Advertisement B.Com 3rd Year Notes – Principles Of Marketing B.Com Study Notes

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विज्ञापन का अर्थ एवं परिभाषाएँ

(Meaning and Definitions of Advertisement) 

विज्ञापन दो शब्दों से मिलकर बना है, वि + ज्ञापन। वि का अर्थ है विशेष या विशिष्ट और ज्ञापन पान कराना अर्थात् विशेष ज्ञान कराने को ही विज्ञापन कहते हैं। साधारण भाषा में विज्ञापन का आशय वस्तु के सम्बन्ध में विशेष या विशिष्ट जानकारी देने से लगाया जाता है परन्तु यह विचारधारा भाप में पूर्ण नहीं है। आधुनिक युग में विज्ञापन का क्षेत्र व्यापक होता जा रहा है। वर्तमान समय मापन के अन्तर्गत उन सभी क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है, जिनके द्वारा जनता को वस्तुओं नवाओं के सम्बन्ध में जानकारी देने के साथ-साथ उन्हें क्रय करने के लिए भी प्रेरित किया जाता हैं।

वुड (Wood) के अनुसार, “विज्ञापन जानने, स्मरण रखने तथा कार्य करने की एक विधि है।”

सी० एल० बोलिंग के अनुसार, “विज्ञापन को वस्तु या सेवा की माँग उत्पन्न करने की कला कहा जा सकता है।”

लस्कर के अनुसार, “विज्ञापन मुद्रण के रूप में विक्रय कला है।”

व्हीलर (Wheeler) के अनुसार, “विज्ञापन लोगों को क्रय करने के लिये प्रेरित करने के उद्देश्य से विचारों, वस्तुओं तथा सेवाओं का अवैयक्तिक प्रस्तुतीकरण है जिसके लिये भुगतान किया जाता है।”

अमेरिकन मार्केटिंग एसोसियेशन (American Marketing Association) के अनुसार, “विज्ञापन एक परिचय प्राप्त प्रायोजक द्वारा अवैयक्तिक रूप से विचारों, वस्तुओं या सेवाओं को प्रस्तुत करने तथा संवर्द्धन करने का एक प्रारूप है जिसके लिये भुगतान किया जाता है।”

विज्ञापन माध्यम का चुनाव करते समय ध्यान रखने योग्य बातें

(Factors to be Considered While Selecting Advertising Media) 

किसी वस्तु के विज्ञापन में विज्ञापन माध्यम का महत्वपूर्ण स्थान होता है। विज्ञापन का उद्देश्य जन-सामान्य को प्रभावित करना होता है और जन-सामान्य कभी-भी समान प्रवृत्तियों, भावनाओं, विचारों, संस्कृति व इच्छाओं वाला नहीं हो सकता। सामान्यत: विज्ञापन के माध्यम का चुनाव करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए__

  1. वस्तुओं की प्रकृति (Nature of the Product)-वस्तुएँ अनेक प्रकार की होती हैं, जैसे-खाद्य सामग्री की वस्तुएँ, अन्य मानवीय आवश्यकताओं सम्बन्धी वस्तुएँ, कृषि एवं व्यापारिक आवश्यकताओं सम्बन्धी वस्तुएँ। इन विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के लिए विभिन्न प्रकार के माध्यम उपयुक्त रहते हैं। अत: माध्यम के चुनाव में वस्तु की प्रकृति भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है।
  2. जनता का वर्ग (Class of Peoples)-जनता में कई वर्ग होते हैं, जैसे-धनवान, मध्यम, राब वर्ग आदि। मध्यम एवं धनी वर्ग के लिये विज्ञापन उच्च किस्म की पत्र-पत्रिकाओं, अखबारों, दलाविजन आदि के माध्यम से किया जाता है। निम्न वर्ग के लिये विज्ञापन का माध्यम भी उनके शिक्षा स्तर पर ही निर्भर करेगा।
  3. बाजार की प्रकृति (Nature of the Market)-यदि वस्तु का बाजार सम्पूर्ण देश है तो ट्रीय स्तर पर विज्ञापन करना होगा। जबकि यदि वस्तु का बाजार किसी स्थान विशेष तक सीमित है उस स्थान विशेष के समाचार पत्रों, स्थानीय रेडियो स्टेशनों, कार-कार्ड आदि से विज्ञापन किया जाता है।
  4. विज्ञापन का उद्देश्य (Object of the Advertising)-किसी विज्ञापन माध्यम के चुनाव पर उद्दश्य का प्रभाव पड़ता है, जैसे-यदि विज्ञापन तुरन्त कराना है तो इसके लिये समाचार-पत्र व क है। इसी प्रकार यदि विज्ञापन का उद्देश्य दीर्घकालीन प्रभाव डालना है तो पत्रिकाएँ ठीक हैं। 

