B.Com 2nd Year Managerial Control Long Notes In Hindi
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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1- नियन्त्रण से आप क्या समझते हैं? व्यावसायिक प्रबन्ध में इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए। नियन्त्रण की तकनीकों और सीमाओं का वर्णन कीजिए।
What do you understand by Control ? Discussit its importance in business management. Describe the techniques of control and limitations of control.
अथवा नियन्त्रण क्या है? नियन्त्रण की तकनीकों एवं सीमाओं का वर्णन कीजिए।
What is Control ? Discuss the techniques of control and limitation.
उत्तर – नियन्त्रण से आशय एवं परिभाषाएँ
(Meaning and Definitions of Control)
प्रबन्धन के क्षेत्र में नियन्त्रण एक प्रमुख उपादान है। नियन्त्रण के द्वारा ही प्रबन्धन तन्त्र को कार्य निष्पादन की जानकारी प्राप्त होती है। विभिन्न विद्वानों ने नियन्त्रण के सम्बन्ध में निम्नलिखित परिभाषाएँ दी हैं
(1) ई०एफ०एल० ब्रीच के शब्दों में, “नियन्त्रण का अभिप्राय पर्याप्त प्रगति तथा सन्तोषजनक निष्पादन को निश्चित करने के लिए वर्तमान निष्पादन का योजनाओं में पूर्वनिश्चित प्रमापों के साथ मिलान करना होता है तथा योजना को कार्यान्वित करने में प्राप्त अनुभव को भविष्य की अपेक्षित क्रियाओं के मार्गदर्शन के लिए संचित करना होता है।”
(2) कण्ट्ज एवं ओ‘डोनेल के अनुसार, “नियन्त्रण एक प्रबन्धकीय कार्य है, जो अधीनस्थ कर्मचारियों के निष्पादन का मापन एवं उसमें सुधार करता है, जिससे यह निश्चित हो सके कि उपक्रम के उद्देश्य एवं उनको प्राप्त करने के लिए निर्धारित योजनाओं को कार्यान्वित किया जा रहा है।”
(3) जार्ज आर० टैरी के शब्दों में, “नियन्त्रण से आशय इस तथ्य का पता लगाना है कि क्या उपलब्धि हुई है, अर्थात् निष्पादन, निष्पादित कार्य का मूल्यांकन और यदि आवश्यक हो तो सुधारात्मक कदमों को उठाना ताकि निष्पादन नियोजन के अनुकूल हो सके।”
नियन्त्रण की विशेषताएँ
(Characteristics of Control)
नियन्त्रण की विभिन्न परिभाषाओं के अवलोकन व अध्ययन के पश्चात् इसकी कुछ विशेषताएँ प्रकट होती हैं, जो निम्नलिखित हैं
(1) नियन्त्रण प्रक्रिया वैज्ञानिक सिद्धान्तों तथा सांख्यिकीय तत्त्वों पर आधारित होती है।
(2) नियन्त्रण प्रबन्धन का महत्त्वपूर्ण कार्य होता है, जिससे उपक्रम के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
(3) नियन्त्रण स्वीकारात्मक प्रकृति का होता है।
(4) प्रबन्धन के प्रत्येक स्तर पर इसकी आवश्यकता पड़ती है।
(5) नियन्त्रण भविष्य से सम्बन्धित होता है क्योंकि जो कुछ भूतकाल में हो चुका है, उस पर नियन्त्रण का प्रश्न ही नहीं उठता है।
(6) नियन्त्रण आन्तरिक, बाहरी तथा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष हो सकता है।
(7) नियन्त्रण का प्रारम्भ उद्देश्यों के निर्धारण से होता है तथा उद्देश्य प्राप्ति के साथ ही यह समाप्त होता है।
(8) नियन्त्रण एक गतिशील प्रक्रिया है जो किसी निश्चित काल अथवा कार्य के लिए नहीं होती है अपितु एक सतत चलने वाली क्रिया है।
नियन्त्रण का महत्त्व
कूण्ट्ज एवं ओ‘डोनेल के शब्दों में, “जैसे एक नाविक निरन्तर यह निश्चित करने के लिए अध्ययन करता है कि वह निर्धारित मार्ग की ओर अग्रसर है, वैसे ही एक व्यावसायिक प्रबन्धक भी निरन्तर यह निश्चित करने के लिए अध्ययन करता है कि उसकी संस्था या विभाग सही मार्ग पर है।”
