B.Com 3rd Year Factory Act 1948 – Economic Laws Hindi Notes

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कारखाने में कार्यरत श्रमिकों एवं कर्मचारियों की अति दयनीय स्थिति को देखते हऐ बोम्बे कॉल डिपार्टमेन्ट के मुख्य निरीक्षक मेजर मर ने 1872-73 में अपनी रिपोर्ट में सर्वप्रथम श्रमिकों के शोषण उनका कठिनाइयों एवं विभिन्न समस्याओं पर ध्यान आकृष्ट किया और उनकी दशा में आवश्यक सधार करने के लिए प्रयास के रूप में वांछित कानून बनाने का प्रश्न उठाया। इस रिपोर्ट एवं जनप्रतिनिधियों के द्वारा श्रमिकों की दयनीय स्थिति पर अत्यधिक जागरूक होने पर यह परिणाम सामने आया कि वर्ष 1881 में प्रथम कारखाना अधिनियम बना। इस अधिनियम में समय-समय पर वांछित संशोधन करते हुए (i) संशोधित अधिनियम, 1891; (ii) संशोधित कारखाना अधिनियम, 1911; एवं (iii) संशोधित कारखाना अधिनियम, 1922 पारित किया गया। परन्तु इन संशोधनों के उपरान्त भी यह अधिनियम समय की आवश्यकता के अनुरूप सिद्ध न हो सका। अतः पराने अधिनियम को समाप्त करके एक नया कारखाना अधिनियम, 1934 पारित किया गया जो शाही श्रम आयोग (Royal Commission on Labour) की सिफारिशों के अनुरूप था। समय के परिवर्तन के साथ-साथ यह अधिनियम भी अनुपयुक्त सिद्ध होने लगा एवं 28 अगस्त. 1948 को एक नया कारखाना अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम को 23 सितम्बर, 1948 को तत्कालीन गवर्नर जनरल की स्वीकृति मिली तथा 1 अप्रैल, 1949 से इसे लागू किया गया। इस अधिनियम में भी तीन बार महत्वपूर्ण परिवर्तन किये जा चुके हैं-प्रथम सन् 1956 में, द्वितीय सन् 1976 में तथा तृतीय सन् 1987 में।

कारखाना अधिनियम के उद्देश्य तथा क्षेत्र

(Objectives and Scope of the Factory Act) 

यह अधिनियम जम्मू एवं कश्मीर सहित सम्पूर्ण भारत में लागू होता है तथा अधिनियम की धारा 2(m) के अन्तर्गत व्यक्त ‘कारखाना’ (factory) की परिभाषा में आने वाले सभी औद्योगिक संस्थानों तथा उत्पादकीय प्रक्रियाओं का समावेश करता है। जब तक अन्यथा व्यवस्था की जाये यह केन्द्रीय/राज्य सरकारों से सम्बन्धित कारखानों पर भी लागू होगा।

[धारा 116] 

कारखाना अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य श्रमिकों की कार्यदशाओं, स्वास्थ्य सम्बन्धी, सुरक्षा सम्बन्धी, अवकाश, कार्यशील घण्टे आदि का नियमन करना तथा स्त्री और बाल श्रमिकों की सुरक्षा करना है।

कारखाना अधिनियम, 1948 के मुख्य प्रावधान

(Main Provisions of Factories Act, 1948) 

इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं- I संक्षिप्त नाम, विस्तार एवं प्रारम्भ (धारा 1)-वर्तमान कारखाना अधिनियम, 1948 कहलाता है। इस अधिनियम में कुल 120 धारायें हैं। यह अधिनियम वर्तमान में सम्पूर्ण भारत में लागू होता है। 1 अप्रैल, 1949 को यह अधिनियम लागू किया गया। इस प्रकार यह अधिनियम आज सम्पूर्ण भारत में उन सभी कारखानों में लागू होता है जिन औद्योगिक संस्थानों में विद्युत शक्ति का उपयोग होने पर 10 या अधिक श्रमिक कार्य करते हैं अथवा विद्युत शक्ति का उपयोग न होने की दशा में 20 या अधिक श्रमिक कार्यरत हैं। II व्याख्या (धारा 2) कारखाना अधिनियम की धारा 2 के अन्तर्गत कारखानों से सम्बन्धित विभिन्न शब्दावलियों को निम्नांकित प्रकार परिभाषित किया गया है।

  1. प्रौढ़ अथवा वयस्क (Adult) ‘प्रौढ़ अथवा वयस्क’ से आशय उस व्यक्ति से है जो अपनी आय के 18 वर्ष पूरा कर चुका हो। यहाँ व्यक्ति शब्द से आशय स्त्री तथा पुरुष दोनों से ही है। 

धारा 2(a)]

  1. किशोर (Adolescent)-किशोर से आशय ऐसे व्यक्ति से है जिसने अपनी आय के 15 वर्ष पूरे कर लिए हों किन्तु 18 वर्ष पूरे न किये हों। 

[धारा 2(b)] 

  1. कलैण्डर वर्ष (Calendar Year) कलैण्डर वर्ष से आशय 12 माह की उस अवधि से है जो

किसी भी वर्ष 1 जनवरी से प्रारम्भ होकर 31 दिसम्बर को समाप्त होती है।

[धारा 2(bb)]

  1. बालक (Child)—जिस व्यक्ति ने अपनी उम्र के 15 वर्ष पूरे नहीं किये हैं, वह बालक है। शब्दों में, 15 वर्ष से कम उम्र का व्यक्ति बालक कहलाता है।

[धारा 2(c)] 

  1. सक्षम व्यक्ति (Competent Person)—संशोधित कारखाना अधिनियम, 1987 के अनुसार व्यक्ति से आशय किसी भी ऐसे व्यक्ति या संस्था से है जिसे मुख्य निरीक्षक द्वारा अधिनियम के धान के अन्तर्गत किसी कारखाने में की जाने वाली जाँचों, परीक्षणों तथा निरीक्षणों के लिए मान्यता प्रदान कर दी है। सक्षम व्यक्ति को मान्यता देने से पूर्व निम्नलिखित बातें ध्यान में रखी जायेंगी–

(i) उस व्यक्ति की योग्यतायें एवं अनुभव तथा उसके पास उपलब्ध सुविधायें; अथवा (ii) उस संस्था में नियुक्त व्यक्तियों की योग्यतायें एवं अनुभव तथा उसमें उपलब्ध सुविधायें। यह उल्लेखनीय है कि किसी भी कारखाने की ऐसी, जाँचों, परीक्षणों तथा निरीक्षणों के लिए एक से अधिक व्यक्तियों या संस्थाओं को सक्षम व्यक्ति के रूप में मान्यता दी जा सकती है। 

[धारा 2C(a)]

