Product Planning B.Com Notes – B.Com 3rd Year Study Notes

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उत्पाद नियोजन का अर्थ एवं परिभाषाएँ

(Meaning and Definitions of Product Planning) 

भविष्य में क्या करना है ? इसको वर्तमान में तय करना नियोजन कहलाता है। इस आधार पर र नियोजन से आशय उत्पादित की जाने वाली वस्तु या उत्पाद के सम्बन्ध में एक विस्तृत योजना बनाने से है। सरल शब्दों में उत्पाद नियोजन से आशय उन प्रयासों से है जिनके द्वारा बाजार या भोक्ताओं की आवश्यकताओं एवं इच्छाओं के अनुरूप उत्पाद (Product) या उत्पाद श्रृंखला Product Line) को निर्धारित किया जाता है। स्टेन्टन के अनुसार, “उत्पाद नियोजन एक फर्म के सम्पर्ण विपणन कार्यक्रम का प्रारम्भिक बिन्दु है।” उत्पाद नियोजन, विपणन प्रबन्ध का वह भाग है जो उत्पाद की भावी सम्भावनाओं का निर्धारण करता है और किन वस्तुओं का विपणन एवं परित्याग करना है, इसे तय करता है तथा बाजार में प्रस्तुत किये जाने वाले उत्पादों की विशेषताओं को निश्चित करके उन्हें अन्तिम उत्पादों में शामिल करता है। इस प्रकार उत्पाद नियोजन के अन्तर्गत वस्तु के सम्बन्ध में खोजबीन करना, उनकी व्यावहारिकता का पता लगाना, वर्तमान वस्तु में परिवर्तन करना एवं वस्तु का परित्याग करना आदि बातों को शामिल किया जाता है। उत्पाद नियोजन को निम्नलिखित प्रकार परिभाषित किया जा सकता है-

स्टेन्टन के अनुसार, “उत्पाद नियोजन में वे सब क्रियाएँ सम्मिलित हैं जो उत्पादकों तथा मध्यस्थों को यह निर्धारित करने में सक्षम बनाती हैं कि संस्था की उत्पाद श्रृंखला में कौन-कौन से उत्पाद होने चाहिए।

जॉनसन के मतानुसार, “वस्तु नियोजन वस्तु की उन विशेषताओं को तय करता है, जिससे कि उपभोक्ताओं की असंख्य इच्छाओं को सर्वोत्तम ढंग से पूरा किया जा सके, वस्तुओं में विक्रय योग्यता को जोड़ा जा सके और उन विशेषताओं को तैयार वस्तुओं में शामिल किया जा सके।”

नवीन उत्पाद के विकास की प्रक्रिया

(Process of New Product Development) 

उत्पाद नवाचार का मुख्य कारण तकनीकी विकास है। स्टेन्टन के अनुसार, “उत्पाद शोध औद्योगिकी एवं अभिकल्पना सम्बन्धी तकनीकी क्रियाएँ उत्पाद विकास कहलाती हैं।

बूज, एलन एवं हेमिल्टन (Brooze, Allen and Hamilton) ने एक नये उत्पाद के विकास की प्रक्रिया को निम्नलिखित प्रकार स्पष्ट किया है

1.नये विचारों का अन्वेषण (Exploration of New Ideas)- अन्वेषण के अन्तर्गत कम्पनी के उत्पाद क्षेत्रों का निर्धारण एवं उपलब्ध विचारों तथा तथ्यों का एकत्रीकरण सम्मिलित होता है क्योंकि जितने अधिक विचारों का एकत्रीकरण होगा उतने ही अच्छे विचार के चुने जाने की सम्भावना अधिक होगा। इन विचारों को एकत्रित करने के लिये कम्पनी ग्राहक, प्रबन्ध, विक्रेता, प्रतियोगिताएँ, प्रयोगशाला आदि पर निर्भर करती है।

