B.Com 3rd Year Securities And Exchange Board Of India Act 1992 Notes
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भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) अधिनियम, 1992
(Securities and Exchange Board of India Act, 1992)
सेबी एक्ट (SEBI Act), 1992 का पूरा नाम भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 है। यह अधिनियम 30 जनवरी, 1990 सम्पूर्ण भारत में लागू है। पूँजी बाजार में निवेशकों के विश्वास को बनाए रखने के लिए 12 अप्रैल, 1988 को एक प्रशासनिक संस्था के रूप में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) की स्थापना की गई। 31 जनवरी, 1992 को एक अध्यादेश के द्वारा इसे वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया। तदनुसार 21 फरवरी, 1992 को ‘सेबी’ को इसके वैधानिक स्वरूप में गठित किया गया। 1 अप्रैल, 1992 को ‘सेबी’ बिल को संसद द्वारा पारित कर दिया गया जिसके फलस्वरूप.4 अप्रैल 1992 से ‘सेबी’ का कार्य एक पृथक कानून के अधीन संचालित होने लगा है जिससे इसे अधिक व्यापक कानूनी अधिकार प्राप्त हो गये हैं और इसका कार्यक्षेत्र विस्तृत हो गया है। इसका प्रधान कार्यालय मुम्बई में स्थित है तथा क्षेत्रीय कार्यालय क्रमश: दिल्ली, कोलकाता एवं चेन्नई में स्थित हैं।
सेबी अधिनियम, 1992 के अनुसार, “सेबी एक समामेलित संस्था है जिसका अविच्छिन्न उत्तराधिकार है। इसको अपने नाम से वाद प्रस्तुत करने, चल तथा अचल सम्पत्ति पाने, धारण करने तथा निपटान करने का अधिकार प्राप्त है। सेबी पर वाद भी प्रस्तुत किया जा सकता है।”
सेबी का प्रबन्ध एवं संगठन (धारा 4)
(Management and Organisation of SEBI)
SEBI का प्रबन्धन एक नौ सदस्यीय बोर्ड में निहित होगा जिसका स्वरूप निम्नलिखित प्रकार होगा- (अ) एक अध्यक्ष जिसकी नियुक्ति केन्द्रीय सरकार करेगी, (ब) केन्द्रीय सरकार द्वारा नामांकित दो केन्द्रीय मन्त्रालय के अधिकारी जिन्हें वित्त तथा कम्पनी अधिनियम सम्बन्धी व्यवहार का अनुभव हो, (स) रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा नामांकित एक सदस्य, (द) पाँच अन्य सदस्य जिनकी नियुक्ति केन्द्रीय सरकार द्वारा होगी जिनमें कम से कम तीन पूर्णकालीन सदस्य होंगे।
सेबी के उद्देश्य
(Objects of SEBI)
अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से सेबी के उद्देश्यों को निम्नांकित दो भागों में विभक्त किया जा सकता है- (1) प्राथमिक उद्देश्य (Primary Objectives), तथा (II) सहायक/गौण उद्देश्य (Secondary Objectives)। (I) प्राथमिक उद्देश्य (Primary Objectives) सेबी के प्राथमिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं
- प्रतिभूतियों में निवेशकों (विनियोक्ताओं) के हितों की सुरक्षा करना (To Safeguard the Interest of Investors in Securities)
- प्रतिभूति बाजार के विकास का संवर्द्धन करना (To Promote the Development of Securities Market)
- प्रतिभूति बाजार का नियमन करना (To Regulate the Securities Market)।
(II) सहायक/गौण उद्देश्य (Secondary Objectives)-सेबी की स्थापना के सहायक/गौण उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
- दलालों तथा अन्य मध्यस्थों की क्रियाओं पर नजर रखना एवं उन पर प्रभावी नियन्त्रण स्थापित करना।
- प्रतिभूतियों को निर्गमित करने वाली कम्पनियों द्वारा निष्पक्ष व्यवहारों (Fair Dealings) को प्रोत्साहित करना।