  1. खतरनाक प्रक्रिया (Hazardous Process)-खतरनाक प्रक्रिया से तात्पर्य प्रथम अनुसूची के किसी उद्योग से सम्बन्धित ऐसी प्रक्रिया या क्रिया से है जिस पर यदि विशेष ध्यान न दिया जाये तो उसमें प्रयक्त कच्चा माल अथवा उसके मध्यवर्ती या तैयार माल, गौण-उत्पादों (By products), व्यर्थ या अपशिष्ट (Waste) पदार्थों से निम्नलिखित प्रभाव होते हैं

(i) उसमें संलग्न या सम्बन्धित व्यक्तियों के स्वास्थ्य को गम्भीर क्षति पहुँच सकती हो; अथवा  (ii) सामान्य वातावरण दूषित हो सकता हो। परन्तु यदि राज्य सरकार चाहे तो राजकीय गजट में विज्ञप्ति प्रसारित करके प्रथम अनुसूची में किसी भी उद्योग को जोड़कर, हटाकर या हेर-फेर करके संशोधन कर सकती है। 

[धारा 2C(b)]

  1. नवयुवक (Young Person)-नवयुवक वह है जो या तो बालक है या किशोर है। दूसरे शब्दों में 18 वर्ष से कम उम्र का कोई भी व्यक्ति नवयुवक है।

[धारा 2(d)] 

  1. दिन (Day) मध्यरात्रि से प्रारम्भ होने वाली 24 घण्टों की अवधि को दिन कहते हैं। 

[धारा 2(e)]

  1. सप्ताह (Week) सप्ताह से आशय सात दिनों की उस अवधि से है जो शनिवार की मध्य रात्रि से प्रारम्भ होती है अथवा कारखाना निरीक्षक द्वारा लिखित में अनुमोदित किसी भी दिन की मध्य रात्रि से प्रारम्भ होती है।

[धारा 2(f)] 

  1. शक्ति (Power) शक्ति से आशय विद्युत शक्ति या ऊर्जा (Energy) या अन्य किसी प्रकार की शक्ति या ऊर्जा से है जो यन्त्रों की सहायता से सम्प्रेषित (Transmit) की जाती है जिसका उत्पादन मनुष्यों या पशु साधनों से नहीं किया जाता है।

[धारा 2(g)] 

  1. प्रमुख चालक (Prime Mover)—प्रमुख चालक से तात्पर्य किसी ऐसे इन्जन, मोटर या अन्य उपकरण से है जो शक्ति का उत्पादन करता है या अन्य किसी प्रकार से शक्ति उपलब्ध करता है।

[धारा 2(h)] 

  1. सम्प्रेषण या संचारण यन्त्र (Transmission Machinery)-सम्प्रेषण या संचारण यन्त्र से तात्पर्य उन यन्त्रों से है जो प्रमुख चालक की गति तथा अन्य यन्त्रों को संचारित करते हैं अथवा उन यन्त्रों से है जिनके माध्यम से किसी यन्त्र या उपकरण द्वारा शक्ति प्राप्त की जाती है। गति संचारित करने वाले तथा प्राप्त करने वाले यन्त्रों में निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है

(i) धुरा (Shaft); (ii) पहिया (Wheel); (iii) ढोल (Drum); (iv) चरखी (Pully); (v) चरखी यन्त्र (System of Pulleys); (vi) संयोजक क्लच (Coupling clutch); (vii) यन्त्रों के पट्टे (Driving belt); तथा (viii) अन्य कोई उपकरण तथा साधन जो गति को संचारित करने में सहायक है। [धारा 2(1)]

  1. यन्त्र (Machinery) यन्त्र का अभिप्राय मुख्य चालक (Prime mover), प्रेषण यन्त्र (Transmission Machinery) अथवा उन सब यन्त्रों से है जिनके द्वारा शक्ति उत्पन्न की जाती है, स्थानान्तरित की जाती है तथा प्रेषित की जाती है। इस प्रकार इस अधिनियम के अन्तर्गत यन्त्र से आशय एस यन्त्रों से है जो मानवीय एवं पश-शक्ति से चालित न हों, अपितु अन्य शक्ति (जैसे—विद्युत शक्ति, पाना, कोयले, अणु अथवा भाप की शक्ति) से चालित हों। वस्तुतः हाथ से चलाये जाने वाले यन्त्र कारखाना अधिनियम के अन्तर्गत नहीं आते।

[धारा 2(j)] 

  1. निर्माण प्रक्रिया (Manufacturing Process)-निर्माण प्रक्रिया का अभिप्राय निम्नलिखित उद्देश्य के लिए की गई प्रक्रिया से है-

(i) किसी वस्तु या पदार्थ को प्रयक्त करने, बेचने, परिवहन करने, सुपुर्दगी अथवा व्यवस्था करने दश्य स बनाना, परिवर्तित करना (Transforming), मरम्मत करना, सजाना (Ornamenting), पूर्ण करना या फिनिश (Finichin) करना. पैकिंग (Packing) करना, तेल देना, धाना, साफ करना टुकड़-टुकड़े करना, ढहाना (Demolishing) अथवा अन्य प्रकार से उपर्युक्त उद्देश्य हेतु काम में लाना। (ii) तेल, पानी या गन्दे पानी को निकालना या पम्प करना। (iii) शक्ति उत्पन्न करना (Generating), परिवर्तित करना (Transformation) अथवा प्रेषित करना (Transmitting)। (iv) मुद्रण हेतु टाइप कम्पोज करना, लैटर प्रैस द्वारा मुद्रण करना, पत्थर पर लिखकर छपाई (Lithography) करना, फोटो के चित्र को धातु की चादर पर उतारकर खोदना (Photogravuring) या इसी प्रकार की अन्य क्रिया करना अथवा पुस्तक की जिल्द बाँधना। (v) जहाजों अथवा नावों (Ships and Vessels) का निर्माण करना, पुनःनिर्माण करना, मरम्मत करना, फिर से सुधारना (Refitting), फिनिश (Finishing) करना, विघटित (Breaking up) करना।  (vi) सुरक्षित रखने अथवा संग्रह के लिए वस्तु को शीत-गृह (Cold Storage) में रखना।

[धारा 2(k)] 