5. सन्देश सम्बन्धी आवश्यकताएँ (Message Requirement)-विज्ञापन सन्देशों को सभी ध्यम से एक-सा प्रसारित नहीं किया जा सकता है, जैसे-यदि किसी विज्ञापन में चित्र या प्रदर्शन कराना आवश्यक है तो ऐसा विज्ञापन टेलीविजन से कराना उचित होगा। इसी प्रकार की विज्ञापन का सन्देश छोटा है तो उसको समाचार-पत्र व पत्रिकाओं में दिया जा सकता है।

  1. माध्यम की लागत (Media Cost)_अधिकांश व्यावसायिक संस्थाओं के पास सीमित वित कोष होते हैं, अत: प्रत्येक संस्था में उन सीमित कोषों का अधिकाधिक लाभप्रद ढंग से प्रयोग करने प्रयास करना चाहिए जिससे कि उनके द्वारा अधिकाधिक लाभ प्राप्त किया जा सके।

7.माध्यम की प्रतिष्ठा (Media Character) माध्यम के चुनाव में माध्यम की प्रतिमा ध्यान रखना चाहिए। एक समाचार-पत्र, पत्रिका की प्रतिष्ठा का अनुमान उसके पाठकों की ” सम्पादकीय तथा इसमें दिये जाने वाले विज्ञापनों के आधार पर लगाया जा सकता है। 

  1. माध्यम का चलन (Circulation of the Media)-विज्ञापन माध्यम का चुनाव करते पर माध्यम के चलन का भी ध्यान रखना चाहिए और उसी माध्यम को चुनना चाहिए जिसका चलन पर अधिक हो।
  2. विभिन्न माध्यमों का तुलनात्मक अध्ययन (Comparative study of Different Media)-विज्ञापन के माध्यमों के चुनाव से पूर्व सब माध्यमों का तुलनात्मक अध्ययन करना चाहिए।

विज्ञापन के विभिन्न माध्यम अथवा प्रकार

(Different Forms or Types of Advertising Media) 

विज्ञापन करने के लिये विज्ञापन के साधनों अथवा माध्यमों की जानकारी होना आवश्यक है क्योंकि सही प्रकार के माध्यम के चुनाव से उसको अपने व्यापार की प्रसिद्धी में पूर्ण सफलता मिल सकती है। आजकल विज्ञापन के विभिन्न साधन प्रचलित हैं जिनको निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है-

एक अच्छी विज्ञापन प्रति के आवश्यक गुण

(Essentials of a Good Advertising Copy)

प्रभावी विज्ञापन में अथवा एक विज्ञापन प्रतिलिपि को प्रभावकारी बनाने के लिये उसन निम्नलिखित बातों का होना आवश्यक है-

  1. ध्यानाकर्षण करना (Attracting Attention)-विज्ञापन प्रति का सबसे महत्वपूर्ण जनसाधारण का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना है। इसके लिये प्रतिलिपि में बड़े-बड़े शाप उपशीर्षक, चित्र, रंगों आदि का उपयोग किया जा सकता है जिससे कि जनसाधारण ऐसे विज्ञापना देखने के लिये विवश हो जाये और उनकी निगाह ऐसी विज्ञापन प्रतिलिपि पर अवश्य पड़ जाए।

2.रूचि उत्पन्न करना (Arousing Interest)-एक विज्ञापन प्रतिलिपि का महत्वपूर्ण तत्व वालों में रूचि उत्पन्न करना होना चाहिए। इसके लिये विज्ञापन को मनोरंजक बनाया जाता है। कि जनता उसको पढ़े। रूचि उत्पन्न करन म चित्र, कहानी, वार्तालाप आदि का भी समुचित उपयोग हो