- पँजी बाजार में जनता की बचतों का नियमित प्रवाह (Steady Flow) बनाये रखना।
- अंश बाजार में होने वाले आन्तरिक व्यापार (Insider Trading) की रोकथाम करना। आन्तरिक व्यापार से आशय कम्पनी की गुप्त जानकारी रखने वाले व्यक्तियों (जैसे-संचालक) द्वारा गुप्त सूचनाओं
का लाभ उठाने के उद्देश्य से सम्बन्धित कम्पनी की प्रतिभूतियों (जसे करना है। इससे आम निवेशकों के हितों को आघात पहुँचता है।
- पूँजी बाजार में व्यवहार करने वाले सभी पक्षकारों को कुशल सेवाएँ उपलब्ध कराना।
- पूंजी बाजार में सम्पन्न किये जाने वाले व्यवहारों में पारदर्शिता (Transparency) बनाये रखना।
सेबी के कार्य (Functions of SEBI) सेबी के कार्यों को निम्नलिखित तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है- (1) सुरक्षात्मक कार्य (Protective Functions), (II)विकासात्मक कार्य (Developmental Functions), (III) नियामक कार्य (Regulatory Functions) (I) सरक्षात्मक कार्य (Protective Functions)-सुरक्षात्मक कार्यों से आशय निवेशकों हितों की सरक्षा बनाये रखने सम्बन्धी कार्यों से है। सेबी द्वारा सम्पन्न किये जाने वाले सरक्षात्मक निम्नलिखित हैं
- प्रतिभूति बाजार में सम्पन्न किये जाने वाले कपटमय एवं अनुचित व्यापार व्यवहारों का Trade Practices) की रोकथाम करना। जैसे-प्रबन्धकों द्वारा मिथ्याकथन जिसके कारण प्रतिभतियों । उतार-चढ़ाव आते हैं।
- आन्तरिक व्यापार (Insider Trading) पर रोक लगाना। कम्पनी में कछ व्यक्ति (जैसे-संचालक तथा प्रवर्तक) ऐसे होते हैं जो कम्पनी से निकटतम रूप में जुड़े होते हैं एवं जिन्हें कम्पनी की आन्तरिक स्थिति का पता होता है। अपनी इस स्थिति का लाभ उठाकर वे कम्पनी की प्रतिभूतियों में क्रय-विक्रय करते हैं एवं भारी लाभ कमाते हैं।
उदाहरण के लिए, एक कम्पनी के संचालक को यह पता है कि कम्पनी की आगामी वार्षिक सभा में 1 : 1 के अनुपात में बोनस अंशों की घोषणा की जायेगी। निश्चित है कि ऐसा होने पर कम्पनी के अंशों का मूल्य बढ़ जायेगा। वह बाजार से तुरन्त दो हजार अंश क्रय कर लेता है और अनुचित लाभ कमा लेता है। सेबी का कार्य है कि ऐसे व्यवहारों पर रोक लगायी जाये। 3.निवेशकों को शिक्षित करना।
- आचार संहिता (Code of Coduct) लागू करना, जैसे (अ) यह दिशा-निर्देश निर्गमित किया गया है कि कोई भी कम्पनी ऋणपत्रों की शर्तों में एकपक्षीय परिवर्तन नहीं कर पायेगी और न ही अन्य किसी प्रतिभूति में परिवर्तित कर पायेगी। (ब) यदि कोई व्यक्ति आन्तरिक सूचना पर आधारित कोई सौदा (Insider Trading) करने का दोषी पाया जाता है तो उसके लिए कठोर दण्ड एवं जुर्माने की व्यवस्था की गयी है। (स) अंशों के प्राथमिकता वाले आबंटनों (Preferential Allotment) से कम मूल्य के निर्गमन पर पूर्ण रूप से रोक लगा दी गयी है।
(II) विकासात्मक कार्य (Developmental Functions) विकासात्मक कार्यों से आशय एस कार्यों से है जो स्कन्ध विपणियों का विकास करने के उद्देश्य से किये जाते हैं। ये निम्नलिखित प्रकार हैं
- मध्यस्थों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था – सेबी उन सभी लोगों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करती है जो स्कन्ध विपणियों से किसी-न-किसी रूप से जुड़े हैं। इसका उद्देश्य ऐसा वातावरण करना है जिसमें कि ये लोग निवेशकों के मित्र एवं मार्गदर्शक बनकर कार्य कर सके।
