Copyright Act – Economic Laws B.Com 3rd Year Notes

Copyright Act – Economic Laws B.Com 3rd Year Notes :- Economic Laws, Study Material Question Answer Examination Paper Sample Model Practice Notes PDF MCQ (Multiple Choice Questions) available in our site. parultech.com. Topic Wise Chapter wise Notes available. If you agree with us, if You like the notes given by us, then please share it to all your Friends. If you are Confused after Visiting our Site Then Contact us So that We Can Understand You better.



‘कॉपीराइट’ बौद्धिक सम्पदा अधिकारों का ही एक प्रकार है जिसका नियमन एवं अभिशासन भारत में ‘कॉपीराइट अधिनियम’, 1957 के द्वारा किया जाता है। यह अधिनियम जम्मू एवं कश्मीर सहित सम्पूर्ण भारत में 21 जनवरी, 1958 से लागू किया गया था। इस अधिनियम में सन् 1983, 1984, 1992, 1994, 1999 तथा 2012 में संशोधन किये गये हैं।

कॉपीराइट का अर्थ

(Meaning of Copyright) 

कॉपीराइट से तात्पर्य किसी कृति के सम्बन्ध में या उस कृति के बहुत बड़े भाग के सम्बन्ध में निम्नलिखित क्रियाएँ करने अथवा करने को अधिकृत करने के अनन्य या एकाकी या अखण्ड अधिकार

  1. किसी कृति को भौतिक रूप में पुन: प्रस्तुत (Reproduce) करना, जिसमें उसके किसी इलैक्ट्रॉनिक माध्यम से संग्रहण करना भी सम्मिलित है।
  2. उस कृति की पहले से प्रसारित प्रतियों के अतिरिक्त, उस कृति की प्रतियाँ जनता में जारी करना। 
  3. कृति का सार्वजनिक प्रस्तुतीकरण करना अथवा उसे सार्वजनिक रूप से सूचित करना। 
  4. किसी कृति की चलचित्रदर्शी फिल्म बनाना अथवा उसका ध्वनि-अंकन करना। 
  5. किसी कृति का अनुवाद करना। 
  6. किसी कृति का अनुकूलन (adaptation) करना।
  7. किसी कृति के अनुवाद करने या अनुकूलन करने के सन्दर्भ में उपर्युक्त बिन्दु 1 से 4 में वर्णित क्रियाएँ करना।

[धारा 14(1)(a)] 

  1. किसी कम्प्यूटर प्रोग्राम की किसी प्रति का विक्रय करना अथवा उसे व्यापारिक रुप से किराये पर देना अथवा विक्रय या व्यापारिक रूप से किराये पर देने का प्रस्ताव करना।
  2. ध्वनि-अंकन की किसी प्रति का विक्रय करना या व्यापारिक आधार पर किराये पर देना अथवा विक्रय या किराये पर देने का प्रस्ताव करना।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि कॉपीराइट कोई एक अधिकार नहीं है बल्कि यह कई अधिकारों का समूह है जिसमें कुछ नकारात्मक अधिकार भी सम्मिलित हैं। विस्तृत अर्थ में, कॉपीराइट के अधीन समाहित अधिकारों को निम्नांकित वर्गों में विभक्त किया जा सकता हैं:

  1. प्रकाशन का अधिकार। 
  2. सम्बन्धित अधिकार।। 
  3. कृति की विषय-वस्तु में परिवर्तन करने से किसी व्यक्ति को रोकने का अधिकार। 
  4. लेखकीय अधिकार अथवा पैतृत्वता का अधिकार।।

कॉपीराइट निहित कृतियाँ

(Works in which Copyright Subsists) 

सम्पूर्ण भारत में निम्नांकित वर्ग की कृतियों में कॉपीराइट निहित या विद्यमान माना जाएगा- (अ) मौलिक साहित्यिक, नाट्यात्मक तथा संगीतात्मक कृतियाँ।  (ब) चलचित्रदर्शी फिल्में।  (स) ध्वनि-अंकन या ध्वनि रिकार्डिंग।

कॉपीराइट का स्वत्व तथा स्वामियों के अधिकार

(Ownership of Copyright and Rights of Owners) 

किसी भी कति का लेखक या रचयिता ही उसका प्रथम स्वामी होता है। [धारा 17]  यहाँ लेखक या रचयिता से तात्पर्य निम्नानुसार है:

  1. किसी साहित्यिक या नाट्यात्मक कृति की दशा में, उसका लेखक या रचयिता।
  2. संगीतात्मक कृति की दशा में, उसका संगीतकार। 
  3. कलात्मक कृति (छायाचित्र के अतिरिक्त) की दशा में, कलाकार।
  1. किसी छायाचित्र की दशा में, उसका छायाचित्रकार। 
  2. चलचित्र या ध्वनि-अंकन की दशा में, उसका सूत्रधार या प्रस्तुतकर्ता।
  3. कम्प्यूटर जनित किसी साहित्यिक, नाट्यात्मक, संगीतात्मक या कलात्मक कृति की दशा में उसका सृजनकर्ता 

[धारा 2(d)] 

अपवाद (Exceptions) किन्तु निम्नांकित अपवादजनक दशाओं में किसी कृति का लेखक व रचयिता उस कृति के कॉपीराइट का स्वामी नहीं होगाः

  1. जब साहित्यिक, नाट्यात्मक या कलात्मक कृति की रचना किसी समाचार-पत्र के स्वामी के नियोजन के दौरान की गई हो-किसी साहित्यिक, नाट्यात्मक या कलात्मक कृति का सृजन/रचना तब की गई हो जबकि उसका लेखक/रचयिता किसी समाचार-पत्र, पत्रिका आदि के स्वामी के सेवायोजन में था तो उसका स्वामी ही उस कृति के प्रकाशन या पुन: प्रकाशन/प्रसारण के उद्देश्यों के लिए कॉपीराइट का प्रथम स्वामी माना जायेगा, यदि उनके बीच कोई प्रतिकूल अनुबन्ध नहीं हुआ हो।

किन्तु, उस कृति के प्रकाशन या पुनः प्रकाशन/प्रसारण के उद्देश्यों के अतिरिक्त अन्य सभी उद्देश्यों के लिए उस कृति का रचयिता ही उस कृति में कॉपीराइट का प्रथम स्वामी होगा। 

[धारा 17(a)]

  1. प्रतिफल के बदले छायाचित्र, पेन्टिंग आदि कृतियाँ-यदि किसी व्यक्ति के अनुरोध पर प्रतिफल के बदले में छायाचित्र लिया गया है अथवा पेन्टिंग या पोट्रेट या उत्कीर्ण (Engraving) या चलचित्रदर्शी फिल्म बनायी गई है, तो किसी प्रतिकूल अनुबन्ध के अभाव में, उस कृति में कॉपीराइट पर प्रथम स्वामित्व उस व्यक्ति का ही होगा जिसके अनुरोध पर उस कृति की रचना की गई है। 

[धारा 17(b)]

  1. सेवा के अनुबन्ध या प्रशिक्षुता में नियोजन की अवधि में सृजित कृति-यदि किसी कृति की रचना लेखक ने किसी सेवा अनुबन्ध के अधीन या किसी प्रशिक्षुता (Apprenticeship) में नियोजन की अवधि के दौरान किया है तो किसी प्रतिकूल अनुबन्ध के अभाव में, उस कृति में कॉपीराइट का प्रथम स्वामित्व उसके नियोजक का ही होगा।

[धारा 17(C)] 

  1. भाषण या व्याख्यान की दशा में-यदि किसी व्यक्ति ने कोई सार्वजनिक भाषण या व्याख्यान दिया है तो वह भाषण देने वाला व्यक्ति ही उस भाषण में कॉपीराइट का प्रथम स्वामी माना जायेगा। यदि किसी व्यक्ति ने किसी अन्य व्यक्ति की ओर से कोई भाषण या व्याख्यान दिया है तो, उस भाषण में कॉपीराइट का प्रथम स्वामी वह अन्य व्यक्ति ही होगा जिसकी ओर से वह भाषण दिया गया है।

[धारा 17(cc)] 

  1. सरकारी कृति की दशा में सरकारी कृति की दशा में, किसी प्रतिकूल अनुबन्ध के अभाव में सरकार का ही उस कृति के कॉपीराइट में प्रथम स्वामित्व होगा।

[धारा 17(d)] 

  1. सार्वजनिक उपक्रम द्वारा रचित या प्रकाशित कृति की दशा में-यदि कोई कृति सार्वजनिक उपक्रम द्वारा रचित है या उस कृति का प्रथम प्रकाशन किसी सार्वजनिक उपक्रम द्वारा किया गया है तो किसी प्रतिकूल अनुबन्ध के अभाव में उस सार्वजनिक उपक्रम का ही उस कृति के कॉपीराइट में प्रथम स्वामित्व होगा।

