Underwriting Of Shares And Debentures B.Com 3rd Year Notes

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अंशों एवं ऋणपत्रों का अभिगोपन

(Underwriting of Shares and Debentures) 

अभिगोपन का अर्थ (Meaning of Underwriting)-अंशों अथवा ऋणपत्रों के अभिगोपन का भाशय एक कम्पनी एवं अन्य किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूहों के मध्य किए गए एक ऐसे अनुबन्ध से जिसकद्वारा एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह एक निश्चित कमीशन के बदले कम्पनी को यह गारन्टी कि जनता द्वारा अंशों अथवा ऋणपत्रों के लिए पूर्ण अभिदान (Subscription) प्राप्त न होने की दशा में व्याक्त अथवा व्यक्तियों का समह शेष अंशों अथवा ऋणपत्रों को क्रय करेगा। इस प्रकार से अभिगोपन गमन हेतु अभिदान के लिए एक प्रकार का बीमा है। अभिगोपन कम्पनी की समस्त पूँजी अथवा उसके किसी भाग के लिए हो सकता है।

अभिगोपक का अर्थ (Meaning of Underwriter)-अभिगोपक उन्हें कहते हैं जो कम्पनी को अंशों नक सम्बन्ध में गारण्टी देते हैं। अभिगोपक एक व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह, फर्म या कम्पनी के रूप त है। अभिगोपकों का नाम कम्पनी द्वारा अंशों हेतु निर्गमित प्रविवरण (Prospectus) में भी दिया जाता हैं।

अभिगोपन कमीशन (Underwriting Commission) – अंश अथवा ऋणपत्रों को बिकवाने की गारण्टी देने के बदले कम्पनी की ओर से अभिगोपक को जो प्रतिफल प्राप्त होता है, उसे अभिगोपन कमीशन कहते हैं।

उप-अभिगोपन (Sub-Underwriting)-यदि अभिगोपक यह महसूस करते हैं कि जिन अंडी ऋणपत्रों के अभिगोपन/बिकवाने का भार उन्होंने अपने ऊपर लिया है वे इतने अधिक हैं कि यदि जनता ने खरीदने के लिए आवेदन नहीं किया तो जनता द्वारा न खरीदे गए अंशों/ऋणपत्रों को स्वयं खरीदना अभिगोपक की क्षमता के बाहर होगा तो ऐसी स्थिति में वे किसी अन्य व्यक्ति से एक निश्चित कमीशन बदले एक निश्चित राशि तक अंशों/ऋणपत्रों के निर्गमन के सम्बन्ध में अभिगोपन अनुबन्ध कर सकते अनुबन्ध को उप-अभिगोपन कहते हैं एवं अन्य व्यक्तियों को जिनके साथ अभिगोपन का अनबन्ध किया है, उप-अभिगोपक कहते हैं। ऐसा अनबन्ध अभिगोपकों एवं उप-अभिगोपकों के मध्य होता है अतः एवं अभिगोपकों के मध्य हए अनबन्ध पर इसका कोई प्रभाव उत्पन्न नहीं होता है। अर्थात् यदि उप-अभियो अपने दायित्व का निर्वाह न कर सकें तो अभिगोपकों को ऐसे दायित्व का भी निर्वाह करना हो उप-अभिगोपकों का दायित्व मुख्य अभिगोपकों के प्रति होगा, वे कम्पनी के प्रति किसी भी रूप में दायी होंगे। अभिगोपकों एवं उप-अभिगोपकों के मध्य हुए अनुबन्ध में कमीशन की दर उस कमीशन की दर से अलग हो सकती है जो कि अभिगोपकों एवं कम्पनी के मध्य तय की गयी है। उप-अभिगोपकों को कमीशन का भुगतान मुख्य अभिगोपकों द्वारा किया जायेगा न कि कम्पनी द्वारा।

मुख्य अभिगोपन अनुबन्ध (Prime Underwriting Agreement)-ऐसा अनुबन्ध कम्पनी एवं अभिगोपकों के मध्य होता है। ____ 

पूर्ण अभिगोपन (Full Underwriting)-जब अभिगोपक निर्गमित सम्पूर्ण अंशों एवं ऋणपत्रों का अभिगोपन दायित्व स्वीकार कर लेता है, तो उसे पूर्ण अभिगोपन कहते हैं।