व्यावसायिक प्रबन्ध में नियन्त्रण के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
1. एक प्रकार का बीमा (A type of Insurance)-प्रबन्ध में नियन्त्रण की प्रक्रिया एक प्रकार से बीमे का कार्य करती है क्योंकि कुशल नियन्त्रण होने पर व्यवसायी को इस बात का दृढ़ विश्वास हो जाता है कि निर्धारित योजना के अनुसार ही वास्तविक कार्य होगा, यदि उसमें कुछ अन्तर हुआ तो उसका तत्काल उपाय कर दिया जाएगा।
2. जोखिम से सुरक्षा (Safety in Risk)-नियन्त्रण के अन्तर्गत संगठन के प्रत्येक कार्य की भली प्रकार जाँच की जाती है तथा कार्य में होने वाली त्रुटियों का सम्यक् निराकरण तलाशा जाता है। ऐसा उपाय किया जाता है ताकि भविष्य में पुन: ऐसी त्रुटि से बचा जा सके।
3. समन्वय में सहायक (Helpful in Co-ordination)-नियन्त्रण प्रणाली विभिन्न विभागों की क्रियाओं में समन्वय स्थापित करती है, जिससे उनके बीच उत्पन्न होने वाला गतिरोध समाप्त हो जाता है और संगठन का समस्त कार्य योजना के अनुसार सफलतापूर्वक निर्विरोध चलता रहता है।
4. उत्प्रेरण का साधन (Means of Motivation)-नियन्त्रण प्रक्रिया का महत्त्व इस बात में निहित है कि इसके द्वारा कर्मचारी के कुशल होने अथवा न होने का पता लगाया जा सकता है। ऐसा होने पर कार्यानुसार प्रोत्साहन के रूप में पुरस्कार या दण्डस्वरूप दण्ड दिया जा सकता है।
5. भावी नियोजन का आधार (Basis of Future Plans)-नियन्त्रण प्रक्रिया भावी नियोजन का आधार है क्योंकि इसके द्वारा संगठन को ऐसे तथ्य एवं सचनाएँ प्राप्त होती हैं जिनके आधार पर भविष्य में की जाने वाली कार्यवाहियों की योजना तैयार की जाती है।
6. व्यावसायिक जटिलताए (Business Complexity)-औद्योगिक युग में व्यावसायिक जगत की जटिलताओं में वृद्धि होती जा रही है। इन समस्त जटिलताओं का नियन्त्रण प्रक्रिया द्वारा कारगर ढंग से सामना किया जा सकता हैं।
7. अनुशासन की स्थापना (Discipline in Organization)-व्यवसाय में अनुशासन स्थापित करने के लिए नियन्त्रण प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण होती है। कुशल नियन्त्रण द्वारा की जाने वाली बेईमानी, कामचोरी, अनुचित व्यवहार आदि की सम्भावनाओं को बहुत बड़ी सीमा तक कम किया जा सकता है, जिससे अनुशासन का वातावरण उत्पन्न होता है।
8. भारार्पण की प्रक्रिया में सहायक (Helpful in Delegation)-एक संगठन में अनेक व्यक्तियों के मध्य कार्यों का विभाजन होता है, उसी के अनुसार उन्हें अधिकारों और उत्तरदायित्वों को सौंपा जाता है। नियन्त्रण प्रक्रिया के द्वारा सौंपे गए अधिकारों व दायित्वों का सम्यक् निरूपण होते हुए देखा जा सकता है तथा त्रुटि की अवस्था का भी पता लगाया जा सकता है।
नियन्त्रण की तकनीकें
(Techniques of Control)
नियन्त्रण की तकनीकें बे उपकरण हैं, जिनके माध्यम से कर्मचारियों के कार्यों पर सम्यक् नियन्त्रण किया जाता है। नियन्त्रण की प्रमुख तकनीकें निम्नलिखित हैं
1. सामग्री नियन्त्रण (Inventory Control)—यह वह तकनीक है, जिसके द्वारा कच्चे माल आदि की पूर्ति को आवश्यकतानुसार बनाए रखा जाता है। इस दृष्टि के ‘क्रयादेश बिन्दुओं और स्टॉक लेबल’ आदि का निर्धारण किया जाता है।
2. उत्पादन नियन्त्रण (Production Control)-उत्पादन नियन्त्रण में उत्पादन क्रियाओं के नियोजन, मार्गदर्शन, समय निर्धारण, निर्गमन तथा अनुगमन की क्रियाएँ सम्मिलित की जाती हैं। उत्पादन नियन्त्रण का उद्देश्य उत्पादन क्रियाओं का नियोजन और संचालन इस प्रकार करना है कि निर्धारित समय में, निर्धारित मात्रा में और निर्धारित कीमत पर निर्धारित किस्म का माल उत्पादित किया जा सके।