  1. समझने योग्य (Understandable)-विज्ञापन प्रतिलिपि ऐसी होनी चाहिए कि उसकी भाषा को एक साधारण व्यक्ति भी समझ सके और उसको समझने के लिये किसी शब्दकोष की अन्य व्यक्ति को आवश्यकता न रहे।
  2. विश्वास करने योग्य (Believable)-एक अच्छी विज्ञापन प्रतिलिपि में ऐसा गुण होना चाहिए कि उसको पढने या देखने पर विश्वास हो जाए कि जो भी उसमें लिखा या चित्रित किया गया है वह सही हैं। इसके लिये अतिश्योक्ति की बातें न करके सत्य का आचरण करना चाहिए।
  3. उपयोगिता सिद्ध करना (Prove Utility)-विज्ञापन प्रतिलिपि ऐसी होनी चाहिए कि वह वस्तु की उपयोगिता को सिद्ध करती हो ताकि ग्राहक उसको खरीदने के लिये प्रेरित हो, उदाहरण के लिये न खाइये और सर दर्द से छुटकारा पाइये।
  4. नवीनता दर्शाना (Demonstrating Novelty)-विज्ञापन प्रतिलिपि ऐसी होनी चाहिए कि में नवीनता दर्शायी जाये जिससे कि ग्राहकों को उत्सुकता पैदा हो जैसे-अपने मनचाहे रंगों में लक्स बन लीजिए इससे वस्तु की नवीनता का आभास होता है।
  5. सजनात्मक होना (Be Creative)-विज्ञापन सृजनात्मक होना चाहिए जो ग्राहकों का सृजन माने में समर्थ हो। विज्ञापन में नये-नये ग्राहकों का सृजन करने की क्षमता होनी चाहिए। 

विज्ञापन की प्रभावोत्पादकता मूल्यांकन की विधियाँ या तरीके

(Methods of Evaluating Advertising Effectiveness) 

फिलिप कोटलर ने विज्ञापन की प्रभावोत्पादकता के मूल्यांकन की निम्नलिखित दो विधियों का उल्लेख किया है-

  1. संचार प्रभाव सम्बन्धी अनुसंधान (Communication EffectResearch),
  2. विक्रय प्रभाव सम्बन्धी अनुसंधान (Sales Effect Research)। 

।. संचार प्रभाव सम्बन्धी अनुसंधान 

(Communication Effect Research)

किसी विज्ञापन कार्यक्रम की प्रभावोत्पादकता दो प्रकार से मापी जा सकती है। एक तो विज्ञापन प्रति को विज्ञापन माध्यम को भेजने से पूर्व मापना कि क्या वह विज्ञापन प्रभावकारी होगा ? इसको पूर्व परीक्षण (Pre testing) कहते हैं। दूसरे, जब विज्ञापन जनता तक पहुँच जाता है तब उसकी प्रभोत्पादकता आँकी जाती है इसको विज्ञापन के बाद परीक्षण (After testing) कहते हैं। संचार अनुसन्धान के लिए सामान्यतया निम्नलिखित परीक्षण प्रयोग किये जा सकते हैं-

  1. सम्मति अनुसंधान (Opinion or Ranking Test)-इस विधि को उपभोक्ता पंच परीक्षण (Test of Consumer Jury) भी कहते हैं। यह पूर्व परीक्षण (Pre testing) की विधि है। इस विधि के अन्तर्गत सम्भावित उपभोक्ताओं की कुछ पैनलें (Pannels) तैयार की जाती हैं। प्रत्येक पैनल में सभी प्रकार के ग्राहकों के 8 से लेकर 10 सदस्य हो सकते हैं। इस विधि के अन्तर्गत प्रस्तावित विज्ञापनों के पैनलों को दिखाया जाता है और उन पैनलों की प्रतिक्रियायें एवं टिप्पणियाँ आमन्त्रित की जाती हैं। ऐसे परीक्षण के निष्कर्षों को निम्नांकित दो तरीकों द्वारा अभिलिखित किया जा सकता है

(i) योग्यता क्रम परीक्षण (Order or Merit Test)-इसके अन्तर्गत उपभोक्ताओं को विज्ञापन का अनेक प्रतिलिपियाँ दी जाती हैं और प्राथमिकताएँ देते हुए अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने को कहा जाता है। उपभोक्ता, योग्यता के अनुसार प्राथमिकताएँ देते हैं। दूसरे शब्दों में, सबसे अच्छी लगने वाली जात को प्रथम और सबसे खराब प्रति को अन्तिम प्राथमिकता दी जाती है। उपभोक्ताओं की इन नाथामकताओं के विश्लेषण द्वारा निष्कर्ष निकाल लिया जाता है।