इतनी अनिश्चितता के बावजूद भी निर्माण प्रक्रिया की एक आधारभूत बात यह है कि उससे कुछ परिवर्तन या रूपान्तरण (Transformation) होना चाहिए। चाहे किसी वस्तु पर कितना ही श्रम लगाया गया हो और वह भी मशीनों के माध्यम से लगाया गया हो, तो भी वह निर्माण प्रक्रिया नहीं मानी जाएगी जब तक कि उस वस्तु में कोई परिवर्तन नहीं हुआ हो। दूसरे शब्दों में, जब तक उस वस्तु के विद्यमान स्वरूप में कोई ऐसा परिवर्तन नहीं हुआ हो जिससे कि व्यावसायिक जगत में उसे भिन्न वस्तु के रूप में जाना जा सके तब तक उस क्रिया को निर्माण प्रक्रिया नहीं कहा जा सकता है। न्यायाधीशों के निर्णयों के अनुसार घोषित निर्माण प्रक्रियायें-विभिन्न मामलों पर विचार करते समय न्यायाधीशों ने निम्नलिखित प्रक्रियाओं को निर्माण प्रक्रिया घोषित किया है (i) कपास ओटना और दबाना।  (ii) बीड़ी बनाना।  (iii) नमक के कारखानों में समुद्री पानी से नमक बनाना।  (iv) लॉण्ड्री में कपड़े धोने की प्रक्रिया  (v) गैस के साथ बीयर मिलाना और बोतलों में भरना।  (vi) मिठाई के पैकेट तैयार करना।  (vii) सुपारी काटना तथा सुखाना।  (viii) मूंगफली छीलना।। (ix) धूप में सूखी तम्बाकू की पत्तियों को एकत्र करना, प्रसंस्करण करना, भण्डारन करना तथा उनका परिवहन करना। (x) तम्बाकू के पत्तों को गीला कर्के निचोड़ने तथा सुखाने की क्रिया। (xi) विक्रय हेतु दूध का पैस्चुराईजेसन।  (xii) सूखा दूध निर्मित करना।  (xiii) चूड़ियों में रंग भरने के लिए नक्कासी करना। (xiv) विभिन्न स्त्रोतों से घी इक्ट्ठा करना तथा फिर ‘हिटिंग’ करके तथा उनको टीनों में उड़ेल कर सील करना। (xv) एक रैस्टोरेन्ट की रसोई में खाद्य पदार्थों तथा अन्य खाद्यों को बनाना।  (xvi) एक प्रिटिंग प्रैस में composing का काम।  (xvii) Coffee seeds का outer cover हटाना।  (xviii) पानी खींचने या निकालने की क्रिया।  (xix) मोटर गाड़ियों की धुलाई, सफाई तथा तेल देना। (xx) फिल्म स्टूडियो जहाँ कच्ची फिल्मों से पक्की फिल्में बनाई जाती हैं, निर्माण प्रक्रिया के अन्तर्गत आते हैं। अपवाद-न्यायालयों ने निम्नलिखित क्रियाओं को निर्माण प्रक्रिया नहीं माना है- (i) वस्तुओं की छंटाई करना।  (ii) अनाज बीनना।  (iii) फिल्म का प्रदर्शन करना। (iv) मनुष्यों द्वारा घास की गाँठे बनाना।  (v) केवल पैकिंग मात्र का कार्य करना। (vi) शीत भण्डार में रखने से आ जाने वाली नमी दूर करने के लिए वस्तुओं को धूप में सुखाने की प्रक्रिया। विशेष टिप्पणी-यहाँ पर ध्यान रखने योग्य बात है कि निर्माण प्रक्रिया विक्रय तथा लाभ कमाने उदेश्य से की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए, घरेलू उपयोग तथा शौक के लिए की गई क्रिया निर्माण किया नहीं हो सकती, क्योंकि इसका उद्देश्य विक्रय द्वारा लाभोपार्जन करना नहीं है।

  1. श्रमिक अथवा श्रमजीवी (Worker) श्रमिक’ से आशय ऐसे व्यक्ति से है जो प्रत्यक्ष या किसी एजेन्सी (जिसमें ठेकेदार भी सम्मिलित है) के माध्यम से नियोक्ता की जानकारी से या बिना जानकारी के मजदूरी पर या बिना मजदूरी पर किसी निर्माण प्रक्रिया या निर्माण प्रक्रिया के लिए कार्य में आने वाले यन्त्र या भवन के किसी भाग की सफाई के लिए या निर्माण प्रक्रिया से सम्बन्धित या उसके लिए किये जाने वाले किसी कार्य के लिए नियुक्त किया गया हो। किन्तु इसमें भारतीय संघ की सशस्त्र सेनाओं का सदस्य सम्मिलित नहीं है।

[धारा 2(L)]] 

न्यायालयों के विभिन्न निर्णयों के आधार पर श्रमिक के कुछ उदाहरण न्यायालयों के विभिन्न निर्णयों में निम्नलिखित को ‘श्रमिक’ ठहराया गया – (i) नौसिखिये (apprentices) चाहे उनको मजदूरी दी जाये या न दी जाये, क्योंकि ‘श्रमिक’ का अर्थ है ऐसा कोई व्यक्ति जो किसी उत्पादकीय प्रक्रिया में मजदूरी के लिए या बिना मजदूरी के प्रत्यक्षतः या किसी एजेन्सी के माध्यम से रोजगार पर हो। (ii) विक्रय हेतु खाद्य पदार्थों की रचना हेतु रसोई में काम पर लगे व्यक्ति (iii) एक वॉचमैन, यदि उसके द्वारा निष्पादित कर्त्तव्य सिद्ध करे कि वह उत्पादकीय प्रक्रिया के विषय से अनुप्रासंगिक या सम्बद्ध किसी प्रकार के कार्य में लगा है। (iv) कार्यानुसार मजदूरी प्रणाली के अनुसार कार्य करने वाले व्यक्ति भी श्रमिक हैं, यदि वे नियोक्ता के नियन्त्रण में हों तथा कार्य करना एवं न करना उनकी इच्छा पर निर्भर न हो। (v) एक कलाकार, यदि उसको उत्पादकीय प्रक्रिया से जुड़े व्यक्ति के लिए पारिश्रमिक मिलता है।  (vi) टाईम कीपर्स। (vii) एक उत्पादकीय प्रक्रिया में कारखाना परिधि में लगे श्रमिकों को मौलिक तथा आवश्यक सुविधाओं की आपूर्ति कर रहे कैन्टीन श्रमिक। (viii) एक व्यक्ति जो कारखाने की परिधि में आधारभूत कच्चे माल की किस्म तथा नाप-तौल का निरीक्षण एवं नियन्त्रण करने या कच्चे माल की आपूर्ति करने, उसके बिलों को पास करने, उसके अभिलेख रखने के लिए नियुक्त है, श्रमिक माना जाता है। अपवाद (Exceptions) निम्नलिखित को श्रमिक नहीं माना गया है- (1) फर्म द्वारा चलाये जा रहे कारखाने में लगे फर्म का एक साझेदार।  (ii) एक एकल विक्रय एजेन्सी या कारखाने में एक कमरे में रह रहे उसके कर्मचारी। (iii) एक बीड़ी ठेकेदार या उसके द्वारा रखे गये कर्मचारी जिनको कार्यानुसार मजदूरी दी जाती है तथा जो काम को घर ले जाते हैं। (iv) कारखाना भवनों में एक स्वतन्त्र ठेकेदार द्वारा रखे गये कुली।  (v) मोटर परिवहन संस्था के कर्मचारी। (vi) ऐसे कर्मचारी जो निर्माणी प्रक्रिया से सम्बन्धित कोई कार्य नहीं करते हैं जैसे निरीक्षक, डाक्टर, नर्स, प्राध्यापक एवं कार्यालय में कार्य करने वाला क्लर्क। (vii) एक व्यक्ति जो मेज साफ करता है या प्लेटे धोता है, श्रमिक नहीं है। (viii) यदि किसी परिवार के सदस्य मिलकर निर्माण प्रक्रिया करते हैं तो उन्हें श्रमिक की श्रेणी में सम्मिलित नहीं किया जा सकता है। (ix) किसी कारखाने की निर्माण प्रक्रिया समाप्त हो जाने के पश्चात् कार्य वाला कर्मचारी श्रमिक नहीं है।  (x) भारतीय सेना की टुकड़ी के सदस्य श्रमिक नहीं हैं।  (xi) बुद्धिजीवी जो किसी निर्माण प्रक्रिया के अन्तर्गत कार्य करने के लिए मजदूरी प्राप्त नहीं करते हैं, श्रमिक नहीं हैं। (xii) विक्रेता श्रमिक नहीं है।  (xiii) होटल, रेस्टोरेन्ट, केण्टीन में कार्यरत कर्मचारी श्रमिक नहीं है।

