B.Com 3rd Year Prevention Of Money Laundering Act 2002 – Economic Laws Notes

B.Com 3rd Year Prevention Of Money Laundering Act 2002 – Economic Laws Notes :- Economic Laws, Study Material Question Answer Examination Paper Sample Model Practice Notes PDF MCQ (Multiple Choice Questions) available in our site. parultech.com. Topic Wise Chapter wise Notes available. If you agree with us, if You like the notes given by us, then please share it to all your Friends. If you are Confused after Visiting our Site Then Contact us So that We Can Understand You better.



गैर-कानूनी तरीकों द्वारा अर्जित काले धन को जब सफेद धन में परिवर्तित किया जाता है तो मनी लॉन्ड्रिंग कहा जाता है। मनी लॉन्ड्रिंग एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या है इसलिये संयुक्त राष्ट्र ने जून 1900 में अपने सदस्य राष्ट्रों को मनी लॉन्ड्रिंग की रोकथाम के लिये राष्ट्रीय कानून बनाने के लिये प्रेरित किया भारत में मनी लॉन्डिग (धन शोधन) निरोधक अधिनियम, 2002 पारित किया गया है जो 1 जुलाई 2006 से सम्पूर्ण भारत में लागू है। मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक (संशोधन) अधिनियम, 2012-भारत के राष्ट्रपति ने 3 जनवरी, 2017 को मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक (संशोधन) अधिनियम, 2012 को स्वीकृति प्रदान की जिसमें मनी लॉन्टिा अपराधों की परिभाषा को व्यापक किया गया है एवं आतंकवादी गतिविधियो के वित्त पोषण को नियन्त्रित करने में मदद मिल सकेगी। अधिनियम में संगोपन, अधिग्रहण, हस्तगत करने और आपराधिक गतिविधियों को शामिल करके विस्तारित किया गया है।

मनी लॉन्डिंग निरोधक अधिनियम, 2002 के उद्देश्य 

भारत में मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम, 2002 के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित प्रकार हैं- (1) मनी लॉन्ड्रिंग को रोकना और नियन्त्रित करना।  (2) मनी लॉन्ड्रिंग से प्राप्त या इसमें शामिल सम्पत्ति को जब्त करना। (3) मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध के लिये सजा प्रदान करना। (4) मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामलों को निपटाने के लिये अधिनिर्णय प्राधिकरण और अपीलीय न्यायाधिकरण की नियुक्ति करना। (5) रिकॉर्ड बनाए रखने के लिये बैंकिंग कम्पनियों, वित्तीय संस्थानों और बिचौलियों का दायित्व निर्धारित करना।  (6) मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े किसी भी अन्य मुद्दे को हल करना।

मनी लॉन्ड्रिंग की प्रक्रिया

(Process of Money Laundering) 

मनी लॉन्ड्रिंग की प्रक्रिया में आमतौर पर तीन चरण सम्मिलित होते हैं – (1) प्लेसमेंट चरण (Placement Stage): यह मनी लॉन्ड्रिंग का प्रथम चरण होता है जिसके द्वारा वित्तीय प्रणाली में कालेधन को सम्मिलित किया जाता है। (2) लेयरिंग चरण (Layering Stage): यह मनी लॉन्ड्रिंग का दूसरा चरण होता है। इसमें मनी लॉन्डर्स इलैक्ट्रानिक रूप से काले धन को एक देश से दूसरे देश में हस्तान्तरित करते हैं और फिर उन्ह अच्छे वित्तीय विकल्पों में निवेशित करते हैं। (3) एकीकरण चरण (Integration Stage): यह मनी लॉन्ड्रिंग का अन्तिम तथा तीसरा चरण होता है। इसमें अपराधी वैध स्रोतों के द्वारा पुन: अपने देश में धन प्राप्त कर लेते हैं।

मनी-लॉन्ड्रिंग का अपराध (धारा 3)

(Offence of Money Laundering) 

जो कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कथित तौर पर या जानबूझकर मनी लॉन्ड्रिंग म मा करता है या वह वास्तव में किसी भी प्रक्रिया या गतिविधि से जुड़ा हुआ है जिसमें अपराध का शामिल है जिसमें उसका छिपाना, कब्जा, अधिग्रहण या उपयोग शामिल है तो उसे अपराध का दाषी जायेगा।

मनी लॉन्ड्रिंग के लिये सजा (धारा 4)

(Punishment for Money Laundering) 

