार माल का लागत मूल्य कुछ कम हो जाता है।
II. असामान्य क्षय का लेखा
(Accounting of Abnormal Wastage)
असामान्य क्षय से समस्त लागत में कमी हो जाती है, परन्तु प्रति इकाई लागत मूल्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है क्योंकि शुद्ध व्ययों (Net Expenditure) को साधारण उत्पादित होने वाली इकाइयों से भाग दे दिया जाता है। इस प्रकार लागत का प्रति इकाई मूल्य निकल आता है। असामान्य क्षय की इकाइयों को इस प्रति इकाई मूल्य से गुणा करने से असामान्य क्षय की रकम मालूम हो जाती है। इस रकम से असामान्य क्षय को क्रेडिट कर दिया जाता है। असामान्य क्षय को बेचने से जो भी धनराशि प्राप्त होती है उसके लिए एक असामान्य क्षय खाता तैयार किया जाता है। इस असामान्य क्षय की लागत एवं आमदनी का अन्तर हानि या लाभ होती है जिसे लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित कर दिया जाता है। असामान्य क्षय की लागत निकालने के लिए-
सामान्य लागत/सामान्य लागत = प्रति इकाई मात्रा की सामान्य लागत दर
सामान्य मात्रा असामान्य क्षय की इकाइयाँ x सामान्य लागत दर
= असामान्य क्षय की इकाइयों का मूल्य
III. असामान्य बचत का लेखा
(Accounting of Abnormal Effectives)
असामान्य बचत की इकाइयों को प्रक्रिया खाते के नाम पक्ष में इकाइयों के खाने में तथा इनकी लागत को रकम के खाने में लिया जाता है। असामान्य बचत की मात्रा तथा इसके मूल्य का निर्धारण निम्न प्रकार होता है
सामान्य उत्पादन = प्रवेश की गई इकाइयाँ – सामान्य क्षय
Normal Output = Units entered – Normal Wastage
सामान्य उत्पादन की लागत = कुल लागत – सामान्य क्षय की बिक्री की राशि
Normal Cost of Output = Total Cost
– Sale Price of Normal Wastage
असामान्य बचत की इकाइयाँ = वास्तविक उत्पादन – सामान्य उत्पादन
Abnormal Effectives = Actual Output – Normal Output
सामान्य उत्पादन की लागत /असामान्य बचत की लागत = सामान्य उत्पादन
x असामान्य बचत की इकाइयाँ
Cost of Abnormal Effectives / Cost of Normal Output x Normal Output
x Unit of Abnormal Effectives
प्रश्न 3 – ठेका खाता क्या होता है? इसको तैयार करने में किन मुख्य बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
What is Contract Account ? What important points should be born in mind in its preparation ? अथवा निम्न प्रकार के ठेकों में लाभ प्राप्त करने की पद्धति की उदाहरण सहित विवेचना
(i) जब ठेका कार्य पूर्ण हो जाता है,
(ii) जब ठेका कार्य अपूर्ण रहता है, और
(iii) जब ठेका कार्य पूर्णता के अति निकट है।
Comment on the methods of ascertaining profits in the following types of contracts with examples in figures :
(i) when contract is completed.
(ii) when contract is incompleted.
(iii) when contract is near completion.
अथवा एक निर्माणी इकाई ‘प्रगति पर कार्य का मुल्यांकन सामग्री लागत पर का क्या आप इसे उपयुक्त समझते हैं? कारण बताइए। ‘प्रगति पर कार्य’ का मूल्या का समस्या को, यह बताते हुए कि उसमें लागत के किन तत्त्वों का समावेश हल करने के लिए कम-से-कम तीन वैकल्पिक तरीकों का विवेचन कीजिए।
A manufacturing unit values the ‘work-in-progress’ at materia Do you consider this adequate ? Give reasons. Also discuss at Host three alternative ways of dealing with problem of valuation of work-in-progress stating the elements of costs to be included.
अथवा क्या अधूरे ठेकों पर लाभ लेना वांछनीय है? यदि हाँ, तो किस सीमा तक तथा क्यों? ऐसे लाभ की गणना की प्रक्रिया समझाइए।
Is it desirable to take profit on uncompleted contracts ? If so, to what extent and why? Explain the procedure to ascertain this profit.
उत्तर – ठेका खाते का आशय
(Meaning of Contract Account)
ठेका लागत पद्धति ठेकेदारों, भवन निर्माताओं तथा इंजीनियरों द्वारा प्रयोग में लायी जाती है। इनके द्वारा ठेके का कार्य कारखाने में न करके कार्य-स्थल पर ही किया जाता है। ठेके लागत लेखे रखने का उद्देश्य प्रत्येक ठेका पर होने वाले लाभ या हानि ज्ञात करना है। लाभ-हानि की गणना ऐसे ठेकों पर भी ज्ञात की जाती है जो पूर्ण नहीं हुए हैं। ठेका लागत तथा उपक्रम लागत लेखों में कोई विशेष अन्तर नहीं होता है। जब निर्माण कार्य बड़े पैमाने पर होता है तो उसके लेखे ठेका लागत लेखा के अनुसार रखे जाते हैं और जब एक ही उत्पादन-गृह में अनेक प्रकार के उपक्रम होते हैं तो उनके लेखे उपक्रम लागत लेखे के अनुसार रखे जाते हैं। ठेका लागत के अन्तर्गत जो भी तकनीकी शब्द आते हैं, उनका स्पष्टीकरण निम्न प्रकार है
1. ठेकादाता (Contractee)-ठेकेदाता उस व्यक्ति को कहा जाता है जो अपने किसी कार्य को पूर्ण कराने के लिए दूसरे व्यक्ति को ठेके पर कार्य करने के लिए देता है।
2. ठेकेदार (Contractor)-ठेकेदार वह व्यक्ति होता है जो ठेकादाता के कार्य को पूर्ण करने का दायित्व ग्रहण करता है और वह कार्य करने के बदले में ठेकादाता से प्रतिफल प्राप्त करता है।
3. ठेका (Contract)-ठेकादाता और ठेकेदार के मध्य किसी कार्य को करने के लिए जो भी अनुबन्ध होता है, वह ठेका कहलाता है।
4.ठेका खाता (Contract Account)-किसी ठेके पर होने वाले लाभ-हानि की गणना के लिए जो खाता बनाया जाता है, उसे ठेका खाता कहते हैं। यह एक आगम खाता होता है।
5.ठेका मूल्य (Contract Price)-ठेकेदार के द्वारा जिस मूल्य पर ठेकादाता का कार्य किया जाता है, वही ठेका मूल्य कहलाता है।
6. सामग्री (Material)-यहाँ पर सामग्री से आशय उस सामग्री से है जो ठेके को पूर्ण करने के लिए प्रयोग में लायी जाती है। यह सामग्री बाजार, स्टोर तथा अन्य ठेके से । हस्तान्तरित करके भी प्राप्त की जाती है। ठेके को पूर्ण करने के लिए जो सामग्री प्राप्त की जाती है उसे ठेका खाते के डेबिट पक्ष में लिखा जाता है और जो सामग्री वर्ष के अन्त में प्रयोग करने से रह जाती है उसे इसी खाते के क्रेडिट पक्ष में लिखा जाता है।
यदि ठेके पर निर्गमित सामग्री में से कुछ सामग्री नष्ट हो जाती है या बेच दी जाती है तो उसे ठेका खाते के क्रेडिट पक्ष में लिखा जाता है। बिक्री की गयी सामग्री पर यदि लाभ होता है तो उसे ठेका खाते के डेबिट पक्ष में और यदि हानि होती है तो उसे इसी खाते के क्रेडिट पक्ष में लिखते हैं।
7. संयन्त्र (Plant)-ठेके को पूर्ण करने के लिए जिन मशीनों का प्रयोग किया जाता है उसे संयन्त्र (Plant) कहते हैं और उसकी लागत को ठेका खाते के डेबिट पक्ष में दिखाते हैं। वर्ष के अन्त में प्लाण्ट के अपलिखित मूल्य को क्रेडिट पक्ष में दिखाते हैं। किन्तु यदि किसी संयन्त्र का ठेके पर प्रयोग केवल अल्पकाल के लिए ही किया जाता है तो ऐसे संयन्त्र के प्रयोग की लागत (अर्थात् उस अवधि का ह्रास अथवा संयन्त्र का किराया) को ही ठेका खाते के डेबिट पक्ष में लिखना चाहिए।
8. प्रमाणित कार्य का मूल्य (Value of Work Certified) वर्ष के अन्त में ठेकादाता या उसके इंजीनियर के द्वारा, ठेकेदार द्वारा पूर्ण किए गए कार्य को प्रमाणित किया जाता है उसे प्रमाणित कार्य कहा जाता है। इस प्रमाणित कार्य के मूल्य पर ही ठेके का लाभ ज्ञात किया जाता है। प्रमाणित कार्य के मूल्य को ठेका खाता के क्रेडिट पक्ष में लिखा जाता है।
9. अप्रमाणित कार्य की लागत (Cost of Work Uncertified)-वर्ष के अन्त में ठेकादाता से पूर्ण किए कार्य का प्रमाणपत्र प्राप्ति के पश्चात् ठेकेदार द्वारा ठेके पर जो भी कार्य किया जाता है तथा जो ठेकेदाता या उसके इंजीनियर द्वारा प्रमाणित नहीं किया गया है, वह अप्रमाणित कार्य कहलाता है। इस पर किए गए समस्त व्ययों को अप्रमाणित कार्य की लागत कहते हैं जिसे ठेका खाते के क्रेडिट पक्ष में प्रमाणित कार्य के मूल्य में जोड़कर प्रदर्शित किया जाता है।
10. प्राप्त रोकड़ (Cash Received)—प्रमाणित कार्य के मूल्य का जो हिस्सा ठेकेदार को नगद दे दिया जाता है, उस नकदी को ही प्राप्त रोकड़ कहा जाता है।
11. रोकी गयी धनराशि (Retention Money)-प्रमाणित कार्य के मूल्य का जो हिस्सा ठेकेदार को नहीं दिया जाता है उसे रोकी गयी धनराशि के नाम से पुकारा जाता है।
ठेका खाता तैयार करने की विधि
(Procedure of Preparing Contract Account)
ठेकेदार ठेके पर लाभ-हानि की जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रत्येक ठेके के लिए अलग से खाता खोलता है तथा प्रत्येक ठेके का नम्बर निश्चित कर देता है। सामान्यतया ठेकेदार के द्वारा ठेका खाते के ऊपर ठेके से सम्बन्धित निम्नलिखित सूचनाएँ भी दी जाती हैं
(i) ठेका पूरा करने का स्थान,
(ii) ठेका प्रारम्भ करने की तिथि,
(iii) ठेका मूल्य,
(iv) ठेका मूल्य के भुगतान की शर्ते।
ठेका खाता दो पक्षों के बँटा होता है-नाम पक्ष तथा जमा पक्ष, इन दोनों में अन्तर ही ठेके पर लाभ-हानि को दर्शाता है। नाम पक्ष तथा जमा पक्ष का विवरण निम्न प्रकार है-
ठेका खाते का नाम पक्ष (Debit Side of Contract Ac) सामान्यत: ठेका खाते के नाम पक्ष में निम्न विवरण सम्मिलित किया जाता है-
1.सामग्री (Material) ठेके पर जो सामग्री प्रयोग की जाती है, उसे ठेका खाते के डेबिट पक्ष में लिखा जाता है, चाहे वह सामग्री स्टोर्स से प्राप्त की गयी हो या बाजार से क्रय का गयी हो या दूसरे ठेके से हस्तान्तरित होकर आयी हो।
2. प्रत्यक्ष मजदूरी (Direct Wages) ठेके पर कार्य करने वाले मजदूरों की मजदूरी का खाता के नाम पक्ष में लिखी जाती है, चाहे मजदूरी का वास्तविक भुगतान किया जा चुका है अथवा नहीं।
3. अप्रत्यक्ष व्यय (Indirect Wages)-अनेक व्यय ऐसे होते हैं जो कई ठेकों पर सामूहिक रूप से किए जाते हैं। उन्हें निश्चित रूप से अलग-अलग ठेकों पर बाँटा जाना सम्भव नहीं होता। यदि प्रत्येक ठेके पर होने वाले अप्रत्यक्ष व्ययों के लिए बाँटने का आधार दिया है तब उसी आधार पर बाँट लेना चाहिए अन्यथा अप्रत्यक्ष व्ययों को विभिन्न ठेकों पर उनकी प्रत्यक्ष मजदूरी के आधार पर बाँटना चाहिए।
यदि कुछ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष व्यय अदत्त (Outstanding) हैं तो वर्ष के अन्त में ठेका खाते के डेबिट पक्ष में इनका शेष अगले वर्ष के लिए हस्तान्तरित किया जाता है। यदि ठेका पूर्ण हो गया हो तो हस्तान्तरण नहीं किया जाता है।
4. प्लाण्ट एवं मशीनरी (Plant & Machinery)-प्लाण्ट एवं मशीनरी के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातें ध्यान में रखी जानी चाहिए
(i) यदि प्लाण्ट या मशीन थोड़े-थोड़े समय के लिए ठेकों पर काम में लायी जाती है तो जितने समय तक काम में लायी गयी है उतने समय का ह्रास डेबिट किया जाता है।
(ii) जब प्लाण्ट कम मूल्य का होता है तो केवल ह्रास की रकम ही ठेका खाता के डेबिट पक्ष में लिखी जाती है।
(iii) जब मशीन किराये पर ली गयी है तो दिया गया किराया ही ठेका खाता के डेबिट पक्ष में लिखा जाता है।
(iv) यदि मशीन अधिक मूल्य की है तथा इसका प्रयोग केवल एक ही ठेके पर किया जाता है तो मशीन की सम्पूर्ण लागत ठेका खाते के डेबिट पक्ष में लिख दी जाती है तथा वर्ष के अन्त में उसका अपलिखित मूल्य ठेका खाता के क्रेडिट पक्ष में लिखा जाता है।
प्लाण्ट या मशीन का वर्ष के अन्त में अपलिखित मूल्य निकालते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ह्रास के प्रतिशत के साथ ‘प्रतिवर्ष’ (per an-mum) लिखा गया है, अथवा नहीं। यदि ह्रास दर के साथ प्रतिवर्ष शब्द नहीं लिखा है तो भले ही मशीन का प्रयोग ठेके पर 6 माह या इससे भी कम समय के लिए हुआ हो, ह्रास सम्पूर्ण वर्ष का लगाया जाएगा। यदि प्रतिवर्ष शब्द लिखा है तो ह्रास उतने महीने का ही लगाया जाएगा जितने माह मशीन का प्रयोग किया गया है।
Example : Value of plant रू. 20,000; Plant used on Contract for 6 months
यदि (1) Rate of Depreciation 10%; (ii) Rate of Depreciation 10 p.a. तो (i) Amount of Depreciation=1
20,000 x 10/= रू.2,000
(ii) Amount of Depreciation =20,000x10x6/100×12= रू.1,000
5. उपठेका मूल्य (Sub-contract Price)-कभी-कभी ठेकेदार अपने ठेके का कुछ कार्य अन्य ठेकेदारों को दे देता है। ये अन्य ठेकेदार उपठेकेदार कहलाते हैं। कार्य के | बदले में जो मूल्य इन ठेकेदारों को दिया जाता है उसे ठेका खाता के डेबिट पक्ष में दिखाते हैं।
6. अतिरिक्त किया गया कार्य (Cost of Extra Work done)-कुछ परिस्थितियों में ठेकेदार को ठेका से सम्बन्धित अतिरिक्त कार्य भी करने पड़ते हैं जिनके लिए अलग से मूल्य निर्धारित किया जाता है। अतिरिक्त कार्य की लागत को ठेका खाते के नाम पक्ष में लिखा जाता है।
ठेका खाते का जमा पक्ष (Credit Side of Contract Account) सामान्यत: ठेका खाता के जमा पक्ष में निम्नलिखित मदें लिखी जाती हैं_
1. ठेका मूल्य (Contract Price)-यदि ठेका पूर्ण हो चुका है तो ठेका मूल्य ठेका खाते के क्रेडिट पक्ष में लिखा जाता है। किन्तु यदि ठेका पूर्ण नहीं हुआ है तो ठेका-मूल्य इस खाते के क्रेडिट पक्ष में नहीं दिखाया जाता है।
2. लौटायी गयी सामग्री (Materials Returned)-यदि ठेके की सामग्री स्टोर को लौटा दी जाती है तो उसे ठेका खाते के क्रेडिट पक्ष में लिखते हैं।
3. स्थानान्तरित की गयी सामग्री (Materials Transferred)-यदि कोई सामग्री अन्य ठेके को स्थानान्तरित की गयी हो तो उसे ठेका खाता के क्रेडिट पक्ष में लिखते हैं।
4. संयन्त्र या माल का खोना, नष्ट होना या चोरी जाना (Plant or Materials Lost, Destroyed or Theft) यह असामान्य हानि है, अत: ऐसे संयन्त्र या माल की लागत को ठेका खाते के क्रेडिट पक्ष में लागत लाभ-हानि खाते से चार्ज किया जाता है क्योंकि संयन्त्र या माल का खोना, नष्ट होना या चोरी चला जाना ठेके की लागत का अंग नहीं बन सकता।
5. माल का विक्रय (Sale of Materials) यदि कच्चे माल का विक्रय किया जाता है तो इससे ठेका खाता क्रेडिट किया जाता है तथा कच्चे माल के बेचने से हुई लाभ-हानि को लागत लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित किया जाता है। यदि हानि होती है तो उसे इस खाते के क्रेडिट पक्ष में दिखाते हैं। इसके विपरीत, यदि लाभ होता है तो उसे डेबिट पक्ष में दिखाते हैं। यही क्रिया प्लाण्ट के विक्रय के सम्बन्ध में अपनायी जाती है।
6.शेष प्लाण्ट या मशीन (Plant and Machines in hand)–यदि ठेका प्रारम्भ करते समय कोई मशीन या प्लाण्ट ठेका खाते के डेबिट पक्ष में सम्पूर्ण लागत से दिखाया गया है तो वर्ष के अन्त में जो प्लाण्ट शेष बचा है उसे क्रेडिट पक्ष में दिखाते हैं जिसकी गणना अग्र प्रकार की जाती है
Cost of Plant
Less: Depreciation
Plant in Hand
यदि वर्ष के अन्तर्गत प्लाण्ट चोरी हो गया है, अन्य ठेकों को हस्तान्तरित हुआ है या गया है तो Plant in Hand की गणना निम्न प्रकार की जाती है-
Cost of Plant
Less : Cost of Plant Theft
Cost of Plant transferred to Other Contract
Cost of Plant Sold
Cost of Plant used on Contract
Less : Depreciation on Plant used
Plant in Hand
7. शेष सामग्री (Material in Hand) वर्ष के अन्त में जो सामग्री बच जाती है उसे ठेका खाता के क्रेडिट पक्ष में लिखते हैं।
8. प्रमाणित व अप्रमाणित कार्य (Work Certified and Uncertified) यदि ठेका अपूर्ण (incomplete) है तो ठेका कार्य के क्रेडिट पक्ष में चालू कार्य खाता (Work-in-Progress) शीर्षक के अन्तर्गत प्रमाणित कार्य का मूल्य तथा अप्रमाणित कार्य की लागत दिखलाते हैं।
ठेके पर लाभ-हानि का निर्धारण
(Determination of Profit and Loss on Contract)
ठेकों पर लाभ-हानि का निर्धारण करने के लिए उन्हें तीन भागों में बाँटा जा सकता है। इन्हें हम ठेकों के प्रकार भी कह सकते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं
(A) जब ठेका पूर्ण हो गया हो (When Contract is Complete)
(B) जब ठेका अपूर्ण हो (When Contract is Incomplete)
(C) जब ठेका पूर्ण होने वाला हो (When Contract is near to Completion)
(A) जब ठेका पूर्ण हो गया हो (When Contract is Complete)
ऐसे ठेके जो वर्ष के अन्त तक पूर्ण हो जाते हैं उन पर लाभ की गणना सरल है। सभी खर्चे डेबिट पक्ष में दिखाए जाते हैं। वर्ष के अन्त में जो सामग्री तथा प्लाण्ट बचता है, उसे स्टोर को लौटा दिया जाता है तथा इसे क्रेडिट पक्ष में दिखाते हैं तथा ठेका मूल्य को भी क्रेडिट पक्ष में दिखाते हैं। यदि क्रेडिट पक्ष अधिक है तो लाभ और यदि डेबिट पक्ष अधिक है तो हानि होती है। इस लाभ-हानि को लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित कर दिया जाता है। इस प्रकार के ठेका खाता तथा ठेकादाता खाता का नमूना निम्नवत् है-
In the Book of Contractor
Contract No………..Account