  1. ‘कारखाना'(Factroy)-कारखाना से अभिप्राय किसी भवन से है जिसमें उसकी परिधि भी शामिल है तथा

(i) जहाँ दस या दस से अधिक श्रमिक काम कर रहे हों अथवा पिछले 12 माह में किसी भी दिन कर रहे थे तथा उक्त भवन में, या उसके किसी भी भाग में शक्ति की सहायता से निर्माण प्रक्रिया की जा रही हो या साधारणतया की जाती हो, अथवा (ii) जहाँ बीस या बीस के अधिक श्रमिक कार्य कर रहे हों या पिछले 12 माह में किसी भी दिन काम कर रहे थे तथा उक्त भवन या उसके किसी भी भाग में निर्माण प्रक्रिया बिना शक्ति की सहायता से की जा रही हो अथवा साधारणतया की जाती है।

[धारा 2(m)] 

स्पष्टीकरण 1: दस या बीस श्रमिक की गणना करते समय “ठेके पर रखे गये” श्रमिक भी शामिल करने होंगे तथा दिन में भिन्न-भिन्न रिले या समूह में काम करने वाले श्रमिक भी शामिल करने होंगे। स्पष्टीकरण 2: ‘कारखाने’ की परिभाषा में खदानें तथा रेलवे रनिंग शैड (Railway running shed) सम्मिलित नहीं है, क्योंकि उनके लिए पृथक् अधिनियम है। इसी प्रकार भारतीय संघ की चलित इकाई, होटल, जलपान-गृह अथवा भोजन-गृह को कारखाना नहीं माना गया है। सन् 1987 में किये गये संशोधनों के अनुसार Electronic Data Processing Unit अथवा Computer Unit भी कारखाना नहीं है यदि उसके अहाते अथवा परिधि में निर्माण प्रक्रिया नहीं की जाती है। सरल शब्दों में, ‘कारखाना’ शब्द से आशय, ऐसे किसी भी स्थान से है जहाँ 10 से अधिक श्रमिक शक्ति की सहायता से निर्माण प्रक्रिया करते हों या 20 से अधिक श्रमिक बिना शक्ति की सहायता से निर्माण प्रक्रिया करते हों। विभिन्न मामलों के निर्णयों के आधार पर रेलवे वर्कशाप, रूई से बिनौले निकालने तथा दबाने की प्रक्रिया वाले विभाग, एक भवन में 20 से अधिक व्यक्तियों द्वारा काली मिर्च छाँटने का कार्य, नगर निगम का विद्यत विभाग, नगर निगम द्वारा पानी की पूर्ति करने वाला विभाग, छापेखाने द्वारा छापने के उद्देश्य से किया जाने वाला कम्पोजिंग कार्य एवं प्रयोग में लाने के उद्देश्य से तम्बाकू के पत्ते सुखाने और छाँटने के कार्य को कारखाना माना गया है, किन्तु एक लॉउन्ड्री व्यवसायी की दुकान, एक विद्यालय में शिक्षण के उद्देश्य से कपड़ों का निर्माण, रेलवे का गोदाम, खेत पर आटा पीसने के उद्देश्य से लगा संयन्त्र आदि कारखाना नहीं माना जायेगा।

  1. दखलदार अथवा परिभोगी अथवा अधिष्ठाता (Occupier)—संशोधित कारखाना अधिनियम, 1987 के अनुसार परिभोगी से आशय उस व्यक्ति से है जिसका कारखाने के सभी कार्यों पर अन्तिम नियन्त्रण है। जहाँ कारखाने के मामले संचालकों को सौंप दिये गये हैं, वहाँ उनमें से कोई भी संचालक परिभोगी माना जायेगा।

– [धारा 2(n)] 

  1. प्रबन्ध अभिकर्ता (Managing Agent)-कारखाना अधिनियम में प्रबन्ध अभिकर्ता का वही अर्थ माना जाता है जो कम्पनी अधिनियम, 1956 में परिभाषित किया गया है अर्थात् प्रबन्ध अभिकर्ता वह व्यक्ति, फर्म या सम्मिलित संस्था है जो भारतीय कम्पनी अधिनियम द्वारा लगाये गये प्रतिबन्धों के अधीन किसी कम्पनी के पूर्ण या अधिकांश मामलों के प्रबन्ध करने का अधिकारी हो।

[धारा 2(0)]

  1. निर्धारित (Prescribed) निर्धारित का तात्पर्य राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम के अन्तर्गत बनाये गये नियमों द्वारा निर्धारित बातों से है।

[धारा 2(p)] 

  1. टोली तथा पाली (Relay and Shift)-कारखाने में जब एक ही प्रकार का काम श्रमिकों के दो या दो से अधिक समूहों द्वारा किया जाता है जो दिन में भिन्न-भिन्न अवधि में काम करते हैं, तो ऐसे श्रमिकों के प्रत्येक समूह (Set of group of Workers) को टोली (Relay) तथा प्रत्येक अवधि (Period) को शिफ्ट (Snift) या पाली कहते हैं।

[धारा 2(r)] 

  1. दिन के समय निर्देश (Reference to time of day)-इस अधिनियम का अर्थ भारतीय प्रमाप समय में स्थान-स्थान पर दिन के समय’ का उल्लेख किया गया है। इस दिन के समय’ का अर्थ ‘भारतीय प्रमाप समय’ (Indian Standard Time) के अनुसार माना जायेगा जो कि ग्रीनविच मीन टाइम Senwich Mean Time) से साढ़े पांच घण्टे आगे रहता है। किन्तु ऐसे क्षेत्र में जहाँ पर भारतीय प्रमाप समय का पालन नहीं किया जाता है वहाँ राज्य सरकार निम्नलिखित बातों के सम्बन्ध में नियम बना सकती