[धारा 17(dd)] 

  1. अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की कृति की दशा में यदि किसी कृति पर इस अधिनियम की धारा 41 लागू होती है तो उस कृति में कॉपीराइट का प्रथम स्वामित्व सम्बन्धित अधिकार उस अन्तर्राष्ट्रीय संगठन का ही होगा।

[धारा 17(e)] 

कॉपीराइट का हस्तांकन

(Assignment of Copyright) 

किसी विद्यमान कति में कॉपीराइट का हस्तांकन कॉपीराइट के स्वामी द्वारा किया जा सकता है। किसी भावी कृति में कॉपीराइट का हस्तांकन उस कृति में कॉपीराइट के भावी स्वामी द्वारा किया जा सकता है। ऐसा स्वामी या भावी स्वामी उस कॉपीराइट या भावी कॉपीराइट का (i) पूर्णत: या आंशिक रूप से, (ii) साधारण या सीमाओं के अधीन, अथवा (iii) कॉपीराइट की पूर्ण अवधि के लिए या उसके किसी एक भाग की अवधि के लिए हस्तांकन कर सकता है।

[धारा 18(1)] 

यह ध्यान रहे कि किसी भावी कृति में कॉपीराइट का हस्तांकन तभी प्रभावी होता है जबकि वह कृति अस्तित्व में आती है।

कॉपीराइट के हस्तांकन की विधि

(Mode of Assignment of Copyright) 

कॉपीराइट के हस्तांकन विधि से सम्बन्धित प्रमुख प्रावधान निम्नानुसार हैं:

  1. हस्तांकन की औपचारिकताएँ-किसी भी कृति का हस्तांकन तभी वैध होगा जबकि निम्नांकित औपचारिकताओं को पूरा कर लिया जायेगा:

(i) हस्तांकन लिखित हो। (ii) हस्तांकन हस्तांकनकर्ता अथवा उसके अधिकृत एजेण्ट द्वारा हस्ताक्षर युक्त हो।

[धारा 19 (1)]

  1. कृति की पहचान, अधिकारों का वर्णन तथा हस्तांकन की अवधि-किसी भी कृति के हस्तांकन में उस कृति की पहचान तथा हस्तांकित अधिकारों का वर्णन एवं हस्तांकन की अवधि क्षेत्रीय विस्तार आदि का उल्लेख होना चाहिये।

[धारा 19(2)] 

यदि हस्तांकन लेख में हस्तांकन की अवधि का उल्लेख नहीं किया गया है तो यह मानार जायेगा कि हस्तांकन 5 वर्ष की अवधि के लिए किया गया है।

[धारा 19 (5)] 

जब हस्तांकन के क्षेत्राधिकार को हस्तांकन लेख में स्पष्ट नहीं किया जाता है तो यह माना जायेगा कि वह हस्तांकन सम्पूर्ण भारत के लिए किया गया है।

[धारा 19 (6)] 

  1. रॉयल्टी तथा हस्तांकन की अन्य शर्ते-किसी भी कृति के हस्तांकन में इस बात का भी स्पष्ट उल्लेख होना चाहिये कि उसके लेखक/रचयिता या उसके उत्तराधिकारी को हस्तांकन की अवधि में कितनी रायल्टी या अन्य प्रतिफल देय होगा।
  2. हस्तांकित अधिकारों की समाप्ति-कभी-कभी कोई हस्तांकिती अपने हस्तांकित अधिकारों का हस्तांकन की तिथि से एक वर्ष के भीतर भी उपयोग नहीं करता है। ऐसी दशा में, यदि हस्तांकन लेख में कुछ विपरीत नहीं लिखा है तो हस्तांकन किये गये अधिकार उस एक वर्ष की अवधि के बाद स्वत: समाप्त हुए माने जायेंगे।

[धारा 19(4)] 

कॉपीराइट की अवधि

(Term of Copyright) 

किसी साहित्यिक, नाट्यात्मक, संगीतात्मक या कलात्मक कृति तथा चत्रचित्रदर्शी फिल्म तथा ध्वनि अंकन की दशा में कॉपीराइट उसके प्रथम प्रकाशन के वर्ष से ठीक आगामी कलैण्डर वर्ष से 60 वर्षों की अवधि तक बना रहता है। कॉपीराइट के स्वामी या कॉपीराइट बोर्ड कॉपीराइट में लाइसेन्स प्रदान कर सकते हैं।