3.किस्म नियन्त्रण (Quality Control)-इसके द्वारा निर्मित वस्तु की क्वालिटी को सही रूप में रखा जाता है। इसका ध्येय उत्पादित वस्तु को अधिकतम शुद्धता प्रदान करना होता है। इस विधि में वस्तु के रंग, रूप, आकार, परिधि आदि के प्रमाप निश्चित करके प्रमापों के अनुसार ही वस्तु तैयार करने पर बल दिया जाता है।
4. लागत नियन्त्रण (Cost Control)-इसके द्वारा उत्पादित वस्तु की लागत को कम रखने का प्रयत्न किया जाता है। इस दृष्टि से विभिन्न लागतों का विश्लेषण करके उसके प्रमाप तथा मानक निश्चित किए जाते हैं, तत्पश्चात् वास्तविक लागतें मालूम करके प्रमापित विचलन लेकर विचलन के कारणों को मालूम किया जाता है। उन्हें भविष्य में दूर करने का प्रयत्न किया जाता है।
5. बजट (Budget)-बजट के द्वारा प्रबन्धन तन्त्र विभिन्न ध्येयों की पूर्ति एक साथ कर सकता है। नियन्त्रण विधा को लागू करने के लिए बजट एक कारगर प्रक्रिया है। संस्था के आय तथा व्यय पर नियन्त्रण रखने का बजट एक अत्यन्त प्रभावशाली तरीका है।
6. लेखाकर्म (Accountings_हिसाब-किताब विधिवत् ढंग से रखने तथा हानि-लाभ ज्ञात करके भी अनेक कार्यों पर प्रभावशाली नियन्त्रण किया जाता है।
7. लाभ-हानि द्वारा नियन्त्रण (Control by Profit and Loss)-लाभ-हानि की प्रक्रिया को अपनाकर तथा विभिन्न खातों की वास्तविक जाँच करके संस्थान के लाभ तथा हानि का पता लगाया जा सकता है तथा उस पर नियन्त्रण किया जा सकता है।
8. नियन्त्रण प्रभाव (Effect of Control)-जिन संस्थाओं में नियन्त्रण विभाग का अस्तित्व पृथक् रूप से होता है वहाँ प्रभावी नियन्त्रण स्थापित करना सहज हो जाता है। यह विभाग नियन्त्रण की योजनाएँ बनाता है, उनका क्रियान्वयन और समन्वय करता है तथा उनके परिणामों का मूल्यांकन करता है।
9. लिखित निर्देशन (Written Direction)-लिखित निर्देशों के द्वारा अधीनस्थ कर्मचारियों पर स्थिर रूप से नियन्त्रण स्थापित किया जा सकता है तथा इस प्रकार सही कार्य का निस्तारण हो जाता है।
10. कर्मचारियों पर अनुशासनात्मक कार्यवाही (Disciplinary Action)-त्रुटि करने वाले दोषी कर्मचारियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही करके उन पर नियन्त्रण रखा जा सकता है।
11. अधिकार सीमाओं का निर्धारण (Determination of Standing Limitations)-विभिन्न अधिकारियों व कर्मचारियों के अधिकार क्षेत्रों की स्थायी सीमाओं का निर्धारण करके उनके कार्यों पर नियन्त्रण रखा जाता है।
12. अभिप्रेरण (Motivation)-आत्मनियन्त्रण और स्वत:नियन्त्रण स्थापित करने के लिए अभिप्रेरण एक श्रेष्ठ विधि है। इसमें कर्मचारियों को उत्प्रेरित करके उनका ऐच्छिक रूप से अधिकतम सहयोग प्राप्त किया जाता है और नियन्त्रित विधि से कार्य कराया जाता है।
13. अंकेक्षण (Audit)-अंकेक्षण भी एक प्रभावशाली विधि है। इसे अपनाकर धन व माल की धोखाधड़ी, चोरी आदि को रोका जा सकता है। अंकेक्षण संस्था के ही उच्चाधिकारियों द्वारा करने पर ‘आन्तरिक अंकेक्षण’ तथा बाह्य व्यक्तियों द्वारा किए जाने पर ‘बाह्य अंकेक्षण’ कहलाता है।
14.सम-विच्छेद बिन्दु विश्लेषण (Break-even Point Analysis)सम-विच्छेद बिन्दु विश्लेषण भी प्रबन्धकीय नियन्त्रण की प्रमुख तकनीक है। इसके माध्यम से लाभ. विक्रय तथा सुरक्षा सीमा आदि का निर्धारण किया जा सकता है।
15. चार्ट एवं नियम पुस्तिका (Chart Rule Book)-चार्ट कार्यों का विश्लेषण प्रस्तुत कर नियन्त्रण में सहायता करते हैं। इसी प्रकार नियम पुस्तिका अधिकारियों को उनके अधिकार-क्षत्र एव दायित्वा का ज्ञान कराकर परोक्ष रूप से नियन्त्रण में सहायता करती है।