(ii) तुलनात्मक यगल परीक्षण (Paired Comparison Test)-इसके अन्तर्गत उपभोक्ताओं को विज्ञापन प्रतियों को जोडे में दिया जाता है और सर्वोत्तम का चुनाव करने के लिए कहा जाता है। इसमें विज्ञापन प्रतियों की एक-दसरे से तुलना जोड़ों के आधार पर की जाती है। जोड़ों के आधार पर “” का कार्य तब तक चलता रहता है जब तक कि सभी प्रतियों की एक-दूसरे से तुलना न हो जाये। जो विज्ञापन की प्रति सबसे ज्यादा बार पसन्द की जाये, उसे ही सर्वोत्तम प्रतिलिपि के रूप में चुन लिया जाता है।

2. स्मृति परीक्षण (Memory Tests)-स्मृति परीक्षणों का प्रयोग विज्ञापन के ध्यानाकर्षण चका जानने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, उपभोक्ताओं या विज्ञापन प्रत्यर्थी *ण्डा के लिए विज्ञापन की प्रति को दिखाया जाता है इसके कुछ समय बाद प्रत्यर्थी से विज्ञापन के तत्वों के सम्बन्ध में उसे जो भी याद रहा हो, बताने के लिए अनुरोध किया जाता प्रकार के परीक्षणों से यह ज्ञात किया जा सकता है कि विज्ञापन उपभोक्ताआ का ध्यान किस सीमा आकर्षित करने में सफल हो सकेगा।

  1. विक्रय प्रभाव सम्बन्धी अनुसंधान (Sales Effect Research)

विज्ञापन अभियानों का प्रमुख उद्देश्य विक्रय मात्रा में वृद्धि करना होता है। अत: किसी दिन विज्ञापन अभियोग के पश्चात विक्रय मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ा है यह जानने के लिए विक्रय विश्लेषण किया जाता है। विक्रय प्रभाव सम्बन्धी अनुसंधान विधि में दो क्षेत्रों को चुना जाता है जिन्हें परीक्षण क्षेत्री नियन्त्रण क्षेत्र कहा जाता है। परीक्षण क्षेत्र वह क्षेत्र होता है जहाँ विज्ञापन किया जाता है और क्षत्र वह होता है जहाँ विज्ञापन नहीं किया जाता। मान लीजिये कि विज्ञापन प्रारम्भ करने से पहले क्षेत्रों में विक्रय की मात्रा समान हो तो यदि विज्ञापन प्रारम्भ करने से परीक्षण क्षेत्र में विक्रय की में पर्याप्त वृद्धि हो जाती है तो यह माना जाता है कि विज्ञापन प्रभावशाली रहा। यह उल्लेखनीय परीक्षण क्षेत्र में नियन्त्रण क्षेत्र की तुलना में विक्रय की मात्रा में पर्याप्त वृद्धि होनी चाहिए, तभी विज्ञापन प्रभावोत्पादक कहलायेगा।

विज्ञापन के उद्देश्य

(Objects of Advertisement) 

विज्ञापन के उद्देश्यों के सम्बन्ध में विलियम जे० स्टेण्टन ने कहा है कि “विज्ञापन का एक मात्र उद्देश्य कुछ बेचना है-उत्पाद, सेवा या कोई विचार”। फिलिप कोटलर के अनुसार, “विज्ञापन का उद्देश्य सम्भावित ग्राहकों को फर्म के प्रस्तावों के प्रति अधिक अनुकूल बनाना है।”  विज्ञापन के उद्देश्यों का विधिवत् अध्ययन करने के लिए उसे दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-

  1. विज्ञापन के मुख्य उद्देश्य

(i) नव-निर्मित वस्तुओं के सम्बन्ध में जनता को उचित जानकारी देना, (ii) वस्तुओं या सेवाओं की माँग उत्पन्न करना। (iii) वस्तुओं या सेवाओं की माँग को स्थिर बनाये रखना। (iv) वस्तुओं या सेवाओं की माँग को बढ़ाना। (v) जन साधारण को वस्तु एवं सेवाओं के उपयोग समझाना। (vi) विक्रेताओं के प्रयत्नों में सहायता पहुँचाना। (vii) व्यावसायिक सम्बन्धों में सुधार करना। (viii) उत्पादक या निर्माता की ख्याति में वृद्धि करना। 

