B.Com 2nd Year Company Management And Meetings Long Notes

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1 – आन्तरिक प्रबन्ध के सिद्धान्त का विस्तार से वर्णन कीजिए। इसके क्या अपवाद हैं ?

Explain the doctrine of indoor management. What are its exceptions? 

उत्तर – आन्तरिक प्रबन्ध (संचालन) का सिद्धान्त

(Doctrine of Indoor Management) 

‘रचनात्मक समूह’ सिद्धान्त के अनुसार यह माना जाता है कि प्रत्येक उस व्यक्ति न कम्पनी के साथ व्यवहार कर रहा है, न केवल सीमानियम व अन्तर्नियमों को पढ़ लिया बल्कि उनके प्रावधानों को सही अर्थों में समझ भी लिया है। अत: यदि वह कम्पनी के साथ ऐसा अनुबन्ध करता है जो इन प्रलेखों द्वारा प्रदत्त अधिकार क्षेत्र के बाहर है तो वह अनुबन्ध के क्रियान्वयन हेतु कम्पनी पर वाद प्रस्तुत नहीं कर सकता। परन्त बाहरी व्या यह कार्य कदापि नहीं है कि वह यह देखे कि कम्पनी की आन्तरिक कार्यवाहियाँ नियमा या नहीं। जैसे अन्तर्नियमों ने संचालकों को कोई अधिकार दिया है तो बाहरी व्यक्ति, करने के लिए कि कम्पनी से अमुक व्यवहार संचालकों के अधिकार में है या नहीं,

देखेंगे कि इस अधिकार का प्रयोग जिस सभा द्वारा किया जाना चाहिए था, वह उचित प्रकार बलाई गई थी या नहीं तथा उनमें कोरम पूरा था या नहीं आदि। ये विषय कम्पनी के आन्तरिक प्रबन्ध से सम्बन्धित हैं। संक्षेप में, कम्पनी के साथ आर्थिक या व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करते समय बाहरी व्यक्तियों का यह कर्त्तव्य नहीं है कि वे कम्पनी के आन्तरिक प्रबन्ध की उचित क्रियाशीलता की जाँच करें। वे यह मानकर कम्पनी से सम्बन्ध स्थापित कर सकते हैं कि । आन्तरिक प्रबन्ध से सम्बन्धित कार्यवाहियाँ नियमानुसार कर ली गई होंगी। इस मान्यता को ही आन्तरिक प्रबन्ध (संचालन) का सिद्धान्त कहते हैं।

केस लॉ (Case Law)-इस सिद्धान्त का प्रतिपादन सन् 1856 में रॉयल ब्रिटिश बैंक बनाम टरक्वैड नामक विवाद में किया गया था। इस विवाद में कम्पनी के संचालकों को अन्तर्नियमों के अधीन बॉण्ड के निर्गमित करने का अधिकार था, यदि एक उचित प्रस्ताव द्वारा कम्पनी उन्हें ऐसा करने का अधिकार दे देती है। उन्होंने एक बॉण्ड टरक्वैड को दिया परन्तु इस | बॉण्ड के निर्गमन के पहले कोई भी प्रस्ताव कम्पनी द्वारा पास नहीं किया गया था। यह निर्णय दिया गया था कि टरक्वैड इस बॉण्ड के आधार पर कम्पनी पर वाद प्रस्तुत कर सकता था क्योंकि बाहरी व्यक्ति होने के नाते उसे यह मानने का अधिकार था कि कम्पनी द्वारा प्रस्ताव पास किया जा चुका था।

आन्तरिक प्रबन्ध के सिद्धान्त के अपवाद (Exceptions of the Doctrine of Indoor Management)-यद्यपि आन्तरिक प्रबन्ध के सिद्धान्त के अनुसार बाहरी व्यक्तियों को कम्पनी के आन्तरिक प्रबन्ध के कार्यों की नियमित जाँच करना आवश्यक नहीं है, परन्तु फिर भी इस सिद्धान्त के निम्नलिखित अपवाद हैं – 

1. अनियमितता का ज्ञान होने पर यह सिद्धान्त लागू नहीं होता है यदि कोई व्यक्ति कम्पनी के आन्तरिक नियम की अनियमितता से परिचित है और फिर भी वह कम्पनी के साथ व्यवहार करता है तो उसे इस सिद्धान्त का लाभ प्राप्त नहीं हो सकता।

2. अनियमितताओं की शंका होने पर लापरवाही बरतना – संदेहजनक परिस्थितियों में, जहाँ उचित जाँच-पड़ताल द्वारा अनियमितता का पता लगाया जा सकता है, लापरवाही बरतते हुए अनुबन्ध कर लेने पर भी यह सिद्धान्त लागू नहीं होगा।

3. कपटपूर्ण एवं व्यर्थ कार्य होने पर यह सिद्धान्त ऐसे व्यवहारों पर भी लागू नहीं होता जो प्रारम्भ से व्यर्थ अथवा कपटपूर्ण हैं और कम्पनी के नाम से किए गए हैं। सामान्यत: एक कम्पनी अपने अधिकारियों द्वारा की गई जालसाजियों के लिए उत्तरदायी नहीं होती है।