जो कोई भी मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध करता है तो उसे 3 वर्ष की सजा दी जायेगी जो 7 भी हो सकती है और वह जुर्माने के लिये भी उत्तरदायी होगा। जहाँ मनी लॉन्डिग में शामिल अपराध की आय अनुसूची के भाग ए के अनुच्छेद 2 के निर्दिष्ट अपराध से सम्बन्धित है तो सजा 7 वर्ष के बजाय 10 वर्ष तक भी हो सकती है। मनी लॉन्ड्रिंग द्वारा प्राप्त सम्पत्ति की संलग्नता (धारा 5)  (Attachment of Property Acquired by Money Laundering)  निदेशक, संयुक्त निदेशक या उप निदेशक मनी लॉन्ड्रिंग द्वारा प्राप्त सम्पत्ति को 180 दिनों के लिये कुर्क कर सकते हैं। सहायक प्राधिकरण (धारा 6)  केन्द्र सरकार को अधिनियम के अन्तर्गत प्राप्त शक्तियों और अधिकारों का प्रयोग करने के लिये सहायक प्राधिकरण नियुक्त करने का भी अधिकार प्राप्त है। एक सहायक प्राधिकरण में एक अध्यक्ष नशा दो अन्य सदस्य होंगे। दो सदस्यों में से एक सदस्य कानून, प्रशासन, वित्त या लेखा के क्षेत्र में अनुभव रखने वाला व्यक्ति होना चाहिये। न्यायिक प्राधिकरण सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 द्वारा निर्धारित प्रक्रिया से बाध्य नहीं होगा बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्तों द्वारा निर्देशित होगा। बैंकों, वित्तीय संस्थानों और मध्यस्थों का दायित्व  (Responsibilities of Banks, Financial Institutions and Intermediaries) मनी लॉन्ड्रिंग प्रक्रिया में बैंक, वित्तीय संस्थानों और पूँजी बाजार के विभिन्न मध्यस्थ शामिल होते हैं। इस अधिनियम के अन्तर्गत प्रत्येक बैंकिंग कम्पनी, वित्तीय संस्थान और मध्यस्थ की यह जिम्मेदारी है कि वह सभी लेन-देनों के रिकार्डों को लेन-देन की तारीख से पांच साल की अवधि के लिये सुरक्षित रखे। बैंकों और वित्तीय संस्थानों को अपने सभी ग्राहकों की पहचान के रिकॉर्ड को सत्यापित करना और बनाए रखना आवश्यक है। ___  जुर्माना लगाने के लिए निदेशक की शक्तिः धारा 13 के अनुसार, निदेशक या तो अपने प्रस्ताव पर, या किसी प्राधिकरण, अधिकारी या व्यक्ति द्वारा किए गए आवेदन पर, सभी लेनदेन के रिकॉर्ड माँग सकता है और इस तरह की जांच कर सकता है। किसी भी जांच के दौरान, अगर निदेशक को ज्ञात होता है कि बैंकिंग कंपनी, वित्तीय संस्थान या एक मध्यस्थ या उसका कोई अधिकारी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार रिकॉर्ड बनाए रखने में विफल रहा है, तो वह एक आदेश द्वारा लेवी वसूल सकता है। ऐसी बैंकिंग कंपनी, वित्तीय संस्थान या मध्यस्थ पर जुर्माना जो दस हजार रू. से कम नहीं होगा लेकिन प्रत्येक विफलता के लिए एक लाख रूपये तक हो सकता है। अपने ग्राहक (केवाईसी) दिशानिर्देशों को जानें: भारतीय रिजर्व बैंक ने 29 नवंबर, 2004 को अपने ग्राहक को जानो [केवाईसी] के रूप में दिशानिर्देश जारी किए हैं। इन दिशानिर्देशों के निम्नलिखित उद्देश्य हैं: (1) मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधियों में एक श्रृंखला के रूप में कार्य करने से बैंकों को सुरक्षित रखना।  (2) बैंकों को ग्राहकों के बारे में अधिक जानने और रिकार्ड रखने में सहायता करना। इन दिशानिर्देशों के निम्नलिखित तत्व हैं: 

  1. ग्राहक स्वीकृति नीति 

2.ग्राहक पहचान प्रक्रिया 

  1. लेन-देन की निगरानी करना 
  2. जोखिम का प्रबंधन 

मनी लॉन्डिंग-काले धन की रोकथाम में वैश्विक खतरे और वैश्विक पहल मनी लॉन्ड्रिंग एक अन्तर्राष्ट्रीय घटना है तथा इसको रोकने के लिये विश्व के सभी राष्ट्रों का सहयोग आवश्यक है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर Financial Action Task Force (FATF) 1989 में स्थापित किया गया था। यह एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था है जो मनी लॉन्ड्रिंग के विश्वव्यापी दुष्प्रभावों का सामना करने के लिये कार्य करती है। FATF के मुख्य कार्य निम्निलिखित हैं:  (1) मनी लॉन्ड्रिंग के लिए अपनाई गई तकनीकों की समीक्षा करना;  (2) मनी लॉन्ड्रिंग का मुकाबला करने के लए देशों द्वारा की गई पहलों की जाँच करता है; तथा  (3) गैर-सदस्य देशों में भी जागरुकता उत्पन्न करना। इस प्रकार, एफएटीएफ वर्तमान स्थिति का अध्ययन, परीक्षण और मूल्यांकन करता है तथा नीति आर पहल के उपायों को भी परिभाषित करता है जो मनी लॉन्डिंग की इस समस्या के समाधान के रूप में कार्य कर सकते हैं। मनी लॉन्डिंग के हानिकारक प्रभाव  मनी लॉन्डिंग प्रक्रिया समाज पर निम्नलिखित हानिकारक प्रभाव उत्पन्न कर सकती है.  (1) सरकारी कार्यालयों में रिश्वत का व्यापक उपयोग भ्रष्टाचार की ओर ले जाता है। (2) अनुचित साधनों द्वारा निवेश के माध्यम से मुट्ठी भर व्यिक्तयों द्वारा अर्थव्यवस्था के क्षेत्र पर नियंत्रण। (3) संगठित अपराधो के माध्यम से बैंकिंग और वित्तीय संस्थानो की घुसपैठ।  (4) समाज में प्रचलित सामाजिक ताने-बाने और नैतिक मानकों को खत्म करना।  (5) जमीनी स्तर से ही लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करना। मनी लॉन्डिंग के कारण होने वाले नुकसान का मुकाबला करने के लिए और उसी को रोक लिए ही धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 (Money Laundering Act, 2002) का अधिनियम कि गया था। यह अधिनियम अपराध, सजा, जब्ती, कुर्की और अन्य सहायक प्रावधानों का प्रावधान करता है ताकि धन की लूट की प्रभावी रोकथाम सुनिश्चित की जा सके


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