  1. विज्ञापन के सहायक उद्देश्य

विज्ञापन के सहायक उद्देश्य निम्नलिखित हैं-(i) अन्धविश्वासों एवं कुरीतियों के दोष समझाकर उन्हें समाप्त करना, नौकरी प्राप्त करने तथा जीवन साथी चुनने जैसे अनेक सामाजिक कार्य सम्पन्न करने में सहायता प्रदान करना, (ii) व्यक्तियों या संस्थाओं का प्रचार करना, (iii) आर्थिक याजना र सफल बनाने में सहायता प्रदान करना। (iv) उत्पादन एवं वितरण लागत को कम करना। (v) जनता क महत्वपूर्ण सूचनायें देना।

विज्ञापन का महत्व या लाभ

(Importance or Advantages of Advertising) 

आज विज्ञापन की चारों ओर धूम मची हुई है। वाटसन वड ने ठीक ही कहा है कि, “जह – हम हैं, विज्ञापन हमारे साथ है।” जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञापन का महत्वपूर्ण स्थान है। व्यवसाय के लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण समाज के लिए हितकारी है। इसीलिए कहा जाता है। “विज्ञापन लाभप्रद है” अथवा “विज्ञापन विनियोग है।” विन्सटन चर्चिल के अनसार, “विज्ञान के बिना, टकसाल के अतिरिक्त, काई भी धन उत्पन्न नहीं कर सकता है।” विज्ञापन के महत्व निम्नलिखित प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. उत्पादकों या निर्माताओं को लाभ-विज्ञापन उत्पादकों एवं निर्माताओं के लिए अपरिहाय उत्पादकों को विज्ञापन से निम्नांकित लाभ प्राप्त होते हैं –

(i) नवनिर्मित वस्तुओं की माँग में वृद्धि  (ii) उत्पादन में वृद्धि  (iii) नियमित स्थिर माँग (iv) ख्याति में वृद्धि (v) वस्तुओं के प्रति विश्वास  (vi) उत्पादन एवं वितरण लागत में कमी (vii)मध्यस्थों की अधिक रूचि।

  1. उपभोक्ताओं को लाभ-उपभोक्ता भी विज्ञापन से लाभान्वित होते हैं। उपभोक्ताओं को विज्ञापन से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं –

(i) उपभोक्ताओं के ज्ञान में वृद्धि (ii) वस्तुओं के स्रोतों की जानकारी  (iii) समय की बचत  (iv) रहन-सहन के स्तर में वृद्धि (v) वस्तुओं के चुनाव में सुविधा  (vi) अच्छी किस्म के माल की प्राप्ति  (vii) क्रय की सुविधा 

  1. समाज को लाभ-विज्ञापन से समाज एवं देश को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं-

(i) रोजगार में वृद्धि  (ii) जीवन स्तर में वृद्धि  (iii) समाचार पत्रों की आय में वृद्धि  (iv) स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का विकास  (v) अनुसन्धान को प्रोत्साहन

विज्ञापन की हानियाँ/दोष अथवा आलोचनाएँ

(Evils/Disadvantages or Criticism of Advertising) 

विज्ञापन के अनेक लाभ होते हुए भी इसको दोष से मुक्त नहीं कहा जा सकता। विज्ञापन की अनेक कमियों के कारण ही विभिन्न व्यक्तियों द्वारा विज्ञापन की निरन्तर आलोचनायें की जाती रही हैं। आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से विज्ञापन के प्रमुख दोष अथवा आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं- 1.धन का अपव्यय (Extravagance of Money)-विज्ञापन उपभोक्ता को उन वस्तुओं को खरीदने के लिये प्रेरित करता है जिनकी आवश्यकता नहीं है या जो उसके स्तर को देखते हुए विलासिता की है। इस प्रकार ऐसी वस्तुओं पर उसके द्वारा किया गया व्यय अपव्यय ही होता है।

