B.Com 2nd Year Workman Compensation Act Long Notes
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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1- कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम के अन्तर्गत कब-कब नियोक्ता का ऋणजीवी की क्षतिपूर्ति चुकाने का दायित्व होता है? ऐसी परिस्थितियाँ बताइए जबकि श्र नियोक्ता का ऐसा दायित्व नहीं होता है?
When is the employer liable for paying compensation to a 3 employee’s under the Employee’s Compensation Act ? State the circumstances in which the employer is not so liable.
उत्तर – श्रमिक एवं क्षतिपूर्ति
(Employer and Compensation)
श्रमिक के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने पर नियोक्ता कब उत्तरदायी है और कब नहीं? याद र उत्तरदायी है तो क्षतिपूर्ति का निर्धारण कैसे होगा? क्षतिपूर्ति का भुगतान न करने पर वह दा होगा या नहीं आदि ऐसे अनेक प्रश्न हैं जिनके समाधान के लिए अधिनियम के प्रावधान समझना और लागू करना नितान्त आवश्यक है। नियोक्ता जब किसी श्रमिक का लगाता है तो गर्भित रूप से उसकी सुरक्षा का दायित्व भी अपने ऊपर लेता है। यदि ना समय कार्य के दौरान श्रमिक को किसी भी प्रकार की चोट पहँचती है अथवा उसका जाती है तो नियोक्ता ऐसे श्रमिक अथवा उसके आश्रितों के प्रति क्षतिपति के लिए क्षतिपूर्ति के भुगतान के लिए नियोक्ता के दायित्व के सम्बन्ध में इस अधिनियम लेकर धारा 18 तक प्रावधान दिए गए हैं जिनका वर्णन अग्र प्रकार है-
क्षतिपूर्ति के लिए नियोक्ता का दायित्व (Liability of Employer for mensation)– श्रमिक के दुर्घटनाग्रस्त होने पर नियोक्ता तभी उत्तरदायी होगा जबकि निम्नलिखित शर्ते पूरी होती हों। इन शर्तों का उल्लेख अधिनियम की धारा 3 में वर्णित है जिन्हें हम निम्नलिखित दो वर्गों में बाँट सकते हैं –
(A) व्यक्तिगत रूप से दुर्घटनाग्रस्त होने की दशा में (In Case of Individual Disease)-इस दशा में नियोक्ता का दायित्व निम्नलिखित प्रावधानों के अन्तर्गत उत्पन्न होता है
(i) दुर्घटना या शारीरिक चोट लगने पर अधिनियम के अनुसार नियोक्ता क्षतिपूर्ति के लिए तभी उत्तरदायी होगा जबकि श्रमिक को व्यक्तिगत चोट पहुँची हो।
(ii) रोजगार के कारण या रोजगार के समय में – श्रमिक की क्षतिपूर्ति के लिए नियोक्ता का दायित्व तभी उत्पन्न होता है जबकि वह रोजगार के कारण या रोजगार के समय में दुर्घटनाग्रस्त हुआ हो।
(iii) तीन दिन से अधिक की अयोग्यता – श्रमिक की क्षतिपूर्ति के लिए नियोक्ता का दायित्व तभी उत्पन्न होता है जबकि श्रमिक तीन दिन से अधिक समय के लिए आंशिक रूप से या पूर्ण रूप से कार्य करने के लिए अयोग्य हुआ है।
(iv) निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न दुर्घटना से मृत्यु अथवा स्थायी पूर्ण अयोग्यता की दशा में नियोक्ता का दायित्व – यदि निम्नलिखित कारणों से हुई दुर्घटना के कारण श्रमिक की मृत्यु हो जाती है अथवा वह स्थायी रूप से पूर्णत: अयोग्य हो जाता है तो नियोक्ता क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी होगा, लेकिन निम्नलिखित दशाओं में नियोक्ता क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी नहीं होगा
(i) यदि किसी चोट के कारण श्रमिक 3 दिन से कम की अवधि के लिए कार्य करने के लिए अयोग्य हुआ हो, अथवा
(ii) यदि किसी चोट के कारण श्रमिक की मृत्यु न हुई हो और दुर्घटना निम्नलिखित में से किसी कारण से हुई हो-जैसे श्रमिक ने जान-बूझकर किसी सुरक्षा उपाय या साधन को हटा दिया है जिसके सम्बन्ध में वह जानता था कि वे सुरक्षा के लिए हैं, अथवा
(iii) दुर्घटना के समय श्रमिक शराब या अन्य औषधियों से प्रभावित रहा हो, अथवा
(iv) दुर्घटना के समय श्रमिक ने सुरक्षा के लिए बनाए गए नियमों या आदेशों की अवहेलना की हो, अथवा
(v) दुर्घटना रोजगार से उत्पन्न न हो, अथवा
(vi) जिस रोग से श्रमिक ग्रसित हुआ हो, वह रोग रोजगार से उत्पन्न न हो, अथवा
(vii) श्रमिक नियोक्ता के अधीन छ: माह से अधिक अवधि के लिए सेवा में न हो,अथवा
