B.Com 2nd Year Managerial Control Short Notes In Hindi
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लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 14 नियन्त्रण से क्या आशय है?
What is the meaning of Control ?
उत्तर – नियन्त्रण से आशय एवं परिभाषाएँ
(Meaning and Definitions of Control)
नियन्त्रण प्रबन्धन के क्षेत्र में एक प्रमुख उपादान है। नियन्त्रण के द्वारा ही प्रबन्धन तन्त्र को कार्य निष्पादन की जानकारी प्राप्त होती है। विभिन्न विद्वानों ने नियन्त्रण के सम्बन्ध में निम्नलिखित परिभाषाएँ दी हैं
(1) ई०एफ०एल० ब्रीच के शब्दों में, “नियन्त्रण का अभिप्राय पर्याप्त प्रगति तथा सन्तोषजनक निष्पादन को निश्चित करने के लिए वर्तमान निष्पादन का योजनाओं में पूर्वनिश्चित प्रमापों के साथ मिलान करना होता है तथा योजना को कार्यान्वित करने में प्राप्त अनुभव को भविष्य की अपेक्षित क्रियाओं के मार्गदर्शन के लिए संचित करना होता है।”
(2) कण्ट्ज एवं ओ‘डोनेल के अनुसार, “नियन्त्रण एक प्रबन्धकीय कार्य है, जो अधीनस्थ कर्मचारियों के निष्पादन का मापन एवं उसमें सुधार करता है, जिससे यह निश्चित हो सके कि उपक्रम के उद्देश्य एवं उनको प्राप्त करने के लिए निर्धारित योजनाओं को कार्यान्वित किया जा रहा है।”
(3) जार्ज आर० टैरी के शब्दों में, “नियन्त्रण से आशय इस तथ्य का पता लगाना है कि क्या उपलब्धि हुई है अर्थात् निष्पादन, निष्पादित कार्य का मूल्यांकन और यदि आवश्यक हो तो सुधारात्मक कदमों को उठाना ताकि निष्पादन नियोजन के अनुकूल हो सके।”
प्रश्न 2 – “नियन्त्रण न केवल पीछे, बल्कि आगे देखने की भी प्रक्रिया है” टीका कीजिए।
Control is not looking back, it is looking forward also . Comment.
उत्तर – नियन्त्रण न केवल पीछे, बल्कि आगे देखने की भी प्रक्रिया है
(Control is not Looking Back, it is Looking Forward Also) – नियन्त्रण के द्वारा प्रबन्धक वास्तविक प्रगति की अपेक्षित प्रगति से तुलना करके दोनों में अन्तर कार्यवाही करता है। नियन्त्रण सदैव ही भविष्य से सम्बन्धित होता है क्योकि भतकाल का क्रियाओं पर नियन्त्रण नहीं किया जा सकता। इसके अन्तर्गत ऐसे कदम उठाए जाते हैं जिसस लीगलतियाँ भविष्य में न हों। नियन्त्रण में वास्तविक कार्यों का अवलोकन किया जाता है।
अतः इसे पीछे देखना कह सकते हैं, परन्तु सुधार की कार्यवाही हमेशा भविष्य के लिए की जाती है, इसलिए नियन्त्रण आगे देखना भी है।
प्रश्न 3 – नियन्त्रण की प्रमुख सीमाएँ बताइए।
Mention the main limitations of control.
उत्तर – नियन्त्रण की सीमाएँ
(Limitations of Control)
1. व्यक्तिगत उत्तरदायित्व के निर्धारण में कठिनाई (Difficulty in the Determination of Individual Responsibility)-प्रबन्धकीय नियन्त्रण की एक मुख्य सीमा यह है कि कभी-कभी विचलनों का ज्ञान हो जाने पर भी व्यक्तिगत उत्तरदायित्वों को निर्धारित करना बड़ा कठिन होता है; जैसे-हड़ताल की दशा में व्यक्तिगत उत्तरदायित्व के निर्धारण में कठिनाई होती है।
2. सुधारात्मक कार्यवाही असम्भव (Impossible in Adopting Corrective Measures)-कई बार दोषों व विचलनों का पता चल जाता है, परन्तु संगठनात्मक संरचना की कठिनाई के कारण उनको सुधारना असम्भव हो जाता है और नियन्त्रण प्रभावी नहीं हो पाता।
3. अधीनस्थों द्वारा विरोध (Opposition by Subordinates)-प्रायः नियन्त्रण प्रणाली का विरोध सबसे ज्यादा अधीनस्थों द्वारा ही किया जाता है क्योंकि इसके अन्तर्गत मानवीय विचारों एवं कार्यों में हस्तक्षेप किया जाता है, जिसे कर्मचारी सहन नहीं कर पाते। नियन्त्रण के कारण जब कर्मचारियों पर कार्यभार अधिक हो जाता है तो उनका मनोबल गिर जाता है, जिससे उनकी कार्यकुशलता एवं उत्पादकता भी कुप्रभावित होती है।
4. प्रमाप निर्धारण में कठिनाई (Difficulty in Determining Standard)नियन्त्रण के लिए प्रमापों का निर्धारण एक पूर्व अनिवार्यता है, परन्तु अनेक परिस्थितियों में प्रमापों का निर्धारण पूर्णतया अव्यावहारिक होता है, परिणामस्वरूप उन मामलों में नियन्त्रण नहीं किया जा सकता। बहुधा श्रमिक नियन्त्रण प्रक्रिया को इसलिए नहीं स्वीकार करते हैं क्योंकि मानक ही तार्किक आधार पर तय नहीं किए जाते हैं।
5. अत्यधिक व्यय (Heavy Expenditure)-नियन्त्रण प्रणाली अत्यन्त व्ययपूर्ण प्रणाली है। कई बार नियन्त्रण तथा विचलनों को ज्ञात करने की प्रक्रिया इतनी व्यय साध्य होती है कि संस्था उतना खर्च करने में असमर्थ होती है। जहाँ तक आधुनिक नियन्त्रण प्रणाली का प्रश्न है तो उन पर किया जाने वाला प्रारम्भिक व्यय इतना अधिक होता है कि एक औसत आकार वाली औद्योगिक अथवा व्यावसायिक इकाई के लिए उसे लागू करना आर्थिक दृष्टि से दुरूह एवं असम्भव जैसा हो जाता है।
प्रश्न 4 – नियन्त्रण की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
Explain the characteristics of Control.
