B.Com 3rd Year E-Commerce An Introduction Notes
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ई-कॉमर्स-एक परिचय
(E-Commerce-An Introduction)
आज जब इंटरनेट (Internet) का जमाना है तो दनिया का आधनिक व्यापार भी धीरे-धीरे इंटरनेट के साथ जुड़ने लगा है। इससे व्यापार की एक नई धारणा प्रचलन में आई है, जिसे ई-कॉमर्स/ई-बिजनेस कहा जाता है। आज हम इंटरनेट पर अपनी दकान खोल कर दनिया भर के इंटरनेट उपभोक्ताओं (Internet Users) तक पहुँच सकते हैं। इंटरनेट उपभोक्ता घर बैठे ही माल का आदेश (Order) द सस माल का सुपुर्दगी (Supply) ले सकते हैं और भगतान भी कर सकते हैं। यहाँ पर यह समझ लेना आवश्यक है कि इंटरनेट पर ही माल की सपर्दगी व भुगतान कैसे संभव है। __
(1) सुपुर्दगी (Delivery): सुपुर्दगी के दृष्टिकोण से माल दो प्रकार का हो सकता है: () वह माल जिसकी सुपुर्दगी तुंरत कम्प्यूटर सेट पर प्राप्त की जा सकती है। जैसे-कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर, विमानों के टिकट, होटल आरक्षण, टेप, सीडी. सचनाएं. पुराने समाचार-पत्र व अन्य प्रकाशन आदि। इस आनलाइन व्यवहार (On Line Transaction) कहते हैं। (ii) वह माल जिसकी सपर्दगी तुरंत कम्प्यूटर सेट पर प्राप्त नहीं की जा सकती; जैसे-यदि हम एक कार खरीदना चाहते हैं तो विभिन्न दकानों पर जाकर कार और उससे संबंधित जानकारियां इकट्ठी करने के स्थान पर इंटरनेट पर ही यह सब जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और फिर ऑर्डर दे सकते हैं, लेकिन इंटरनेट पर कार की सुपुर्दगी संभव नहीं है। कुछ ही समय के बाद डीलर कार लेकर आपके घर आ जाएगा। इसे आदेश की भौतिक सुपुर्दगी (Physical Delivery) कहते हैं।
(2) भुगतान विधि (Payment Mechanism): इंटरनेट के माध्यम से भुगतान भी किया जा सकता है। माल का क्रेता आदेश के साथ ही बैंक द्वारा जारी किए गए क्रेडिट कार्ड (Credit Card) का नम्बर देकर भुगतान कर सकता है। इस भुगतान पद्धति को इलैक्ट्रॉनिक फण्ड हस्तांतरण (Electronic Fund Transfer-EFT) कहते हैं।
ऑनलाइन व्यवहार का उदाहरण (Example of On Line Transaction):इंटरनेट सॉफ्टवेयर बनाने वाली एक मशहूर कम्पनी नेटस्केप कैलिफोर्निया के सनीवेल स्थित अपने कार्यालय के मुख्य कंप्यूटर पर लगभग हर मिनट दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से सॉफ्टवेयर के ऑर्डर प्राप्त करती रहती है। क्रेता ऑर्डर के साथ ही अपना क्रेडिट कार्ड का नंबर भी लिखते हैं। कम्पनी अपने कार्यालय से ही इलेक्ट्रॉनिक ढंग से सॉफ्टवेयर की सुपुर्दगी दे देती है और तुरंत ही भुगतान भी प्राप्त कर लेती है।
ई-कॉमर्स का अर्थ
(Meaning of E-Commerce)
ई-कॉमर्स दो शब्दों ई + कॉमर्स के योग से बना है। ‘ई’ शब्द इलैक्ट्रॉनिक का संक्षिप्त रूप है तथा ‘कॉमर्स’ से आशय व्यावसायिक लेन-देन से है। अतएव ई-कॉमर्स से आशय इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से व्यावसायिक लेन-देन से है। दूसरे शब्दों में, “दो या दो से अधिक पक्षकारों के मध्य वस्तुओं और सेवाओं के इलैक्ट्रॉनिक माध्यम से सम्पन्न होने वाला विनिमय ई-कॉमर्स कहलाता है। इसमें न केवल क्रय-विक्रय अपितु ग्राहकों को विभिन्न प्रकार