(viii) श्रमिक ने क्षतिपूर्ति के लिए नियोक्ता के विरुद्ध मुकदमा प्रस्तुत कर दिया हो।
(B) व्यावसायिक या रोजगार के कारण रोग की दशा में (In Case Ants Ch 3Tff atau Relating to Occupation of Business) – यदि कोई श्रमिक अधिनियम की व्यवस्थाओं के अन्तर्गत व्यावसायिक या रोजगार के कार्य के कारण किसी रोग से ग्रस्त हो जाता भी श्रमिक को उत्पन्न हई क्षति या चोट मानी जाती है जिसके परिणामस्वरूप इसकी जान लिए भी नियोक्ता का दायित्व उत्पन्न होता है। इसके सम्बन्ध में अधिनियम के निम्न प्रावधान हैं-
1. ततीय अनसची के भाग ‘अ’ में वर्णित रोजगार में नियुक्त श्रमिक में – यदि कोई श्रमिक इस अधिनियम की अनुसूची-3 के भाग ‘अ’ में वर्णित किसी रोजगार से सेवारत है और वह ऐसे व्यवसाय या रोजगार से सम्बन्धित किसी रोग से पीडित है तो दुर्घटना से दुर्घटनाग्रस्त माना जाएगा और नियोक्ता इसके लिए उत्तरदायी होगा।
2. तृतीय अनुसूची के भाग ‘ब’ में वर्णित रोजगार में नियुक्त श्रमिक की दशा में – यदि कोई श्रमिक इस अधिनियम की अनुसूची-3 के भाग ‘ब’ में वर्णित किसी रोजगार या व्यवसाय में कम-से-कम छ: माह की अवधि में एक ही नियोक्ता के अधीन सेवारत है और वह ऐसे व्यवसाय या रोजगार से सम्बन्धित किसी रोग से पीड़ित हो जाता है तो वह दुर्घटनाग्रस्त माना जाएगा जिसके लिए नियोक्ता उत्तरदायी होगा।
3. तृतीय अनुसूची के भाग ‘स’ में वर्णित रोजगार में नियुक्त श्रमिक की दशा में – यदि कोई श्रमिक इस अधिनियम की अनुसूची-3 के भाग ‘स’ में वर्णित किसी रोजगार या व्यवसाय में एक या एक से अधिक नियोक्ताओं के यहाँ केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्धारित अवधि तक निरन्तर सेवारत है और सेवा के दौरान ही ऐसे व्यवसाय या रोजगार से सम्बन्धित किसी | रोग से पीड़ित हो जाता है तो वह दुर्घटना से दुर्घटनाग्रस्त माना जाएगा जिसके लिए क्षतिपूर्ति प्र करने हेतु नियोक्ता उत्तरदायी होगा, लेकिन इस सम्बन्ध में श्रमिक को निम्नलिखित बातें सिद्ध करनी होंगी
(i) वह केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधि तक एक या एक अधिक नियोक्ताआ क अधीन सेवारत रहा है।
(ii) वह तृतीय अनुसूची के भाग ‘स’ से सम्बन्धित व्यवसाय या रोजगार के कारण रोगग्रस्त हुआ है।
(iii) वह रोजगार के दौरान रोग से पीड़ित हुआ है।
4. सेवा के समाप्त होने पर रोग – यदि यह सिद्ध हो जाता है कि कोई श्रमिक अनुसूच के भाग ‘ब’ में वर्णित किसी रोजगार में किसी नियोक्ता के यहाँ काम कर चुका है अथवा अनुसूची के भाग ‘स’ में वर्णित किसी रोजगार में एक या एक से अधिक नियोक्ताओ निश्चित अवधि के लिए निरन्तर सेवारत रहा है और सेवा समाप्त होने पर उस रा सम्बन्धित किसी रोग से पीड़ित हो जाता है तब भी उसे इस अधिनियम के अधान दुर्घटनाग्रस्त माना जाएगा और इस कारण नियोक्ता उसकी क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी होगा।
5. अन्य नियोक्ताओं का दायित्व – यदि किसी श्रमिक ने तृतीय अनुसूची के भाग ‘स’ नर्मित किसी रोजगार या व्यवसाय में निश्चित अवधि के लिए निरन्तर एक या एक से अधिक नियोक्ताओं के यहाँ काम किया है और वह ऐसे रोजगार से सम्बन्धित किसी रोग से पीड़ित हुआ है जो इस सम्बन्ध में वे सभी नियोक्ता उत्तरदायी होंगे जिनके यहाँ उसने कार्य किया है। [धारा 3(2A)]
6. अनुसूची में रोगों को शामिल करने का सरकार का अधिकार – केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह तृतीय अनुसूची में किसी भी रोजगार या व्यवसाय से सम्बन्धित नए रोगों को शामिल कर सकती है। ऐसा करने के लिए उसे राजपत्र में अधिसूचना जारी करनी होती है और तीन माह की सूचना देनी पड़ती है। अधिसूचना यदि राज्य सरकार जारी करती है तो उसी राज्य में लागू होगी जिस राज्य की सरकार है और यदि केन्द्र सरकार अधिसूचना जारी करती है तो वह उन सभी क्षेत्रों पर लागू होगी जिन पर यह अधिनियम लागू होता है। [धारा 3(3)]
7. अन्य दशाओं में दायित्व – इस अधिनियम की अनुसूची तृतीय के भाग ‘अ’, ‘ब’ एवं ‘स’ में वर्णित रोगों के अतिरिक्त किसी अन्य रोग से उत्पन्न श्रमिक की क्षति की पूर्ति तब तक नहीं की जाएगी जब तक कि वह रोग- .