  1. विचारों की छानबीन (Screening of Ideas) विचारों के एकत्रीकरण के पश्चात् प्रत्येक विचार का विस्तृत रूप से विश्लेषण एवं मूल्यांकन किया जाता है तथा जो विचार कम्पनी के लिये लाभकारी होते हैं. उन्हें अलग कर लिया जाता है ताकि उपयुक्त समय आने पर उनका लाभ उठाया जा सका विभिन्न विचारों का मल्यांकन उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किया जाता है तथा उन्हें उनके महत्व “क्रम में रखा जाता है। यह प्रक्रिया विचारों की छानबीन कहलाती है।

3. व्यावसायिक विश्लेषण (Business Analysis)-व्यावसायिक विश्लेषण के अन्तर्गत यह पता लगाया जाता है कि नई वस्तु की बिक्री कैसी होगी? लाभों की स्थिति क्या रहेगी ? तथा लगाई गई मा पर प्रतिफल का प्रतिशत क्या होगा ? यदि ये सभी बातें विश्लेषण के अन्तर्गत कम्पनी के हित में आती है तो कम्पनी नया उत्पाद विकसित करने के बारे में विचार करती है, अन्यथा नहीं।

  1. वस्तु विकास (Product Development)-अब वह विचार जो प्रत्येक दृष्टि से उचित ठोस जान पडता है उसको कार्य रूप में परिणत करने के लिए कदम उठाये जाते हैं। वस्तु विकास अन्तर्गत वस्तु के विभिन्न मॉडल तैयार करके यह विचार किया जाता है कि किस प्रकार का मॉडल अच्छा तथा मितव्ययी होगा। उपभोक्ताओं की रुचियों का परीक्षण किया जाता है तथा ब्राण्ड तावश्य पैकेजिंग के विषय में निर्णय लिया जाता है। विक्रय बढ़ाने के लिए वर्तमान उत्पादों को सुधारने की युक्ति अथवा वर्तमान बाजार के लिए नए उत्पादों को विकसित करना उत्पाद विकास कहलाता है।

5.परीक्षात्मक विपणन (Test Marketing)-नवीन वस्तु को विस्तृत रूप से बाजार में लाने से है कि पूर्व परीक्षात्मक विपणन आवश्यक है अर्थात् पहले बाजार के किसी चुने हुए भाग में वस्तु को लाकर यह परीक्षा की जानी चाहिये कि विक्रेताओं तथा ग्राहकों की ओर से क्या प्रतिक्रिया होती है? यदि परीक्षण में कुछ कमियाँ सामने आती हैं तो उन्हें दूर करने के पश्चात ही नवीन वस्तु को विस्तृत रूप से बाजार में लाना चाहिये। वास्तव में, परीक्षात्मक विपणन उत्पादक की जोखिम को कम करता है तथा उसे ग्राहकों की प्रतिक्रियाओं से अवगत कराता है।

  1. वस्तु का वाणिज्यीकरण (Commercialisation of the Product)-एक नवीन उत्पाद के 25% विकास की सभी प्रारम्भिक अवस्थायें पूरी करने के बाद वस्तु के वाणिज्यीकरण की समस्या आती है। अर्थात् जब वस्तु परीक्षात्मक विपणन में खरी उतरती है तो उसे व्यावसायिक रूप से बाजार में लाने की भी तैयारी की जाती है। वस्तु को बाजार में लाने से पूर्व वस्तु के मॉडल, ब्राण्ड तथा पैकेजिंग आदि के बारे में फिर से एक बार विचार करना होता है क्योंकि उत्पादक की पूँजी का एक बड़ा भाग वस्तु के ये उत्पादन में लग जाता है। अत: वस्तु के वाणिज्यीकरण की अवस्था अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है।

उत्पाद अन्तर्लय या मिश्रण

 (Product Mix) 