16. प्रबन्ध सूचना प्रणाली (Management Information System)-प्रबन्ध सूचना प्रणाली भी प्रबन्धकीय नियन्त्रण का प्रमुख साधन है। संगठन में सूचना प्रणाली जितनी सदढ़ एवं व्यवस्थित होती है, प्रबन्धकीय नियन्त्रण उतना ही सरल रहता है। इसके विपरीत, सूचना व्यवस्था में रुकावट उत्पन्न होने पर नियन्त्रण कार्य व्यर्थ एवं शिथिल हो जाता है।
17. अवलोकन (Observation)-कार्य स्थल पर जाकर प्रबन्धन-तन्त्र द्वारा कर्मचारियों के कार्यों का मौके पर ही निरीक्षण किया जाता है। इस प्रकार के निरीक्षण के द्वारा नियन्त्रण की सहज-रूपेण ही स्थापना हो जाती है। सर्वाधिक कारगर विधियों में नियन्त्रण के लिए निरीक्षण को मान्यता प्रदान की गई है।
18. प्रत्याय व प्रतिवेदन (Return and Reports)-कर्मचारियों से समय-समय पर उनके द्वारा किए गए कार्यों का प्रतिवेदन, विवरण आदि माँगकर भी उन पर नियन्त्रण रखा जा सकता है।
19. उदाहरण (Examples)-उच्च पदाधिकारियों द्वारा उच्च आदर्शों की स्थापना कर आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं, जो अधीनस्थ कर्मियों के लिए प्रेरणा तथा नियन्त्रण का कारगर उपाय बनते हैं।
20. नीतियाँ (Policies)-नीतियाँ भी नियन्त्रण की महत्त्वपूर्ण तकनीक हैं। ये दैनिक कार्यों के निष्पादन के लिए मार्गदर्शन करती हैं और कर्मचारियों को नियन्त्रित ढंग से कार्य करने हेतु बाध्य करती हैं।
21. अन्य तकनीकें (Other Techniques)-आजकल नियन्त्रण हेतु अनेक वैज्ञानिक विधियों का भी प्रयोग किया जाने लगा है; जैसे
(1) ए०बी०सी० विश्लेषण
(ii) सी०पी०एम०
(iii) पर्ट (iv) वी०ई०डी० विश्लेषण।
नियन्त्रण की सीमाएँ
(Limitations of Control)
यद्यपि नीतियों के निर्धारण तथा संस्था के कार्यों को सुव्यवस्था प्रदान करने में नियन्त्रण विधा को प्रबन्धन में अति महत्त्व प्राप्त है तथापि इसमें कुछ दोष भी प्रकट होते हैं, जिस कारण इसकी सीमाओं का निर्धारण निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है
1.अत्यधिक व्ययसाध्य (Costly)-कई बार नियन्त्रण तथा विचलनों को ज्ञात करने की प्रक्रिया इतनी व्ययसाध्य होती है कि संस्था उतना खर्च करने में असमर्थ होती है।
2. नियन्त्रण आन्तरिक घटकों पर ही सम्भव (Control is Possible only on Internal Elements)-नियन्त्रण की सबसे महत्त्वपूर्ण सीमा यह है कि इसका प्रयोग केवल संगठन की आन्तरिक क्रियाओं में ही सम्भव होता है। संगठन को प्रभावित करने वाले
बाह्य घटकों जैसे सरकारी नीति, जनसंख्या में परिवर्तन, माँग-पूर्ति, बाजार की स्थिति आदि पर नियन्त्रण नहीं किया जा सकता।
3. सुधारात्मक कार्यवाही असम्भव (Impossibility of Remedial Actions) अनेक बार विचलनों को ज्ञात करने का कार्य अपने आप में बड़ा कठिन तथा दुरूह होता है। उसके लिए विशेषज्ञों की सेवाएँ प्राप्त करनी आवश्यक होती हैं। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में नियन्त्रण की विधा का विलोपन होने लगता है तथा उद्देश्य की प्राप्ति अपूर्ण रह जाती है।
4. प्रमाप निर्धारण की कठिनाई (Difficulty in Determination of Standards)-नियन्त्रण के लिए प्रमापों का निर्धारण एक पूर्व आवश्यकता है किन्तु अनेक परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं जिनमें निर्धारण करना पूर्णतया अव्यावहारिक होता है, फलतः उन मामलों में नियन्त्रण नहीं किया जा सकता।
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