कॉपीराइट कार्यालय तथा कॉपीराइट बोर्ड

(Copyright Office and Copyright Board) 

इस अधिनियम के उद्देश्यों के लिए एक कॉपीराइट कार्यालय स्थापित किया जायेगा। यह कार्यालय ‘कॉपीराइट-रजिस्ट्रार’ के प्रत्यक्ष नियन्त्रण में होगा। कॉपीराइट-रजिस्ट्रार केन्द्रीय सरकार के निरीक्षण एवं निर्देशन में कार्य करेगा। कॉपीराइट कार्यालय की एक सील भी होगी।

[धारा 9] 

कॉपीराइट बोर्ड-केन्द्रीय सरकार इस अधनियम के अधीन एक बोर्ड के गठन का अधिकार रखती है। ऐसे बोर्ड को ‘कॉपीराइट बोर्ड’ के नाम से जाना जाता है।

[धारा 11] 

कॉपीराइट बोर्ड का गठन एक अध्यक्ष तथा दो अन्य सदस्यों से किया जायेगा। कॉपीराइट बोर्ड का अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति होगा जो किसी उच्च न्यायालय में है अथवा रह चुका है अथवा जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति की योग्यताएँ रखता है। केन्द्रीय सरकार कॉपीराइट बोर्ड के अध्यक्ष से परामर्श करने के पश्चात् कॉपीराइट बोर्ड के सचिव एवं जितने उचित समझे उतने अन्य अधिकारियों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति कर सकेगी जिनकी कॉपीराइट बोर्ड के कार्यों के समुचित निष्पादन के लिए आवश्यकता समझेगी। कॉपीराइट बोर्ड के अध्यक्ष एंव अन्य सदस्यों को देय वेतन एवं भत्ते तथा सेवा की शर्ते वे ही होंगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्धारित किये जायेंगे।

कॉपीराइट समिति तथा प्रसारण संगठन 

(Copyright Society and Broadcasting Organisation) 

कॉपीराइट समिति एक विधिसम्मत संस्था है जिसकी स्थापना किसी भी कृति में हित रखने वाले स्वामियों के द्वारा की जा सकती है। यह संस्था कॉपीराइट स्वामियों के अधिकारों एवं हितों के संरक्षण हेतु कार्य करती है। प्रत्येक प्रसारण संगठन अपने प्रसारण को पुन: उत्पादित करने का अधिकार रखता है। ऐसा अधिकार जिस वर्ष में वह प्रसारण उत्पन्न किया गया था उस वर्ष के ठीक आगामी कलैण्डर वर्ष से 25 वर्षों की अवधि तक बना रहता है। यदि कोई प्रस्तुतकर्ता किसी प्रस्तुति में प्रकट होता है अथवा किसी प्रस्तुति में भाग लेता है तो उस प्रस्तति के सम्बन्ध में प्रस्तुतकर्ता का अधिकार प्रस्तुति करने के वर्ष के ठीक आगामी कलैण्डर वर्ष के प्रारम्भ से 50 वर्षों तक विद्यमान रहेगा।

कॉपीराइट का पंजीयन

(Registration of Copyright) 

कॉपीराइट का पंजीयन अनिवार्य नहीं है। इसके अतिरिक्त, कॉपीराइट का उल्लंघन करने की दशा में इस अधिनियम के अधीन उपचार प्राप्त करने के लिए इस अधिनियम में कॉपीराइट का पंजीयन अनिवार्य नहीं है। किन्तु, इस अधिनियम में कॉपीराइट के पंजीयन की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। कॉपीराइट के पंजीयन सम्बन्धी प्रमुख प्रावधान निम्नानुसार हैं:

  1. निर्धारित प्रारूप में आवेदन:कॉपीराइट का पंजीयन कराने हेतु कृति का (i) लेखक/रचनाकार, (ii) प्रकाशक, (iii) स्वामी, या (iv) कृति के कॉपीराइट में हित रखने वाला कोई भी व्यक्ति आवेदन कर सकता है। आवेदन निर्धारित प्रारूप में निर्धारित शुल्क के साथ कॉपीराइट्स-रजिस्ट्रार के पास करना होता
  2. रजिस्टर में प्रविष्टि-किसी कृति के सम्बन्ध में आवेदन प्राप्त होने के बाद कॉपीराइट्स-रजिस्ट्रार उस कृति के विवरण को कॉपीराइट्स-रजिस्टर में लिख लेगा। किन्तु ऐसा करने से पूर्व आवश्यक जाँच-पड़ताल अवश्य करेगा।