कम्पनी द्वारा उत्पादित एक उत्पाद, उत्पाद मद कहलाता है। कम्पनी द्वारा उत्पादित एक ही प्रयोग पदार्थ में आने वाले सभी उत्पाद, उत्पाद पंक्ति का निर्माण करते हैं। दूसरे शब्दों में एक उत्पाद को उत्पाद पढ़े नि मद कहा जाता है। एक ही प्रयोग में काम आने वाले उत्पादों को उत्पाद पंक्ति कहा जाता है, जबकि कम्पनी द्वारा उत्पादित सभी उत्पादों को उत्पाद अन्तर्लय कहा जाता है। अमेरिकन मार्केटिंग एसोसिएशन ने भी स्पष्टीकरण देते हुए लिखा है कि टूथ पेस्ट एक उत्पाद है। टूथ पेस्ट की ट्यूब एक उत्पाद मद है। टूथ पेस्ट, टूथ पाउडर, मुँह धोने की सामग्री और अन्य सम्बन्धित सामग्री आदि उत्पाद पंक्ति का निर्माण करते हैं साबुन, प्रसाधन सामग्री, दवाएँ आदि उत्पाद अन्तर्लय का निर्माण कर सकते हैं, यदि ये – वस्तुएँ भी उसी कम्पनी द्वारा बनायी जा रही हों।

एलेक्जेण्डर, क्रॉस एवं हिल के शब्दों में, “एक फर्म का सम्पूर्ण उत्पाद-समूह उत्पाद अन्तर्लय मिश्र कहलाता है।” लिपसन एवं डारलिंग के शब्दों में, “एक व्यवसाय प्रणाली द्वारा विक्रय के लिए प्रस्तुत की गयी समस्त वस्तुओं की पूर्ण सूची उत्पाद अन्तर्लय या मिश्र कहलाती है।” विलियम जेली. स्टेन्टन के शब्दों में, “उत्पाद अन्तर्लय या मिश्र से आशय एक कम्पनी द्वारा विक्रय हेतु प्रस्तुत किये मल्ल जाने वाले समस्त उत्पादों की एक पूर्ण सूची से है।” अमेरिकन मार्केटिंग एसोसिएशन की परिभाषा कोर समिति के शब्दों में, “किसी फर्म या व्यावसायिक इकाई द्वारा विक्रय के लिए प्रस्तुत किये गये उत्पाद-समूह को उत्पाद अन्तर्लय या मिश्र कहा गया है।” इस प्रकार किसी भी व्यावसायिक संस्था की विपणन हेतु प्रस्तुत समस्त उत्पाद-सूची अथवा के उत्पाद-रेखा का कुल जोड़ ‘उत्पाद अन्तर्लय या मिश्र’ के नाम से जाना जा सकता है और जिसकी पड़ संरचना के तीन पहलू होते हैं-विस्तार पहलू (Width Side); गहराई पहलू (Depth Side) तथा अनुरूपता पहलू (Consistency Side)

उत्पाद अन्तर्लय का विस्तार पहलू (Width Side of Product Mix)-उत्पाद अन्तर्लय के ता विस्तार पहलू से आशय एक कम्पनी में कितनी उत्पाद पंक्तियाँ हैं अर्थात उत्पाद पंक्तियों की कुल संख्या ही उत्पाद अन्तर्लय का विस्तार कहलाती है। इसे उत्पाद अन्तर्लय की चौड़ाई भी कहा जाता है। ज उदाहरण के लिए, भारत में ऊषा कम्पनी द्वारा बिजली के पंखे एवं सिलाई मशीनें बनाई जाती हैं। ऐसा उत स्थिति में ऊषा कम्पनी के उत्पाद अन्तर्लय के विस्तार में दोनों उत्पाद पंक्तियाँ अर्थात विद्युत पखं आर सिलाई मशीनें सम्मिलित की जायेगी।