(i) रोजगार या व्यवसाय से सम्बन्धित रोग हो, अथवा
(ii) रोजगार या व्यवसाय के कार्य करने के दौरान हुआ हो।
यदि ऐसा कुछ भी सिद्ध नहीं होता है तो क्षतिपूर्ति के लिए नियोक्ता को उत्तरदायी नहीं – ठहराया जा सकता।
[धारा 3(4)]
8. न्यायालय में मुकदमा प्रस्तुत करने पर इस अधिनियम के अन्तर्गत क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार नहीं-यदि किसी श्रमिक ने अपनी किसी चोट की क्षतिपर्ति के लिए = नियोक्ता के विरुद्ध किसी भी दीवानी न्यायालय में मुकदमा प्रस्तुत कर दिया है तो वह इस अधिनियम के अन्तर्गत क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी नहीं रहेगा। धारा 3(5)]
9. इस अधिनियम में दावा प्रस्तुत करने के बाद न्यायालय में दावा प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं – यदि किसी श्रमिक ने चोट की क्षतिपूर्ति के लिए श्रम आयुक्त के समक्ष दावा प्रस्तुत कर दिया है या श्रमिक और नियोक्ता के मध्य इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार अतिपर्ति के लिए कोई ठहराव हुआ है तो उस श्रमिक को इस चोट की क्षतिपूर्ति के लिए भी न्यायालय में दावा प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं रहेगा।
[धारा 3(5)]
नियोक्ता के दायित्व का न होना
(No Liability of Employer)
1 निम्नलिखित परिस्थितियों में नियोक्ता क्षति या चोट की क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी नही है।-1. श्रमिक द्वारा शराब या औषधि लेकर कार्य करना – यदि कोई श्रमिक शराब या षधि लेकर उसके प्रभाव में कार्य करता है और दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है तो नियोक्ता इसके लिए उत्तरदायी नहीं होगा। लेकिन यदि ऐसी दुर्घटना से श्रमिक की मृत्यु हो जाती नियोक्ता क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी है।
2. सुरक्षा आदेश या सुरक्षा नियमों की अवहेलना करने पर – यदि कोई भी नियोक्ता के द्वारा दिए गए सुरक्षा आदेश या बनाए गए सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करता है और इस कारण कार्य करने के दौरान चोटग्रस्त हो जाता है तो इस दशा में नियोक्ता उसकी क्षतिपति के लिए उत्तरदायी नहीं है। लेकिन यदि इस परिस्थिति में उसकी मृत्यु हो जाती है तो नियोक्ता का दायित्व बना रहेगा।
3. रोजगार के कारण दुर्घटना न होने पर – यदि श्रमिक जिस दुर्घटना से चोटग्रस्त हुआ है वह दुर्घटना रोजगार के कारण उत्पन्न नहीं है तो नियोक्ता श्रमिक की क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।
4. रोजगार के दौरान दुर्घटना न होने पर यदि श्रमिक जिस दुर्घटना से चोटग्रस्त हुआ है वह दुर्घटना रोजगार के दौरान नहीं हुई है तो नियोक्ता श्रमिक की क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।
5. रोग के रोजगार से सम्बन्धित न होने पर – यदि श्रमिक को क्षति रोजगार के कार्य से सम्बन्धित रोग या उससे उत्पन्न रोग के कारण न हुई हो वरन् किसी अन्य रोग के कारण क्षति हुई हो तो इसके लिए नियोक्ता का कोई दायित्व नहीं है। –
6. छ: महीने से कम अवधि में सेवा करने में रोग होने पर – यदि कोई श्रमिक किसी एक ही नियोक्ता के यहाँ निरन्तर छ: महीने तक सेवा नहीं करता है और तृतीय अनुसूची के भाग ‘ब’ में वर्णित किसी रोग से पीड़ित हो जाता है तो नियोक्ता इस रोग से उत्पन्न क्षति के लिए श्रमिक के प्रति उत्तरदायी नहीं होगा।
7. केन्द्रीय सरकार द्वारा निश्चित की गई अवधि तक सेवारत रहने पर – यदि कोई श्रमिक तृतीय अनुसूची के भाग ‘स’ में वर्णित किसी रोजगार या व्यवसाय में एक या एक से अधिक नियोक्ताओं के पास केन्द्रीय सरकार द्वारा निश्चित अवधि तक निरन्तर सेवा में नहीं रहा है और उसे रोजगार से सम्बन्धित कोई रोग उत्पन्न हो जाता है तो नियोक्ता श्रमिक को होने वाली क्षति की पूर्ति के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।
8. तीन दिन से कम अवधि की अयोग्यता होने पर – यदि कोई श्रमिक कार्य के दौरान दुर्घटनाग्रस्त होने पर तीन दिन से कम अवधि के लिए कार्य करने में अयोग्य रहता है तो इसके लिए श्रमिक के प्रति नियोक्ता उत्तरदायी नहीं है और न ही श्रमिक को क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार है।
9. न्यायालय में वाद प्रस्तुत करने पर यदि कोई श्रमिक क्षतिपूर्ति के लिए नियोक्ता के विरुद्ध दीवानी न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर देता है तो इस दशा में श्रमिक के प्रति क्षतिपूति के लिए नियोक्ता का उत्तरदायित्व समाप्त हो जाता है। यहाँ यह बात महत्त्वपूर्ण है कि नियोक्ता केवल इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन ही अपने दायित्व से मुक्त होता है। देश के सामान्य कानून के अन्तर्गत नहीं।
10. श्रमिक न कहलाने पर—यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के अनुसार श्रमिक ही है और वह दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है तो नियोक्ता ऐसे व्यक्ति की क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी नहीं है।
11. श्रमिक द्वारा सुरक्षा के उपाय या साधन हटाने पर – यदि कोई श्रमिक जान-बूझकर सुरक्षा के उपाय या साधनों को हटाता है जिनके विषय में वह यह जानता है कि वे नियोक्ता द्वारा उसकी सुरक्षा के लिए लगाए गए हैं, और इस कारण दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है तो इसके लिए नियोक्ता क्षतिपूर्ति करने हेतु उत्तरदायी नहीं है।
प्रश्न 2 – श्रमिकों के कल्याण सम्बन्धी प्रावधानों की व्याख्या कीजिए।
Explain the provisions regarding welfare of workers.