आंशिक अभिगोपन (Partial Underwriting)-जब अभिगोपक निर्गमित अंशों एवं ऋणपत्रों के केवल कुछ भाग का ही अभिगोपन दायित्व लेते हैं, तो उसे आंशिक अभिगोपन कहते हैं।

फर्म अथवा सुदृढ़ अभिगोपन (Firm Underwriting)-जब कोई अभिगोपक कम्पनी के साथ अभिगोपन अनुबन्ध करते समय ही एक निश्चित संख्या में कम्पनी के अंशों या ऋणपत्रों को स्वयं क्रय करने का अनुबन्ध करता है तो ऐसे अभिगोपन को फर्म अथवा सुदृढ़ अभिगोपन कहते हैं। अत: फर्म अभिगोपन के द्वारा अभिगोपक उस कम्पनी में अपने नाम से एक निश्चित राशि के अंशों या ऋणपत्रों का आबंटन सुरक्षित करवा लेता है।

चिन्हित आवेदन पत्र (Marked Applications)-जब दो या दो से अधिक अभिगोपक किसी कम्पनी के अंशों/ऋणपत्रों का अभिगोपन करते हैं तो प्रत्येक अभिगोपक अंश/ऋणपत्र क्रय करने के आवेदन पत्र (Application Form) पर अपने नाम की मुहर (Stamp) लगाकर जनता को देते हैं ताकि बाद में कम्पनी को यह ज्ञात हो सके कि कम्पनी को प्राप्त हुए कुल आवेदन पत्रों में से कितने आवेदन पत्र किस अभिगोपक के माध्यम से प्राप्त हुए हैं। ऐसे आवेदन पत्रों को चिन्हित आवेदन पत्र कहते हैं जिन पर किसी अभिगोपक के नाम की मुहर लगी हुई होती है। यदि प्रश्न में कोई विपरीत निर्देश नहीं है तो फर्म अभिगोपन वाले आवेदनों को चिन्हित फार्म में शामिल मानना चाहिए।

अचिन्हित आवेदन पत्र (Unmarked Applications)-जिन आवेदन पत्रों पर किसी अभिगोपक के नाम की मुहर नहीं होती है, उन्हें अचिन्हित आवेदन पत्र कहा जाता है। इन आवेदन पत्रों को आवेदनकर्ता सीध कम्पनी से फॉर्म प्राप्त करके उसे भरकर भेज देते हैं। ऐसे अचिन्हित आवेदन पत्रों का लाभ सभी अभिगोपको को प्राप्त होता है। अचिन्हित आवेदन पत्रों को सभी अभिगोपकों के सकल दायित्व अनुपात में बाँट दिया जाता है।

अभिगोपकों के दायित्व का निर्धारण (Determination of the Liability of Underwriters)  अभिगोपन अनुबन्ध के कारण किसी अभिगोपक को कितने अंश/ऋणपत्र कम्पनी से स्वयं खरीदने हाग, यह तय करना ही अभिगोपकों के दायित्व का निर्धारण कहलाता है। इस सम्बन्ध में मुख्य रूप से निम्नालाख दो परिस्थिति हो सकती हैं –

(अ) पूर्ण अभिगोपन की दशा में अभिगोपकों के दायित्व का निर्धारण (Determail Underwriters’ Liability in Case of Complete Underwriting)-पूर्ण अभिगोपन के सम्म निम्नलिखित दो स्थिति हो सकती हैं –

(i) जब निर्गमित किए जाने वाले सम्पूर्ण अंशों/ऋणपत्रों का अभिगोपन केवल एक आ द्वारा किया गया है – ऐसी दशा में उस अभिगोपक के सकल दायित्व (Gross Liability) में से चिन्हित दोनों प्रकार के आवेदनों को घटाकर उसका शुद्ध दायित्व (Net Liability) ज्ञात किया जायेगा। इस प्रकार वह उतने अंशों अथवा ऋणपत्रों को लेने के लिए उत्तरदायी होगा जिनके लिए जनता ने आवेदन नहीं किया है। सूत्र रूप में – अभिगोपक का दायित्व = कम्पनी द्वारा निर्गमित अंशों अथवा ऋणपत्रों की संख्या – कुल प्राप्त आवेदन पत्र (चिन्हित एवं अचिन्हित) उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण – विभव लि० ने 10 रू. वाले 2 लाख समता अंश निर्गमित किए। सम्पूर्ण निर्गमन ‘अ’ द्वारा अभिगोपित था। कम्पनी को 1,20,000 चिन्हित आवेदन पत्रों सहित कुल 1,70,000 अशो के लिए आवेदन पत्र प्राप्त हुए। ऐसी दशा में अभिगोपन के सम्बन्ध में ‘अ’ = 2,00,000 – 1,70,000= 30,000 अंश खरीदने के लिए उत्तरदायी होगा। 50,000 अचिन्हित आवेदनों का पूरा लाभ ‘अ’ को ही मिलेगा।