केस लॉ (Case Law) – रुबिन बनाम ग्रेट फिंगाल कन्सोलिडेटेड कम्पनी नामक है विवाद में कम्पनी के सचिव ने जाली अंश प्रमाण-पत्र बिना किसी अधिकार के निर्गमित कर ई दिया। धारक ने इस प्रमाण-पत्र के आधार पर धारित अंशों के सम्बन्ध में रजिस्टर्ड होने का वाद से प्रस्तुत किया। न्यायालय ने अंश प्रमाण-पत्र को जाली होने के आधार पर व्यर्थ घोषित कर दिया का और कहा कि जाली अंश प्रमाण-पत्र के अधीन धारक को कोई अधिकार प्राप्त नहीं होता है।

4. अन्तर्नियमों की अज्ञानता – एक व्यक्ति जो कम्पनी के साथ व्यवहार कर रहा है. कम्पनी के अन्तर्नियमों की जानकारी नहीं रखता है तो वह इस नियम का लाभ प्राप्त नहीं कर सकता।

5. सामान्यतया अधिकार क्षेत्र के बाहर कार्य – यदि कम्पनी का कोई अधिकारी या प्रतिनिधि बाहरी व्यक्ति के साथ ऐसा अनबन्ध कर रहा है जो सामान्यतया उसके अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत नहीं हो सकता, किन्तु बाहरी व्यक्ति, बिना यह जानकारी प्राप्त किए कि सम्बन्धित व्यक्ति उस कार्य के लिए अधिकत है अथवा नहीं उस अधिकारी के साथ यह सोचकर अनबन्ध करता है कि वह अधिकारी इस कार्य के लिए अधिकृत होगा, जबकि यह अधिकारी अधिकृत नहीं था, तो ऐसे व्यवहार को आन्तरिक प्रबन्ध के सिद्धान्त के आधार पर, कम्पनी पर बाधित

नहीं किया जा सकता।

6. कम्पनी के साधारण व्यापार से सम्बन्धित व्यवहार न होने पर यदि कम्पनी के साथ किए जाने वाला व्यवहार कम्पनी के साधारण व्यापार से सम्बन्धित नहीं है तो भी यह सिद्धान्त लागू नहीं होगा।

अपवाद (Exception)-उपर्युक्त नियम का एक अपवाद है जिसे ‘आन्तरिक प्रबन्ध का सिद्धान्त’ कहा जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार यदि बाहरी व्यक्ति द्वारा किए जाने वाला व्यवहार सीमानियम एवं अन्तर्नियमों के अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत है तो कम्पनी उन व्यवहारों से बाध्य होगी भले ही कम्पनी ने उन व्यवहारों के सम्बन्ध में कुछ आन्तरिक अनियमितताएँ बरती हो।

प्रश्न 2 – एक कम्पनी के संचालकों की नियुक्ति, संख्या तथा पारिश्रमिक के सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम, 2013′ की व्यवस्थाओं की विवेचना कीजिए।

Explain the provisions of the Companies Act, 2013′ for the appointment, number and remuneration of directors in a company.

उत्तर – निदेशकों की नियुक्ति (Appointment of Directors) (धारा 152)

1. प्रथम निदेशक, प्रवर्तकों द्वारा नियुक्त किए जाएँगे – प्राय: प्रवर्तक प्रथम निदेशकों की नियुक्ति करते हैं। यदि प्रवर्तक अपने अधिकार का प्रयोग नहीं करते हैं अर्थात् वे निदेशकों को नियुक्त नहीं करते हैं तो पार्षद सीमानियम के अभिदाताओं को कम्पनी का प्रथम निदेशक मान लिया जाता है। एक व्यक्ति वाली कम्पनी की दशा में एक व्यक्ति ही सदस्य होन के कारण इसका पहला निदेशक माना जाता है। निदेशकों की नियुक्ति से सम्बन्धित नियम प्रायः कम्पनी के अन्तर्नियमों में दिए होते हैं। प्रतिवर्ष ऐसे निदेशकों में से जो बारी-बारी से अवकाश ग्रहण करने वाले हैं कम-से-कम एक-तिहाई निदेशक अनिवार्य रूप से अवकाश ग्रहण कर परन्तु अवकाश ग्रहण करने वाले निदेशक पुन: नियुक्ति के योग्य होंगे। कम्पनी की निदेशक कम्पनी की प्रथम वार्षिक सभा समाप्त होने तक पद पर बने रहेंगे, अर्थात् व की प्रथम वार्षिक सभा में अवकाश ग्रहण करेंगे।

2. कम्पनी द्वारा निदेशकों की नियुक्ति (Appointment of Directors Company)-

(i) प्रथम वार्षिक सभा पर सभी प्रथम निदेशक और अन्य मामा तिहाई निदेशक बारी-बारी से अवकाश ग्रहण करेंगे।

(ii) इस अधिनियम में अन्यथा स्पष्ट प्रावधान होने के अतिरिक्त प्रत्येक निदेशक की नियुक्ति साधारण सभा में की जाएगी।

निदेशकों की नियुक्ति के लिए अयोग्यता (धारा 164)

(Disqualification for Appointment of Directors) 

1. एक व्यक्ति एक कम्पनी में निदेशक के रूप में नियुक्त होने के योग्य नहीं होगा; यदि