(i) उस क्षेत्र को निर्धारित करने के सम्बन्ध में;  (ii) उस क्षेत्र में सामान्य रूप से अपनाये जाने वाले औसत समय को निर्धारित करने के सम्बन्ध में; (iii) उस क्षेत्र में स्थित समस्त अथवा किसी कारखाने में ऐसे समय के पालन की अनुमति देने के सम्बन्ध में।

[धारा 3] 

  1. विभिन्न विभागों को पृथक् कारखाने अथवा दो या दो से अधिक कारखानों को एक करने का अधिकार (Power to declare different departments to be separate wries or two or more factories to be a single factory)-प्रत्येक राज्य सरकार को परिभोगी आवेदन-पत्र प्रस्तुत करने पर विभिन्न विभागों एवं शाखाओं को अलग-अलग कारखाना अथवा दो से अधिक कारखानों को जिनका कि उल्लेख आवेदन-पत्र में किया गया है एक कारखाना घोषित करने का अधिकार है।

[धारा 4 

  1. सार्वजनिक संकट के समय कारखानों को मुक्त करने का अधिकार (Power to exempt Factories during public Emergency)-धारा 5 के अनुसार, सार्वजनिक संकट की किसी भी अवस्था में राज्य सरकार सरकारी राजपत्र में अधिसूचना के द्वारा किसी भी कारखाने या किसी भी वर्ग या श्रेणी के कारखाने को इस अधिनियम के समस्त अथवा कुछ प्रावधानों से (धारा 67 के प्रावधानों को छोड़कर) कट दे सकती है। यह छूट उन प्रावधानों तथा उस अवधि के लिए प्रदान की जायेगी जिसे राज्य सरकार उचित समझेगी। लेकिन इस प्रकार की छूट एक समय में तीन मास से अधिक की अवधि के लिए नहीं प्रदान की जा सकती है।

धारा 67 में वर्णित शर्ते-कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसकी आयु 14 वर्ष से कम है कारखाने में न तो नियुक्त किया जा सकता है और न ही उसे कारखाने में कार्य करने की अनुमति दी जा सकती है। इस धारा के प्रावधान सार्वजनिक संकट के समय में भी यथावत् लागू रहेंगे। सार्वजनिक संकट की घोषणा सरकार द्वारा तभी की जा सकती है जबकि भारत की सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक हो, या देश के किसी भाग में युद्ध, बाहरी हमले, या आन्तरिक उपद्रव उत्पन्न होने के कारण सार्वजनिक संकट उत्पन्न होने की आशंका हो।

कारखानों की स्वीकृति, अनुज्ञापन तथा पंजीयन 

(Approval, Licensing and Registration of Factories) 

इस अधिनियम की धारा 6 से धारा 10 के अन्तर्गत कारखानों की स्वीकृति, अनुज्ञापन तथा पंजीयन सम्बन्धी प्रावधान दिये हुये हैं। प्रत्येक कारखाने को इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार स्वीकृति तथा लाइसेन्स प्राप्त करना पड़ता है तथा उसका पंजीयन भी करवाना पड़ता है।

  1. नियम बनाने का अधिकार-कारखाना अधिनियम की धारा 6 के अनुसार कारखानों की स्वीकृति (approval), अनुज्ञापन (licensing) एवं पंजीयन (Registration) के सम्बन्ध में नियम बनाने का अधिकार राज्य सरकार को है। _
  2. परिभोगी अथवा अधिष्ठाता द्वारा भवन परिसर अधिग्रहण की सूचना-कारखाना (संशोधन) आधिनियम, 1987 के अनुसार, परिभोगी से आशय उस व्यक्ति से है जिसका कारखाने के सभी कार्यों पर आन्तम नियन्त्रण है। कारखाना अधिनियम की धारा 7(1) के अनुसार किसी परिसर को कारखाने के रूप में प्रयोग अथवा अधिकार में लेने के कम-से-कम 15 दिन पूर्व अधिष्ठाता इस बात की लिखित सूचना मुख्य निरीक्षक को अनिवार्य रूप से देगा। प्रत्येक परिभोगी कारखाने में कार्य के दौरान जहाँ तक व्यावहारिक हो, श्रमिकों के स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं कल्याण की व्यवस्था करेगा।
  3. कारखाना निरीक्षकों की नियुक्ति-कारखाना अधिनियम में कारखानों के निरीक्षण के लिए का का नियुक्ति का प्रावधान है। राज्य सरकार गजट में घोषणा करके ऐसे व्यक्तियों को कारखाना क्षक नियुक्त कर सकती है जो निर्धारित योग्यता रखते हों। इन निरीक्षकों का कार्य-क्षेत्र भी राज्य सरकार निश्चित करती है।

[धारा 8(1)] 

उपयुक्त धारा का अध्ययन करने से कारखाना निरीक्षकों की नियुक्ति के सम्बन्ध में निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिन्दु प्रकट होते हैं (i) निरीक्षक नियुक्त करने का अधिकार केवल राज्य सरकार को ही है।  (ii) केवल निर्धारित ॥ वाले व्यक्तियों की ही निरीक्षक के रूप में नियुक्ति की जा सकती है।  (iii) निरीक्षक की नियुक्ति ” सरकारी गजट द्वारा होती है।  (iv) निरीक्षक के कार्यक्षेत्र की सीमा निर्धारित करने का अधिकार नोट-निरीक्षक की नियक्ति सामान्यतया या तो यन्त्रकला (Engineering) या चिकित्सा Medical) स्नातक (Graduate) में से की जाती है। नियुक्ति की अयोग्यता-ऐसे व्यक्ति निरीक्षक अथवा मुख्य निरीक्षक नियुक्त नहीं किये जा सकेंगे जिनका (i) किसी कारखाने में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई हित हो; अथवा  (ii) कारखाने की किसी प्रक्रिया या उसके किसी व्यापार में उसका हित हो अथवा  (iii) कारखाने से सम्बन्धित किसी पेटेन्ट या यन्त्र में कोई हित हो। यदि नियुक्ति के बाद किसी निरीक्षक का किसी कारखाने में हित उत्पन्न हो जाये तो भी उसे पद पर बने रहने का अधिकार नहीं होगा।

[धारा 8(3)]] 

जिला मजिस्ट्रेट का निरीक्षक होना-प्रत्येक जिला मजिस्ट्रेट अपने जिले के लिए कारखाना निरीक्षक होगा। परन्तु इस प्रकार किया गया कार्य एक प्रशासनिक स्थिति में किया गया कार्य माना जायेगा, न्यायिक स्थिति में नहीं।

[धारा 8(4)] 

  1. प्रमाणित करने वाला शल्य चिकित्सक या सर्जन (धारा 10)-कारखाना अधिनियम की धारा 10 के अन्तर्गत प्रमाणित करने वाले शल्य चिकित्सक की नियुक्ति, योग्यताओं तथा कर्तव्यों के सम्बन्ध में प्रावधान दिये गये हैं। कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों की बीमारी, स्वास्थ्य और निर्माण-प्रक्रिया में प्रयुक्त किये जाने वाले पदार्थ आदि का परीक्षण करने तथा प्रमाण-देने के लिए जिन चिकित्सकों की नियुक्ति की जाती है उन्हें ‘प्रमाणित करने वाला शल्य चिकित्सक’ कहते हैं।