की सेवाएं प्रदान करना व व्यावसायिक साझेदारों के साथ सहयोग करना भी सम्मिलित है। इलैक्ट्रॉनिक माध्यम से आशय कम्प्यूटर तथा इंटरनेट तकनीक के उपयोग से है। अत: कम्प्यूटर के माध्यम से इंटरनेट तकनीक द्वारा व्यावसायिक क्रियाएँ सम्पन्न करने की क्रिया ही ई-कॉमर्स कहलाती है।” वाणिज्यिक क्रियाओं में, माल के बारे में जानकारी प्राप्त करना, आदेश देना, सुपुर्दगी लेना, भुगतान करना आदि सम्मिलित है। इस पद्धति के अंतर्गत वस्तुओं, सचनाओं व सेवाओं सभी का क्रय-विक्रय संभव है। ई-कॉमर्स की परिभाषाएँ (Definitions of E-Commerce)-ई-कॉमर्स की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) अमेरिका के डिपार्टमेण्ट ऑफ ट्रेजरी के अनुसार, “ई-कॉमर्स से आशय कम्प्यटर्स तथा टेलीकम्युनिकेशन्स का उपयोग करते हुए इंटरनेट पर सम्पन्न किये जाने वाले उपभोक्ता तथा व्यावसायिक सौदों से है।” (2)”ई-कॉमर्स से आशय इलैक्ट्रॉनिक माध्यमों का उपयोग करते हुए किये जाने वाले अथवा निष्पादित व्यावसायिक व्यवहारों से है।”
निष्कर्ष-उपयुक्त परिभाषा-”विभिन्न व्यापारिक सहयोगियों, कम्पनियों, ग्राहकों, उपभोक्ताओं आदि के साथ समस्त व्यावसायिक क्रियाओं एवं व्यावसायिक सुचनाओं का आदान-प्रदान कम्प्यूटर के द्वारा इण्टरनेट का प्रयोग करते हुए इलैक्ट्रॉनिक माध्यम से करना ही ई-कॉमर्स कहलाता है।”
ई-बिजनेस का अर्थ (Meaning of E-Business) व्यवसाय एक विस्तृत शब्द है। उद्योग (Industry) और वाणिज्य (Commerce) इसके अंग हैं। उद्योग के अंतर्गत उत्पादन एवं अन्य संबंधित क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है। वाणिज्य के अंतर्गत व्यापार (Trade) एवं व्यापार की सहायक क्रियाएं आती हैं। व्यापार का अर्थ क्रय-विक्रय करने से है। संक्षेप में, व्यवसाय उद्योग एवं वाणिज्य का सम्मिश्रण है। इस संदर्भ में, ई-बिजनेस का अर्थ उद्योग एवं वाणिज्य क्रियाओं को कम्प्यूटर नेटवर्क अर्थात इंटरनेट के माध्यम से पूरा करना है।।
ई-कॉमर्स बनाम ई-बिजनेस (E-commerce Vs. E-business) यद्यपि, अनेक अवसरों पर ई-बिजनेस व ई-कॉमर्स शब्द का प्रयोग समानार्थी शब्दों की तरह किया जाता है फिर भी इन दोनों में सूक्ष्म अन्तर है। जिस प्रकार व्यापार, वाणिज्य के मुकाबले एक अधिक व्यापक शब्द है, उसी प्रकार ई-बिजनेस भी एक विस्तृत शब्द है। इसमें इलैक्ट्रॉनिक माध्यम से किये जाने वाले विभिन्न व्यावसायिक लेन-देन व कार्य एवं लेन-देनों का एक अधिक लोकप्रिय क्षेत्र जिसे इ-कॉमसे कहा जाता है, भी शामिल है। ई-कॉमर्स एक फर्म के अपने ग्राहकों और पूर्तिकर्ताओं के साथ इंटरनेट पर पारस्परिक सम्पर्क को सम्मिलित करता है। ई-बिजनेस न केवल ई-कॉमर्स वरन् व्यवसाय द्वारा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम द्वारा संचालित किये गये अन्य कार्यों जैसे-उत्पादन, स्टॉक प्रबन्ध, उत्पादन विकास, लेखांकन एवं वित्त और मानव संसाधन को भी सम्मिलित करता है। इस प्रकार ई-बिजनेस स्पष्ट रूप से इन्टरनेट पर क्रय एवं विक्रय अर्थात् ई-कॉमर्स से कहीं अधिक विस्तृत है।