- नीतियों में आवश्यक परिवर्तन – परिस्थितियों की आवश्यकता को समझते हुए सबा नीतियों एवं कार्य-प्रणाली में समय-समय पर आवश्यक संशोधन किये हैं। उदाहरण- (1) स्थितियों में इण्टरनेट के माध्यम से व्यवहार करने की अनुमति प्रदान की गयी है। (ii) निगम को घटाने के लिए अभिगोपन कराना ऐच्छिक कर दिया गया है। (iii) पहली बार निगम कम्पनियों के लिए स्कन्ध विपणि को माध्यम बनाना अनिवार्य कर दिया गया है।
- निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए शोध कार्य को प्रोत्साहित करना।
- पूँजी बाजार में कार्यरत सभी पक्षकारों की सुविधा के लिए समय-समय पर को प्रकाशित करना।
- विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) का पंजीयन करना।
- (III) नियामक कार्य (Regulatory Functions_नियामक कार्यों से आशय एस कामास जो स्कन्ध विपणियों के नियमन एवं नियन्त्रण के उद्देश्य से किये जाते हैं। ऐसे प्रमुख कार्य निम्नलिखित प्रकार हैं –
- निश्चित नियम एवं आचरण संहिता – सेबी ने स्कन्ध विपणियों में कार्य करने वाले मध्यस्थों के लिए निश्चित नियम एवं आचरण संहिता तैयार किये हैं जिनका पालन सभी दलालों, अभिगोपका, बैंकों तथा रजिस्ट्रारों के लिए अनिवार्य है। इन मध्यस्थों को पहली बार नियमों एवं प्रतिबन्धों के दायरे में लाया गया है।
- पंजीयन एवं गतिविधियों का अभिलेख तैयार करना – स्कन्ध विपणियों में कार्यरत सभी दलालों, उपदलालों, एजेण्टों, मर्चेण्ट बैंकरों, अभिगोपकों, प्रतिभूति मैनेजरों, विनियोग परामर्शदाताओं, प्रन्यासियों का पंजीयन एवं इनकी गतिविधियों का रिकॉर्ड रखा जाता है ताकि इनके सम्बन्ध में आवश्यक कार्यवाही के निर्देश दिये जा सकें।
- जाँच-पड़ताल एवं अंकेक्षण – सेबी को यह अधिकार भी प्राप्त है कि वह किसी भी स्कन्ध विपणि के सम्बन्ध में आवश्यक जाँच कराने तथा उनके खातों का अंकेक्षण कराने का आदेश दे सकता है।
- कम्पनियों के एकीकरण अथवा अधिग्रहण का नियमन – यदि दो कम्पनियाँ मिलकर कोई नयी कम्पनी बनाती हैं या किसी दूसरी कम्पनी का अधिग्रहण करती हैं तो सेबी इस सम्बन्ध में आवश्यक जाँच करा सकता है तथा दिशा-निर्देश जारी कर सकता है।
- स्कन्ध विपणि तथा प्रतिभूति बाजार में सम्पन्न होने वाले व्यवसाय का नियमन करना।
- वेंचर कैपिटल फण्ड (Venture Capital Fund) का पंजीकरण करना।
- म्यूचुअल फण्डों (Mutual Funds) सहित सामूहिक निवेश योजनाओं का पंजीयन करना और उनकी कार्य-प्रणाली का नियमन करना।
- सूचना प्राप्ति की शक्ति (Power to seek information)-सेबी संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा किए गए संशोधनों के पश्चात् सेबी अधिनियम, 1992 की धारा 11 सेबी को यह महत्वपर्ण शक्ति प्रदान करती है कि वह किसी भी बैंक या अन्य किसी वैधानिक सत्ता या बोर्ड या निगम, जिसकी स्थापना केन्द्रीय, राज्य या स्थानीय सरकार द्वारा की गई है, से सूचनाएँ, जानकारी व रिकार्ड की माँग कर सकता है। अन्य शब्दों में, सेबी अब उन सूचनाओं की मांग करने की शक्ति रखते है, जिनसे होकर कोषों को प्रयोग में लाया जा रहा है।
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- प्रतिभूतियों आदि में व्यापार को स्थगित करने की शक्ति (Power to suspend trading in securitites etc.)-सेबी (सशोधन) अधिनियम, 2002 द्वारा धारा 11 में जोडी सेबी को या तो लम्बित खोज (Pending investigation) या जॉच के सम्बन्ध में या ऐसी को पूर्ण करने के पश्चात् निम्नलिखित आदेश जारी करने की शक्तियाँ प्रदान करती है.