(i) वह अस्वस्थ मस्तिष्क वाला है। उसे सक्षम न्यायालय ने ऐसा घोषित किया है; 

(ii) वह एक अमुक्त (Undischarged) दिवालिया है;

(iii) उसने दिवालिया घोषित करने के लिए आवेदन किया है और उसका आवेदन लम्बित है;

(iv) उसे न्यायालय द्वारा किसी अपराध की सजा दी गई है चाहे नैतिक पतन (Moral Turpitude) के कारण या अन्यथा और उसको उस सम्बन्ध में कम-से-कम 6 माह की सजा हुई है और उसकी सजा समाप्त होने के बाद पाँच वर्ष की अवधि पूरी नहीं हुई है। परन्तु शर्त । यह है कि यदि उसे सात वर्ष या अधिक की सजा हुई है तो वह किसी भी कम्पनी में निदेशक नियुक्त करने के योग्य नहीं है।

(v) किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा उसे निदेशक के रूप में नियुक्त होने के, अयोग्य आदेश जारी किया गया है जो अभी लागू है;

(vi) उसने कम्पनी के अंशों पर बकाया याचना का भुगतान नहीं किया है अकेले या अन्यों के साथ और याचना देने की अन्तिम तिथि के बाद 6 माह बीत गए हैं;

(vii) पिछले पाँच वर्षों में उसे धारा 188 के अन्तर्गत सम्बन्धित पक्ष से लेन-देन के अपराध में सजा हुई है: या

(viii) उसने धारा 152 (3) का अनुपालन नहीं किया है। 

2. एक व्यक्ति जो एक कम्पनी का निदेशक है या रहा है जिसने

.(i) वित्तीय विवरण या वार्षिक विवरणी लगातार तीन वित्तीय वर्षों के लिए फाइल नहीं की है; या

(ii) इसके द्वारा स्वीकार किए गए निक्षेप या उन पर देय ब्याज या किसी ऋणपत्र को देय तिथि पर शोधित करने या उन पर देय ब्याज और घोषित लाभांश का भुगतान करने में असफल रहता है और ऐसी असफलता एक वर्ष या उससे अधिक अवधि के लिए रहती है, कम्पनी के निदेशक के रूप में या किसी अन्य कम्पनी में सम्बन्धित कम्पनी की असफलता की तिथि से पाँच वर्ष की अवधि के लिए पुन: नियुक्ति के योग्य नहीं होगा।

3. एक निजी कम्पनी अपने अन्तर्नियमों द्वारा निदेशक की नियुक्ति के लिए अतिरिक्त अयोग्यता के आधारों का प्रावधान कर सकती है

परन्तु शर्त यह है कि उपधारा (1) के वाक्यांश (iv), (v), (vi) प्रभावी नहीं होंगे-

(i) सजा या अयोग्यता के आदेश की तिथि से 30 दिन के लिए;

(ii) जहाँ इन 30 दिनों में सजा के विरुद्ध अपील या याचिका दायर की गई है तो 7 दिन क बातने तक अपील या याचिका का निर्णय होने के बाद; या

(iii) जहाँ इसके विरुद्ध 7 दिन में अपील या याचिका दायर की गई है तो ऐसी अपील या याचिका के निर्णय हो जाने तक।

संचालित कम्पनियों की संख्या (Number of Directorship) (धारा 165) (1) कोई भी व्यक्ति इस अधिनियम के लागू होने के बाद वैकल्पिक निदेशक के पद सहित कम्पनियों से अधिक कम्पनियों में निदेशक का पद धारण नहीं करेगा। परन्तु शर्त यह है कि सार्वजनिक कम्पनियों की अधिकतम संख्या जिसमें एक व्यक्ति की निदेशक के रूप में नियक्ति की जा सकती है दस से अधिक नहीं होगी।

स्पष्टीकरण (Explanation)-सार्वजनिक कम्पनी की सीमा की गणना करने के लिए जिसमें एक व्यक्ति को निदेशक नियुक्त किया जा सकता है, निजी कम्पनियों में निदेशक के पद सम्मिलित किए जाएँगे चाहे वह सार्वजनिक कम्पनी की सूत्रधारी या सहायक कम्पनी हैं। 

प्रबन्धकीय अधिकारियों का अधिकतम समग्र पारिश्रमिक (धारा 197)

(Overall Maximum Managerial Remuneration) 

धारा 197 एवं अनुसूची V के प्रावधानों के अनुसार प्रबन्ध निदेशक, पूर्णकालिक निदेशक या प्रबन्धक की नियुक्ति की जाएगी और नियुक्ति की शर्ते एवं देय पारिश्रमिक निदेशक मण्डल के अनुमोदन द्वारा किया जाएगा जो कि कम्पनी की अगली साधारण सभा में अनुमोदित किया जाना चाहिए। यदि नियुक्ति अनुसूची V के प्रावधानों के अनुसार नहीं हैं तो केन्द्र सरकार द्वारा अनुमोदन किया जाना चाहिए।

किसी वित्तीय वर्ष के लिए एक सार्वजनिक कम्पनी द्वारा अपने निदेशकों, प्रबन्ध निदेशक और पूर्णकालिक निदेशक और इसके प्रबन्धक सहित को दिया जाने वाला पारिश्रमिक कम्पनी के उस वित्तीय वर्ष के शुद्ध लाभ के 11 प्रतिशत से अधिक नहीं रहेगा। लाभ की गणना धारा 198 के अनुसार की जाएगी सिवाय इसके कि सकल लाभ में से निदेशकों का पारिश्रमिक घटाया नहीं जाएगा।