प्रमाणिक शल्य चिकित्सक की नियुक्ति 

(Appointment of Certifying Surgeons)—

राज्य सरकार इस अधिनियम के उद्देश्यों के लिए किसी भी योग्यता प्राप्त चिकित्सक को प्रमाणित करने वाला शल्य चिकित्सक (Surgeon) नियुक्त कर सकती है जो किसी विशेष स्थान पर उस क्षेत्र में स्थित कारखानों के लिए अथवा किसी कारखाने या वर्ग या श्रेणी के कारखानों के लिए हो सकती है।

[धारा 10(1)] 

योग्यता प्राप्त चिकित्सक कौन है?-उपर्युक्त धारा में योग्यता प्राप्त चिकित्सक (Qualified Medical Practitioner) से आशय उस व्यक्ति से है जो भारतीय चिकित्सा प्रमाण-पत्र अधिनियम, 1916 (Indian Medical Degree Act, 1916) अथवा भारतीय चिकित्सा कॉउन्सिल अधिनियम, 1933 की अनुसूचियों में उल्लिखित अधिकार द्वारा स्वीकृत की गई योग्यतायें रखता हो। नियुक्ति सम्बन्धी अयोग्यतायें [धारा 10(3)]- ऐसा कोई व्यक्ति प्रमाणित करने वाला शल्य चिकित्सक नियुक्त नहीं किया जा सकता तथा न ही ऐसा कोई व्यक्ति प्रमाणित करने वाले शल्य चिकित्सक के अधिकारों का प्रयोग करने के लिए अधिकृत किया जा सकता है जो कि (i) किसी कारखाने का अधिकारी या अधिष्ठाता है, अथवा  (ii) कारखाने के व्यवसाय में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई हित रखता है। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि यदि कोई व्यक्ति प्रमाणित करने वाले शल्य चिकित्सक के रूप में नियुक्त होने के समय अयोग्य नहीं था, परन्तु नियुक्ति के पश्चात् उपर्युक्त वर्णित अयोग्यता की स्थिति में हो जाता है तो ऐसी दशा में वह अयोग्य होने की तिथि से उक्त पद पर बना नहीं रह सकता।

प्रमाणित करने वाले शल्य-चिकित्सक के कर्त्तव्य [धारा 10(4)]

[Duties of Certifying Surgeons : Section 10(4)] 

कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा 10(4) के अनुसार प्रमाणित करने वाले शल्य चिकित्सक के निम्नलिखित कर्त्तव्य हैं – (1) नवयुवकों के स्वास्थ्य का परीक्षण करना व प्रमाणित करना। (2) कारखानों में खतरनाक (Dangerous) काम या प्रक्रिया करने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य का परीक्षण करना। (3) किसी निर्माण-प्रक्रिया के कारण या काम की दशाओं के कारण यदि कुछ श्रमिक बीमार हा गये हों तो उनकी जाँच करना। (4) निर्माण प्रक्रिया के परिवर्तन के या किसी पदार्थ के अथवा नवीन निर्माण प्रक्रिया के कारण श्रमिकों का स्वास्थ्य यदि खराब हो जाने की सम्भावना हो तो उसकी जाँच करना। (5) अन्य प्रकार की आवश्यक जाँच करना।  IV स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रावधान (Health Related Provisions) श्रमिक के स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए भारत सरकार ने कारखाना अधिनियम की धारा ।। से 20 में श्रमिकों के स्वास्थ्य के सम्बन्ध में निम्नांकित प्रावधान किये हैं। (1) सफाई अथवा स्वच्छता सम्बन्धी प्रावधान (धारा 11)-इसमें कूड़े-करकट को हटाना. फर्श लापन एवं जल निकासी तथा पुताई/रंग-रोगन की व्यवस्था से सम्बन्धित प्रावधान दिये गए की दीवारों, छतों तथा रास्ते एवं सीढ़ियों की दीवार आदि की पुताई यदि वार्निश या पेण्ट योग्य पेण्ट) से हुई है तो प्रति पाँच वर्ष में कम-से-कम एक बार पुन: पेण्ट या वार्निश पर तथा चौदह माह में कम-से-कम एक बार निर्धारित ढंग से सफाई की जाये। परन्तु यदि पताई जाने योग्य पानी पेण्ट (Washable Water Paint) से की गयी है तो कम-से-कम 3 वर्ष की में एक बार पुनः पेण्ट किया जाये तथा प्रत्येक छः माह में एक बार सफाई की जाये। यदि पताई या रंग से की जाती है तो प्रत्येक चौदह महीने में कम-से-कम एक बार सफेदी या रंग से पताई य की जायेगी। इसके अतिरिक्त कारखाने के समस्त दरवाजे खिड़की, फ्रेम, शटर्स तथा लकड़ी एवं के अन्य ऐसे स्थानों को वार्निश या पेण्ट करके रखा जायेगा तथा प्रत्येक पाँच वर्ष बाद पुन: पेण्ट या वार्निश की जायेगी। 

  1. व्यर्थ एवं गन्दे पदार्थों को हटाने की व्यवस्था

(धारा 12) 

  1. हवादान (वायु संचालन) एवं तापमान की व्यवस्था

(धारा 13) 

  1. धूल एवं धुएँ को दूर करने की व्यवस्था

(धारा 14) 

  1. कृत्रिम नमी की व्यवस्था

(धारा 15) 

  1. अत्यधिक भीड़-भाड़ से बचाव की व्यवस्था-कारखाने में प्रति श्रमिक कम से कम 14.2 घनमीटर स्थान की व्यवस्था होनी चाहिए।

(धारा 16) 

  1. प्रकाश सम्बन्धी व्यवस्था

(धारा 17) 

  1. पेयजल की व्यवस्था-250 श्रमिकों से अधिक श्रमिक होने पर

(धारा 18) 

  1. शौचालय एवं मूत्रालय की व्यवस्था-250 श्रमिकों से अधिक होने पर

(धारा 19) 

  1. थूकदान/पीकदान की व्यवस्था

(धारा 20) 

  1. सुरक्षा सम्बन्धी प्रावधान (Provisions relating to Safety) [धारा 21 से धारा 41 तक-श्रमिकों की सुरक्षा के महत्व को स्वीकार करते हुये ही कारखाना अधिनियम में श्रमिकों की सुरक्षा के लिए कारखाना अधिनियम की धारा 21 से धारा 40 के अन्तर्गत सुरक्षा सम्बन्धी विभिन्न प्रावधानों का समावेश किया गया है। इस अधिनियम में यन्त्रों की घेराबन्दी करने (धारा 21), चलते यन्त्रों पर कार्य करने (धारा 22), खतरनाक यन्त्रों पर युवा व्यक्तियों की नियुक्ति न करने (धारा 23), स्वचालित यन्त्र स्थापित करने (धारा 25), बच्चों तथा औरतों की खतरनाक मशीनों पर नियुक्ति न करने (धारा 27) देने सम्बन्धी अनेक प्रावधान दिये गये हैं। इनके अतिरिक्त आग, हानिकारक गैस, विस्फोटक गैस आदि से सुरक्षा सम्बन्धी प्रावधानों का भी इसमें उल्लेख किया गया है। जिन कारखानों में 1,000 या इससे अधिक श्रमिक कार्यरत हैं, उनमें सुरक्षा अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान है। ___