- प्रविवरण जारी करने हेतु प्रस्ताव सम्बन्धी दस्तावेज या प्रतिभूतियों को जारी करने हेत धन की याचना सम्बन्धी विज्ञापन को विनियमित या प्रतिबन्धित करना (Power to regulate or prohibit issue of prospectus, offer document or advertisement soliciting money for issue of securities)-सेबी (संशोधन) अधिनियम, 2002 के द्वारा अधिनियम की धारा 11A को एक नई धारा से प्रतिस्थापित (replace) किया गया है। लागू किए गए प्रावधान के अधीन सेबी को यह शक्ति प्रदान की गई है कि वह सामान्य या विशेष आदेश द्वारा किसी भी कम्पनी के प्रविवरण या प्रस्ताव-दस्तावेज जारी करने या प्रतिभूतियाँ जारी करने हेत जनता से धन की याचना करने पर प्रतिबन्ध लगा सकता है या फिर उन शर्तों के अधीन कम्पनी को उक्त दस्तावेज जारी करने हेतु आज्ञा दे सकता है, जिन्हें वह उचित समझे। __इसके साथ ही, बोर्ड प्रतिभूतियों एवं इससे सम्बन्धित अन्य मसलों को सूचीबद्ध करने एव हस्तान्तरण करने हेतु उन आवश्यकताओं का निर्धारण कर सकता है, जिन्हें वह उचित समझे तथा जिनका पूर्ति आवश्यक हो।
- तलाशी एवं जब्ती की शक्ति (Power of search and seizure)-सेबी आधानयम – (संशोधन) अधिनियम, 2002 के माध्यम से एक नई धारा 11C जोड़ी गई हैं जो तलाशी लेने एव जा की शक्तियों से सम्बन्धित है। इस धारा के अधीन सेबी को यह शक्ति प्रदान की गई है कि याद उसे पास इस बात पर विश्वास करने हेतु पर्याप्त कारण हैं कि पँजी-बाजार में प्रतिभूतियों से सम्बन्धित लनदा इस प्रकार से किए जा रहे हैं, जो प्रतिभूतियों के बाजार के हित में नहीं हैं तो वह इस सम्बन्धन खाजबान करने हेतु आदेश जारी कर सकता है तथा साथ ही उससे सम्बन्धित पुस्तक तथा सम्बन्धित रिकार्ड प्रस्तुत करने का निर्देश जारी कर सकता है. जिन्हें खोज-अधिकारी क का जा सकता है।
- रोकने या विमुख होने/छोड़ देने का आदेश देने की शक्ति (Power to order cease desist) सेबी (संशोधन) अधिनियम, 2002 द्वारा सेबी अधिनियम में एक नई धारा 11D जाड़ा सेबी को यह शक्ति प्रदान करती है कि वह रोकने या विमख होने/छोड़ देने सम्बन्धी आदश, जा हों, जारी करे। इस धारा के अनुसार यदि जाँच के पश्चात बोर्ड को यह ज्ञात होता है कि किसी व्या अधिनियम के किन्हीं प्रावधानों या इसके अधीन निर्मित किन्हीं नियमों या विनियमों का उल्लंघन किया है। या कर सकता है तो बोर्ड उस व्यक्ति को ऐसा उल्लंघन करने से रोकने या उससे अलग रहने का आदेश जारी कर सकता है।
- छलपूर्ण तथा भ्रमपूर्ण चालों, आन्तरिक व्यापार तथा प्रतिभूतियों के वास्तविक नियन्त्रण (Prohibition of manipulative and deceptive devices, insider substantial acquisition of securities or control)-सेबी (संशोधन) अधिनियम 2004 अधिनियम में एक नई धारा 12A जोड़ी गई है जो किसी स्कन्ध विनिमय केन्द्र में सूचीबद्ध प्रस्तावित किसी प्रतिभूति के निर्गमन, क्रय या विक्रय के सन्दर्भ में छलपूर्ण एवं भ्रमपूण चालों के प्रयोग
- पर प्रतिबन्ध लगाती है। इसी प्रकार से निवेशकों को छलने के लिए ऐसी किसी चाल या योजना का प्रयोग भी सेबी अधिनियम के प्रावधानों को अपनी ओर आकर्षित करता है। अत: किसी व्यक्ति, जिसके पास महत्त्वपूर्ण जानकारी या प्रकाशित जानकारी है, के द्वारा लेनदेन करना भी दण्डनीय अपराध है।
- मध्यस्थों के ऊपर शक्ति (Power over intermediaries)-सेबी अधिनियम की धारा 12 के अनुसार कोई भी दलाल. उप-दलाल. मर्चेन्ट बैंकर आदि तब तक प्रतिभूतियों का क्रय, विक्रय या प्रतिभूतियों में लेनेदन नहीं कर सकता. जब तक वह सेबी से अपना पंजीकरण न करा ले। सेबी का उन्ह निर्देश देने की शक्ति प्राप्त है। वे पंजीकरण हेत निर्धारित शर्तों के पालन हेतु बाध्य हैं तथा यदि इन शता का पालन नहीं किया जाता तो उनके पंजीकरण को स्थगित (suspend) अथवा यहा तक कि २६ (cancel) भी किया जा सकता है।