कम्पनी केन्द्र सरकार की अनुमति से साधारण सभा के द्वारा कम्पनी के शुद्ध लाभ के 11 प्रतिशत से अधिक पारिश्रमिक अनुसूची (V) के प्रावधानों के अनुसार दे सकती है। 

एक प्रबन्ध निदेशक, एक पूर्णकालिक निदेशक या प्रबन्धक का पारिश्रमिक 

(Remuneration Payable to Any one Managing Director,

Whole Time Director or Manager) 

प्रबन्ध निदेशक, पूर्णकालिक निदेशक या प्रबन्धक का पारिश्रमिक कम्पनी के शुद्ध लाभ के 5 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा और यदि उनमें से एक से अधिक ऐसे निदेशक हैं तो पारिश्रमिक ऐसे सभी निदेशक और प्रबन्धक, इन सभी को मिलाकर शुद्ध लाभ के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा।

निदेशकों का पारिश्रमिक जो न तो प्रबन्ध निदेशक हैं और न ही पूर्णकालिक निदेशक हैं (Remuneration payable to directors who areneither managu, director nor whole time director)-ऐसे निदेशकों का पारिश्रमिक अग्रलिखित अधिक नहीं होगा

(i) कम्पनी के शुद्ध लाभ का 1 प्रतिशत यदि वहाँ प्रबन्ध निदेशक या पूर्णकालिक निदेशक हैं या प्रबन्धक हैं:

(ii) किसी अन्य मामले में शुद्ध लाभ का 3 प्रतिशत। 

उपर्युक्त प्रतिशतों में निदेशकों को उप-धारा (5) के अन्तर्गत देय फीस सम्मिलित नहीं होगी। 

लाभ के न होने या अपर्याप्त होने पर प्रबन्धकीय

पारिश्रमिक [धारा 197(3)] 

(Managerial Remuneration in Case of Absence or

Inadequacy of Profit) 

अनुसूची V के प्रावधानों के अनुसार यदि किसी वित्तीय वर्ष में कम्पनी को लाभ नहीं हुए हैं या इसके लाभ अपर्याप्त हैं तो कम्पनी अपने निदेशकों, प्रबन्धकीय या पूर्णकालिक निदेशक या प्रबन्धक सहित पारिश्रमिक के द्वारा कोई राशि उप-धारा (5) के अन्तर्गत देय फीस को छोड़कर सिवाय अनुसूची (V) के प्रावधानों के अनुसार भुगतान नहीं करेगी। यदि कम्पनी इन प्रावधानों का पालन करने में अयोग्य है तो केन्द्र सरकार की अनुमति से निदेशकों, प्रबन्ध या पूर्णकालिक निदेशक या प्रबन्धक सहित को देय पारिश्रमिक इस धारा के अनुसार या कम्पनी के अन्तर्नियम या एक कम्पनी की साधारण सभा में विशेष प्रस्ताव द्वारा निदेशकों को देय पारिश्रमिक निर्धारित किया जाएगा और इसमें किसी अन्य हैसियत से की गई सेवा का पारिश्रमिक सम्मिलित होगा।

पारिश्रमिक देने का तरीका (Mode of Remuneration)-1. एक निदेशक, मण्डल या उसकी समिति की सभाओं में भाग लेने के लिए या मण्डल द्वारा निर्णित किसी उद्देश्य के लिए फीस के रूप में पारिश्रमिक प्राप्त कर सकता है, बशर्ते कि ऐसी फीस की राशि निर्दिष्ट राशि से अधिक नहीं होगी।

2. एक निदेशक या प्रबन्धक को पारिश्रमिक मासिक भुगतान या कम्पनी के शुद्ध लाभ का निर्दिष्ट प्रतिशत या आंशिक रूप से एक तरीके से या आंशिक रूप से दूसरे तरीके से किया जा सकता है। 

केन्द्र सरकार या कम्पनी द्वारा पारिश्रमिक की सीमा निर्धारित करना (धारा 200) 

(Central Government or Company to Fix Limit With Regard to Remuneration) 

केन्द्र सरकार या कम्पनी धारा 196 के अन्तर्गत या धारा 197 के अन्तर्गत किसी नियुक्ति या पारिश्रमिक के सम्बन्ध में अनुमोदन करते समय यदि कम्पनी के लाभ अपर्याप्त हों क या न हों तो इस अधिनियम की सीमाओं के अन्दर कम्पनी के लाभ का प्रतिशत या उसकी राशि जसा यह उचित समझें, निश्चित कर सकती है।

पारिश्रमिक निश्चित करते समय केन्द्र सरकार अग्रलिखित बिन्दुओं को ध्यान में रखेगी

(i) कम्पनी की आर्थिक स्थितिः 

(ii) सम्बन्धित व्यक्ति द्वारा किसी अन्य हैसियत से प्राप्त किए गए पारिश्रमिक या

(iii) किसी अन्य कम्पनी से प्राप्त किए गए पारिश्रमिक या कमीशन; 

(iv) सम्बन्धित व्यक्ति की पेशेवर योग्यताएँ और अनुभव; 

(v) अन्य कोई निर्दिष्ट विषय। 

प्रश्न 3–प्रस्ताव पर एक विस्तृत लेख लिखिए। 

Write a detailed note on Resolution. 