उत्पाद अन्तर्लय का गहराई पहलू (Depth Side of Product Mix)-उत्पाद अन्तलेय गहराई पहलू से आशय एक कम्पनी द्वारा प्रत्येक उत्पाद पंक्ति में प्रस्तुत किये जा रहे उत्पादा औसत संख्या से है।

उत्पाद अन्तर्लय का अनुरूपता पहलू (Consistency Side of Product Mix)-उत्पाद अन्तर्लय की अनुरूपता से आशय यह है कि विभिन्न उत्पाद पंक्तियाँ, अन्तिम उपयोग, उत्पादन तथा आवश्यकताएँ, वितरण वाहिकाएँ या अन्य किसी दृष्टि से आपस में कितने घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। भारत फिलिप्स इण्डिया लिमिटेड द्वारा अनेक उत्पादों का निर्माण किया जाता है, जैसे-डिया, ली के बल्ब, ट्यूबलाइट आदि। यद्यपि ये उत्पाद भिन्न-भिन्न प्रकार के हैं परन्तु इनमें एक समानता ये किसी न किसी रूप में बिजली से सम्बन्धित हैं। इसे ही उत्पाद अन्तर्लय कहा जाता है।

नवीन उत्पाद अपनाने वालों की श्रेणियाँ 

ई. रोगरज द्वारा 1971 में नवीन उत्पादों के उपभोक्ताओं को पाँच श्रेणियों में विभाजित किया गया हैं।

1.नवप्रवर्तक (Innovators)-जब बाजार में कोई नया उत्पाद प्रस्तुत किया जाता है तो बहुत कम सम्भावित उपभोक्ता उसे अपनाते हैं। ये ग्राहक नवप्रवर्तक कहलाते हैं। रोजर के अनुसार लगभग के25% उपभोक्ता इस श्रेणी में आते हैं।

  1. शीघ्र अपनाने वाले (Early Adopters)-कुल सम्भावित ग्राहकों का 13.5% ये लोग होते कराये धनाढ्य, शिक्षित और सफल लोग हैं। ये जनमत निर्माता होते हैं। 
  2. शीघ बहुमत में आने वाले (Early Majority)-ये कुल सम्भावित बाजार का 34% होते क है। ये प्रारम्भिक उत्पाद प्रयोगकर्ताओं के पीछे चलकर उत्पाद को अपनाते हैं।
  3. उत्तरकालीन बहुमत के साथ (Late Majority)-इनकी संख्या लगभग 34% तक होती है। ये केवल जनमत स्पष्ट होने पर तथा आवश्यकता के समय ही नया उत्पाद खरीदते हैं।
  4. पिछड़े हुए (Laggards)-इनकी संख्या सम्भावित ग्राहकों के 16% तक होती है। ये नए योग पदार्थ को अपनाने वाले सबसे पिछड़े ग्राहक हैं जो प्राय: आयु में बड़े, निर्धन, परम्परावादी तथा कम याद पढ़े लिखे होते हैं।

नये उत्पादों की असफलता के कारण

(Reasons for Failure of New Products) 

सामान्यतः अधिकतर नये उत्पाद बाजार में सफल नहीं हो पाते। ऐसा देखा गया है कि नये उत्पादों का 80-90 प्रतिशत भाग असफल ही रहता है। ऐसे उत्पाद भी जो उचित नियोजन के पश्चात बाजार में लाये जाते हैं असफल हो जाते हैं। इन असफलताओं के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं

  1. वस्तु के दोष (Defects of Product)-उत्पाद के कार्य, डिजाइन, आकार, किस्म, पैकिंग – आदि में पाये जाने वाले दोषों के कारण वस्तु बाजार में असफल हो जाती है।
  2. उत्पाद का मूल्य (Price of the Product)-यदि उत्पाद का मूल्य अधिक रखा जाता है तब भी उत्पाद के असफल हो जाने की सम्भावना रहती है। यदि उत्पाद की लागत अधिक आती है तो का मूल्य भी अधिक रखा जाता है और कभी-कभी तो लागत का ठीक प्रकार से अनुमान न लग पाने के साष कारण भी वस्तु का मूल्य आवश्यकता से अधिक निर्धारित हो जाता है।
  3. अपर्याप्त बाजार विश्लेषण (Inadequate Market Analysis) यदि नवीन उत्पाद के