(2) चालू कार्य खाते की बाकी आर्थिक चिट्ठे में सम्पत्ति पक्ष में प्रदर्शित की जाती है।
(3) चालू कार्य खाते का शेष अगले वर्ष ठेका खाता के डेबिट पक्ष में दिखाया जाता है।
ठेका कार्य अपूर्ण रहने पर लाभ की गणना
(Calculation of Profit when Contract is not Completed)
अपूर्ण ठेकों पर लाभ या हानि निकालने की विधि उतनी सरल नहीं है जितनी पूर्ण ठेकों पर निकालने की है। चूंकि यह भाग हमारे प्रश्न का महत्त्वपूर्ण अंग है, अत: इसका अध्ययन बहुत महत्त्वपूर्ण है।
जब बड़े-बड़े कार्य करने के ठेके लिए जाते हैं तो वे एक ही साल में पूर्ण नहीं होते उन्हें पूर्ण होने में कई साल लग जाते हैं। ऐसी दशा में यदि ठेका कार्य पूर्ण होने पर ही लाभ-हानि निकाली जाए तो यह व्यापारिक दृष्टि से अनुचित होगा एवं ठेकेदार के लिए भी यह एक मुश्किल कार्य हो जाएगा। क्योंकि अगर लाभ प्रत्येक वर्ष नहीं दिखाया जाए तब जिस वर्ष ठेका कार्य पूर्ण होगा उस वर्ष लाभ-हानि खाता बहुत अधिक लाभ बताएगा और शेष वर्षों में बहुत थोड़ा लाभ या बिल्कुल ही लाभ नहीं बताएगा, हो सकता है कि हानि भी बताए। इस प्रकार की नीति का पालन करने से कम्पनी के अंशधारियों के लाभांश में काफी उच्चावचन होंगे, फलस्वरूप कम्पनी के अंशों के मूल्यों में काफी घट-बढ़ होगी और यह एक इज्जतदार कम्पनी के लिए उत्तम नीति न होगी। दूसरे, आयकर की दृष्टि से भी यह कठिनाई पैदा कर सकता है, अत: उपर्युक्त कारणों से यह उचित होगा कि अपूर्ण ठेकों पर भी लाभ-हानि निकाला जाए। परन्तु यह लाभ बड़ी सावधानी से निकाला जाना चाहिए ताकि भविष्य में किसी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पड़े।
अपूर्ण ठेके पर लाभ या हानि निकालने के लिए निम्नलिखित नियमों एवं बातों पर ध्यान देना चाहिए
(1) जब ठेके के कार्य का एक बहुत छोटा हिस्सा पूरा किया गया हो तो लाभ निकालना उचित न होगा। यह एक नियम सा बना देना चाहिए कि जब तक कुल कार्य का 1/4 कार्य पूरा न हो जाए तब तक लाभ का कोई विचार नहीं किया जाएगा। क्योंकि इससे कम कार्य पूरा होने से आगे के कार्य के ब्योरे के बारे में अन्दाज नहीं लगाया जा सकता। इसलिए वर्ष के अन्तिम दिन चिट्ठा बनाने के उद्देश्य से ठेके खाते का शेष निकालकर ठेका खाता बन्द कर देना चाहिए एवं इसको शेष चालू कार्य खाता (Work-in-Progress) में हस्तान्तरित कर देना चाहिए तथा इसे चिट्टे में सम्पत्ति पक्ष की तरफ दिखाना चाहिए। यदि इस कार्य के लिए ठेकेदाता से कुछ नकद पेशगी के रूप में प्राप्त होता है, तब उसे चालू कार्य खाते से घटाकर शेष रकम चिट्टे की सम्पत्ति पक्ष में दर्शाना चाहिए।(2) जब ठेके का कार्य एक-चौथाई (1/4) से अधिक पूरा हो चुका हो तो साल के अन्त में लाभ निकालना चाहिए। लाभ निकालने के लिए प्रमाणित कार्य के मूल्य की रकम (Work Certified) ठेके खाते में क्रेडिट की जाती है। अप्रमाणित कार्य के मूल्य को भी लागत (Cost of Work Uncertified) पर ठेके खाते में क्रेडिट कर देना चाहिए। इसके बाद दोनों पक्षों का योग कर अन्तर निकालने पर लाभ अथवा हानि का ज्ञान हो जाता है।
लाभ होने की दशा में पूरा का पूरा लाभ इस वर्ष के सामान्य लाभ-हानि खाते में नहीं ले जाना चाहिए। अप्रत्याशित और आकस्मिक खर्चों के लिए एक समुचित एवं पर्याप्त प्रावधान की व्यवस्था होनी आवश्यक है। जहाँ ठेके की कीमत किस्तों में दी जाने वाली हो वहाँ सामान्यतया लाभ का केवल दो-तिहाई (2/3) हिस्सा ही वास्तविक लाभ मानकर सामान्य लाभ-हानि खाते में ले जाना चाहिए तथा 1/3 हिस्सा भविष्य में होने वाली सम्भाव्य हानियों जैसे हड़ताल, सामग्री की कीमतों में वृद्धि, जुर्माना आदि से होने वाले नुकसानों के लिए सुरक्षित रख लेना चाहिए। इसकी रकम चालू कार्य खाते में ले ली जाती है।
परन्तु जहाँ पर अधिक सतर्कता बरतने की आवश्यकता है वहाँ यह परिपाटी है कि लाभ के 2/3 भाग को भी उसी अनुपात में बाँट दिया जाता है जो अनुपात प्रमाणित मूल्य एवं वास्तविक रोकड़ जो ठेकेदाता से प्राप्त होता है।
(3) हानि की दशा में हानि की समस्त राशि को उस वर्ष के लाभ-हानि खाते में ले जाना चाहिए और यदि इस समय लाभ है और भविष्य में हानि होने की सम्भावना दीखती है तो उसके लिए भी उचित संचित कोष बनाना चाहिए।
(4) लाभ उतने ही कार्य का निकाला जाना चाहिए जितने कार्य के लिए ठेकादाता के शिल्पकार का प्रमाण-पत्र प्राप्त हो चुका है। यदि प्रमाण-पत्र अभी प्राप्त नहीं हुआ हो तो उसे लागत व्यय पर ही दिखाना चाहिए।
(5) ठेके के देर से पूरा होने पर, जुर्माना लगने पर, भविष्य में सामग्री के मूल्य बढ़ने पर, श्रमिकों की मजदूरी दर बढ़ने पर या श्रमिकों की प्राप्ति में कठिनाई होने आदि की सम्भावनाओं से होने वाली हानि का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
(6) किसी भी समय के सम्पूर्ण लाभ को लाभ नहीं मान लेना चाहिए। उसमें से भविष्य में होने वाली सम्भाव्य हानि के लिए कुछ राशि संचित कोष (Reserve Fund) में हस्तान्तरित कर देनी चाहिए। सारांश रूप में उपर्युक्त नियमों को निम्नांकित सारणी में व्यक्त किया गया है