उत्तर – प्रस्ताव (संकल्प) [Resolution]

अंग्रेजी में Motion तथा Resolution दो शब्द हैं। कुछ व्यक्ति Motion को हिन्दी अ में ‘सुझाव’ तथा Resolution को ‘प्रस्ताव’ कहते हैं। इसके विपरीत, कुछ व्यक्ति Motion अ को प्रस्ताव’ तथा Resolution को ‘संकल्प’ कहते हैं। हम Motion के लिए ‘सुझाव’ तथा प्रद Resolution के लिए प्रस्ताव’ शब्द का प्रयोग कर रहे हैं।

सभा के समक्ष विचार एवं निर्णय के लिए प्रस्तुत किसी विषय या मामले को ही सुझाव ( (Motion) कहते हैं। सुझाव का उद्देश्य कार्यसूची के विषय को सभा में विचार-विमर्श एवं अन निर्णय के लिए प्रस्तुत करना होता है। सभा में कोई भी सदस्य सुझाव प्रस्तुत कर सकता है, या किन्तु यदि उस सुझाव का किसी अन्य सदस्य द्वारा समर्थन (Second) नहीं किया जाता है तो स वह गिरा हुआ सुझाव (Dropped motion) माना जाता है। सभापति द्वारा प्रस्तुत सुझाव के साथ लिए अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है। कोई सुझाव जब अंशधारियों के आवश्यक बहमत सभ द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो उसे प्रस्ताव (Resolution) कहते हैं।

प्रस्ताव का अर्थ (Meaning of Resolution)-एक ‘प्रस्तावित प्रस्ताव पान (Proposed Resolution) या ‘सुझाव’ (Motion) जब अंशधारियों के आवश्यक बहुमत द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो उसे प्रस्ताव (Resolution) कहते हैं अर्थात् स्वीकृत ‘सुझाव’ को ही प्रस्ताव कहते हैं। ऐसा ‘सुझाव’ उसी रूप में या कुछ संशोधनों के साथ स्वीकार बार किया जा सकता है।

प्रस्ताव के भेद या प्रकार (Kinds of Resolutions)-कम्पनी अधिनियम के अनुसार प्रस्ताव चार प्रकार के होते हैं-(1) साधारण प्रस्ताव, (2) विशेष प्रस्ताव तथा (3) विशेष सूचना वाले प्रस्ताव (4) स्थगित सभा में पारित किए गए प्रस्ताव।1. साधारण प्रस्ताव (Ordinary Resolution)-साधारण प्रस्ताव से आशय एस प्रस्ताव स हे जो कम्पनी की साधारण सभा में साधारण बहमत से पारित किया जाता है। चाप प्रस्ताव के पक्ष में आए हुए मत विपक्ष में आए हुए मतों की तलना में अधिक होते हैं ता प्र पारित हो जाता है। इसके विपरीत, यदि विपक्ष में आए हए मत, पक्ष में आए हुए मतो अधिक होते हैं तो प्रस्ताव अस्वीकृत माना जाता है। साधारण प्रस्ताव के लिए यह आवश्यक है। उचित ढंग से आयोजित की जाए। इसके लिए उचित सचना दी जानी आवश्यक हो सभा के लिए 21 दिन का नोटिस आवश्यक है। इस नोटिस में सभा का स्थान, सभा का तथा समय एवं सभा में की जाने वाली कार्यवाही का विवरण भी दिया जाना चाहिए।

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 114(1) के अनुसार, एक प्रस्ताव साधारण प्रस्ताव होगा यदि इस अधिनियम के अन्तर्गत आवश्यक सूचना दे दी गई है एवं इसको पारित किए जाने के लिए डाले गए मत, हाथ उठाकर के, विद्युतीय माध्यम (Electronically) या मतदान में, जैसी भी स्थिति हो प्रस्ताव के पक्ष में सभापति के निर्णायक मत (Casting Vote) सहित यदि कोई है, सदस्यों द्वारा जो मत देने के अधिकारी हैं या उन्हें प्रतिपुरुष के द्वारा मत देने की आज्ञा है वहाँ प्रतिपुरुष के द्वारा या डाक द्वारा डाले गए मत यदि कोई हैं प्रस्ताव के विरुद्ध डाले गए मतों से अधिक हैं। सरल शब्दों में, साधारण प्रस्ताव कुल वैध मतों के 50 प्रतिशत से अधिक मतों से पारित किया जाता है।

साधारण प्रस्ताव पारित करते समय सभा का अध्यक्ष स्वतन्त्र मत दे सकता है यदि । अन्तर्नियमों में ऐसी व्यवस्था है। इसी प्रकार किसी प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में बराबर मत । आने पर अध्यक्ष को निर्णायक मत (Casting Vote) देने का अधिकार भी अन्तर्नियमों द्वारा | प्रदान किया जा सकता है।

