Consolidated Balance Sheet Of Holding Companies B.Com 3rd Year Notes
सूत्रधारी तथा सहायक कम्पनी का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Holding and Subsidiary Company)
जब कोई कम्पनी किसी दूसरी कम्पनी के 51% या अधिक अंशों को खरीद लेती है या अन्य किसा प्रकार से उस दूसरी कम्पनी पर अपना नियन्त्रण एवं प्रभुत्व स्थापित कर लेती है तो ऐसी कम्पनी को ‘सूत्रधारा कम्पनी’ या ‘पितृ/जनक कम्पनी (Parent Company) कहा जाता है। चूंकि कम्पनी का नियन्त्रण प्रबन्ध सचालक मण्डल (Board of Directors) में निहित होता है, एक कम्पनी संचालक मण्डल के गठन पर नियन्त्रण स्थापित करके कम्पनी को नियन्त्रित एवं प्रभावित कर सकती है। साधारणतया विभिन्न कम्पनिया हितों को एकीकरण करने के उद्देश्य से सूत्रधारी कम्पनी का निर्माण किया जाता है जो विभिन्न कम्पनिया पर वह नियन्त्रण रखना चाहती है, के बहमत देने वाले अंशों को खरीद लेती है। इस प्रकार सूत्रधारा क संयोजन का एक स्वरूप है। सूत्रधारी कम्पनी जिस कम्पनी के आधे या आधे से अधिक अंशों को खरादल या जिस कम्पनी का नियन्त्रण अपने हाथ में ले लेती है, उसे सहायक कम्पनी (Subsidiary Company) जाता है। अधिनियम, 2013 की धारा 2(46) के अनुसार, “किसी कम्पनी को एक या अधिक कम्पनियों कम्पनी तभी माना जाता है, जबकि ऐसी कम्पनियाँ उसकी सहायक कम्पनियाँ हो।” कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(87) के अनुसार, किसी अन्य कम्पनी के सम्बन्ध में (जिसे पनी कहा जाता है) सहायक कम्पनी या ‘सहायक’ का आशय ऐसी कम्पनी से है, जिसमें : (अ) संचालक-मण्डल के गठन पर नियन्त्रण – जबकि सूत्रधारी कम्पनी इसके संचालक-मण्डल जन पर नियन्त्रण करती है : या (ब) आधे से अधिक मताधिकार पर नियन्त्रण – इसकी स्वयं की या इसकी एक से अधिक सहायक गों को मिलाकर कुल अश पूजी के आधे से अधिक भाग पर सत्रधारी कम्पनी नियन्त्रण रखती हो। उदाहरण – Y कं० लिमिटेड X कं० लिमिटेड की एक सहायक कम्पनी है तथा Z कं. लिमिटेड Yकं० लिमिटेड की सहायक कम्पनी है तो यहाँ पर Z कं० लिमिटेड न सिर्फ Y कं० लि. की सहायक कम्पनी मानी जायेगी वरन् वह वरन वह X कं० लि० की भी सहायक कम्पनी कहलायेगी। इस प्रकार X कं० लि. तथा Z कं० लि०, Y लि० तथा Z कं० लि. दोनो की सूत्रधारी कम्पनी कहलायेगी।सूत्रधारी कम्पनी की विशेषताएँ (Features of Holding Company)
- सूत्रधारी कम्पनी सहायक कम्पनी के 50% से अधिक या समस्त अंशों को खरीद सकती है।
- सूत्रधारी कम्पनी यदि चाहे तो सहायक कम्पनी के पूर्वाधिकार अंश या ऋणपत्र आदि खरीद सकती
- सूत्रधारी कम्पनी सहायक कम्पनी को आर्थिक सहायता दे सकती है।
सूत्रधारी कम्पनी के प्रमुख उद्देश्य (Main Objects of Holding Company)
सूत्रधारी कम्पनी के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं – (1) आपसी प्रतियोगिता को समाप्त करना। (2) विभिन्न कम्पनियों का अस्तित्व अलग होते हुए भी उनके प्रबन्ध एवं औद्योगिक नीति का केन्द्रीकरण करना। (3) सम्मिश्रण या एकीकरण तथा संविलयन के दोषों को दूर करना। (4) अर्जित लाभ को अन्य साधनों में विनियोजित करना।सहायक कम्पनी के प्रकार
(Types of Subsidiary Company)