उत्तर – श्रम कल्याण का अर्थ
(Meaning of Labour Welfare)
श्रम कल्याण से हमारा आशय प्राय: नियोक्ताओं द्वारा श्रमिकों एवं उनके परिवार के । लिए प्रदान की जाने वाली सुविधाओं से है, किन्तु वर्तमान समय में श्रम कल्याण को औद्योगिक जगत में व्यापक अर्थ में लिया गया है, तदनुसार श्रम-कल्याण के अन्तर्गत कारखाने के भीतर तथा बाहर प्रदान की जाने वाली वे सभी सुविधाएँ शामिल की जाती हैं जो श्रमिकों की शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक उन्नति में सहायक होती हैं। ये सुविधाएँ श्रम संघों कारखाने के स्वामियों, सरकार एवं अन्य समाजसेवी संस्थाओं द्वारा प्रदान की जाती हैं।
श्रम कल्याण की कुछ परिभाषाएँ निम्नवत् हैं –
अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, “श्रम कल्याण से अभिप्राय ऐसी वस्तुओं, सुविधाओं तथा आरामों से है जो कारखाने के अन्दर या निकटवर्ती स्थानों में उपलब्ध हों ताकि उन कारखानों में काम करने वाले श्रमिक स्वस्थ और शान्तिपूर्वक परिस्थितियों में अपना कार्य कर सकें तथा अपने स्वास्थ्य एवं नैतिक स्तर को ऊँचा उठाने वाली सुविधाओं का लाभ उठा सकें।”
भारत सरकार द्वारा नियुक्त जाँच समिति के अनुसार, “श्रम कल्याण कार्यों के अन्तर्गत साधारणतया कानून के अनुसार होने वाले कार्यों एवं अनुबन्ध के अनुसार मिलने वाले लाभों के अतिरिक्त श्रमिकों के शारीरिक, बौद्धिक, नैतिक एवं आर्थिक विकास के लिए किए गए कार्यों का समावेश होना चाहिए चाहे ये कार्य सरकार, नियोक्ताओं अथवा अन्य किसी भी संस्था द्वारा किए जाएँ।”
श्रम कल्याण कार्य का महत्त्व
(Importance of Lab our Welfare Work)
वर्तमान समय में, श्रम कल्याण सम्बन्धी सुविधाओं का विशेष महत्त्व है। इनके द्वारा श्रमिकों की कार्यकुशलता में वृद्धि होने के साथ-साथ, उनका जीवन-स्तर भी ऊँचा होता है तथा उनकी शारीरिक, मानसिक, नैतिक एवं आर्थिक उन्नति होती है।
श्रमिकों की मनोभावना को श्रम कल्याण कार्य उचित रूप से प्रभावित करते हैं। कारखाने के कार्य-वातावरण (Work-environment) पर इन कार्यों का अनुकूल प्रभाव पड़ता है जो औद्योगिक शान्ति की स्थापना में सहायक सिद्ध होता है। श्रमिकों के मन में यह भावना घर का जाती है कि नियोक्ता, सरकार तथा अन्य संस्थाएँ उनको सुखी बनाने के लिए प्रयासरत हैं और उनके द्वारा उन्हें ऐसी सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं जिन्हें साधारणत: वे अपनी अल्प आय में से पूरी नहीं कर सकते। इस प्रकार श्रमिकों तथा नियोक्ता के बीच मैत्रीपूर्ण और मधुर सम्बन्ध स्थापित होते हैं। श्रम कल्याण कार्यों के द्वारा श्रमिकों एवं उनके परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य में सुधार होने के साथ-साथ उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि होती है इसके परिणामस्वरूप उत्पादकता में भी वृद्धि होती है। उद्योगपति के लिए श्रम कल्याण पर किया गया व्यय एक प्रकार का विनियोग है
कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा 42 से 50 तक श्रम कल्याण से सम्बन्धित प्रावधानों का वर्णन किया गया है जिनकी व्यवस्था करना नियोक्ता का दायित्व होता है।
नहाने-धोने की सुविधाएँ
(Washing Facilities)
श्रमिकों को नहाने-धोने की सुविधाएँ देने के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं –
1. पर्याप्त एवं उपयुक्त सुविधाएँ – कारखाने में कार्यरत श्रमिकों के उपयोग के लिए नहाने-धाने की पर्याप्त एवं उपयुक्त सुविधाओं का प्रबन्ध किया जाएगा और इनकी भली-भाँति देखभाल भी की जाएगी।
2. पुरुष एवं स्त्री श्रमिकों के लिए पृथक् – पृथक् व्यवस्था-पुरुष एवं स्त्री श्रमिकों के उपयोग के लिए अलग-अलग नहाने-धोने की पर्याप्त एवं पर्देदार सुविधाओं की व्यवस्था की जाएगी।
3. सुविधायुक्त एवं स्वच्छ होना – नहाने-धोने की ये सुविधाएँ ऐसे स्थान पर मिलेंगी जहाँ श्रमिक सुविधापूर्वक आसानी से पहुँच सकें। वहाँ इन्हें स्वच्छ तथा स्वास्थ्यप्रद दशा में रखा जाएगा।