(ii) जब सम्पूर्ण निर्गमन का अभिगोपन दो या दो से अधिक अभिगोपकों द्वारा किया गया है – ऐसी दशा में अभिगोपकों का दायित्व निर्धारित करने हेतु निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाती है प्रथम चरण – प्रत्येक अभिगोपक का सकल दायित्व निर्धारित करेंगे।

द्वितीय चरण – प्रत्येक अभिगोपक के सकल दायित्व में से उसके द्वारा प्राप्त किए गए चिन्हित आवेदनों को घटाकर शेष ज्ञात कर लेते हैं। तृतीय चरण – अचिन्हित आवेदन पत्रों की संख्या को किसी स्पष्ट सूचना/निर्देश के अभाव में अभिगोपकों के सकल दायित्व के अनुपात में बाँटकर उपरोक्त शेष में से घटा दिया जाता है। यदि अचिन्हित आवेदन पत्रों का सभी अभिगोपकों में बँटवारा करने के लिए कोई स्पष्ट निर्देश दिया हुआ है तो उसके अनुसार बँटवारा कर देते हैं।

चतुर्थ चरण – यदि तीसरे चरण के अंशों को घटाने के बाद किसी अभिगोपक का ऋणात्मक शेष (Negative Balance) आता है तो उसे भी शेष अभिगोपकों में उनके सकल दायित्व के अनुपात में बाँट दिया जाता है। इसे घटाने के पश्चात् प्रत्येक अभिगोपक का शुद्ध दायित्व ज्ञात हो जाता है। 

Illustration 1. मेरठ लि० 1 लाख रू. की पूँजी से निर्मित हुई जो 10 रू. वाले 10,000 अंशों में विभाजित थी। ये सभी अंश प्रविवरण द्वारा जनता को अभिदान के लिए प्रस्तावित किए गए। ये अंश अभिगोपकों द्वारा निम्नलिखित प्रकार अभिगोपित थे-A 40%, B30% एवं C30%। चिन्हित आवेदन A के पक्ष में 1,600 अंश, B के पक्ष में 2,800 अंश और C के पक्ष में 1,600 अंशों के लिए प्राप्त हुए। 1,000 अंशों के आवेदन पत्र अचिन्हित थे। प्रत्येक अभिगोपक का दायित्व निर्धारित करते हुए एक विवरण-पत्र बनाइए। 

Solutiion : Statement Showing Underwriters’ Liability 

(ब) आंशिक अभिगोपन की दशा में अभिगोएकों के दायित्व का निर्धारण (Determining Underwriters’ Liability in Case of Partial Underwriting)-आंशिक अभिगोपन की दशा में कल निर्गमन के जिस भाग का अभिगोपन नहीं हुआ है, उसके लिए स्वयं कम्पनी ही अभिगोपक होती है और इन अंशों या ऋणपत्रों को कम्पनी अपने प्रयासों से बेचती है। इस प्रकार के अभिगोपन में केवल चिन्हित आवेदन ही अभिगोपकों के प्रयास से प्राप्त हुए माने जाते हैं एवं अचिन्हित आवेदनों का क्रेडिट/लाभ कम्पनी को मिलता है। आंशिक अभिगोपन की दशा में भी निम्नलिखित दो स्थिति हो सकती हैं

(i) यदि केवल एक अभिगोपक है तो उसका दायित्व निर्धारित करने के लिए उसके सकल दायित्व में से चिन्हित आवेदनों को घटा देंगे परन्तु उसका शुद्ध दायित्व जनता से अभिदान/प्राप्त आवेदनों में कुल कमी


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