जब तक कि अन्तर्नियम अथवा कानून एक प्रस्ताव को अन्यथा आवश्यक न माने । (उदाहरण-विशेष प्रस्ताव) यह हमेशा साधारण प्रस्ताव होगा। जब तक अन्तर्नियमों में कोई अन्य प्रावधान न हो मण्डल के प्रस्ताव हमेशा साधारण बहुमत से पास किए जाते हैं। अन्तर्नियम ।. या कानून में प्रावधान हो सकता है कि मण्डल का प्रस्ताव कुछ विशिष्ट दशाओं में सर्वसम्मति तो से (Unanimously) पारित किया जाना चाहिए। एक साधारण प्रस्ताव सभी प्रकार की के साधारण सभाओं अर्थात् वार्षिक, विशेष साधारण सभा, मण्डल या मण्डल की समितियों की त सभाओं के समय पारित किया जा सकता है।

अत: स्पष्ट है कि विशेष प्रस्ताव कम-से-कम तीन-चौथाई या 75 प्रतिशत बहुमत से ‘ पारित किया जाता है। ऐसे प्रस्ताव को प्रस्तुत करने की सूचना कम-से-कम 21 दिन पूर्व दे दी त जानी चाहिए और ऐसी सूचना में विशेष प्रस्ताव किए जाने का इरादा भी स्पष्ट कर देना चाहिए। 

यह उल्लेखनीय है कि विशेष प्रस्ताव के लिए मतदान हस्तप्रदर्शन द्वारा अथवा मतगणना र द्वारा किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत केवल वैध मतों को ही गिना जाता है। विशेष प्रस्ताव हेतु अध्यक्ष के स्वतन्त्र मत की भी व्यवस्था नहीं होती। प्रस्ताव पारित करने के 30 दिन के के भीतर विशेष प्रस्ताव की एक प्रतिलिपि रजिस्ट्रार के पास भेजना आवश्यक होता है।

साधारण प्रस्ताव तथा विशेष प्रस्ताव में अन्तर 

(Difference between Ordinary and Special Resolution)

प्रश्न 4 – वार्षिक साधारण सभा क्या है? इस सम्बन्ध में अधिनियम के क्या प्रावधान हैं? संक्षेप में इस सभा में होने वाले कार्य का वर्णन कीजिए।

What is an annual general meeting ? What are the provision of the Act in this respect ? Briefly describe the business transacted at such a meeting. 

उत्तर – अंशधारियों की सभाओं की विस्तृत विवेचना

(Detailed Discussion of Shareholders Meeting) 

1. वार्षिक साधारण सभा का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition on Annual General Meeting)-वार्षिक साधारण सभा से आशय सदस्यों की ऐसी सभ कि से है जो कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार प्रतिवर्ष बुलाई जाती है। धारा 96 के जा अनुसार, प्रत्येक कम्पनी को प्रतिवर्ष अन्य सभाओं के अतिरिक्त सदस्यों की एक साधारण सभ रति का आयोजन करना आवश्यक है जिसे वार्षिक साधारण सभा कहा जाता है। ऐसी सभा के सूचना में इस बात का उल्लेख किया जाता है कि यह कम्पनी की वार्षिक साधारण सभा है। 

वार्षिक साधारण सभा के उद्देश्य

(Objects of Annual General Meeting)

कम्पनी की वार्षिक साधारण सभा बुलाए जाने के प्रमख उद्देश्य निम्नलिखित है

1. कम्पनी के सदस्यों का कम्पनी के कार्य एवं प्रबन्ध पर अन्तिम नियन्त्रण बनाए रखना

2. कम्पनी के सदस्यों को कम्पनी के गत वर्ष के कार्यों एवं प्रगति से अवगत कराना।

3. वार्षिक खातों की अन्तिम स्वीकृति प्राप्त करना। 

4. लाभांश घोषित करना।

5. सेवानिवृत्त अथवा अन्य कारणों से रिक्त होने वाले संचालकों के पदों पर नवीन संचालकों की नियुक्ति करना।

6. अंकेक्षकों की नियुक्ति करना।

वार्षिक साधारण सभा में सम्बन्धित वैधानिक प्रावधान 

(Statutory Provisions Regarding Annual General Meeting)

1. प्रतिवर्ष सभा बुलाना (To Call Every Year)—प्रत्येक कम्पनी के लिए प्रतिवर्ष वार्षिक साधारण सभा बुलाना आवश्यक है। ऐसी सभा की सूचना में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाता है कि यह कम्पनी की वार्षिक साधारण सभा है।

2. दो वार्षिक साधारण सभाओं के मध्य समयान्तर (Gap between Two AGMs)-कम्पनी की दो वार्षिक साधारण सभाओं के मध्य 15 माह से अधिक अवधि का | अन्तराल नहीं होना चाहिए।

3. प्रथम वार्षिक साधारण सभा का समय (Time of First MAG) – कम्पनी द्वारा प्रथम वार्षिक व्यापक सभा प्रथम वित्तीय वर्ष बन्द होने के 9 महीने के अन्दर की जाएगी एवं | अन्य किसी मामले में 6 महीने के अन्दर।