ई-बिजनेस से प्राप्त अवसर (Scope/Opportunities of E-business) ई-व्यवसाय के क्षेत्र ने असीम अवसर प्रदान करके आज व्यवसाय के क्षेत्र में एक क्रान्ति उत्पन्न कर दी है। ई-व्यवसाय का क्षेत्र ई-कॉमर्स की तुलना में अधिक व्यापक है। व्यवसाय का क्षेत्र स्थानीय से राष्ट्रीय और राष्ट्रीय से अन्तर्राष्ट्रीय रूप धारण कर चुका है। आज आप अपने कार्यालय में बैठे-बैठे विश्व के किसी भी देश के व्यवसायी से व्यावसायिक सम्बन्ध स्थापित कर सकते हैं। संक्षेप में, ई-व्यवसाय ने व्यावसायिक लेन-देनों में निम्न अवसर प्रदान किये हैं – (1) व्यवसाय का भूमण्डलीकरण कर दिया है अर्थात् व्यवसाय का कार्य-स्थल समूचे विश्व तक फैला दिया है। (2) वस्तुओं का क्रय-विक्रय सरल बना दिया है। (3) ई-व्यवसाय ने बैंकिंग व धन के हस्तान्तरण की व्यापक सुविधाएँ प्रदान की हैं। आप कम्प्यूटर से बैंक में लेन-देन कर सकते हैं, धन का हस्तान्तरण एक खाते से दूसरे खाते में कर सकते हैं। (4) आप ई-व्यवसाय के माध्यम से सम्पत्ति सम्बन्धी लेन-देन आसानी से कर सकते हैं। सम्पत्ति का ब्यौरा इंटरनेट पर उपलब्ध कराया जा सकता है तथा ग्राहक अपनी सुविधा के अनुसार उपयुक्त सम्पत्ति का चयन कर सकते हैं। (5) ई-व्यवसाय बीमा व्यवसाय के क्षेत्र में विभिन्न अवसर प्रदान करता है; जैसे- बीमा-पत्र का चयन, बीमा प्रीमियम का भुगतान आदि। (6) ई-व्यवसाय के द्वारा आसानी से भुगतान किया जा सकता है; जैसे-क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड आदि। (7) ई-व्यवसाय ने विदेशी व्यापार (आयात तथा निर्यात व्यापार) सरल बना दिया है। आप अपने कार्यालय में बैठे-बैठे विश्व के किसी भी देश के व्यवसायी से आयात किये जाने वाले माल के सम्बन्ध में आवश्यक सचनाएँ प्राप्त कर सकते हैं तथा निर्यात किये जाने वाले माल के बारे में सचनाएँ दे सकते हैं। (8) ई-व्यवसाय के माध्यम से परिवहन सुविधाएं प्रदान कर सकते हैं तथा प्राप्त कर सकते हैं; जैसे-वाय यातायात, रेल यातायात, सामुद्रिक यातायात आदि में माल की बुकिंग करना, यात्री आरक्षण टिकिट प्राप्त करना आदि। (9) ई-व्यवसाय अन्तर्राष्ट्रीय वित्त के क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के अवसर प्रदान करता है; जैसे-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर संस्थागत ऋण, बॉण्ड बिल भूनाना, ए. डी. आर. तथा जी.डी.आर के सम्बन्ध में सूचनाएँ प्राप्त करना आदि। (10) ई-व्यवसाय फुटकर व्यापारियों, थोक व्यापारियों एवं उत्पादकों को ऑनलाइन वितरण (On-line Distribution) से जोड़कर एक-दूसरे को आपस में निकट ला सकता है तथा उनसे सम्भावित ग्राहकों को अधिक से अधिक जानकारी प्रदान कर विक्रय वृद्धि में सहायता कर सकता है।
ई-व्यवसाय के सफल क्रियान्वयन के लिए आवश्यक संसाधन (Resources Required for Successful E-business Implementation) ई-व्यवसाय के सफल क्रियान्वयन के लिए निम्नलिखित संसाधनों की आवश्यकता होता है-
(1) कम्प्यूटर हार्डवेयर (Computer Hardware)_समची ई-कॉमर्स प्रणाली कम्प्यटर हार्डवेयर प्रणाली पर आधारित है। यह प्रणाली जितनी अधिक क्षमता वाली होगी, ई-व्यवसाय प्रणाला उतना ही अधिक सक्षम होगी। यदि ऐसा नहीं है तो इंटरनेट सुविधा प्राप्त नहीं की जा सकेगी ।