4. स्तर का निर्धारण किसी कारखाने या कारखानों के किसी भी वर्ग अथवा श्रेणी के लिए या किसी भी निर्माण प्रक्रिया के लिए राज्य सरकार नहाने-धोने की पर्याप्त एवं उपयुक्त सुविधाओं का स्तर निर्धारित कर सकती है।
अपनी रिपोर्ट में रॉयल कमीशन ने यह सिफारिश की है कि सभी श्रमिकों के लिए नहाने-धोने की सुविधाएँ अनिवार्य कर दी जानी चाहिए। इनके फलस्वरूप श्रमिकों के स्वास्थ्य, कार्यक्षमता तथा आराम में वृद्धि होगी।
वस्त्र रखने तथा सुखाने की सुविधाएँ
(Facilities for Storing and Drying Clothing)
किसी भी कारखाने अथवा कारखाने के किसी वर्ग या श्रेणी के सम्बन्ध में राज्य सरकार ऐसे नियम बना सकती है जिनके अनुसार कारखाने में कार्य करने वाले श्रमिकों द्वारा कार्य के समय न पहने जाने वाले वस्त्रों और गीले वस्त्रों को सुखाने के लिए उपयुक्त स्थानों का प्रबन्ध किया जाएगा।
‘उपयुक्त स्थान’ क्या होना चाहिए यह एक विवादास्पद प्रश्न है। कोई स्थान उपयुक्त है अथवा नहीं, इस बात का निश्चय करते समय चोरी की जोखिम या आशंका को भी ध्यान में रखना आवश्यक है।
बैठने की सुविधाएँ
(Facilities for Sitting)
इस धारा का उद्देश्य कार्य के दौरान श्रमिकों को थोड़ा आराम पहुँचाना और उनकी थकावट दूर करना है ताकि उनकी शक्ति क्षीण न हो। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं
1. खड़े रहकर कार्य करनेवाले श्रमिकों के लिए बैठने की व्यवस्था – प्रत्येक कारखाने में ऐसे सभी श्रमिकों के लिए जिन्हें खड़े-खड़े कार्य करना पड़ता है, बैठने के लिए, उचित व्यवस्थाएँ की जाएँगी ताकि काम के दौरान जब भी उन्हें विश्राम का कोई अवसर मिले, वे उसका लाभ उठा सकें।
2. मुख्य निरीक्षक द्वारा बैठने की सुविधा सम्बन्धी आदेश देना – यदि मुख्य निरीक्षक को यह प्रतीत हो कि किसी कारखाने में नियुक्त श्रमिक किसी विशेष निर्माण-प्रक्रिया अथवा किसी विशेष कार्य में बैठकर कुशलतापूर्वक कार्य कर सकते हैं तो वह कारखाने के परिभोगी को लिखित आदेश देकर उन श्रमिकों के बैठने की सुविधाओं का प्रबन्ध करने का निर्देश दे सकता है तथा यह माँग कर सकता है कि एक निश्चित तिथि के पूर्व वहाँ बैठने की सुविधाओं का प्रबन्ध किया जाए।
3. राज्य सरकार द्वारा छूट देना – राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना जारी करके, विशेष परिस्थितियों में कुछ कारखानों को श्रमिकों के बैठने के लिए उपयुक्त स्थानों का प्रबन्ध करने की छूट दे सकती है।
प्राथमिक उपचार के उपकरण की व्यवस्था
(Provision for First Aid Appliance)
प्राथमिक उपचार के उपकरणों के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रावधान उल्लेखनीय हैं
1. प्राथमिक उपचार की सन्दूक या अलमारी का प्रबन्ध – प्रत्येक कारखाने में समस्त कार्य के घण्टों के दौरान प्राथमिक उपचार सन्दूकों (First Aid Boxes) अथवा अलमारियों का प्रबन्ध किया जाएगा जो निर्धारित वस्तुओं से सुसज्जित होंगी। इन्हें ऐसे स्थानों पर रखा जाएगा जहाँ तत्काल पहुँचा जा सके। जिस कारखाने में सामान्यत: 150 से अधिक श्रमिक किसी भी समय नियुक्त हों वहाँ प्राथमिक उपचार की कम-से-कम एक सन्दूक या अलमारी अवश्य रखी जाएगी।
2. सन्द्रक या अलमारी में रखी जाने वाली वस्तुएँ – उक्त सन्दूक या अलमारी में निर्धारित वस्तुओं के अतिरिक्त कुछ भी नहीं रखा जाएगा।
3. सन्दूक या अलमारी किसके अधिकार में रहेंगी – प्राथमिक उपचार की प्रत्येक सन्दूक या अलमारी पृथक रूप से एक ऐसे उत्तरदायी व्यक्ति के अधिकार में रहेगी जो प्राथमिक उपचार चिकित्सा में राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त प्रमाण-पत्र रखता हो। वह कारखाने में कार्य के घण्टों के दौरान सदैव उपलब्ध रहेगा।
4. उपचार कक्ष का प्रबन्ध – ऐसे प्रत्येक कारखाने में जहाँ 500 से अधिक श्रमिक नियुक्त हों या साधारणतया नियुक्त किए जाते हों, एक निर्धारित आकार तथा निर्धारित वस्तुओं से सुसज्जित उपचार कक्ष (Ambulance Room) होगा। यह कक्ष निर्धारित चिकित्सा अधिकारी और नों के अधिकार में रहेगा। ये सुविधाएँ कारखाने में कार्य के घण्टों के दौरान सदैव उपलब्ध रहेंगी।