VI खतरनाक प्रक्रियाओं के सम्बन्ध में प्रावधान (Provisions Regarding Hazardous Processes) कारखाना (संशोधन) अधिनियम, 1987 के द्वारा इस अधिनियम में खतरनाक प्रक्रियाओं वाल कारखानों के अधिष्ठाताओं के अनेक कर्त्तव्य निर्धारित किये गये हैं। ऐसी प्रक्रियाओं वाले कारखाने क स्थान की अनुमति हेत सुझाव देने के लिये राज्य सरकार द्वारा स्थान मूल्यांकन समिति की नियुक्ति का मा प्रावधान किया गया है। इस समिति में 13 सदस्य एवं एक अध्यक्ष रखे जाने का प्रावधान किया गया है। मुख्य कारखाना निरीक्षक इसका अध्यक्ष होगा। स्थल मूल्यांकन समिति (SAC) खतरनाक प्रक्रिया वाले कारखान की स्थापना हेत आवेदन का परीक्षण करेगी तथा निर्धारित प्रारूप में ऐसे आवेदन की प्राप्ति के 30 दिन की अवधि के भीतर राज्य सरकार को अपनी सिफारिश भेजेगी। इसके अतिरिक्त कारखानों में सुरक्षा समिति की स्थापना करने का प्रावधान भी किया गया है। VII श्रम कल्याण व्यवस्थायें (Provisions Relating to Labour Welfare)-कारखाना नयम की धारा 42 से धारा 50 के अन्तर्गत कारखाने में कार्य करने वाले श्रमिकों के कल्याण के पाभन्न प्रावधान किये गये हैं। नहाने-धोने (धारा 42), कपड़े रखने तथा सुखाने (धारा 43), बैठने रा44), प्राथमिक उपचार (धारा 45), कैन्टीन (धारा 46), आराम-कक्ष, भोजन-कक्ष, शिशु गृह (धारा आदि की व्यवस्था करने सम्बन्धी प्रावधान इस अधिनियम में दिए गये हैं। इसके अतिरिक्त 500 या श्रामको वाले कारखानों में श्रम कल्याण अधिकारी की नियुक्ति का भी प्रावधान इस अधिनियम में किया गया है। प्रत्येक कारखाने में जहाँ 150 से अधिक श्रमिक कार्य करते हों वहाँ कम-से-कम एक प्राथमिक बाक्स उपकरणों सहित सुसज्जित होना चाहिए तथा श्रमिकों के विश्राम तथा भोजन कक्ष की भी उपयुक्त व्यवस्था होनी चाहिए। कारखाने में 30 या अधिक महिला श्रमिक कार्यरत होने पर शिशुगृह की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। VIII वयस्क श्रमिकों के कार्य के घण्टों सम्बन्धी प्रावधान (Provisions Relating to Working Hours of Adults) कारखाना अधिनियम की धारा 51 से धारा 66 के अन्तर्गत कारखाने में काम करने वाले वयस्क श्रमिकों के काम के घण्टों के सम्बन्ध में विभिन्न प्रावधानों का समावेश किया गया है। इसमें श्रमिकों के कार्य के साप्ताहिक घण्टों, साप्ताहिक अवकाश, क्षतिपूरक अवकाश, दैनिक कार्यों के घण्टों, मध्यान्तर, कार्य के घण्टों के विस्तार, रात्रि पारियों में नियुक्त, कार्य के लिए मजदरी वयस्कों के कार्य के घण्टों एवं उनसे सम्बन्धित अनेक प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। इन प्रावधानों में समाविष्ट मुख्य बातें इस प्रकार हैं-एक श्रमिक से अधिकतम 48 घण्टे प्रति सप्ताह कार्य करवाया जा सकता है, प्रतिदिन 5 घण्टों के कार्य के बाद आधे घण्टे का मध्यान्तर दिया जाना चाहिए। किसी भी एक दिन में श्रमिक से 9 घण्टे से अधिक कार्य नहीं करवाया जा सकता है। प्रत्येक सप्ताह में एक दिन का साप्ताहिक अवकाश दिया जाना चाहिए। कारखाना अधिनियम की धारा 56 के अनुसार किसी कारखाने में वयस्क श्रमिकों के कार्य करने की अवधियाँ इस प्रकार निर्धारित की जायेंगी कि आराम करने के समय को मिलाकर किसी भी दिन साढे दस घण्टे (101 घण्टे) से अधिक का फैलाव नहीं किया जायेगा। परन्तु मुख्य निरीक्षक उचित कारणों से काम की विस्तार अवधि 12 घण्टों तक बढ़ा सकता है। श्रमिकों के समूहों पर एक से अधिक पारी में कार्य करने पर प्रतिबन्ध (धारा 58) किसी भी कारखाने में पारियों की व्यवस्था ऐसी नहीं होनी चाहिये कि श्रमिकों के एक से अधिक समूहों को एक ही समय पर एक जैसे कार्य में लगना पड़े। दूसरे शब्दों में, श्रमिकों का एक समूह एक पारी में कार्य करने के पश्चात् उसी दिन दूसरी पारी में समान कार्य पर नहीं लगाया जा सकेगा। 70 सामान्य दर से दो गुनी मजदूरी (धारा 59(1))-यदि कोई श्रमिक किसी भी दिन 9 घण्टे से अधिक अथवा किसी भी सप्ताह में 48 घण्टे से अधिक कार्य करता है तो अधिक समय काम करने के सम्बन्ध में उसे अपनी साधारण मजदूरी की दर से दोगुनी दर पर मजदूरी प्राप्त करने का अधिकार है। महिला श्रमिकों के रात्रि में कार्य करने पर प्रतिबन्ध (धारा 66)-किसी कारखाने में किसी भी महिला श्रमिक से प्रातः 6 बजे से सायंकाल 7 बजे तक के घण्टों के अतिरिक्त किसी भी समय कार्य पर नहीं लगाया जा सकता है। परन्तु राज्य सरकार गजट में घोषणा करके किसी कारखाने अथवा वर्ग या वर्णन के कारखानों के लिए उपरोक्त समय-सीमा में वृद्धि कर सकती है परन्तु रात के 10 बजे से प्रात: 5 बजे के बीच किसी भी स्त्री श्रमिक को नियुक्त नहीं किया जा सकेगा। इसक अर्थ यह है कि स्त्री श्रमिकों को प्रात: 5 बजे से रात्रि 10 बजे तक नियुक्त किया जा सकता है। IX बालकों, किशोरों की नियुक्ति एवं कार्य के घण्टों सम्बन्धी प्रावधान (Provisions Relating to the Appointment and Working Hours of Children and Adolescents)- भारतीय कारखाना अधिनियम की धारा 67 से धारा 77 के अन्तर्गत किसी भी कारखाने में नवयुवकों अर्थात् बालकों, किशोरों की नियुक्ति एवं कार्य के घण्टों के सम्बन्ध में विशेष प्रावधान दिये गये हैं। इस अधिनियम में बालकों (15 वर्ष से कम आयु के बच्चे) की कारखानों में नियुक्त पर निषेध लगाया गया है। इसके अतिरिक्त किशोरों (15 वर्ष से अधिक किन्तु 18 वर्ष से कम आय के व्यक्ति) के कार्य के घण्टे वयस्क श्रमिकों की तुलना में काफी कम रखे गये हैं। किशोरों से साढे-चार घण्टे प्रतिदिन से कार्य नही करवाया जा सकता है तथा इन्हें रात्रि की पारियों में कार्य पर नहीं लगाया जा सकता है। X महिला श्रमिकों सम्बन्धी प्रावधान (Provisions Relating to Women Workers) -कारखाना अधिनियम में महिला श्रमिकों की नियुक्ति, कार्य के घण्टों आदि के सम्बन्ध में प्रावधान दिये गये हैं। महिला श्रमिकों से रात्रि पारियों में (सायं सात बजे से प्रातः छः बजे के बीच) कार्य नहीं करवाया जा सकता है एवं उन्हें भारी सामान उठाने जैसे कार्यों पर भी नहीं लगाया जा सकता है। XI मजदूरी सहित वार्षिक अवकाश सम्बन्धी प्रावधान (Provisions Relating to Annual Leave with Wages)-भारतीय कारखाना अधिनियम की धारा 78 से धारा 84 के अन्तर्गत कारखाने में कार्य करने वाले श्रमिकों के लिए मजदूरी सहित वार्षिक अवकाश के सम्बन्ध में विभिन्न प्रावधानों का विवेचना की गई है। प्रत्येक वयस्क श्रमिक जिसने एक कैलेण्डर वर्ष में 240 या अधिक दिनों के लिए कार्य कर लिया है तो उसे प्रत्येक 20 दिनों के लिये अगले दिन की सवेतन छटी दी जायेगी। किशोर का दशा में 15 दिन के लिए एक दिन की छुट्टी दिये जाने का प्रावधान है। XII विशेष या विशिष्ट प्रावधान (Specific Provisions) (धारा 85 से 91 तक)-कारखाना मिस की धारा 85 से धारा 91 के अन्तर्गत कारखाने के लिए कुछ विशेष प्रावधान किये गये हैं सोदारा कारखाने में कार्यरत श्रमिकों के लाभ, मालिकों को नियमित रूप से कार्य करने के लिए प्रेरित करने सम्बन्धी प्रावधान दिये गये हैं, जो इस प्रकार से हैं (i) कुछ विशेष स्थानों पर अधिनियम को लागू करने का अधिकार