(2) सॉफ्टवेयर (Software) कम्प्यूटर उपकरण पर स्थापित सॉफ्टवेयर भी इतना अधिक सक्षम होना चाहिए जो आवश्यक सम्पर्क व संवाद स्थापित कर सके। यदि कम्प्यूटर पर डाले गये प्रोग्राम उच्च कोटि के नहीं है तो इससे ई-कॉमर्स की गुणवत्ता प्रभावित होगी।
(3) प्रभावी दूरसंचार प्रणाली (Effective Tele-communication System) ई-कॉमर्स के सफल क्रियान्वयन के लिए प्रभावी दूरसंचार का होना परम आवश्यक है। यह तभी सम्भव है, जबकि ई-मेल (E-mail) प्रणाली तथा इंटरनेट सम्पर्क प्रणाली प्रभावी हो।
(4) इंटरनेट सेवा (Internet Service) ई-कॉमर्स के सफल क्रियान्वयन के लिए इंटरनेट सेवा का होना परम आवश्यक है। यदि देखा जाय तो ई-व्यवसाय का अस्तित्व ही इंटरनेट सेवा पर आधारित
(5) वेब पेज बनाना (Preparing Web Page) ई-कॉमर्स के उपयोग में वेबसाइट पेज का सबसे अधिक महत्व है। इसे होम पेज के नाम से भी जाना जाता है। वेबसाइट को विकसित करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि इसमें सम्बन्धित उत्पाद, सेवाओं की विशेषताओं, सेवा शर्तों, मूल्यों आदि के बारे में पर्याप्त जानकारी दी गयी हो।
(6) प्रशिक्षित कर्मचारियों की उपलब्धता (Availability of Trained Personnel)-ई-कॉमर्स के सफल क्रियान्वयन के लिए पर्याप्त संख्या में प्रशिक्षित कर्मचारियों का होना आवश्यक है। प्रशिक्षित कर्मचारी जहाँ एक ओर ई-व्यवसाय के कुशल संचालन में सक्रिय सहयोग प्रदान कर सकते हैं, वहीं दूसरी ओर ये ग्राहकों में विश्वास उत्पन्न करके एवं उन्हें उचित सलाह देकर सौदों व लेन-देन का निपटारा कर सकते हैं।
ई-कॉमर्स/ई-व्यवसाय के लाभ (Advantages or Benefits of E-Business/E-Commerce) ई-व्यवसाय इलैक्ट्रॉनिक पद्धति पर आधारित एक ऐसी प्रणाली है जिसने समस्त व्यावसायिक क्रियाओं के क्षेत्र को अन्तर्राष्ट्रीय रूप प्रदान कर दिया है। आप घर बैठे-बैठे ही वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय-विक्रय कर सकते हैं। इस पद्धति के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की वस्तुओं व सेवाओं का क्रय-विक्रय, सूचनाओं का आदान-प्रदान, ग्राहकों को विभिन्न प्रकार की सेवाएं प्रदान करना व व्यावसायिक साझेदारों के साथ सहयोग करना भी सम्मिलित है। ई-व्यवसाय एक आधुनिकतम तकनीक है जिसका उपयोग क्रय-विक्रय, विपणन, उत्पादन, वित्त, प्रशासन, कर्मचारी प्रबन्ध व ग्राहक सेवा आदि में किया जा सकता ई-व्यवसाय से केवल बड़ी संस्थाएँ एवं सरकारी विभाग ही लाभान्वित नहीं होते वरन् छोटे व मध्य श्रेणी के व्यवसायी तथा उपभोक्ता भी लाभान्वित होते हैं। इस पद्धति के द्वारा आप न्यनतम समय प्रयास एवं व्यय से अधिकतम व्यावसायिक अवसरों का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। ई-कॉमर्स के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं:
(1) विश्व स्तर पर पहुंच (World Wide Reach): जो व्यवसायी ई-व्यवसाय से जुड़ जाते हैं उनकी पहचान विश्व स्तर पर होने लगती है। इससे उनके बाजार का विस्तार होता है। नये-नये ग्राहक इनके संपर्क में आते हैं। परिणामस्वरूप बिक्री में वृद्धि होती है।