सहायक कम्पनी दो प्रकार की हो सकती है – (1) पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कम्पनी या पूर्ण सहायक कम्पनी (Wholly Owned subsidiary)-जब सहायक कम्पनी के सभी अंश सूत्रधारी कम्पनी द्वारा क्रय कर लिये गये हों, तब उसे पूर्ण सहायक कम्पनी कहा जाता है। इस प्रकार की कम्पनी पर पूर्ण स्वामित्व एवं नियन्त्रण सूत्रधारी कम्पनी का ही लाता है। फलत: इस स्थिति में सहायक कम्पनी के सम्पूर्ण लाभ पर सूत्रधारी कम्पनी का ही अधिकार होता है। (2) आंशिक स्वामित्व वाली सहायक कम्पनी’ या आंशिक सहायक कम्पनी’ (Partly-owned Subsidiary) – जब किसी कम्पनी के आधे से अधिक समता अंशों को सूत्रधारी कम्पनी खरीद लेती है तो प्रकार की सहायक कम्पनी को आंशिक धारित सहायक कम्पनी कहा जाता हैं। इस तरह की सहायक नाम बचे हुए अंश अन्य अंशधारियों द्वारा क्रय किये गये होते हैं जिन्हें ‘अल्पमत अंशधारी (Minority reholders) अथवा ‘बाहा अंशधारी’ (Outside Shareholders) कहा जाता है। इस तरह की सहायक । म सूत्रधारी एवं अल्पमत अंशधारियों का नियन्त्रण हित उनके द्वारा क्रय किये अंशों के अनुपात में होता Xकम्पनी ने Y कम्पनी के 8,000 अंश क्रय किये और 2,000 अंश अन्य लोगों ने क्रय किये तो इस X कम्पनी तथा अल्पमत अंशधारियों के नियन्त्रण का अनुपात होगा – 8,000 : 2,000 या 8 :2 या 4:1 या 4/5 : 1/5।सूत्रधारी कम्पनियों के लाभ (Advantages of Holding Companies)
सूत्रधारी कम्पनियों के प्रमख लाभ निम्नलिखित है-- मूल्य नियन्त्रण तथा प्रतिस्पर्धा में कमी।
- एकाधिकारी स्थिति का लाभ प्राप्त होना।
- आन्तरिक एवं बाह्य मितव्ययिताओं का अधिकतम लाभ प्राप्त करना।
- सहायक कम्पनी का पृथक् अस्तित्व बना रहना।
- सत्रधारी कम्पनी तथा सहायक कम्पनी के लेखे अलग-अलग तैयार किये जाते हैं जिससे कम्पनियों की वित्तीय स्थिति तथा लाभदायकता की जानकारी प्राप्त होती है।
- सत्रधारी कम्पनी किसी भी समय अपने अंशों को बेचकर सहायक कम्पनी पर अपने पर नियंत्रण को समाप्त कर सकती है।
- सहायक कम्पनी की पूँजी संसाधनों और प्रबन्धकीय क्षमता में वृद्धि होती है।
- सहायक कम्पनियों का अस्तित्व सूत्रधारी कम्पनी से पृथक् होने के कारण आयकर के सहायक कम्पनियों की हानियाँ भावी वर्षों के लाभों से अपलिखित की जा सकती हैं।
सूत्रधारी कम्पनियों की हानियाँ (Disadvantages of Holding Companies)
सूत्रधारी कम्पनी की प्रमुख हानियाँ निम्नलिखित हैं-- एकाधिकार की स्थापना होने से उपभोक्ताओं का शोषण हो सकता है।
- कभी-कभी सूत्रधारी कम्पनी ऐसे निर्णय लेती है जो सहायक कम्पनी के विकास में बाधक सिद्ध होते हैं।
- अल्पमत अंशधारियों के अधिकारों को दबाकर सूत्रधारी कम्पनी के द्वारा अनुचित लाभ प्राप्त किया जा सकता है जिससे अल्पमत अंशधारियों का अहित होता है।
- सूत्रधारी कम्पनी का सहायक कम्पनी पर पूर्ण नियन्त्रण होने से छल-कपट की सम्भावना बढ़ जाती है।
- सूत्रधारी कम्पनी की स्थापना से आर्थिक शक्ति के केन्द्रीकरण को बढ़ावा मिलता है जिससे धन के दुरुपयोग का भय बना रहता है। कई बार सूत्रधारी कम्पनी के निर्देश पर सहायक कम्पनी को अधिक पारिश्रमिक पर प्रबन्धक अथवा संचालक नियुक्त करने पड़ते हैं।
- अन्तर-कम्पनी के स्टॉक मूल्यांकन में कठिनाई होती है।
चिट्ठा और लाभ-हानि खातों/विवरणों का समेकन
Consolidation of Balance Sheet and Profit and Loss Account)
भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 129 के अनुसार, सूत्रधारी कम्पनी और सहायक कम्पनी के मिश्रित चिट्टे या वित्तीय विवरण बनाना आवश्यक है। इसके साथ ही स्कन्ध विपणि पर अंशों के सूचीयन की आवश्यकताओं की दृष्टि से सूचीयन अनुबन्ध के वाक्य 32 में यह व्यवस्था है कि सभी सूचीयत कम्पनियों को यह आवश्यक है कि वे प्रतिवर्ष लेखांकन प्रमाप-21 (AS-21) के अनुसार मिश्रित वित्तीय विवरण तैयार करें और उसे अपनी वार्षिक रिपोर्ट में शामिल करें। मिश्रित चिट्ठा या वित्तीय विवरण से आशय ऐसे चिट्टे या वित्तीय विवरणों से है, जिसमें एक समूह (सूत्रधारी एवं उसकी सहायक कम्पनियों) की कम्पनियों का चिट्ठा या वित्तीय विवरण इस प्रकार तैयार किया जाता है, जैसे कि वह एक उपक्रम ही हो। इसका उद्देश्य सूत्रधारी कम्पनी के अंशधारियों को सहायक कम्पनियों व सूत्रधारी कम्पनी की वित्तीय स्थिति व लाभ-हानि के बारे में सूचना देना है ताकि उन्हें यह ज्ञात हा सके कि उनके धन का उपयोग किस प्रकार हो रहा है। AS-21 के अनसारं, मिश्रित या समीकत वितार विवरणों में निम्नलिखित को शामिल किया जाता है – (1) मिश्रित या समेकित चिट्ठा, (2) मिश्रित या समेकित लाभ-हानि विवरण, (3) खातों के नोट्स, अन्य विवरण एवं व्याख्यात्मक सामग्री, (4) समेकित रोकड़ प्रवाह विवरण, यदि सूत्रधारी कम्पनी अपना कोष प्रवाह विवरण प्रस्तुत करती है। समेकित वित्तीय विवरण यथासम्भव उसी प्रारूप में प्रस्तुत किए जाते हैं, जिन्हें सूत्रधारी कम्पनी अपने पृथक् वित्तीय विवरण के लिए अपनाया गया है।मिश्रित चिट्ठा तैयार करना (Preparing Consolidated Balance Sheet)
मिश्रित चिट्ठे में सूत्रधारी कम्पनी और उसकी सहायक कम्पनी के चिट्ठों की विभिन्न राम दायित्व की मदों को जोड़कर लिखा जाता है किन्तु इसमें निम्नलिखित समायोजन किये जात है – 1.सहायक कम्पनी के अंशों में विनियोग खाते की समाप्ति ( Elimination of Invesum Shares Account of Subsidiary) सूत्रधारी कम्पनी के चिठे के सम्पत्ति पक्ष म “Investment in Shares of Subsidiary A/c” सूत्रधारी कम्पनी की सहायक कम्पनी में समता से निरस्त हो जाता है। सूत्रधारी कम्पनी की सहायक कम्पनी में समता का आशय अश क्रम सहायक कम्पनी की अंश पूँजी, संचितियों और अवितिरित लाभों में सूत्रधारी कम्पनी के भाग के योग से होता है।- सहायक कम्पनी के पूँजी और आयगत लाभ की गणना (Calculation of Capital Profits and Profits of Subsidiary)-सहायक कम्पनी के लाभों को पूँजीगत लाभ (अंश क्रय से पूर्व के लाभ (अंश क्रय के बाद के लाभ) में विभाजित करना आवश्यक होता है, क्योंकि कम्पनी के पूँजीगत लाभों में सूत्रधारी कम्पनी के भाग को सहायक कम्पनी, में विनियोग की लागत से जित किया जाता है, जबकि उसके आयगत लाभों में भाग को मिश्रित चिठे में सत्रधारी कम्पनी के लाभों में जोडकर दिखलाया जाता हैं। इस विभाजन के लिये अंश क्रय की तिथि निर्धारक कारक होती है। सूत्रधारी बारा सहायक कम्पनी में विनियोग की तिथि पर सहायक कम्पनी के चिठे में प्रदर्शित संचित लाभ और सचितियों को पँजीगत लाभ या क्रय से पूर्व का लाभ कहते हैं तथा अंश क्रय की तिथि के बाद अर्जित लाभ और गई संचितियों को आयगत लाभ या क्रय के बाद के लाभ कहते हैं।
- ख्याति अथवा पूँजीगत संचिति की गणना (Calculation of Goodwill or Capital Reserve)-इसकी गणना के लिये अंश क्रय की लागत (Cost of Shares Acquired) की तुलना सूत्रधारी कम्पनी की सहायक कम्पनी में समता के मूल्य (Value of Holding Company’sEquity in Subisidiary Company) से की जाती है। उदाहरणार्थ –
- सहायक कम्पनी के शद्ध मूल्य (Net Worth) की गणना-सूत्रधारी कम्पनी द्वारा सहायक नाक अंश क्रय करने की तिथि को सहायक कम्पनी के शुद्ध मूल्य की निम्नलिखित प्रकार गणना की जाती है।