नियन्त्रण की विशेषताएँ
(Characteristics of Control)
नियन्त्रण की विभिन्न परिभाषाओं के अवलोकन व अध्ययन के पश्चात् इसकी कल विशेषताएँ प्रकट होती हैं, जो निम्नलिखित हैं
(1) नियन्त्रण प्रक्रिया वैज्ञानिक सिद्धान्तों तथा सांख्यिकीय तत्त्वों पर आधारित होती है।
(2) नियन्त्रण प्रबन्धन का महत्त्वपूर्ण कार्य होता है, जिससे उपक्रम के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
(3) नियन्त्रण स्वीकारात्मक प्रकृति का होता है।
(4) प्रबन्धन के प्रत्येक स्तर पर इसकी आवश्यकता पड़ती है।
(5) नियन्त्रण भविष्य से सम्बन्धित होता है क्योंकि जो कुछ भूतकाल में हो चुका है, उस पर नियन्त्रण का प्रश्न ही नहीं उठता है।
(6) नियन्त्रण आन्तरिक, बाहरी तथा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष हो सकता है।
(7) नियन्त्रण का प्रारम्भ उद्देश्यों के निर्धारण से होता है तथा उद्देश्य प्राप्ति के साथ ही यह समाप्त होता है।
(8) नियन्त्रण एक गतिशील प्रक्रिया है जो किसी निश्चित काल अथवा कार्य के लिए नहीं होती है अपितु एक सतत चलने वाली क्रिया है।
प्रश्न 5 – कार्यविधि पर प्रकाश डालिए।
Highlight the Procedure.
अथवा प्रबन्ध की प्रक्रिया विचारधारा पर टिप्पणी लिखिए।
Write a note on The Process Approach of Management.
उत्तर – कार्यविधि या प्रबन्ध की प्रक्रिया विचारधारा
(Procedure or The Process Approach of Management)
प्रक्रिया विचारधारा प्रबन्ध को एक प्रक्रिया मानती है जो विभिन्न उपक्रियाओं अथवा कार्यों में बँटी होती है। इस विचारधारा के अनुसार, प्रबन्ध ‘कुछ प्रक्रियाओं का समूह (A Set of Processes) अथवा ‘कुछ कार्यों की श्रृंखला’ (A Sequence of Functions) है। इस विचारधारा के अनुसार, “प्रबन्ध एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है जिसक सिद्धान्तों को सर्वत्र लागू किया जा सकता है। इसलिए कछ विद्वान इसे ‘प्रबन्ध का सार्वभौमिक विचारधारा’ (Universal Approach) भी कहते हैं।”
प्रबन्ध के आधारभूत कार्यों का निर्धारण करने के कारण इसे ‘कार्यात्मक विचारधारा (Functional Approach) भी कहा जाता है। अधिक प्रचलित होने के कारण इसे ‘परम्परागत विचारधारा’ (Classical or Traditional School) के नाम से भी पुकारा जाता है।
प्रबन्ध प्रक्रिया विचारधारा के जनक हेनरी फेयोल माने जाते हैं। किन्तु इसके विकास एवं संशोधन में न्यूमैन, हैरॉल्ड, कूण्ट्ज, जार्ज हेरी, लूथर गुलिक, उर्विक, ब्रीच आदि विद्वानों ने भी योगदान दिया है।
प्रश्न 6 – संघर्ष किन कारणों से होता है?
What are the causes of conflict ?