(2) पर्ति श्रृंखला में कमी (Shortening the Supply Chain): जबसे ई-व्यवसाय अस्तित्व में आया है मध्यस्थ (थोक व्यापारी व फुटकर व्यापारी) लुप्त होने लगे हैं। इससे पूर्ति श्रृंखला सिकुड़ने लगी है। अब अधिकतर उत्पादक सीधे ही उपभोक्ताओं से संपर्क स्थापित करने लगे हैं। परिणामस्वरूप, उपभोक्ताओं को माल कम मूल्य पर प्राप्त होता है और उत्पादकों को उपभोक्ताओं से अनेक जानकारियां आसानी से प्राप्त हो जाती हैं।
(3) सरल वितरण प्रक्रिया (Easy Distribution Process): ई-व्यवसाय के अंतर्गत अनेक सेवाएं एवं सूचनाएं कम्प्यूटर पर ही प्राप्त हो जाती हैं। इससे वितरण प्रक्रिया सरल हो गई है और इसकी लागतों में कमी आई है।
(4) शंकाओं का तुरंत समाधान (Quick Solution of the Doubts): जैसा कि हमें ज्ञात है कि इ-व्यवसाय का आधार इंटरनेट है। इंटरनेट के माध्यम से उपभोक्ता व अन्य व्यावसायी अपनी शंकाओं का तुरंत समाधान कर सकते हैं।
(5) नये उत्पाद को लाने में आसानी (Easy to Lauch New Product): ई-व्यवसाय क माध्यम से कोई भी कंपनी अपने उत्पाद को आसानी से बाजार में ला सकती है। इंटरनेट पर उत्पाद के बारे में पूरा जानकारा उपलब्ध करा दी जाती है। इस प्रकार उपभोक्ताओं व अन्य व्यवसायियों को घर बैठे ही अनेक नये उत्पादों की जानकारी प्राप्त होती रहती है।
(6) कर्मचारी लागत में कमी (Less Personnel Cost): ई-व्यवसाय से आवश्यक कर्मचारियों का संख्या में कमी आई है, क्योंकि एक ही कम्प्यूटर अनेक कर्मचारियों द्वारा किए जाने वाले काम को अधिक तेजी व शुद्धता के साथ कर सकता है। इससे कर्मचारियों पर होने वाले खर्च में कमी आई है। ___
(7) समय की बचत (Saving of Time): अब उपभोक्ताओं को सामान खरीदने के लिए बाजार में नहीं घूमना पड़ता। घर बैठे ही विभिन्न दुकानों पर उपलब्ध माल की जानकारी प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार समय की बचत होती है। क्रय-विक्रय का कार्य 24×7 चलता रहता है। – (8) भुगतान की जोखिम में कमी (Less Risk in Payment): ई-व्यवसाय के अंतर्गत बैंक द्वारा जारी किए गए क्रेडिट कार्ड के माध्यम से इंटरनेट पर ही भगतान किया जा सकता है। इस प्रकार धन के हस्तांतरण में होने वाली जोखिम में कमी आई है।
(9) दूर-दराज के क्षेत्रों में वस्तुएं एवं सेवाएं उपलब्ध (Products and Services available in Remote Areas): ई-व्यवसाय से ऐसे क्षेत्रों में भी वस्तुएं एवं सेवाएं उपलब्ध होने लगी हैं जहाँ आस-पास बाजार नहीं हैं।
ई-बिजनेस/ई-कॉमर्स के विकास/विस्तार में बाधाएँ (Hindrances/Obstacles in the Development/Expansion of E-commerce/E-business) ई-बिजनेस अभी शैशवकाल में है अतएव इसके विकास/विस्तार में अनेक बाधाएँ आ रही हैं। ई-कॉमर्स के विकास/विस्तार में प्रमुख बाधाएँ निम्नलिखित हैं
- सबसे बड़ी बाधा भुगतान सम्बन्धी है। हालांकि तरह-तरह की भुगतान विधियाँ इलैक्ट्रॉनिक माध्यम पर उपलब्ध हैं लेकिन धोखाधड़ी व ‘हैकिंग’ से पूर्ण रूप से मुक्ति नही मिली है।
- ई-व्यवसाय टेलीफोन लाइनों पर आधारित है। अभी भी अनेक ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ टेलीफोन सुविधा का अभाव है। ऐसे क्षेत्रों में इस सुविधा का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
3.’डिजिटल सिग्नेचर’ व ‘डिजिटल सर्टिफिकेटों’ की मान्यता सभी देशों में अभी नहीं है, अत: सूचनाओं की सत्यता की जाँच कठिन हो जाता है।