ठेका कार्य की लगभग समाप्ति पर लाभ की गणना
(Calculation of Profit when Contract is nearly Completion)
जब ठेके का कुछ ही कार्य शेष रह जाता है तो शेष कार्य के लिए लगने वाले सम्भाव्य व्ययों का उचित प्रकार से अनुमान लगाकर अब तक के ठेके के व्ययों में जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार सम्पूर्ण ठेके का अनुमानित लागत व्यय ज्ञात हो जाता है। कुल लागत व्यय को ठेका मूल्य में से घटाकर लाभ मालूम कर लिया जाता है और फिर निम्नलिखित सूत्रों में से किसी एक सूत्र के सहारे लाभ का कुछ ही भाग सामान्य लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित किया जाता है-
लाभ = पूर्ण लाभ x.प्राप्त रोकड़/ठेका मूल्य
प्रश्न 4 – परिचालन लागत का अर्थ एवं उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। यह विधि किन उद्योगों में प्रयोग की जाती है?
Explain the meaning and objectives of operating costing. In which industries is it used ?
उत्तर – परिचालन लागत का अर्थ
(Meaning of Operating Cost)
ऐसी व्यापारिक संस्थाएँ जो किसी भौतिक वस्तु का निर्माण नहीं करतीं वरन् सेवाएँ प्रदान करती हैं, लागत लेखांकन की परिचालन लागत विधि (Operating Costing) का प्रयोग करती हैं। इसे सेवा लागत विधि (Service Costing) भी कहते हैं। यातायात व्यवसाय में लगी कम्पनियों में लागत लेखांकन की इस पद्धति को यातायात लागत विधि (Transport Costing) के नाम से भी सम्बोधित करते हैं। “परिचालन लागत विधि का उपयोग वहाँ किया जाता है जहाँ किसी प्रतिष्ठान द्वारा अथवा किसी प्रतिष्ठान के अन्तर्गत सेवा लागत केन्द्र द्वारा मानक सेवाएँ प्रदान की जाती हैं।” लागत लेखांकन की इस पद्धति का प्रयोग सामान्यत: परिवहन सेवाओं (जैसे-बस, रेलवे, ट्राम्बे, ट्रक, वायुयान, स्टीमर, समुद्री यातायात आदि), आपूर्ति सेवाओं (जैसे-गैस, बिजली, पानी आदि), कल्याण सेवाओं (जैसेअस्पताल, पुस्तकालय, कैण्टीन, होटल आदि) तथा मनोरंजन सेवाओं (जैसे—सिनेमा, सर्कस आदि) में होता है।
परिचालन लागत विधि की प्रमुख विशेषताएँ
(Main Characteristics of Operating Costing)
(1) यह विधि उन संस्थाओं द्वारा लागत निर्धारण हेतु प्रयोग की जाती है जो भौतिक वस्तुओं का उत्पादन न करके सेवाएँ प्रदान करती हैं।
(2) इस पद्धति में प्रति इकाई लागत ज्ञात करने हेतु ‘इकाई’ का चुनाव व्यवसाय की या विभिन्न परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किया जाता है। प्रमुख व्यवसायों में इकाई अग्र प्रकार निश्चित की जाती है
(i) मोटर सेवा – प्रति यात्री किलोमीटर या प्रति किलोमीटर
(ii) ट्रक सेवा – प्रति टन किलोमीटर या प्रति किलोमीटर
(iii) विद्युत उत्पादन सेवा – प्रति किलोवाट घण्टा
(iv) अस्पताल सेवा – प्रति रोगी दिवस, प्रति ऑपरेशन
(v) कैण्टीन सेवा – प्रति कप चाय, प्रति थाली खाना।
(3) इस विधि में अपेक्षाकृत अधिक सांख्यिकीय सूचनाओं की आवश्यकता होती है।
(4) इस विधि में लागत का उपविभाजन स्थायी व्यय, अनुरक्षण व्यय तथा परिवर्तनशील व्यय में किया जाता है, जिन्हें जोड़कर प्रति इकाई परिचालन लागत ज्ञात की जाती है।
परिचालन लागत विधि के उद्देश्य
(Objects of Operating Costing)
इस विधि के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
(1) प्रदत्त सेवा की प्रति इकाई लागत निर्धारित करना,
(2) अवधि विशेष में आने वाली कुल लागत ज्ञात करना,
(3) प्रदत्त सेवा की प्रति इकाई विक्रय मूल्य निर्धारित करना ताकि एक निश्चित प्रतिफल प्राप्त हो,
(4) लागतों का विश्लेषण कर नियन्त्रण स्थापित करना,
(5) लागतों का अन्त: अवधि एवं अन्तः फर्म का तुलनात्मक अध्ययन करना ताकि अपने प्रतिद्वन्द्वी की तुलना में कम मूल्य पर बढ़िया सेवा प्रदान कर सकें।
परिचालन लागत पद्धति का प्रयोग
(Application of Operating Costing)
इस पद्धति का प्रयोग निम्न सेवा संस्थानों में किया जाता है
1. यातायात संस्थान – जैसे : बस, ट्रक, रेलवे, ट्रामवे, हवाई जहाज आदि।
2. आपूर्ति सेवा संस्थान – जैसे : बिजली, गैस, पानी आदि।
3. कल्याणकारी सेवा संस्थान – जैसे : होटल, कैण्टीन, अस्पताल, पुस्तकालय आदि।
4. मनोरंजन सेवा – जैसे : सिनेमा, सर्कस, नाटक आदि।
प्रश्न 5 – उपकार्य लागत विधि क्या है? यह ठेका लागत विधि से किस प्रकार भिन्न है? उपकार्य आदेश लागत लेखांकन के लाभ एवं कमियाँ क्या हैं? समझाइए।
What is Job costing ? How does it differ from contract costs What are the advantages and weakness of job order cost account Explain.
उत्तर- उपकार्य लागत पद्धति (Job Costing)
उपकार्य लागत पद्धति से आशय किसी विशिष्ट उपकार्य पर होने वाले वर्गीकरण एवं विश्लेषण करके लागत ज्ञात करना है। यह पद्धति मुख्यत: एस० संस्थाओं द्वारा अपनायी जाती है जो ग्राहकों के व्यक्तिगत निर्देशों के अनुसार, अलग अलग
उपकार्यों या समूहों में उत्पादन करती हैं। ऐसी संस्थाएँ प्रमापित उत्पादन नहीं करतीं बल्कि ग्राहकों की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पृथक्-पृथक् उपकार्यों में उत्पादन किया जाता है। अत: प्रत्येक उपकार्य की अलग-अलग लागत ज्ञात की जाती है। इसे उपकार्य आदेश लागत पद्धति (Job Order Costing), उत्पादन आदेश लागत पद्धति (Production Order Costing) आदि नाम भी दिए जाते हैं। यह पद्धति प्राय: प्रिंटिंग प्रेस, फर्नीचर उद्योग, मरम्मत कार्यशाला, जलयान निर्माता आदि में लागू की जाती है।
उपकार्य लागत पद्धति एवं ठेका लागत पद्धति में अन्तर
(Difference between Job Costing and Contract Costing)
सामान्य रूप से दोनों लागत पद्धतियाँ एक जैसी लगती हैं क्योंकि दोनों विधियों में एक विशिष्ट कार्य लगातार एक निश्चित समय तक चलता है जिसकी पूर्णता पर मूल्य प्राप्त होता है। किन्तु दोनों विधियों में निम्न अन्तर पाए जाते हैं
1. कार्य प्रकृति – ठेका लागत पद्धति में प्रायः निर्माण कार्य किए जाते हैं जबकि उपकार्य लागत पद्धति सामान्य उत्पादन प्रक्रिया में अपनायी जाती है।
2. कार्य-क्षेत्र – ठेका लागत पद्धति भवन, पुल, सड़क, बाँध निर्माण आदि से सम्बन्धित है जबकि उपकार्य लागत पद्धति प्रिटिंग प्रेस, फर्नीचर, वर्कशाप, जलयान निर्माण आदि में लागू की जाती है।
3. कार्य-स्थल – ठेका लागत पद्धति में कार्य कारखाने के बाहर सम्पन्न होता है जबकि उपकार्य लागत पद्धति में कार्य कारखाने के अन्दर किया जाता है।
4. कार्य आकार – ठेका लागत पद्धति में कार्य का आकार प्राय: बड़ा होता है जबकि उपकार्य लागत पद्धति में कार्य का आकार व मूल्य प्राय: छोटा होता है।
5. अपूर्ण कार्य की लागत व लाभ का निर्धारण – ठेका लागत पद्धति में अपूर्ण ठेकों पर भी लागत व लाभ का निर्धारण किया जाता है जबकि उपकार्य लागत पद्धति में कार्य पूर्णता पर ही लागत व लाभ का निर्धारण किया जाता है।
6. लागतों का वर्गीकरण एवं विश्लेषण – ठेका लागत पद्धति में लागतों का वर्गीकरण एवं विश्लेषण बहुत सरल होता है क्योंकि अधिकांश व्यय प्रत्यक्ष रूप से विभाजित होते हैं जबकि उपकार्य लागत पद्धति में अनेक उपकार्य एक साथ सम्पन्न किए जाते हैं। अत: लागतों का वर्गीकरण एवं विश्लेषण बहुत जटिल कार्य होता है।
उपकार्य आदेश लागत लेखांकन के लाभ
(Advantages of Job Order Costing)
उपकार्य आदेश लागत लेखांकन के लाभ निम्नवत् हैं –(i) आदेश की लाभप्रदता – इस विधि के उपयोग करने से प्रबन्धक को यह जानकारी हा जाता है कि कौन-सा उपकार्य या आदेश अन्य की अपेक्षा लाभदायक व कौन-सा अलाभदायक है और कौन-सा हानिप्रद है।
(ii) लागतों का विश्लेषण – यह विधि सामग्री, श्रम एवं उपरिव्ययों सम्बन्धी लागतों का विस्तृत विश्लेषण प्रदान करती है। लागतों सम्बन्धी सूचनाओं की उपलब्धि से लागतों की प्रवृत्ति एवं परिचालन कुशलता पर नियन्त्रण करना सरल हो जाता है।
(iii) भावी अनुमान – विगत उपकार्यों के लागत अभिलेखों के आधार पर भविष्य में समान प्रकृति के उपकार्यों की सही लागत का अनुमान लगाया जा सकता है।
(iv) उत्तरदायित्व का निर्धारण – इसमें विकृत एवं दूषित कार्यों को सरलता से मालूम किया जा सकता है और सम्बन्धित कर्मचारियों को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। प्रबन्धक इससे होने वाली हानि को दूर करने हेतु कदम भी उठा सकता है।
(v) लागत नियन्त्रण – वस्तु का निविदा (tender) मूल्य ज्ञात करने हेतु जो अनुमान लगाए जाते हैं, उन अनुमानों की वास्तविक लागतों से तुलना करके लागतों पर नियन्त्रण रखा जा सकता है।
(vi) लागत – समंकों की पूर्ति-यह विधि वस्तु की लागत से सम्बन्धित समंक (data) प्रदान करती है जो अधिकांशत: सरकारी क्षेत्र में ठेका मूल्य निर्धारित करने में अधिक सहायक होते हैं, जैसे लागत योग ठेका विधि (Cost Plus Contract) में ऐसे लागत-समंक अधिक उपयोगी रहते हैं।
उपकार्य लागत लेखांकन की कमियाँ
(Weakness of Job Costing)
उपकार्य लागत लेखांकन की कमियाँ निम्नवत् हैं-
(i) इस विधि में उत्पादन के डिजाइन (साँचे, ब्लॉक, डाई) तथा सूचीयन और अनुमान लगाने में लिपिकीय एवं कागजी कार्य अत्यधिक होने से अनावश्यक रूप से व्ययों में वृद्धि हो जाती है, अत: यह अत्यधिक खर्चीली विधि है।
(ii) प्रत्येक उपकार्य के उत्पादन एवं लागत नियन्त्रण से सम्बन्धित अभिलेख रखे जान से अभिलेख कार्य भी बढ़ जाता है।
(iii) उपकार्य लागत विधि वास्तव में ऐतिहासिक लागत विधि या वास्तविक लागत । ही है जो प्रमाप लागत (Standard Costing System) लेखांकन प्रणाली के प्रयाग व बिना लागतों पर नियन्त्रण नहीं कर सकती है।
प्रश्न 6 – 1 जनवरी, 2018 से प्रारम्भ हुए एक ठेके पर निम्नलिखित व्यय हुए..
The following was the expenditure on a contract commenced on 1 January, 2018 : रू.
सामग्री (Materials) 4,00,000
मजदूरी (Wages) 6,00,000
प्लाण्ट (Plant) 60,000
अप्रत्यक्ष खर्च (Indirect Expenses) 30,000