विकास से पूर्व बाजार विश्लेषण अर्थात् माँग का अनुमान, ग्राहकों की रुचि तथा प्रचलित रीति-रिवाजों यव के अनुरूपडीक प्रकार से नहीं लगाया जाता है तो भी नवीन उत्पाद को असफलता का मुंह देखना की पड़ता है।

4.प्रतिस्पर्धा (Competition)-यदि प्रतिस्पद्धी अपनी वस्तु की कीमत कम कर दें या विक्रय संवर्ध्दन तकनीक में सुधार कर लें अथवा अपनी वस्तु की किस्म में सुधार करके उसे बाजार में लायें का भी नवीन उत्पाद को असफलता का सामना करना पड़ सकता है। 

  1. वितरण की कमियाँ (Distribution Weaknesses) कभी-कभी वितरण सम्बन्धी कमियाँ, हे जस-समय पर उत्पाद का बाजार में न पहुँचना, मध्यस्थों की शिथिलता आदि के कारण भी नवीन सी उत्पाद असफलता के कगार पर पहुँच जाती है। 
  2. विपणन प्रयासों की अपर्याप्तता (Insufficiency of Marketing Efforts)- विपणन सम्बन्धी प्रयासों की कमी भी नवीन उत्पाद को असफल बना देती है। अपर्याप्त विज्ञापन, विक्रय कला के का अभाव आदि इसके उदाहरण हैं।

7. विक्रेता की अयोग्यता (Incapability of Salesman)-यदि विक्रेता अनुभवहीन तथा अशिक्षित है और उसमें प्रेरणा का अभाव है तो नवीन उत्पाद बाजार में असफल हो जाता है।

उत्पाद नियोजन का महत्व या आवश्यकता

(Importance or Need of Product Planning) 