- प्रतिभूति अनुबन्ध (नियमन) अधिनियम, 1956 के अधीन सेबी की शक्तियाँ (Powers of SEBI under Securities Contracts (Regulation) Act, 1956)-प्रतिभूति अनुबन्ध (नियमन) अधिनियम (SCRA), 1956 मुख्य रूप से भारत में स्कन्ध-विनिमय केन्द्रों की स्थापना एवं प्रबन्ध से सम्बन्धित है। सेबी को प्रतिभूति अनबन्ध (नियमन) अधिनियम, 1956 के अधीन स्कन्ध-विनिमय केन्द्रों के नियन्त्रण एवं निरीक्षण से सम्बन्धित प्रायः समस्त शक्तियाँ प्रदान की गई है जिनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है-
- (iii) लेखा पस्तकों या रिकार्ड की व्यवस्था आवश्यक होने पर भी यदि वह उन्हें तो वह उल्लंघन की कुल अवधि के प्रत्येक दिन हेतु रू. 1 लाख की दर से या रू.1 करोड दो । भी कम हो, के जुर्माने हेतु उत्तरदायी होगा।
- किसी व्यक्ति द्वारा ग्राहकों के साथ अनुबन्ध में प्रविष्ट होने में असफल होने पर दण्ड (Penalty for failure by any person to enter into agreement with clients) यदि कोई सर एक मध्यस्थ के रूप में पंजीकृत है तथा जिसे इस अधिनियम या इसके अधीन बनाये गये किन्हीं निक विनियमों के अधीन अपने ग्राहक के साथ ठहराव करना आवश्यक है, और यदि वह ऐसे ठहराव असफल रहता है तो वह उस असफलता की कुल अवधि के प्रत्येक दिन हेतु रू. 1 लाख की दर रू.1 करोड़, दोनों में से जो भी कम हो, के जुर्माने हेतु उत्तरदायी होगा।
- ग्राहकों की शिकायतों का निपटारा करने में असफल रहने पर दण्ड (Penalty for to redress investors’ grievances)—यदि किसी सूचीबद्ध कम्पनी या किसी व्यक्ति को, जो मध्यस्थ के रूप में पंजीकृत है, बोर्ड द्वारा लिखित रूप में ग्राहकों की शिकायत का निपटारा करने हेत बलाया जाता है तथा वह बोर्ड द्वारा निर्धारित समय के भीतर ग्राहकों की शिकायत का निपटारा करने में असफल रहता है तो ऐसी कम्पनी या मध्यस्थ को असफलता की कुल अवधि के प्रत्येक दिन हेतु रू. 1 लाख की दर से अथवा रू.1 करोड़, दोनों में से जो भी कम हो, के जुर्माने हेतु उत्तरदायी ठहराया जायेगा।
- पारस्परिक कोषों से सम्बन्धित कुछ अपराधों हेतु दण्ड (Penalty for certain defaults in case of Mutual Funds)-यदि कोई व्यक्ति, जिसे –
- भीतरी व्यापार हेतु जुर्माना (Penalty for insider trading)-यदि कोई भीतरी व्यक्ति-
- व्यवहार के दौरान अथवा किसी कानन के अधीन प्रदान की जाने वाली सूचना शामिल नहा, करता है; अथवा (iii) किसी अन्य व्यक्ति के लिए अप्रकाशित मल्य संवेदनशील सूचना के आधार पर किसा निगमित निकाय की प्रतिभतियों में व्यवहार हेत परामर्श देता है. या प्राप्त करता है। तो वह 2 कर या भीतरी व्यापार द्वारा अर्जित लाभ की राशि की तीन गुणा राशि, दोनों में से जो भी अधिक हो, के बराबर जुर्माने हेतु उत्तरदायी होगा।
- स्कन्ध दलालों की दशा में अवहेलना पर दण्ड (Penalty for default in case of stock-brokers)-यदि कोई व्यक्ति, जिसे इस अधिनियम के अधीन स्कन्ध-दलाल के रूप में पंजीकृत किया गया है
- अंशों के अर्जन के अप्रकटीकरण हेतु दण्ड (Penalty for non-disclosure of acquisition of shares)-यदि किसी व्यक्ति द्वारा इस अधिनियम या इसके अधीन बनाये गए किन्हीं नियमों या विनियमों के अधीन निम्न सूचनाओं का प्रकटीकरण आवश्यक है :
- कपटपूर्ण एवं अनुचित व्यापार व्यवहारों हेतु दण्ड (Penalty for fraudulent and unfair trade practices) यदि कोई व्यक्ति प्रतिभूतियों से सम्बन्धित कपटपूर्ण एवं अनुचित व्यापार व्यवहारों में संलग्न है तो वह अधिकतम रू. 25 करोड़ या ऐसे व्यवहारों से अर्जित किए गए लाभों का तीन-गुना (three times) दोनों में से जो अधिक हो, के जुर्माने हेतु उत्तरदायी होगा।
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