- उचित कानूनी ढाँचे के अभाव में इसके विकास में बाधाएँ आती हैं।
- यह कारोबार इण्टरनेट के द्वारा किया जाता है तथा अभी भी बड़ा भौगोलिक क्षेत्र इण्टरनेट सेवा से वंचित है।
भारत में ‘ई-कॉमर्स’ अथवा ई-बिजनेस का भविष्य
(Future of E-commerce or E-business in India)
यद्यपि आज सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत ने सम्पूर्ण विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया है परन्तु ई-व्यवसाय के क्षेत्र में हम वांछित उपलब्धि हासिल नहीं कर सके हैं। इसका प्रमख कारण है-इंटरनेट के मूल ढाँचे के विकास में कमी, आम व्यक्ति तक कम्प्यूटर्स की पहँच नहीं सामयिक कानूनों/नीतिगत निर्णय का अभाव आदि। भारत में 18 अक्टूबर, 2000 से सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 प्रभावी हो चुका है, साथ ही साथ ई-व्यवसाय के लिए उचित वातावरण भी तैयार हो चुका है। आज हम उन गिने-चुने देशों की श्रेणी में हैं जहाँ ‘साइबर कानून’ लागू है। इस कारण से आज इलेक्ट्रॉनिक व्यापारिक दस्तावेजों को कानूनी मान्यता प्राप्त हो गयी है तथा ये दस्तावेज साक्ष्य स्वरूप किसी भी भारतीय न्यायालय में मान्य होंगे, साथ ही साथ इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों/इलैक्ट्रॉनिक पत्राचार/डिजिटल हस्ताक्षर व डिजिटल प्रमाण-पत्रों को भी कानूनी आधार प्राप्त हो चुका है। अत: ये बातें निश्चित ही ई-कॉमर्स के उत्थान में एक उत्प्रेरक की तरह कार्य करेंगी। आज भारत में देशी व विदेशी कम्पनियों ने विशाल जाल फैला रखा है। इनके पास अधिक संसाधन होने के कारण वे भविष्य में लाभ उठाकर छोटी कम्पनियों की अपेक्षा ज्यादा सफल हो जायेंगी।
‘बांड तथा ‘टेडमार्क’ का लाभ भी बडी कम्पनियों को अवश्य होगा जो कि भविष्य में ई-काँमर्स द्वारा भी उन्हें लाभ पहुँचाते रहेंगे। व्यवसाय के विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित व्यापारिक गतिविधियों, जैसे-वित्त, प्रशासन, कर्मचारी प्रबन्धन, व्यावसायिक सहयोग, विपणन, स्वास्थ्य, मनोरंजन, पर्यटन, शिक्षा आदि में भी ई-कॉमर्स के द्वारा व्यवसाय के विकास की प्रबल सम्भावनाएँ हैं। चूंकि विश्व को लगभग समस्त छोटी-बड़ी कम्पनियों को ‘ई-कॉमर्स’ की क्षमता का आभास हो गया है, अत: ‘ई-कॉमसे अथवा ‘ई-बिजनैस’ का भारत में भविष्य निश्चित रूप से उज्जवल है।
परंपरागत तथा/ब्रिक एण्ड मोर्टार तथा ई-बिजनेस में अन्तर (Difference between Traditional/Brick and Mortar & E-Business) ई-बिजनेस के प्रकार : ई-बिजनेस के दो प्रकार हैं – (1) प्योर प्ले (Pure Play): यह शब्द ऐसी कम्पनियों के लिये प्रयुक्त किया जाता है जो केवल ऑनलाइन तरीके से ही अपना व्यवसाय चलाती हैं। (2) बिक एण्ड क्लिक (Brick and Click): यह शब्द उन कम्पनियों के लिये प्रयुक्त किया जाता है जो ऑनलाइन तथा ऑफलाइन दोनों तरीकों से अपना व्यवसाय चलाती हैं। इसका अर्थ यह है कि इन कम्पनियों की वजयादा होती जिसके द्वारा वें अपने उत्पादों/सेवाओं को आनलाइन प्रारका का प्रस्तत करते हैं तथा साथ ही उनके पास भौतिक रूप से स्टोर भी है जहाँ वे अपने उत्पादों या सेवाओं को बेचते है।
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