4. सभाओं की अवधि बढ़ाना (Extension of Time) – यद्यपि दो वार्षिक साधारण सभाओं के बीच की अवधि 15 महीनों से अधिक की नहीं होनी चाहिए किन्तु यदि रजिस्ट्रार चाहे तो विशेष कारणों के आधार पर इस अवधि को तीन महीने के लिए बढ़ा सकता है। परन्तु यह ध्यान रहे कि वह रजिस्ट्रार प्रथम वार्षिक साधारण सभा की अवधि को नहीं बढ़ा सकता है।

5. वार्षिक साधारण सभा का समय, दिन एवं स्थान (Time, Date and Day of JAGS)-प्रत्येक वार्षिक साधारण सभा व्यावसायिक घण्टों में किसी भी समय ऐसे दिन, जो कि सार्वजनिक छुट्टी का न हो, बुलायी जाएगी तथा व्यापार के रजिस्टर्ड कार्यालय पर की जाएगी या ऐसे स्थान पर की जाएगी, जो उस शहर, गाँव या कस्बे में हो, जहाँ कम्पनी का रजिस्टर्ड कार्यालय है।

6. केन्द्रीय सरकार द्वारा छूट (Exemption) – केन्द्रीय सरकार को यह अधिकार है कि यदि वह चाहे तो किसी भी कम्पनी को उन शर्तों के अन्तर्गत जिन्हें वह उपयुक्त समझे, सभा के समय, स्थान तथा दिन सम्बन्धी व्यवस्थाओं से मुक्त कर सकती है।

7. अधिकरण द्वारा वार्षिक साधारण सभा बुलाने की शक्ति (Power of Tribunal to call Annual General Meeting) – यदि कम्पनी द्वारा धारा 96 केअन्तर्गत वार्षिक साधारण सभा करने में चूक की जाती है तो अधिकरण इस अधिनियम या कम्पनी के अन्तर्नियम में दिए गए प्रावधान की अनदेखी करके किसी सदस्य के आवेदन पर कम्पनी की वार्षिक साधारण सभा बुला सकता है या बुलाने का निर्देश दे सकता है

8. एक व्यक्ति की व्यक्तिगत रूप से या प्रतिपुरुष के रूप में उपस्थिति को सभा माना जाना  HTET HTAT (Presence of one member of company in person or by proxy shall be deemed to constitute a meeting) केन्द्र सरकार द्वारा दिए गए निर्देश यह निर्देश भी सम्मिलित हो सकता है कि कम्पनी का एक सदस्य जो व्यक्तिगत रूप से या प्रतिपुरुष के द्वारा उपस्थित है, इस अधिनियम के अन्तर्गत कम्पनी की सभा माना जाएगा।

9. सभा का सभापति (Chairman of Meeting) (धारा 104)

(i) जब तक कि कम्पनी के अन्तर्नियमों में कोई अन्य प्रावधान न हो, सभा में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित सदस्य हाथ उठाकर अपने में से किसी एक को सभापति चुनेंगे।

(ii) यदि सभापति के चुनाव के लिए मतदान की माँग की जाती है तो इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार मतदान तुरन्त कराया जाएगा और उपर्युक्त तरीके से हाथ उठाकर चुना गया सभापति उस समय तक सभापति बना रहेगा जब तक मतदान के परिणाम के अनुसार नया सभापति न चुन लिया जाए। शेष सभा के लिए ऐसा चुना गया व्यक्ति सभापति होगा।

10. सभापति के उपस्थित न होने पर (Absence of the Chairman)-यदि सभा के निर्धारित समय के 15 मिनट के भीतर सभापति उपस्थित नहीं होता या उपस्थित होने के। बावजूद सभापति पद स्वीकार नहीं करना चाहता है तो सदस्यों द्वारा सभा में किसी को भी सभापति चुना जाएगा। यदि सभा में उपस्थित कोई भी संचालक सभापति बनने को तैयार नहीं है। तो उपस्थित सदस्यों द्वारा अपने में से किसी सदस्य को सभापति चुना जा सकता है।

11. सभा की सूचना (Notice of the Meeting)-वार्षिक साधारण सभा की सूचना सभा से कम-से-कम 21 दिन पूर्व दिया जाना आवश्यक है किन्तु यदि सभा में भाग लेने वाले एवं मत देने का अधिकार रखने वाले कम-से-कम 95 प्रतिशत सदस्य कम अवधि की सूचना पर लिखित अथवा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सहमति दे देते हैं तो कम अवधि की सूचना देकर भी यह सभा बुलायी जा सकती है।

12. सभा की सूचना की विषयवस्तु (Contents of Notice)-वार्षिक साधारण सभा की सूचना में सामान्यत: निम्नलिखित बातों का समावेश होना आवश्यक है

(1) इस आशय का उल्लेख कि वार्षिक साधारण सभा का आयोजन किया जा रहा है। (ii) सभा का समय, स्थान तथा तिथि। (iii) सभा में किए जाने वाले कार्यों का विवरण। (iv) वित्तीय खातों तथा चिट्ठे की प्रतिलिपि। । (५) संचालकों का प्रतिवेदन। (vi) अंकेक्षकों का प्रतिवेदन।

(vii) सभा में किए जाने वाले विशिष्ट कार्यों (यदि हों तो) का व्याख्यात्मक विवरण।13. सभा की सूचना प्राप्त करने के अधिकारी (Persons Entitled to get Notice of the Meeting)-वार्षिक साधारण सभा की सूचना सामान्यतः अग्रलिखित के दी जानी चाहिए।