  1. विपणन कार्यक्रम का आधार (Basis of Marketing Programme)-उत्पाद नियो। सम्पूर्ण विपणन कार्यक्रम का आधारभूत एवं प्रारम्भिक कार्य है। स्टेण्टन के अनुसार, “उत्पाद निसार संस्था के सम्पूर्ण विपणन कार्यक्रम का प्रारम्भिक बिन्दु है।” उत्पाद नियोजन के माध्यम से वस्तुओं का उत्पादन करने का प्रयास किया जाता है जो आसानी से एवं यथाशीघ्र बिक सके।
  2. उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं की पूर्ति (Meet out the Consumer Needs)-उत्पात तथ नियोजन का कार्य उपभोक्ता की आवश्यकताओं, इच्छाओं, पसन्दगी, नापसन्दगी, वरीयताओं आदि जानने से ही प्रारम्भ होता है। अत: इस कार्य के परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं की इच्छाओं आवश्यकताओं को भली प्रकार पूरा किया जा सकता है। _ 
  3. सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह (Discharge of Social Responsi- bilities आधुनिक युग में प्रत्येक संस्था का सामाजिक दायित्व होता है। अच्छे उत्पाद नियोजन सेवा उपभोक्ताओं, स्थानीय समुदाय एवं देश के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह कर सकती है। इनसे उपभोक्ता एवं समाज के जीवन-स्तर में सुधार होता है। उत्पाद नियोजन से देश के संसाधनों कासदुपयोग होता है। इससे देश के प्रति दायित्वों का निर्वाह भी सम्भव है।
  4. उपक्रम की लाभ क्षमता में वृद्धि (Increase in Profit Capacity of the Enterprise)विपणनकर्ता का प्रमुख उद्देश्य दीर्घकाल में अपने लाभों को अधिकतम करना होता है। इसके लिये अं केवल उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन किया जाना चाहिए जिनको लाभों के साथ आसानी से बेचा जा सके। उत्पाद नियोजन में ये सभी बातें सम्भव हैं।
  5. संसाधनों का सदुपयोग (Proper Utilisation of Resources)-उत्पाद नियोजन संस्था के संसाधनों के सदुपयोग में सहायक है। उत्पाद नियोजन के अन्तर्गत उचित उत्पादों को खोजा जाता है उ तथा उनका विपणन परीक्षण किया जाता है। विद्यमान उत्पादों में आवश्यक सुधार एवं परिवर्तन किय । जाता है और अलाभकारी उत्पादों को संस्था की उत्पाद श्रृंखला से हटाया जाता है। इन सबके । परिणामस्वरूप संस्था उन उत्पादों का निर्माण कर पाती है जिनकी बाजार में माँग होती है। फलत: । संस्था के संसाधनों का सदुपयोग सम्भव है।
  6. प्रतिस्पर्धी क्षमता में वृद्धि (Increased competitive Capacity)-अच्छा उत्पाद नियोजन संस्था के उत्पादों को अच्छा एवं मितव्ययी बना सकता है। इससे संस्था की बाजार में प्रतिस्पर्धी क्षमता में अभिवृद्धि होती है।
  7. लागतों में कमी (Reduced Cost)-अच्छे उत्पाद नियोजन से संस्था के संसाधनों क अपव्यय नहीं होता है। इसके अतिरिक्त अच्छे उत्पाद नियोजन से निर्मित उत्पादों को बेचना भी आसान होता है, अधिक संवर्द्धनात्मक एवं वितरण व्यय नहीं करने पड़ते हैं। फलत: संस्था की लागतों में भी कमी आती है।
  8. कानूनी दायित्वों का निर्वाह (Discharge of Legal Obligations)- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ताओं को अनेक अधिकार प्रदान करता है। यदि कोई उत्पाद उचित किस्म, प्रमाण एवं निष्पादन क्षमता का नहीं होता है तो उत्पादक/व्यवसायी उसकी क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी होता है। अच्छ उत्पाद नियोजन करके उत्पादक/व्यवसायी स्वत: ही अपने वैधानिक दायित्वों से सुरक्षित हो जाता है।
  9. सुविधाजनक उत्पाद (Convenient Product)-उत्पाद नियोजन से उपभोक्ताओं को अधिन सुविधाजनक उत्पाद उपलब्ध हो सकते हैं। उत्पाद नियोजन के द्वारा उत्पाद का आकार, रंग, रूप डिजाइन आदि उपभोक्ता की सुविधा को ध्यान में रखकर ही बनाये जाते हैं। फलतः उपभोक्ताओं के अधिक सुविधाजनक उत्पाद मिलने लगे हैं।
  10. दोष-रहित उत्पाद (Products Free-From Defects or Zero Defect Products)-उप नियोजन का एक लाभ यह है कि उपभोक्ताओं को दोष-रहित उत्पाद उपलब्ध होने लगे हैं। उत्पाद रंग, रूप, आकार, किस्म आदि का निर्धारण करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता ह उसमें दोष न हो। टीवी, फ्रीज, स्कूटर, दैनिक उपयोग की छोटी से छोटी वस्त को दोष रहित उपल बनाने पर जोर दिया जा रहा है। यह कुशल उत्पाद नियोजन से ही सम्भव है।

11. व्यापक क्षेत्र (Wide Scope)-उत्पाद नियोजन का क्षेत्र व्यापक है। इसमें वस्तु का विका नवाचार, नाम, रंग, रूप, आकार, मूल्य, किस्म, ब्राण्ड, पैकेजिंग आदि का समावेश है।