प्रश्न 8 – एक कम्पनी के प्रबन्ध संचालक आपसे परामर्श चाहते हैं कि कम्पनी के भाग के उत्पाद, जिसके भविष्य में भारी मात्रा में उत्पादन का विचार है, को कम से कम किस मूल्य पर बेचा जा सकता है? कम्पनी के पिछले वर्ष के इस विभाग से सम्बन्धित खाते निम्नलिखित विवरण प्रदर्शित करते हैं
The managing director of a manufacturing concern consults you as to the minimum price at which he can sell the output of one of the departments of the company which is intended for mass production in future. The company’s records show the following particulars for this department for the past year:
उत्पादन एवं विक्रय-1,000 इकाइयाँ रू.
(Prduction and Sales -1,000 units)
सामग्री (Materials) 1,30,000
प्रत्यक्ष श्रम (Direct Labour) 70,000
प्रत्यक्ष व्यय (Direct Charges) 10,000
कारखाना उपरिव्यय (Factory Overheads) 70,000
कार्यालय उपरिव्यय (Office Overheads) 28,000
कार्यालय उपरिव्यय (Office Overheads) 32,000
लाभ (Profit) 50,000
3,90,000
यह निश्चय किया गया कि कारखाना उपरिव्ययों का 40% भाग उत्पादन के साथ प्रत्यक्ष रूप से परिवर्तित होगा तथा विक्रय व्ययों का 70% भाग बिक्री के साथ परिवर्तित होगा। यह मान लिया गया है कि विभाग प्रतिवर्ष 5,000 इकाइयों का उत्पादन करेगा और प्रत्यक्ष श्रम प्रति इकाई 20% कम हो जाएँगे, जबकि स्थायी कारखाना उपरिव्ययों में रू. 30,000 की वृद्धि होगी। कार्यालय उपरिव्ययों तथा स्थायी विक्रय व्ययों में 25% की वृद्धि सम्भावित है। इसके अतिरिक्त, कोई अन्य परिवर्तन सम्भावित नहीं है। अपने मुवक्किल को प्रस्तुत करने के लिए एक विवरण तैयार कीजिए।
It is ascertained from the record that 40% of the works overheads fluctuate directly with production and 70% of the selling overheads fluctuate with sales. It is anticipated that the department would produce and sell 5,000 units per annum and that direct labour per unit will be reduced by 20% while fixed works overheads will increase by Rs. 30,000; office overheads and fixed selling overheads are expected to show an increase of 25%. Besides these, no other changes are anticipated. Prepare a statement for submission to your client.

