B.Com 3rd Year Tax Audit Study Material Notes
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कर अंकेक्षण
(Tax Audit)
अंकेक्षित वित्तीय विवरणों का प्रयोग व्यवसाय के स्वामी, अंशधारियों तथा सम्बन्धित अन्य पक्षों के द्वारा व्यवसाय के संचालन के सम्बन्ध में तथा इसकी वास्तविक लाभदायकता तथा आर्थिक स्थिति की जानकारी के लिए किया जाता है। वित्तीय अंकेक्षक द्वारा सूचित (Reported) लाभ जो कि व्यवसाय की सत्य’ और ‘उचित’ (True and Fair) स्थिति को प्रदर्शित करता है, वास्तव में कर योग्य लाभ नहीं होता है। लाभ-हानि खाते में दिखाये गये सभी आयगत व्यय (Revenue Expenditure) पूर्णतया कटौती योग्य नहीं होते हैं। पुन: पूँजीगत व्यय (Capital Expenditure) का कुछ भाग तथा अर्जित लाभ का कुछ भाग कुछ पारस्थतियों में कटौती योग्य होते हैं। वस्तुतः कर योग्य आय की गणना के सम्बन्ध में आयकर आधनियम के अन्तर्गत अनेक प्रावधान किये गये हैं। अत: यह आवश्यक है कि वित्तीय लेखों का आयकर आधनियम, 1961 के प्रावधानों के अन्तर्गत कर-निर्धारण हेतु लेखों का अंकेक्षकों द्वारा अंकेक्षण किया जाए। वित्तीय लेखों का कर (Tax) हेत निरीक्षण एवं जाँच कराना ही कर अंकेक्षण (Tax Audit) कहलाता है। कर अंकेक्षण भारत में पहली बार कर-निर्धारण वर्ष 1985-86 में लागू किया गया। यह पत्ताय बिल 1984 के माध्यम से आयकर अधिनियम की धारा 44AB को लागू करने पर प्रभाव में पाजो कि राष्ट्रपति की स्वीकृति के द्वारा जून, 1984 में नियम बन गया। अतः धारा 44AB में कर अंकेक्षण अनिवार्य है। अनिवार्य कर अंकेक्षण के मुख्य प्रावधान (Main Provisions of Compulsory Tax Audit) आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 44AB के अनुसार अनिवार्य कर अंकेक्षण के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं – 1. व्यवसाय करने वाला व्यक्ति – व्यवसाय करने वाले प्रत्येक ऐसे व्यक्ति को, जिसकी गत वर्ष में व्यापार से होने वाली कल बिक्री (Total Sales), कारोबार (Turnover) अथवा सकल प्राप्तियाँ (Gross Receipts) रू. 1 करोड़ से अधिक हो तो उसे लेखापाल (Accountant) द्वारा उस गत वर्ष के ” ट तिथि से पहले कर अंकेक्षण कराना होगा। इस राशि में वित्त अधिनियम (Finance Act) द्वारा समय-समय पर परिवर्तन किया जाता रहता है। धारा 44AD के अन्तर्गत आने वाले व्यवसायी गत वर्ष की कुल बिक्री अथवा आवर्त अथवा सकल प्राप्तियाँ दो करोड़ रू. से अधिक होने पर लेख अनिवार्य रूप से कर अंकेक्षण कराना होगा।- पेशेवर व्यक्ति – अनिवार्य कर अंकेक्षण का प्रावधान एक पेशेवर व्यक्ति के सम्बन्ध में की लाग होगा जबकि गत वर्ष में पेशे अथवा वृत्ति (Profession) से उसकी सकल प्राप्तियाँ (Gree Receipts) रू. 50 लाख से अधिक हो। इस राशि में वित्त अधिनियम द्वारा समय-समय पर परिवर्तन किया जाता रहता है।
- गणना की गई आय का परिकल्पित या मानी गई आय से कम होना – यदि कोई करदाता ऐसा व्यवसाय कर रहा है जो आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 44AD, धारा 44ADA या धारा 4AAR के अन्तर्गत आता है तथा करदाता का यह दावा है कि ऐसे व्यवसाय से उसकी गणना की गई आय उक्त धाराओं द्वारा निर्धारित एवं मानी गई या परिकल्पित आय (On Presumptive basis) से कम है तो उसे अपने गत वर्ष के लेखों का अंकेक्षण निर्धारित तिथि से पूर्व चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट से करवाकर अंकेक्षण रिपोर्ट आयकर विवरणी के साथ संलग्न करनी पड़ेगी।
- लेखों व रिपोर्टों को सही ढंग से आयकर अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करना, जिससे कर-निर्धारण का कार्य आसान हो जाए।
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