उत्तर – संघर्ष के कारण
(Causes of Conflict)
विभिन्न व्यक्तियों के मध्य संघर्ष की अवस्था के विविध कारण हो सकते हैं। इसी प्रकार यह संघर्ष व्यक्ति व समूह के मध्य भी हो सकता है। सम्मिलित रूप से संघर्ष के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
1. नेतृत्व शैली की भिन्नता (Difference in Leadership Style)-एक संगठन के भिन्न-भिन्न समूहों के नेतृत्वों की शैलियाँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं जिससे नेतृत्व का कर्मियों व सदस्यों के प्रति व्यवहार भिन्न-भिन्न हो जाता है और यह भिन्नता ही संघर्ष को जन्म देती है।
2. संरचना की अस्पष्टता (Unexplained Structure)-संगठन में प्रत्येक सदस्य के दायित्वों व अधिकारों का स्पष्ट अंकन न हो पाने की दशा में विरोधाभास के क्षण उपस्थित हो जाते हैं और इस प्रकार की अवस्था ही कुछ काल पश्चात् संघर्ष के वातावरण को आकार प्रदान करने लगती है।
3. क्षेत्राधिकार की भिन्नता (Difference in Jurisdiction)-कार्यक्षेत्र के क्षेत्राधिकार में भिन्न-भिन्न मापदण्डों का अस्तित्वमान होना भी संघर्ष का कारण बन जाता है। किसी व्यक्ति का क्षेत्राधिकार अधिक होता है व किसी का कम। कोई क्षेत्राधिकार सम्मान, प्रतिष्ठा व प्राप्तियों के दृष्टिकोण से अधिक महत्त्वपूर्ण होता है और कोई कम। यह भिन्नता ही संघर्ष का कारण होती है।
4. पद व स्तर की भिन्नता (Difference in Status and Level)-संगठन में कार्यरत व्यक्तियों व अधिकारियों के पद व स्तर की भिन्नता भी संघर्ष का निमित्त बन जाती है। पद व स्तर की भिन्नता के कारण ही अधिकार, कर्त्तव्य, दायित्व, वेतन, सम्मान व सुविधाएँ आदि भिन्न-भिन्न हो जाती हैं और यह भिन्नता ही कालान्तर में संघर्ष का रूप धारण कर लेती है।
5. उद्देश्यों की भिन्नता (Difference in Objectives/Goals)-व्यक्तिगत, सामूहिक, विभागीय, संगठनात्मक उद्देश्यों/लक्ष्यों की भिन्नता भी संघर्ष का स्रोत है। लक्ष्यों में भिन्नता के कारण होने वाला संघर्ष अधिक व्यापक व दीर्घ प्रभावी होता है, जिसका संगठन के आन्तरिक व बाहरी दोनों पक्षों पर दुष्प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न – 7 संघर्ष को समाप्त करने की विधियाँ बताइए।
Explain the methods of removing conflict.
उत्तर – संघर्ष समाप्त करने की विधियाँ
(Methods of Removing the Conflict)
संघर्ष को हानिप्रद, नकारात्मक व विनाशशील प्रकृति का माना जाता है। अतः हानिप्रद संघर्ष का निराकरण होना ही चाहिए क्योंकि यदि एक बार संघर्ष विध्वंसक हो गया तो सब कछ समाप्त हो जाता है। ऐसी स्थिति आने से पूर्व ही संघर्ष का निराकरण किया जाना उत्तम माना गया है। संघर्ष को रोकने तथा उस पर कारगर रोक लगाने हेतु निम्नलिखित उपायों को अपनाया जा सकता है
1. संवाद एवं विश्वास (Communication and Trust)-एक संगठन के कार्यकर्ताओं में एक-दूसरे पर जितना विश्वास होगा तथा पारस्परिक संवाद जितने खुलेपन व ईमानदारी से होंगे, वे उतना ही एक-दूसरे की भावनाओं व विचारों को समझ सकेंगे। एक-दूसरे की भावनाओं का सम्यक्-रूपेण आदर करते हुए संघर्ष को टाला जा सकता है।
2. समन्वय (Co-ordination)-विश्वास व संवाद के द्वारा समन्वय की स्थापना की जाती है। उचित रूप से समन्वित क्रियाएँ संघर्ष को कम करती हैं। यदि किसी उपक्रम के कर्मियों के मध्य समन्वय की कमी है, तब पारस्परिक समन्वय की स्थापना हेतु पृथक् विभाग की स्थापना की जा सकती है।
3. स्पष्टीकरण (Clarification)-उद्देश्यों तथा लक्ष्यों का स्पष्ट रूप से निर्धारण होना आवश्यक होता है। स्पष्टता के द्वारा संघर्ष को क्षीण किया जा सकता है। समह के उद्देश्य लक्ष्य स्पष्ट होने चाहिए और व्यक्ति-विशेष की उन लक्ष्यों को प्राप्त करने में क्या भूमिका है, यह भी पर्णत: स्पष्ट होना चाहिए। संघर्ष का उदय अस्पष्टता, संवादहीनता, अहम् आदि के कारण होता है।
4.पारितोषिक (Reward)-प्रत्येक व्यक्ति को उसके द्वारा किए गए कार्य का पूर्ण पारितोषिक न्यायोचित रूप से मिलना चाहिए क्योंकि संघर्ष का मुख्य कारण व्यक्ति का अपन पारितोषिक से असन्तुष्ट होना है। पारितोषिक का वितरण सही रूप में होने पर संघर्ष पर विराम लग जाता है।
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