सामग्री निर्गमित (Materials issued) 64,000
पारिश्रमिक भुगतान किया (Wages paid) 56,000
कारखाना उपरिव्यय, पारिश्रमिक पर 60%
(Factory Overheads 60% of Wages)
स्टोर में वापसी सामग्री (Materials returned to Store) 800
अन्य उपकार्यों को भेजी गई सामग्री
(Materials transferred to other jobs) 400
उत्पादन का 10% दूषित होने से रद्द कर दिया गया। इसके अतिरिक्त 20% माल को निर्धारित स्तर तक लाने के लिए कारखाना उपरिव्यय को पारिश्रमिक के 80% तक बढ़ाया गया। यदि रद्द किए गए माल के विक्रय पर रू. 470 प्राप्त होते हैं तो निर्मित उत्पाद की प्रति इकाई उत्पादन लागत ज्ञात कीजिए जबकि कुल उत्पादन ( रद्द की गई मात्रा सहित) 100 इकाइयाँ हों।
10% of the production has been scrapped as bad and a further 20% has been brought up to the specification by increasing the factory overheads to 80% of wages. If the scrapped production fetches only रू.470, find the production cost per unit of the finished product if the total production (including the quantity scrapped) be 100 units.
हल (Solution) : Cost Cost
Output:90 units

टिप्पणी – (1) उत्पादित इकाइयों की संख्या निम्न प्रकार ज्ञात की गई है –
कुल उत्पादित इकाइयों की संख्या = 100
(-) रद्द की गई इकाइयाँ = 100 x 10 / 100 = 10
उत्पादित सही मात्रा = 90 इकाइयाँ
(2) 20 खराब इकाइयों पर अतिरिक्त कारखाना उपरिव्यय की रकम निम्न प्रकार ज्ञात की गई है –
56,000X20/100x
20/100 = 2,240
प्रश्न 10 – एक संस्था तीन प्रकार के पंखों का निर्माण करती है-टेबल फैन, सीलिंग फैन तथा रूम-कूलर। इनकी लागतें निम्नांकित हैं
A concern manufactures three types of fan : table fan, ceiling fan and room-cooler. Their costs are as follows:
Table fan Ceiling fan Room-cooler
रू. रू. रू.
Materials 20 each 25 each 125 each
Wages 40 each 60 each 170 each
Factory Overheads रू. 30,000
Office Overheads रू. 10,000
Selling and Distribution Overheads रू. 15,000
कुल लागत ज्ञात कीजिए यदि उपरिव्यय विभाजन के आधार निम्न प्रकार रहे –
एक सीलिंग फैन दो टेबल फैन के बराबर है तथा एक रूम-कूलर पाँच टेबल फैन के बराबर है।
उत्पाद इस प्रकार हैं-
टेबल फैन 250, सीलिंग फैन 125 एवं रूम-कूलर 25.
Calculate total cost if the basis for apportionment of overheads being :
One ceiling fan is equal to two table fans and one room-cooler is equal to five Table fans
Production is as follows:
Table fan 250, Ceiling fan 125 and Room-cooler 25.