(धारा 85) 

(ii) सार्वजनिक तथा अनुसन्धान संस्थाओं को मुक्त करने अथवा छूट देने का अधिकार (धारा 86)  (iii) खतरनाक अथवा जोखिमपूर्ण निर्माण प्रक्रिया अथवा क्रियायें

(धारा 87) 

(iv) विशेष दुर्घटना की सूचना

(धारा 88) 

(v) कुछ बीमारियों की सूचना

(धारा 89) 

(vi) दुर्घटना या बीमारी के सम्बन्ध में प्रत्यक्ष जाँच कराने का अधिकार

(धारा 90) 

(vii) नमूने लेने का अधिकार

(धारा 91) 

XIII दण्ड व्यवस्थायें (Penalty Provisions)-धारा 92 से धारा 106 के अन्तर्गत कारखाना अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों को पूर्णत: कार्यान्वित करने एवं अपराधियों को दण्डित करने की भी व्यवस्था की गयी है। सन् 1987 में किये गये संशोधन के परिणामस्वरूप दण्ड सम्बन्धी प्रावधानों को अधिक सख्त एवं व्यापक बनाया गया है। इनमें आर्थिक दण्ड तथा कारावास दण्ड दोनों का समावेश है। यदि किसी कारखाने का परिभोगी अथवा प्रबन्धक भारतीय कारखाना अधिनियम की किसी धारा अथवा इसके अन्तर्गत बनाये गये किसी नियम अथवा इसके अन्तर्गत दिये गये किसी लिखित आदेश का उल्लंघन करता है, तो उसे अधिकतम 2 वर्ष तक का कारावास अथवा एक लाख रूपये तक का आर्थिक दण्ड अथवा दोनों दण्ड दिये जा सकते हैं। यदि ऐसा उल्लंघन दण्ड देने के पश्चात् भी जारी रहता है तो जब तक उल्लघंन जारी रहेगा, प्रतिदिन 1,000 रूपए तक का आर्थिक दण्ड भी लगाया जा सकता है। उल्लंघन की अवधि में दुर्घटना-कारखाना अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन होने के कारण यदि कोई व्यक्ति दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप या तो उसकी मृत्यु हो जाती है अथवा गम्भीर शारीरिक चोट से ग्रस्त हो जाता है, तो मृत्यु की दशा में कम-से-कम 25,000 रूपये तथा गम्भीर शारीरिक चोट की दशा में कम-से-कम 5,000 रूपये के आर्थिक दण्ड का कारखाने का परिभोगी अथवा प्रबन्धक भागी होगा। यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर स्वस्थता का झूठा प्रमाण-पत्र उपयोग करता है तो उसे दो माह तक का कारावास अथवा 1,000 रू. तक का अर्थदण्ड अथवा दोनों ही दण्ड दिये जा सकते हैं।  XIV अनुपूरक प्रावधान (Supplemental Provisions) (धारा 107 से धारा 120 तक)-कारखाना अधिनियम का अन्तिम अध्याय अनुपूरक शीर्षक के नाम से दिया गया है जिसमें अपील, सूचनाओं को लगाना (Display of Notices), प्रत्याय (Return) आदि के सम्बन्ध में प्रावधान दिये गये हैं। यदि कारखाना अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत कोई लिखित आदेश कारखाना निरीक्षक द्वारा कारखाना प्रबन्धक या परिभोगी को जारी किया जाता है तो प्रबन्धक या परिभोगी आदेश प्राप्त होने की तिथि से 30 दिन के अन्दर निर्धारित अधिकारी के समक्ष अपील कर सकते हैं। निर्धारित अधिकारी राज्य सरकार द्वारा बनाये गये नियमों के आधार पर ऐसे आदेश की पुष्टि कर सकता है या इसमें परिवर्तन व संशोधन कर सकता है।


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