जलपानगृह की व्यवस्था
(Provision for Canteens)
जलपानगृह के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं-
1. परिभोगी द्वारा जलपानगृह का प्रबन्ध करना — नियम बनाकर राज्य सरकार यह आदेश जारी कर सकती है कि जिस किसी भी कारखाने में साधारणतया 250 या अधिक श्रमिक नियुक्त हों वहाँ परिभोगी द्वारा श्रमिकों के उपयोग के लिए जलपानगृह का प्रबन्ध किया जाएगा और उसकी उचित देखरेख की जाएगी।
2. विभिन्न बातों का निर्धारण – नियम बनाते समय राज्य सरकार निम्नलिखित बातों का निर्धारण करेगी –
(i) वह तिथि जब तक जलपानगृह का प्रबन्ध किया जाएगा,
(ii) जलपानगृह की बनावट, स्थान, फर्नीचर तथा अन्य उपकरणों के स्तर (standards),
(iii) जलपानगृह में परोसी जाने वाली खाद्य-सामग्री तथा उसकी दरें,
(iv) जलपानगृह के लिए प्रबन्ध समिति का गठन तथा जलपानगृह के प्रबन्ध में श्रमिकों का प्रतिनिधित्व,
(v) नियोक्ता द्वारा जलपानगृह के संचालन व्यय वहन किए जाएंगे और खाद्य सामग्री की कीमत निर्धारित करते समय इन्हें ध्यान में नहीं रखा जाएगा।
(vi) परोसी जाने वाली सामग्री और उसकी दरों के निर्धारण सम्बन्धी अधिकार मुख्य निरीक्षक को सौंपना।
आश्रयस्थल, विश्रामकक्ष तथा भोजन कक्ष की व्यवस्था
(Provision for Shelters, Rest Room and Lunch Room)
इस सम्बन्ध में अग्रलिखित बातों का प्रबन्ध किया जाएगा-
1. पर्याप्त एवं उपयुक्त आश्रय स्थल, विश्राम कक्ष एवं भोजन कक्षों का प्रबन्ध – प्रत्येक कारखाने में, जहाँ साधारणतया 150 से अधिक श्रमिक नियुक्त हों, पर्याप्त एवं उपयुक्त आश्रय स्थलों, विश्रामकक्षों तथा उपयुक्त भोजन कक्ष का प्रबन्ध किया जाएगा और उनकी देखरेख की जाएगी। यहाँ पेयजल की उचित व्यवस्था की जाएगी। यहाँ श्रमिक अपने द्वारा लाया गया भोजन करेंगे।
धारा 46 के अन्तर्गत यदि किसी जलपानगृह की व्यवस्था की गई है तो इसे इन व्यवस्थाओं का ही एक अंग माना जाएगा।
यदि कारखाने में भोजनकक्ष का प्रबन्ध किया गया है तो कोई भी श्रमिक अपना भोजन कार्यकक्ष (Work room) में नहीं करेगा।
2. पर्याप्त प्रकाश एवं वायु संचालन – उक्त आश्रय स्थलों, विश्राम कक्षों एवं भोजन कक्ष पर्याप्त रूप से प्रकाश युक्त एवं वायु संचालित होंगे। इन्हें स्वच्छ और ठण्डी स्थिति में रखा जाएगा।
3. स्तर का निर्धारण एवं छूट – उक्त आश्रय स्थलों, विश्राम कक्षों तथा भोजन कक्ष की बनावट, स्थान, फर्नीचर तथा अन्य सम्बन्धित सामग्री का स्तर राज्य सरकार निर्धारित कर सकती है।
शिशुगृह या शिशुसदन की व्यवस्था
(Provision for Creches)
साधारणत: जिस कारखाने में 30 या अधिक स्त्री श्रमिक नियुक्त हों तो वहाँ उनके 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के उपयोग हेतु एक उपयुक्त कक्ष या कक्षों की व्यवस्था की जाएगी। ये शिशुगृह हवादार तथा प्रकाशयुक्त होंगे और इन्हें साफ व स्वास्थ्यप्रद दशा में रखा जाएगा। शिशुगृह की देखरेख ऐसी महिलाएँ करेंगी जो बच्चों व शिशुओं के पालन-पोषण में प्रशिक्षित एवं दक्ष हों। शिशुसदन के सम्बन्ध में राज्य सरकार निम्नलिखित नियम बना सकती है –
(i) शिशुसदन की स्थिति, बनावट, स्थान, फर्नीचर, अन्य उपकरण के स्तर,
(ii) शिशु सदन के प्रबन्ध में स्त्री श्रमिकों के बच्चों की देखभाल के लिए अतिरिक्त सुविधाएँ प्रदान करने के सम्बन्ध में जिनमें बच्चों के नहाने-धोने व कपड़े बदलने की नुविधाएँ भी शामिल हैं,
(ii) बच्चों के लिए कारखाने में नि:शुल्क दूध या नाश्ते अथवा दोनों का प्रबन्ध करने सम्बन्ध में तथा _
(iv) कारखानों में आवश्यक मध्यान्तरों पर माताओं को अपने बच्चों को दूध पिलाने की विधाएँ प्रदान करने के सन्दर्भ में।
प्रश्न 3 – किन दशाओं में एक श्रमिक को व्यक्तिगत आघात के लिए नियो क्षतिपूर्ति करने अथवा क्षतिपूर्ति न करने के लिए उत्तरदायी है?