(i) कम्पनी का प्रत्येक सदस्य। 

(ii) किसी मृतक सदस्य के उत्तराधिकारी। 

(iii) दिवालिया सदस्य के राजकीय प्रापक या निस्तारक। 

(iv) कम्पनी के अंकेक्षक।

14. कार्यवाहक संख्या (Quorum)-सामान्यतः प्रत्येक कम्पनी के अन्तर्नियमों में कार्यवाहक संख्या का उल्लेख रहता है। यह संख्या अधिनियम द्वारा निर्धारित न्यूनतम संख्या से कम नहीं होनी चाहिए। यदि कम्पनी के अन्तर्नियमों में कार्यवाहक संख्या का उल्लेख नहीं है तो (अ) सार्वजनिक कम्पनी की दशा में-(i) 5 सदस्य व्यक्तिगत रूप से उपस्थित यदि सभा की तिथि को सदस्यों की संख्या एक हजार से अधिक नहीं है, (ii) 15 सदस्य व्यक्तिगत रूप से उपस्थित यदि सभा की तिथि को सदस्यों की संख्या एक हजार से अधिक और पाँच हजार तक है, (iii) 30 सदस्य व्यक्तिगत रूप से उपस्थित यदि सभा की तिथि को सदस्यों की संख्या पाँच हजार से अधिक है। (ब) निजी कम्पनी की दशा में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित 2 सदस्य कम्पनी की सभा की गणपूर्ति संख्या में गिने जाएंगे।

15. स्थगित सभा (Adjournment of the Meeting)-यदि कम्पनी की किसी वार्षिक साधारण सभा को स्थगित किया जाता है तो ऐसी स्थगित सभा में केवल उन्हीं विषयों पर विचार किया जा सकता है जिन पर पिछली सभा में विचार नहीं किया जा सका। यह सभा निर्धारित अवधि में सम्पन्न होना आवश्यक है।

16. स्थगित सभा की सूचना (Notice of Adjourned Meeting)-यदि वार्षिक साधारण सभा का स्थगन 20 दिन या इससे अधिक अवधि के लिए किया जाता है तो ऐसी स्थगित सभा की सूचना सदस्यों को उसी प्रकार दी जाएगी जैसे मूल वार्षिक साधारण सभा की दी जाती है। अन्य शब्दों में, 20 दिन या अधिक अवधि के लिए स्थगित करने पर सभा की सूचना 21 दिन पूर्व दी जाएगी।

17. दण्ड (Penalty) (धारा 99)–यदि कम्पनी की सभा बुलाने अथवा करने में कोई चूक की जाती है तो कम्पनी और इसका प्रत्येक दोषी अधिकारी जुर्माना देने का भागी होगा जो एक लाख रुपये तक हो सकता है एवं लगातार चूक के सम्बन्ध में इसके अतिरिक्त जुर्माने के साथ प्रत्येक दिन के लिए पाँच हजार रुपये का जुर्माना देने का दायी होगा जिस अवधि के दौरान चूक जारी रहती है। 

वार्षिक साधारण सभा के कार्य 

(Business of the Annual General Meeting)

वार्षिक साधारण सभा में किए जाने वाले कार्यों को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है

1. साधारण कार्य (General Business)-‘साधारण कार्य’ नैत्यिक प्रकृति (Routine nature) के होते हैं। ये कार्य प्रतिवर्ष ही साधारण सभा में किए जाते हैं। इन कार्यों में प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं

(i) कम्पनी के वार्षिक खातों, चिढ़े, संचालकों तथा अंकेक्षकों की रिपोर्ट पर विचार-विमर्श करना तथा उन्हें स्वीकार करना।

(ii) वार्षिक लाभांश की घोषणा करना। 

(iii) पारी से रिटायर होने वाले संचालकों के स्थान पर संचालक नियुक्त करना।

(iv) आगामी वित्तीय वर्ष के निए अंकेक्षकों की नियुक्ति करना तथा उनका पारिश्रमिक निर्धारित करना।

2. विशेष कार्य (Special Business)-वार्षिक साधारण सभा में साधारण कार्यों के अतिरिक्त किए जाने वाले सभी कार्य विशेष कार्य कहलाते हैं। इन कार्यों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं

(i) कम्पनी के पार्षद अन्तर्नियमों में परिवर्तन करना। 

(ii) कम्पनी की अधिकृत पूँजी को बढ़ाना। 

(iii) प्रबन्धक अथवा प्रबन्ध संचालक की नियुक्ति करना। 

(iv) कम्पनी के पार्षद सीमानियम में परिवर्तन करना। 

(v) नए संचालकों की नियुक्ति करना।

साधारण एवं विशेष कार्य में अन्तर (Difference Between General Business and Special Business)-साधारण एवं विशेष कार्यों में सबसे बड़ा अन्तर यह है कि सामान्य कार्यों को करने के लिए साधारण प्रस्ताव ही पारित करना पड़ता है, जबकि विशेष कार्यों को करने के लिए साधारण या विशेष किसी भी प्रकार का प्रस्ताव पारित करना पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त, सभा की सूचना के साथ विशेष कार्यों से सम्बन्धित व्याख्यात्मक विवरण भी भेजना पड़ता है।


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