Working Note :
Output converted into equivalent table fan :
1 Ceiling fan = 2 table fans (given)
125 Ceiling fans = 2x 125 = 250 table fans
1 Room-cooler = 5 table fans (given)
25 Room-coolers = 5 x 25 = 125 table fans
Ratio of allocation of overheads = 250 : 250 : 125 or 2 : 2:1.
प्रश्न 11 – निम्न सूचनाएँ एक मानक उत्पाद निर्मित कर रही प्रतीक इण्डस्ट्रीज के अभिलेखों से ली गई हैं, जो 31 मार्च, 2018 को समाप्त होने वाले वर्ष से सम्बन्धित हैं-
Following information has been extracted from the records of Prateek Industries producing a standard product which is related to the year ended 31st March, 2018 :
सामग्री (Materials) 90,000
प्रत्यक्ष मजदूरी (Direct Wages) 1,50,000
स्थिर उपरिव्यय (Fixed overheads) 45,000
परिवर्तनशील उपरिव्यय (Varaible Overheads) 30,000
वर्ष 2018-19 में यह सम्भावित है कि-
(i) 50% अधिक श्रमिक रखकर उत्पादन में वृद्धि की जाएगी।
(ii) नए श्रमिकों के कारण कुल कार्यकुशलता में 10% कमी आएगी।
(iii) सामग्री का मूल्य 10% बढ जाएगा।
(iv) परिवर्तनशील व्यय श्रमिकों की संख्या में परिवर्तित होंगे।
(v) स्थिर व्यय 25% बढेंगे।
विक्रय मूल्य ज्ञात कीजिए यदि कम्पनी विक्रय मूल्य पर 16-%⅔ लाभ अर्जित करना चाहती है।
It is expected that during the year 2018-19 :
(i) Output will be raised by employing 50% more workers.
(ii) Overall efficiency will fall by 10% because of new workers.
(iii) Material price will increase by 10%.
(iv) Variable overheads will vary with the number of workers,
(v) Fixed expenses will increase by 25%.
Find out the selling price, if company wants to earn a profit of 162/3% on selling price.
हल (Solution):
Statement of Cost
(for the year 2018-19)

Note : Calculation of increase in Production :
Let present production be 100 units
Add: Increase due to 50% more workers 50 units
150 units
Less : 10% decrease in efficiency due to new workers 15 units
135 units
It means there is increase of 35% (135 – 100) in output.
प्रश्न 12 – प्रक्रिया ‘अ’ का उत्पादन 3,300 इकाइँया हुआ। 300 इकाइयों का असामान्य क्षय हुआ। सामान्य क्षति 10% स्वीकृत की गई। अन्य सूचनाएँ निम्नलिखित हैं-
The output of Process ‘A’is 3,300 units. It was considered that 300 units were an abnormal wastage. Normal loss allowed was 10%. The other informations are given below :
सामग्री (Materials) रू.10 per unit
श्रम (Labour) रू. 6,000
उपरिव्यय (Overheads) रू. 4,000 क्षय की बिक्री (Wastage realized) रू. 5 per unit
प्रक्रिया खाता तथा असामान्य क्षय खाता तैयार कीजिए। Prepare Process A/c and Abnormal Wastage A/c.
हल (Solution): Process ‘A’ Account
Output: 3,300 Units

Normal Output = Actual Output + Abnormal Wastage
= 3,300 + 300 = 3,600 Units
Normal Wastage = 10%
Input = 3,600 x 100/90 = 4,000 Units


प्रश्न 13 – ठेके की कारखाना लागत रू. 80,000 है। कार्यालय व्यय कारखाना लागत का 10% है। ठेका मूल्य पर 12% के लाभ पर ठेका कार्यान्वित किया गया। ठेका मूल्य ज्ञात कीजिए।
Factory cost of a contract is रू. 80,000 office expenses are to be provided at 10% of factory cost. The contract was executed at 12% profit on contract price. Calculate the contract price.
हल (Solution):
Factory Cost 80,000
Office Exps. (10%) 8,000
Total Cost 88,000
Profit (12% on Contract) 12,000
Contract Price 1,00,000
प्रश्न 14 – मैसर्स एक्स, वाई, जैड अपने वार्षिक खाते 31 दिसम्बर को बनाते हैं। ठेका 1 अप्रैल, 2018 को प्रारम्भ किया गया था। लागत लेखे 31 दिसम्बर, 2018 को निम्नलिखित सूचना प्रदर्शित करते हैं
ठेका स्थल पर भेजी गई सामग्री का मूल्य रू. 43,000 है, श्रम लागत रू. 1,00,220 उपरिव्यय रू. 12,6201
एक मशीन जिसका मूल्य रू. 30,000 है, कार्य पर 73 दिन प्रयोग में लायी गई जिसका अनुमानित कार्यशील जीवन 5 वर्ष है तथा अन्तिम अवशेष मूल्य रू. 2,000 है।
एक पर्यवेक्षक जिसको रू. 10,000 वार्षिक दिया जाता है, इस ठेके पर अनुमानतः अपना आधा समय लगाता है। दिसम्बर तक अन्य प्रशासन व्यय रू. 25,220 तथा का स्थल सामग्री रू. 4,960 की है। ठेके का मूल्य रू. 4,00,000 है। 31 दिसम्बर, 2018 तक 2/3 ठेका पूरा कर दिया गया था। आर्किटेक्ट द्वारा रू. 2,00,000 का कार्य प्रमाणित। गया तथा इस हिसाब में रू. 1,60,000 प्राप्त हो गया। एक ठेका खाता बनाइए तथा बता कि 31 दिसम्बर तक कितने लाभ या हानि को लागत लेखों में लेंगे।
M/s XYZ make up their accounts annually on 31st Dece contract commenced on April 1, 2018. The costing records sho following information at December 31, 2018.
Materials charged to site रू. 48,000, Labour charges paidr Overheads incurred रू. 12,620.
A machine costing रू. 30,000 has been on the site for 73 days, its rking life is estimated at 5 years and its final scrap value at रू. 2,000.
A supervisor who is paid रू.10,000 per annum, has spent approximately one-half of his time on this contract. All other administration expenses to 31st December amounted to रू.25,220 and material on site is worth रू. 4,960. The contract price is रू.4,00,000. On 31st December 2018, two-third of the contract was completed, architect certificate has been issued for रू.2,00,000 and रू. 1,60,000 has been paid on account. Prepare a contract account and state how much profit or loss you would include in the cost accounts upto 31st December हल (Solution): In the Books of M/s XYZ
Contract Account


प्रश्न 15 – अभिषेक कन्स्ट्रक्शन कम्पनी ने 1 जनवरी, 2018 को एक ठेका लिया। आप निम्न विवरणों के आधार पर एक ठेका खाता तैयार कीजिए-
The Abhishek Constructions Co. undertook a contract on 1st January, 2018. You are required to prepare a Contract Account from the following particulars :
प्रत्यक्ष सामग्री (Direct Materials) 18,000
मजदूरी (Wages) 12,000 faga
विशेष प्लाण्ट (Special Plant) 8,000
निर्गमित स्टोर सामग्री (Stores Issued) 3,200
छोटे औजार (Loose Tools)
ट्रैक्टर की लागत (Cost of Tractor) :
चलाने हेतु सामग्री (Running Materials)
ड्राइवरों का पारिश्रमिक (Driver’s Wages etc.) 1,600 कर्मचारी कल्याण व्यय (Workmen’s Welfare Expenses)
1,200
ठेका 20 सप्ताह में पूर्ण हो गया। उसके बाद प्लाण्ट को मूल लागत पर 20% ह्रास लगाकर वापस कर दिया गया। खुले औजार व स्टोर क्रमशः रू. 1,000 व रू. 400 के वापस किए गए। ट्रैक्टर का मूल्य रू. 19,500 था और इस ठेके पर 20% प्रतिवर्ष की दर से ह्रास लगाना है।
कारखाना लागत पर 15% की दर से आपको कार्यालय अधिव्यय की व्यवस्था करनी है। ठेका कुल लागत पर 20% लाभ पर कार्यान्वित किया गया।
The contract was completed in 20 weeks, at the end of which period plant was returned subject to depreciation of 20% on the original cost. The value of loose tools and stores returned were रू. 1,000 and रू. 400 respectively. The value of the tractor was रू. 19,500 and depreciation was to be charged to this contract at the rate of 20% per annum.
You are required to provide office oncost @ of 15% on works cost. The contract was executed at a profit of 20% on total cost.
हल (Solution) :
In the Books of Abhishek Constructions Co.
Contract Account