Under which conditions an employer liable or not liable to pay compensation to a workman for personal injury ?
उत्तर – व्यक्तिगत दुर्घटना की दशा में
नियोक्ता द्वारा क्षतिपूर्ति
(Liability of Employer for Personal Injury of Employee)
श्रमिक को क्षतिपूर्ति करने के सम्बन्ध में श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम की धारा 3 में से उल्लेख किया गया है। क्षतिपूर्ण व्यक्तिगत आघात के लिए नियोक्ता द्वारा श्रमिक को देय है। व्यक्तिगत आघात का अभिप्राय केवल शारीरिक आघात से ही नहीं है वरन् ऐसे मानसिक तनाव की से भी है जिसके कारण वह निरुत्साहित हो जाता है। धारा 3 के अनुसार, यदि व्यक्तिगत आघात आकस्मिक रूप से या कार्य के फलस्वरूप या कार्यकाल’ में पहुँचा है तो वह इस अधिनियम | के विशिष्ट प्रावधानों के अनुसार क्षतिपूर्ति के लिए अधिकारी होगा। इसी धारा के अन्तर्गत
शारीरिक आघात के अन्तर्गत अन्य व्यावसायिक बीमारियाँ (Occupational diseases) भी प्रक सम्मिलित हैं, जिनके लिए नियोक्ता श्रमिक की क्षतिपूर्ति करेगा। इस प्रावधान की उपधारा ल 3 (2) के अनुसार, यह निर्धारित करने के लिए कि वह बीमारी उसे उसी नियोक्ता के यहाँ काम मात करने के कारण लगी है, यह आवश्यक होगा कि वह श्रमिक एक से अधिक नियोक्ताओं के यहाँ निरन्तर 6 माह तक कार्य करता रहा हो, और यदि वह श्रमिक एक से अधिक नियोक्ताओं के यहाँ कार्य करता रहा हो, तो ऐसी निरन्तर अवधि जिसे कि केन्द्रीय सरकार निर्धारित कर दे, तक कार्य करे। इस धारा की पूर्ति के लिए आवश्यकता इस तथ्य के निर्धारण की है कि आघात आकस्मिक था अथवा कार्य के फलस्वरूप या कार्यकाल में ही हुआ था या नहीं क्योंकि वह क्षतिपूर्ति का अधिकारी आकस्मिक दुर्घटना के घटित होने पर, कार्य के फलस्वरूप या कार्यकाल में दुर्घटना होने पर ही होगा अन्यथा नहीं। जब तक कि बिल्कुल विपरीत सिद्ध न हाचो जाए दुर्घटना ‘कार्य के फलस्वरूप’ या कार्यकाल में ही समझी जाएगी। इस धारा के अन्तर्गतक. क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए श्रमिक की जानबूझकर लापरवाही या सामान्य लापरवाही, काय की जोखिम आदि वाक्य निराधार हैं और श्रमिक को सभी दशाओं में क्षतिपर्ति दी जाएगा। निम्नलिखित दशाओं में नियोक्ता श्रमिक की व्यक्तिगत क्षति के लिए उत्तरदायी होगा-
1. दुर्घटना कार्य-स्थल पर होना (Accident at Place of Work) निया श्रमिक की व्यक्तिगत क्षतिपूर्ति के लिए उसी दशा में उत्तरदायी होगा, जबकि दुध कार्य-स्थल पर हुई हो। दुर्घटना का आशय ऐसी घटना से है जिस पर नियोक्ता का अधिकार न हो।
2. दुर्घटना श्रमिक की कार्य की अवधि में हो (Accident during the Work)नियोक्ता श्रमिक की दुर्घटना की पूर्ति के लिए उत्तरदायी उसी दशा में होगा, जबकि वह रोजगार के दौरान हुई हो।
3. श्रमिकों की वास्तविक क्षति (Actual Compensation to Worker) नियोक्ता क्षतिपूर्ति के लिए उसी दशा में उत्तरदायी होगा, जबकि दुर्घटना के फलस्वरूप श्रमिक वास्तविक रूप से क्षतिग्रस्त हुआ हो।
4. मासिक वेतन की सीमा (Limit of Monthly Salary)-नियोक्ता क्षतिपूर्ति के | लिए उसी दशा में उत्तरदायी होगा, जबकि श्रमिक का मासिक वेतन रू. 1,000 से अधिक न हो। वर्ष 1976 के संशोधन से पूर्व यह राशि रू. 500 तक थी।
5. अयोग्यता की अवधि (Period of Disability)– श्रमिक की व्यक्तिगत क्षति के | लिए नियोक्ता को उसी दशा में उत्तरदायी ठहराया जाएगा, जबकि क्षतिग्रस्तता का प्रभाव 3 दिन से अधिक के लिए पड़ा हो।