- अन्तर्कम्पनी शेषों की समाप्ति (Elimination of Inter-Company Balances)-सूत्रधारी उसका सहायक कम्पनी का संयक्त चिट्ठा बनाते समय एक-दूसरे के साथ लेन-देन से उत्पन्न समाप्त कर देना चाहिये। इन मदों के उदाहरण निम्नलिखित हैं-
- सहायक कम्पनी की सम्पतियों और दायित्वों का पुनर्मूल्यांकन (Revaluation of Assets and Liabilites of Subisidiary)-सूत्रधारी कम्पनी द्वारा सहायक कम्पनी के अंश क्रय करने के समय अंश का मूल्य निर्धारित करने के लिये यदि सहायक कम्पनी की सम्पत्तियाँ और दायित्वों का पुनर्मूल्याकंन किया गया था तो संयुक्त चिठे में इन सम्पात्तियों व दायित्वों को उनके संशोधित मूल्य पर दिखलाया जाता है तथा पुनर्मूल्यांकन पर लाभ अथवा हानि को पूँजीगत लाभ या हानि जैसी भी स्थिति हों, माना जाता है।
- सहायक कम्पनी के लाभांश (Dividends of Subsidiary Company)
- समेकित लाभ-हानि (Consolidated Profit)-इसी प्रकार समेकित चिट्ठा में सूत्रधारी कम्पनी के लाभ-हानि खाते के शेष, वर्ष भर के लाभ, सहायक कम्पनी के आयगत लाभों में सूत्रधारी कम्पनी के भाग को जोड़कर दिखाया जाता है।
- दायित्वों को जोड़कर दिखाना – सूत्रधारी कम्पनी के दायित्वों तथा सहायक कम्पनी के दायित्वों को दिखाना चाहिए लेकिन अन्तर-कम्पनी सौदे एवं ऋणों को हटा देना चाहिए।
- अल्पमत अंशधारी हित की गणना (Calculation of Minority Interest) यदि सूत्रधारी ने सहायक कम्पनी के समस्त अंश क्रय नहीं किये हैं तो शेष अंशधारियों की सहायक कम्पनी में दावे की राशि को ‘अल्पमत अंशधारी हित’ कहते हैं। इसकी गणना के लिये बाहरी अंशधारियों द्वारा धारित अंशों के नामल्य में सहायक कम्पनी के पूँजीगत व आयगत लाभों व संचितियों में उनके भाग को जोड़ा जाता है तथा नयों में भाग को घटाया जाता है। यदि सहायक कम्पनी ने पूर्वाधिकारी अंश भी निर्गमित किये हैं तो बाहरी धिकारी अंशधारियों द्वारा धारित अंशों के अंकित मूल्य और उन पर बकाया लाभांश को भी अल्पमत अंशधारियों के हित में ही सम्मिलित किया जाता है। अल्पमत अंशधारियों के हित की राशि को मिश्रित चिट्ठे में एक दायित्व के रूप में दिखाया जाता है।
मदें जो समेकित चिठे या मिश्रित चिट्ठे में नहीं दिखायी जाती
(Items that are not shown in Consolidated Balance Sheet)
निम्नलिखित मदों को मिश्रित चिट्ठे में नहीं दिखाना चाहिए-- सहायक कम्पनी की अंश पूँजी।
- सूत्रधारी कम्पनी का सहायक कम्पनी में विनियोग।
- अन्तर-कम्पनी सौदे; जैसे-सूत्रधारी कम्पनी तथा सहायक कम्पनी के आपसी प्राप्य बिल (B/R), देय बिल (B/P), सहायक कम्पनी के लेनदारों में सूत्रधारी कम्पनी को देय राशि का शामिल रहना इत्यादि। ___
- सबसे पहले यह देखना चाहिये कि कौन-सी कम्पनी सूत्रधारी कम्पनी है और कौन-सी कम्पनी सहायक कम्पनी है।
- किस तिथि को सूत्रधारी कम्पनी सहायक कम्पनी (या कम्पनियों) के अंशों को खरीदती हैं। यह जानना इसलिए आवश्यक है कि क्रय तिथि के पूर्व वाले सहायक कम्पनी के संचय कोष तथा लाभ पूँजीगत लाभ की श्रेणी में आते हैं और बाद वाले सामान्य संचय तथा लाभ आयगत लाभों की श्रेणी में आते हैं।
- फिर यह पता लगाना चाहिये कि सूत्रधारी कम्पनी ने सहायक कम्पनी के कितने अंशों को क्रय किया ९ अथवा सहायक कम्पनी की अंश पूँजी में सूत्रधारी कम्पनी का कितना अंशदान है।
- सहायक कम्पनी में अल्पसंख्यक हितों (Minority Interest) की कितनी पूँजी लगी हुई है।







- Goodwill : 1- 3.00,000 (Goodwill of A Ltd.) + 70,000 (Goodwill of B Ltd.)-रू. 47,500
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