प्रश्न 16 – निम्नलिखित सूचनाओं से ठेका खाता व चालू कार्य खाता बनाइए तथा लाभ-हानि खाते में उचित लाभ हस्तान्तरित कीजिए
From the following particular, prepare Contract Account and Work-in-Progress Account transferring reasonable profit to Profit and Loss Account:
Contract Price 4,00,000
Work Certified 1,20,000
Cash Received 90,000
Materials Purchased 60,000
Wages Paid 42,000
Plant Issued 10,000
Overheads Charges 3,000
Cost of Work Uncertified 10,500
Materials in Hand 5,000
Depreciation on Plant 10 %
हल (Solution): Contract Account

प्रश्न 17 – निम्नलिखित आँकडे मार्च 2018 माह में एक मानक उत्पाद के निर्माण से सम्बन्धित हैं-
The following data relate to the manufacture of standard product during the month of March 2018.
कच्ची सामग्री उपभुक्त (Raw Materials consumed) 80,000
प्रत्यक्ष पारिश्रमिक (Direct Wages) 4 8,000
मशीन द्वारा कार्य किए गएघण्टे-8000 (Machine Worked Hours 8,000)
मशीन घण्टा दर रू. 4 (Machine Hour Rate रू. 4)
कार्यालय उपरिव्यय-10% कारखाना परिव्यय पर
(Office Overheads 10% of Works Cost)
बिक्री उपरिव्यय – रू. 1.50 प्रति इकाई
(Selling Overheads 1.50 per unit)
उत्पादित इकाइयाँ 4,000 (Units Produced 4,000)
इकाइयाँ बेची गयी – 3,600 प्रति रू. 50 की दर से
(Units Sold 3,600 at रू.50 each)
उपर्युक्त के सम्बन्ध में निम्नलिखित दिखाते हुए लागत-पत्र बनाइए-
(i) प्रति इकाई परिव्यय,
(ii) अवधि का लाभ।
You are required to prepare a cost sheet in respect of above, showing (i) Cost per Unit, (ii) Profit for the Period. हल (Solution): Cost Sheet
(for March 2018) Output:4,000 units

(i) रू. 44.00, (ii) रू. 16,200.
प्रश्न 18 – एक फैक्ट्री की पुस्तकों से निम्नलिखित विवरण उपलब्ध हैं, जिसमें दो विधियों में कार्य होता है
The following details are available from the books of a factory in which two processes are employed :

प्रश्न 19 – प्रफम प्रक्रिया का उत्पादन 3,300 इकाइयाँ हुआ। 300 इकाइयों की असामान्य क्षति हुई। 10% स्वीकृत की गई। अन्य सचनाएँ निम्नलिखित हैं-
The output of Process I is 3,300 units. It was considered that 300 units were an abnormal loss. Normal loss allowed was 10%. The other information are given below:
प्रत्यक्ष सामग्री (Direct Material) @ 10 per unit
प्रत्यक्ष मजदूरी (Direct Wages) 6,000
उपरिव्यय (Overheads) रू. 4,000
क्षय की बिक्री (Wastage realized) रू.5 per unit
आप प्रक्रिया खाता तथा असामान्य हानि खाता तैयार कीजिए।
You are required to prepare Process Account and Abnormal Loss Account.
हल (Solution): Process Account

प्रश्न 20 – एक ठेकेदार प्रतिवर्ष 31 दिसम्बर को अपना खाता तैयार की 1 अप्रैल, 2018 को ठेका संख्या 51 प्रारम्भ हुआ। लागत विवरणों से 31 दिसम्बर को निम्नलिखित सूचनाएँ प्राप्त हुईं
A contractor makes up his account on 31st December each vo Contract No. 51 was commenced on 1st April, 2018. The costing recoma provide the following information at 31st December, 2018 :
रू.
निर्गमित सामग्री (Materials Issued) 42,000
श्रम (Labour) 1,02,000
अन्य व्यय (Other Charges) 12,500
प्रशासनिक व्यय (Administration Expenses) 25,500
हाथ में सामग्री (Materials in Hand) 4,400
रू. 36,000 लागत की एक मशीन 6 माह तक ठेके पर रही। इसका अनुमानित जीवन 6 वर्ष है तथा इसका अवशिष्ट मूल्य रू. 6,000 है। एक पर्यवेक्षक ने जिसे रू. 21,600 प्रति वर्ष वेतन मिलता है लगभग आधा समय इस ठेके पर लगाया है। ठेका मल्य रू. 4,00,000 था तथा 31 दिसम्बर, 2018 को ठेके का 2/3 भाग पूर्ण हो गया। शिल्पकारों द्वारा रू. 2,00,000 के ठेके की पूर्णता के लिए प्रमाण-पत्र दिए गए। प्रमाणित कार्य का 80% नकद प्राप्त किया। ठेका खाता बनाइए।
A machine costing रू. 36,000 had been on the site for six months. Its working life is estimated at six years and its final scrap value at रू. 6,000. Supervisor, who is paid रू. 21,600 per annum has spent one-half of his time at the contract. The contract price was रू. 4,00,000 and on 31st December, 2018. 2/3 of the contract was completed. Architect certificate had been issued covering रू. 2,00,000. Cash received was 80% of work certified. Prepare a Contract Account.
हल (Solution) : In the Books of Contractor
Contract Account


प्रश्न 21 – एक कारखाने का उत्पादन तीन विधियों (Processes) अ,ब तथा स से होकर गुजरता है। प्रत्येक विधि का उत्पादन अगली विधि को हस्तान्तरित होता है। निम्न समंकों से प्रत्येक विधि की लागत ज्ञात कीजिए
The finished goods of a factory pass through three pricesses known as A, B and C. The production of each process is passed on to the next process from the following figures show the cost of each process :
Process A Process B Process C
सामग्री (Materials) 12,000 18,000 55,000
मजदूरी (Wages) 9,000 18,000 32,750
कारखाना उपरिव्यय 14,000 14,000 20,000
(Works Oncost)
सामान्य व्यय 10,000 11,750 10,000
(General Expenses)
उत्पादन इकाइयाँ 36,000 37,500 48,000
[Production (units)]
प्रारम्भिक रहतिया (इकाइयाँ)
[Opening Stock (units)] – 4,000 16,500
अन्तिम रहतिया ( इकाइयाँ)
[Closing Stock (units)] – 1,000 5,500


प्रश्न 22 – एक फैक्ट्री में उत्पादन ‘अ’ और ‘ब’ प्रक्रियाओं में होकर गुजरता है। दोनों प्रक्रियाओं में कुल लगाए गए भार का 5% खो जाता है तथा 10% अवशेष बचा रहता है, जो प्रक्रिया ‘अ’ का रू. 20 प्रति टन और ‘ब’ का रू. 30 प्रति टन बिकता है। निम्न विवरण उपलब्ध हैं –
In a factory the output passes through ‘A’ and ‘B’ processes. In both processes 5% of the total weight put in is lost and 10% is scrap which realizes from processes ‘A’ and ‘B’ रू. 20 and रू. 30 per ton respectively. The following details are available :
Process ‘A’ Process ‘B’
प्रयुक्त सामग्री टनों में 8,000 1,000
(Materials used in tons)
सामग्री की लागत प्रति टन रू. 30 50
(Cost of Materials per ton)
मजदूरी (Wages) रू. 20,000 10,000
उत्पादन व्यय (Manufacturing Expenses) रू. 16,000 5,000
प्रक्रिया खाते तैयार कीजिए (Prepare Process Accounts)।
हल (Solution) :
Process ‘A’ Account