6. व्यावसायिक रोग की दशा में (In Case of Business Sickness)–श्रमिक की क्षतिपूर्ति के लिए नियोक्ता उसी दशा में उत्तरदायी माना जाएगा, जबकि नियोक्ता व्यावसायिक रोग से श्रमिक को हानि हुई हो।
साधारणत: श्रमिक को उसके व्यक्तिगत आघात के लिए क्षतिपूर्ति की जाती है—यदि वह आघात उसे आकस्मिक हुआ हो अथवा कार्य के फलस्वरूप अथवा कार्यकाल में पहुँचा हो। इस प्रकार नियोक्ता का उत्तरदायित्व अपार हो जाता है। नियोक्ता के उत्तरदायित्व को सीमित करने के लिए इस धारा के कुछ अपवाद भी हैं, अर्थात् निम्न दशाओं में श्रमिक के व्यक्तिगत आघात की क्षतिपूर्ति करने के लिए नियोक्ता को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकेगा
1. तीन दिन से कम के लिए असमर्थता (For Injury Resulting in Disability For Less Than Three Days)–धारा 3 (1a) के अनुसार, यदि कोई स्थायी, अस्थायी, आंशिक असमर्थता या पूर्ण असमर्थता तीन दिन से अधिक की नहीं है तो उसे कोई क्षतिपूर्ति नहीं दी जाएगी क्योंकि तीन दिन की अवधि बहुत तुच्छ (trival) अवधि मानी गई है। अत: इस प्रकार के छोटे आघातों के लिए किसी क्षतिपूर्ति का प्रावधान नहीं है।
2. जब श्रमिक मद्यपान किए हो या अन्य नशे के प्रभाव में हो (Workman being _under the Influence of Drink or Drug)धारा 3 के अनुसार, यदि श्रमिक को कोई चोट (मृत्यु नहीं) कार्य के मध्य उस समय लगी हो जबकि वह मद्यपान किए हो अथवा अन्य – किसी नशे में हो।
3. जब श्रमिक स्वतः इच्छा से आज्ञा उल्लंघन का दोषी ठहराया गया हो (Wilful Disobedience of the Workman)-धारा 3 के अनुसार, ही जब श्रमिक विच्छा से आज्ञा-उल्लंघन (Disobedience) करता है या सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों का पालन नहीं करता तो वह आघात (मृत्यु) के लिए क्षतिपूर्ति का अधिकारी नहीं होता है।
4. सुरक्षा साधनों को स्वेच्छापूर्वक हटाना अथवा उनकी परवाह न करना (Wire Removal of Disregard of Safety Guards)-सुरक्षा साधना (Safety appliances or guards) को स्वेच्छापूर्वक हटाना या उनकी परवाह न करना निर्माणी अधिनियम 1948 के अनुसार दण्डनीय है। अत: धारा 3 के अनुसार ही यदि कोई श्रमिक इस तथ्य के लिए टोली ठहराया गया हो तो वह आघात (मृत्यु नहीं) के लिए क्षतिपूर्ति का अधिकारी नहीं रहता है।
5. यदि चोट या मृत्यु कार्य के फलस्वरूप न हुई हो (Injury or Death not coming out of and in the course of employment)-धारा 3 (4) के अनुसार, यदि श्रमिक को कार्य के फलस्वरूप चोट नहीं लगी है या मृत्यु नहीं हुई है तो श्रमिक की क्षतिपूर्ति के लिए नियोक्ता, उत्तरदायी नहीं है।
6. यदि श्रमिक ने हानि की पूर्ति के लिए नियोक्ता के विरुद्ध न्यायालय में अभियोग चला दिया हो (When Worker has instituted a suit for damages in a Civil Court)–श्रमिक को हानिपूर्ति (damages) या क्षतिपूर्ति (compensation) का अधिकार नहीं रहता।
7. श्रमिक के रू. 1000 से अधिक वेतन होने पर—यदि श्रमिक का वेतन रू. 1000 से अधिक होता है तो ऐसे श्रमिक की क्षतिपूर्ति नहीं करायी जा सकती।
8.6 माह से कम नियोजन अवधि पर – यदि कर्मचारी ने 6 माह से कम कार्य किया हो और उसे कोई व्यापार जनित रोग लग जाए तो वह क्षतिपूर्ति के लिए अधिकारी नहीं होगा।
9. व्यापार जनित रोग नियोजन से सम्बन्धित न होने पर यदि किसी श्रमिक को व्यावसायिक रोग होता है जो न तो कार्य नियोजन के कारण हुआ हो न नियोजन के दौरान तो ऐसी क्षति के लिए नियोक्ता दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
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