  1. एकाधिकार को प्रोत्साहन-कुछ निर्माता अपनी वस्तु का निरन्तर विज्ञापन कराके बाजार पर एकाधिकार जमा लेते हैं और उपभोक्ताओं से अधिक कीमत वसूल करके उनका शोषण करने लगते हैं।
  2. मिथ्या प्रचार (Misleading Advertising)-विज्ञापन में अधिकांशत: मिथ्या वर्णन होता है, तथा अनेक विज्ञापन कपट पर आधारित होते हैं। विज्ञापन करने वाले अधिक मूल्यवान वस्तुओं को कम मूल्य पर देने का विज्ञापन करते हैं। उपभोक्ता ऐसे विज्ञापन के चक्कर में पड़ जाता है।
  3. अश्लील विज्ञापनों से हानियाँ (Loss Due to obscenely Advertising)-विज्ञापन में मा-कभी बहुत से चित्र अश्लील भी होते हैं जिनका समाज पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
  4. चंचलता (Instability)-विज्ञापन उपभोक्ताओं के मन को चलायमान कर देता है क्योंकि वह मापन की चमक-दमक से बहत प्रभावित हो जाता है। ऐसी स्थिति में वह उस वस्तु को नहीं खरीद पाता जिसको कि वह वास्तव में खरीदना चाहता है बल्कि उस वस्तु को खरीदता है जिसने उसके मन को मोह लिया है।
  5. सामाजिक बुराइयाँ (Social Evils) विज्ञापन अधिकतर आरामदायक एवं विलासिता सम्बन्धी के लिए किया जाता है। इसके कई सामाजिक दुष्परिणाम निकलते हैं। किन्हीं व्यक्तियों को जब किसी एक चीज के उपभोग करने की बरी आदत पड़ जाती है तो उसका छूटना बहुत कठिन होता है, रिट तथा शराब पीना। आजकल विभिन्न प्रकार की सिगरेटों तथा शराब का प्रचार विभिन्न तराकों से किया जा रहा है. जैसे- “Smoking adds to personality”, “Wine is symbol of friendship”. इन विज्ञापनों से प्रभावित होकर बहुत से व्यक्ति सिगरेट तथा शराब पीना आरम्भ कर देते हैं, बाद में यह आदत छूटती नहीं हैं।

7. प्रतिस्पर्धा का जन्म (Birth to Competition)-जिन संस्थानों के पास विज्ञापन के लिए पर्याप्त साधन होते हैं। वे दूसरी संस्थाओं जिनके पास पर्याप्त वित्तीय साधन नहीं है, से अनार्थिक प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिससे कम वित्तीय साधन वाली संस्थाओं को हानि पहुंचती है। कभी प्रतिस्पर्धा के कारण वस्तु की कीमत में कमी करनी पड़ती है, जिसका वस्तु की किस्म पर बरा पड़ता है। 

  1. शहरों के प्राकृतिक सौन्दर्य का विनाश (Loss of Natural Beauty)-दीवारों, चौरा होने वाले विज्ञापनों से शहर का प्राकृतिक सौन्दर्य ही नष्ट हो जाता है क्योंकि शहरों में जगहपोस्टर और साईन बोर्ड दिखाई देते हैं।
  2. देश के साधनों का अपव्यय (Wastage of National Resources)-विज्ञापन के द्वारा में परिवर्तन होता रहता है जिससे देश का बहुत-सा उत्पादन पुराना एवं अप्रचलित हो जाता कारण देश के साधनों का अपव्यय होता है। इसके अतिरिक्त उत्पादन के साधनों का प्रयोग किया किया जाता है, जिससे प्रत्यक्ष रूप से उत्पादन में वृद्धि नहीं होती।
  3. फैशन परिवर्तन (Changing Fashion)-विज्ञापन फैशन में परिवर्तन करता है प्रभाव उपभोक्ता व मध्यस्थ दोनों पर पड़ता है। उपभोक्ता को फैशन वाली वस्तु खरीदने में ज्यादा करना पड़ता है तथा मध्यस्थ को फैशन में परिवर्तन होने से हानि होती है क्योंकि उसकी वस्त या को बिकती नहीं है या कम मूल्य पर बेचनी पड़ती हैं।
  4. खर्चीला (Expensive)-विज्ञापन पर पर्याप्त मात्रा में व्यय करना पड़ता है जो किसी न किसी रूप से वस्तु के मूल्य में वृद्धि करता है और जिसका अन्तिम बोझ उपभोक्ता पर ही पड़ता है। 

विज्ञापन की उपर्युक्त आलोचनाओं एवं दोषों के होते हुए भी यह कहा जा सकता है कि विज्ञापन आज के प्रगतिशील युग की अनिवार्यता है, जिसका सहारा लिए बिना कोई भी व्यवसायी सफलता की | मंजिल प्राप्त नहीं कर सकता है।


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