प्रश्न 23 – एक कम्पनी का उत्पाद पूर्णता की अवस्था तक पहुँचने के लिए तीन प्रक्रियाओं से होकर गुजरता है। पिछले अनुभव के आधार पर यह निश्चित किया गया कि प्रत्येक प्रक्रिया में सामान्य क्षय निम्न प्रकार होता है
प्रक्रिया अ-2% प्रक्रिया ब-5% प्रक्रिया स-10%
अ तथा ब प्रक्रियाओं का क्षय र 10 प्रति 100 इकाइयों के हिसाब से मूल्य रखता है तथा प्रक्रिया ‘स’ के क्षय का मूल्य 40 प्रति 100 इकाइयाँ है। आपको निम्न सूचनाएँ उपलब्ध हैं-
The product of a company passes through three distinct processes to completion. From past experience it is ascertained that wastage is incurred in each process as under:
Process A-2%; • Process B-5%; Process C-10%
Wastage of process A and B is sold at 10 per hundered units and that of Process Cat 40 per hundred units. The following information is available to you:
Process ‘A’ Process ‘B’ Process ‘C’
Materials consumed 12,000 8,000 4,000
Direct Labour 16,000 12,000 6,000
Manufacturing Expenses 2,000 2,000 3,000
प्रक्रिया अ को 20,000 इकाइयाँ रू. 20,000 की लागत पर निर्गमित की गयीं। प्रत्येक प्रक्रिया की उत्पादित इकाइयाँ निम्न प्रकार हैं –
प्रक्रिया अ-19,500; प्रक्रिया ब-18,800; प्रक्रिया स-16,000
प्रक्रिया खाते, सामान्य क्षय खाता, असाधारण क्षय खाता तथा असाधारण बचत खाता तैयार कीजिए। गणना निकटतम रुपयों में करनी है।
20,000 units have been issued to Process A at a cost of * 20,000 The output of each process are as under:

प्रश्न – 24 निम्नलिखित विवरण से तैयार कीजिए (अ) परिव्यय की प्रत्येक व्यक्तिगत मद की प्रतिशत जो कल व्यय पर निकलती है, दिखाते हुए 2018 वर्ष का उत्पादन लागत का विवरण-पत्र, (ब) परिव्यय लेखे के अनुसार लाभ का विवरण-पत्र तथा (स) वित्तीय पुस्तकों के अनुसार लाभ-हानि खाता तथा दिखाइए कि (ब) तथा (स) में दिखाए गए लाभ के अन्तर आप किन कारणों से समझते हैं?
From the following particulars, prepare (a) a statement of cost of manufacture for the year 2018 showing the percentage which each individual item of cost bears to the total cost, (b) a statement of profit as per Cost Accounts and (c) Profit and Loss Account in the Financial Books and show to what you would attribute the difference in the profit as shows by (b) and (c).
रू.
कच्ची सामग्री का प्रारम्भिक स्टॉक
(Opening Stock of raw materials) 60,000
तैयार माल का प्रारम्भिक स्टॉक,
(Opening Stock of finished articles) 1,20,000
कच्ची सामग्री का क्रय (Purchase of raw materials) 3,60,000
अन्त में कच्ची सामग्री का स्टॉक
(Stock of raw materials at the end) 90,000
तैयार माल का अन्त में स्टॉक
(Stock of finished articles at the end) 30,000
मजदूरी (Wages) 1,50,000
कारखाना उपरिव्यय मूल लागत पर 25% तथा कार्यालय उपरिव्यय कारखाना उपरिव्यय पर 75% लगाइए।
वास्तविक कारखाना व्यय, रू. 1,16,250 हुए तथा वास्तविक कार्यालय व्यय रू. 91,500 हुए। विक्रय मूल्य पर 20% लाभ लगाकर विक्रय मूल्य निर्धारित किया गया।
Calculate factory overheads at 25% on prime costs and office overheads at 75% on factory overheads.
Actual works expenses amounted to रू. 1,16,250 and actual office expenses amounted to 91,500. The selling price was fixed at a profit of 20% of the selling price..
हल (Solution):
(A) Statement of Cost of Manufactures

प्रश्न 25 – एक निर्माता को ज्ञात हुआ है कि उत्पादन लागत में वृद्धि हो गई है। उसकी वस्तु की पिछली उत्पादन लागत में सामग्री 30%, मजदूरी 20%, किराया भाड़ा आदि 5%, ईंधन 10% तथा सामान्य व्यय 15% था। अब ईंधन में 50%, सामग्री में 30%, मजदूरी में 25% तथा किराया, भाड़ा आदि में 20% की मूल्य वृद्धि हो गई है। वह आपका परामर्श चाहता है कि पूर्ववत् लाभ प्राप्त करने के लिए उसे अपने विक्रय मूल्य में कितने प्रतिशत वृद्धि करनी चाहिए?
आपकी गणना का परिणाम क्या होगा और उसकी सत्यता किस प्रकार सिद्ध करेंगे?
A manufacturer finds that an advance in the cost of production has taken place and that where as formerly his goods cost raw materials 30%, wages 20%, rent, rates etc. 5%, fuel 10%, general expenses 15%. Now there has been an advance of 50% in fuel, 30% in materials, 25% in wages and 20% in rent, rate etc.
He consults you as to what percentage he must add to the selling price in order to obtain the same profit. What would be the result of your calculations and how would you prove to him that they were correct.
हल (Solution) : Suppose Present Selling Price = रू. 100
Present Cost Anticipated Cost
रू. रू.

Hence, it is clear from the above that in order to obtain the same percentage of profit, selling price should be increased by 125 – 100 = 25%.
प्रश्न 26 – 31 मार्च, 2018 को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए निम्न सूचनाओं के आधार पर एक लागत पत्रक बनाइए जिसमें एक थर्मल पावर संयन्त्र द्वारा उत्पादित विद्युत की प्रति किलोवाट लागत दिखाई जाए।
From the following information for the year ended 31st March, 2018, prepare a cost sheet showing cost of electricity generated per kWh. by a Thermal Power Plant.
Total Units Generated 20,00,000 kWh.
Operating Labour रू. 50,000
Repairs & Maintenance रू. 50,000
Lubricants, Spares & Stores रू. 40,000
Plant Supervision रू. 30,000
Administrative Overheads रू. 20,000
Coal consumed per kWh. 2.5 kg. @ Re. 0.02 per kg.
Depreciation : @5% on Capital Cost of रू. 2,00,000.
हल (Solution): Operating Cost Sheet
Base Period: 1 year Electricity Generated : 2,00,000 kWh.

प्रश्न 27 – निम्न सूचना एक साइकिल फैक्ट्री से सम्बन्धित है-
The following information relates to a cycle factory:
सामग्री लागत (Material Cost) 1,20,000
श्रम लागत (Labour Cost) 2,40,000
स्थायी उपरिव्यय (Fixed Overheads) 1,20,000
परिवर्तनशील उपरिव्यय (Variable Overheads) 60,000 उत्पादन (Production) 12,000 साइकिलें (Cycles) कुल क्षमता (Total Capacity) 20,000 साइकिलें (Cycles)
विक्रय मूल्य (Selling Price) 50 रू. प्रति साइकिल (रू. 60 per Cycle)
फर्म को 40 १ प्रति साइकिल की दर से 5,000 साइकिलें खरीदने का प्रस्ताव प्राप्त हुआ। यदि यह प्रस्ताव मान लिया जाए तो :
(i) सामग्री लागत में एक रुपया प्रति साइकिल की बचत सभी उत्पादित साइकिलों पर होगी।
(ii) स्थायी उपरिव्यय में रू. 35,000 anafar
(iii) उत्पादन की कार्यक्षमता में 2% की सभी उत्पादन पर कमी होगी।
The firm has an offer for the supply of 5,000 cycles @ 40 per cycle. If the offer is accepted, it would lead to :
(i) A saving of रू. 1 per cycle in material cost on all cycles manufactured.
(ii) An increase in fixed overheads by रू. 35,000.
(iii) A drop in overall efficiency by 2% on the entire production Give your opinion.
हल (Solution) :

Opinion : If the firm accepts the offer, there will be two advantages : (i) Installed capacity will be better utilized, and (ii) there will be slight increase in the amount of profit. However, the new purchaser may create problem in market by selling the cycles comparatively at a lower price. Moreover, the profit increase is also not significant. So the offer should not be accepted.

प्रश्न 28 – निम्न सूचनाओं से प्रक्रिया लेखे तथा लाभ का विवरण तैयार कीजिए –
On the basis of the following information prepare Process Accounts and a Statement of Profit :
प्रक्रिया I प्रक्रिया II प्रक्रिया III
प्रयुक्त सामग्री (Raw material used) 1,000 टन – –
लागत प्रति टन (Cost per ton) रू. 200 – –
उत्पादक मजदूरी तथा व्यय रू. 87,500 रू. 34,500 रू. 10,710
(Manufacturing Wages & Expenses)
भार में कमी (Weight lost) 5% 10% 20%
क्षय (विक्रय मूल्य रू. 50 प्रति टन) 50 टन 30 टन 51 टन
[Scrap (sales price रू. 50 per ton)]
उत्पादन का विक्रय मूल्य प्रति टन रू. 350 रू. 500 रू.800
(Sale price of output per ton)
प्रबन्ध व्यय रू. 17,500 तथा विक्रय व्यय रू. 10,000 थे। प्रथम प्रक्रिया के उत्पादन का दो-तिहाई तथा द्वितीय प्रक्रिया के उत्पादन का आधा अगली प्रक्रिया को हस्तान्तरित हो जाता है और शेष बेच दिया जाता है। तीसरी प्रक्रिया का सम्पूर्ण उत्पादन बेच दिया जाता है।
Management expenses were रू. 17,500 and selling expenses रू. 10,000 Two-third of the output of process I and one-half of the output of process II are transferred to next process to next process and the balance are sold. The entire output of process III is sold.
हल (Solution): Profit I Account


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