उत्पाद नियोजन एवं विकास का क्षेत्र

(Scope of Product Planning and Development)

 उत्पाद नियोजन एवं विकास एक व्यापक कार्य है जिसके क्षेत्र में निम्नलिखित प्रमुख क्रियाएँ नया सम्मिलित हैं।

  1. उत्पाद निर्णय (Product Decision)-यह उत्पाद नियोजन का सर्वप्रथम कदम है। किसी भी पाट का उत्पादन करने से पूर्व उत्पादक/निर्माता यह देखता है कि किस उत्पाद की बाजार में मांग है तथा कौन-सा उत्पाद अधिक बेचा जा सकता है ताकि उसी के अनुरूप साधनों को जुटाया जा सके।
  2. उत्पाद लक्षणों का निर्धारण (Determining Product Attributes)-उत्पाद नियोजन के अन्तर्गत उत्पाद लक्षणों का निर्धारण भी सम्मिलित है। उत्पाद किस्म, रंग, डिजाइन व आकार, ब्राण्ड, पैकेजिंग तथा लेबलिंग आदि प्रमुख उत्पाद लक्षण हैं। उत्पाद गुणों के सम्बन्ध में कुछ गारण्टी या वारण्टी देने की भी प्रथा है। अत: उत्पादकों को उत्पादों पर प्रदत्त गारण्टियों व आश्वासनों का उल्लेख भी करना चाहिए। __
  3. उत्पाद का मूल्य (Product Price)-किसी भी उत्पाद का मूल्य उसकी बिक्री को सर्वाधिक प्रभावित करता है। अतः उत्पाद नियोजन में उत्पाद की कीमत पर विशेष ध्यान दिया जाता है। एक ना ग्राहक उत्पाद के अन्य गुणों के साथ-साथ विभिन्न उत्पादों के मूल्यों की सापेक्षिक तुलना भी करता है। उत्पाद की कीमत काफी सोच-समझकर ही निर्धारित की जानी चाहिए।
  1. उत्पाद नवाचार (Product Innovations)-उत्पाद नवाचार, उत्पाद नियोजन का महत्त्वपूर्ण अंग है। उत्पाद नवाचार से आशय उत्पाद में नवीनता लाना है। ।
  2. उत्पाद परित्याग या विलोपन (Product Dropping or Removing)-उत्पाद नियोजन में उत्पाद परित्याग की क्रिया भी सम्मिलित है। इसमें विद्यमान उत्पाद का मूल्यांकन किया जाता है। यदि स्था मूल्यांकन से यह ज्ञात होता है कि उत्पाद अब अलाभकारी हो गया है तो उसको संस्था की उत्पाद-श्रृखला से हटा दिया जाता है।
  3. उत्पाद संशोधन एवं परिवर्तन (Product Modification and Alteration)-उत्पाद नियोजन सबा के अन्तर्गत उत्पाद संशोधन एवं परिवर्तन कार्य भी सम्मिलित है। ऐसा परिवर्तन या संशोधन उत्पाद की फल किस्म, रंग, रूप, आकार, पैकेजिंग, डिजाइन आदि में किया जाता है।
  4. उत्पाद सरलीकरण एवं विविधीकरण (Product Simplification and Diversification)उत्पाद नियोजन के क्षेत्र में उत्पाद सरलीकरण एवं विविधीकरण को सम्मिलित किया जाता है।

8. उत्पाद के नये प्रयोगों की खोज करना (To Search the New Uses of Product)उत्पाद के नये-नये प्रयोगों की खोज करना भी उत्पाद नियोजन एवं उत्पाद विकास के क्षेत्र के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है। नये-नये प्रयोगों का अर्थ है कि उत्पाद को किन-किन नये कार्यों में प्रयोग ना किया जा सकता है ? इस कार्य के लिये अनुसन्धान किया जाता है जो कि उपभोक्ता एवं उत्पाद दोनों आस से सम्बन्धित होता है।


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