[धारा 45 (2)] 

कॉपीराइट्स-रजिस्टर कॉपीराइट कार्यालय में निर्धारित प्रारूप में एक कॉपीराइट रजिस्टर रखा जायेगा। इस रजिस्टर में कृतियों के नाम या शीर्षक, रचनाकारों के नाम तथा पते, कॉपीराइट के प्रकाशक तथा स्वामी तथा ऐसे ही अन्य निर्धारित किये गये विवरण लिखे जायेंगे।

[धारा 44] 

रजिस्टर विवरणों का प्रथम दृष्टया प्रमाण-कॉपीराइट्स-रजिस्टर उसमें उल्लेखित विवरणों/प्रविष्टियों का प्रथम दृष्टया (Prima Facie) प्रमाण होगा। कोई भी प्रलेख जिसे कॉपीराइट्स-रजिस्ट्रार द्वारा उसकी प्रति या अंश के रूप में उसकी सील के साथ प्रमाणित किया गया है, को न्यायालय में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकेगा और उसके बाद किसी अन्य प्रमाण या साक्ष्य की अथवा मूल रजिस्टर को प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं रहेगी।

[धारा 48] 

कॉपीराइट का उल्लंघन

(Infringement of Copyright) 

कॉपीराइट अधिनियम लेखकों/रचनाकारों, प्रकाशकों तथा कृतियों में हित रखने वाले अन्य व्यक्तियों को अपनी कृतियों के प्रकाशन एवं पुन: प्रकाशन करने एवं उनसे वित्तीय लाभ प्राप्त करने का अनन्य अधिकार देता है। यदि कोई अन्य व्यक्ति लेखकों/रचनाकारों आदि की अनुमति के बिना इन अधिकारों का उपयोग करता है तो उसे कॉपीराइट का उल्लंघन कहा जाता है। यदि कोई व्यक्ति कॉपीराइट के स्वामी अथवा कॉपीराइट-रजिस्ट्रार की अनुमति के बिना किसी कृति में कॉपीराइट उपयोग /विदोहन करता है या उसे सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत करता है तो उसे कॉपीराइट का उल्लंघन माना जाता है। यह उल्लेखनीय है कि किसी साहित्यिक, नाट्यात्मक, संगीतात्मक या कलात्मक कृति का चलचित्रदर्शी फिल्म के रूप में पुन: उत्पादन या पुनः रचना करना कॉपीराइट का उल्लंघन ही माना जायेगा।

[धारा 51] 

कुछ क्रियाएँ कॉपीराइट का उल्लंघन नहीं

इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार (धारा 52) निम्नांकित क्रियाओं को कॉपीराइट का उल्लंघन नहीं माना जाता है:

  1. कम्प्यूटर प्रोग्राम के अतिरिक्त, किसी भी कृति का निम्नांकित उद्देश्यों के लिए उचित उपयोग करना कॉपीराइट का उल्लंघन नहीं होगा:

(i) निजी या व्यक्तिगत उपयोग जिसमें शोध हेतु उपयोग भी सम्मिलित है।  (ii) उस कृति का अथवा किसी अन्य कृति की समालोचना या समीक्षा हेतु उपयोग। (iii) सामाजिक घटनाओं या सामयिक विषयों की रिपोर्टिंग करने जिसमें सार्वजनिक रूप से दिये गये भाषण की रिपोर्टिंग भी सम्मिलित है, के लिए उपयोग।

  1. विधि सम्मत ढंग से व्यक्तिगत रूप से गैर व्यापारिक उपयोग के लिये प्राप्त कम्प्यूटर प्रोग की प्रतियाँ बनाना या अनुकूलन करना।
  2. किसी प्रकाशित साहित्यिक या नाट्यात्मक कृति के उचित उद्धरणों का सार्वजनिक रूप में पठन या स्वर पठन (Reading or Recitation)

कॉपीराइट के उल्लंघन के विरुद्ध उपचार

(Remedies against Infringement of Copyright) 

कॉपीराइट के स्वामी को कॉपीराइट का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध जो अधिकार प्राप्त हैं, उन्हें दो वर्गों में बांटा जा सकता है-

  1. नागरिक/सिविल उपचार।
  2. दण्डनीय उपचार। 
  3. नागरिक/सिविल उपचार (Civil Remedies):

कॉपीराइट के उल्लंघन की दशा में कॉपीराइट के स्वामी को निम्नांकित उपचार उपलब्ध होते हैं:

  1. निषेधाज्ञा (Injunction)—निषेधाज्ञा का तात्पर्य है पक्षकार को न्यायिक कार्यवाही के दौरान उल्लंघन का कोई भी कार्य करने से रोकने के आदेश से है। ऐसा करने से पीड़ित पक्षकार को कॉपीराइट उल्लंघन से और कोई हानि नहीं होती। यह एक सामान्य अधिकार है जिसके लिए पीड़ित पक्षकार न्यायालय में आवेदन कर सकता है। किन्तु निषेधाज्ञा जारी करना या नहीं करना न्यायालय के स्वविवेक पर निर्भर करता है।
  2. क्षतिपूर्ति (Damage) कॉपीराइट के उल्लंघन से पीड़ित पक्षकार को दूसरा उपचार प्राप्त हैं, उल्लंघनकर्ता से क्षतिपूर्ति की माँग करना। क्षतिपूर्ति की माँग सीधे उल्लंघनकर्ता से अथवा न्यायालय के माध्यम से की जा सकती है।
  3. लेखे माँगना (Accounts)—पीड़ित पक्षकार प्रतिवादी से लेखे माँग सकता है। लेखे से तात्पर्य उल्लंघनकर्ता द्वारा उल्लंघन से अर्जित शुद्ध लाभ का हिसाब है। पीड़ित पक्षकार लेखे तभी माँग सकता है जबकि उल्लंघनकर्ता को उस उल्लंघन से लाभ हुआ हो। लाभ नहीं होने पर न्यायालय उल्लंघनकर्ता को लेखे देने के लिए आदेश नहीं दे सकता हैं।

यह उल्लेखनीय है कि पीड़ित पक्षकार क्षतिपूर्ति की माँग करने तथा लेखे माँगने के अधिकार में से किसी एक ही अधिकार का उपयोग कर सकता है। वह दोनों अधिकारों का उपयोग नहीं कर सकता है।

  1. अन्यथा उपचार (Otherwise Relief)—यह एक ऐसा प्रावधान है जो न्यायालय को इस बात के लिए अधिकृत करता है कि वह पीड़ित पक्षकार को किसी शिकायत के लिए ऐसा उपचार या पारितोष (Relief) प्रदान कर सकता है जिससे उस शिकायत का सम्पूर्ण निवारण हो सके। [धारा (1)]

यह उल्लेखनीय है कि यदि उल्लंघनकर्ता अर्थात् प्रतिवादी यह सिद्ध कर देता है कि उल्लंघन की तिथि को वह इस बात से अनभिज्ञ था तथा उसके पास इस बात पर विश्वास करने का कोई आधार नहीं था कि उस कृति में कॉपीराइट विद्यमान था तो पीड़ित पक्षकार (वादी) को निषेधाज्ञा तथा उल्लंघन से अर्जित लाभ के लिए डिक्री प्राप्त करने के अतिरिक्त किसी अन्य तरह का उपचार प्राप्त नहीं होगा।

[धारा 55(1)] 

कॉपीराइट के उल्लंघन के विरुद्ध सिविल कार्यवाही के लिए वाद सम्बन्धित क्षेत्र के जिला न्यायालय में प्रस्तुत किया जायेगा।

[धारा 62] 

  1. दण्डनीय उपचार (Criminal Remedies): कोई भी व्यक्ति किसी भी कृति में कॉपीराइट का उल्लंघन करता है अथवा कॉपीराइट के स्वामी को इस अधिनियम के अधीन प्राप्त किसी अधिकार का उल्लंघन करता है तो ऐसे व्यक्ति को कम से कम छ: माह की तथा अधिकतम तीन वर्ष तक के कारावास की सजा दी जा सकती है तथा कम से कम 50,000 रू. के तथा अधिकतम दो लाख रु तक का जुर्माना किया जा सकता है।

यदि कॉपीराइट का उल्लंघन किसी व्यापारिक प्रक्रिया में नहीं किया गया है तो न्यायालय उसे छ माह से कम अवधि के कारावास की सजा दे सकता है अथवा 50,000 रू. से कम राशि का जुर्माना लगा सकता है।

[धारा 63]

कॉपीराइट्स-रजिस्ट्रार तथा कॉपीराइट बोर्ड के आदेश के विरुद्ध अपील 

कॉपीराइट्स-रजिस्ट्रार के आदेश या निर्णय के विरुद्ध अपील उस आदेश या निर्णय की तिथि के तीन माह के भीतर कॉपीराइट बोर्ड को की जा सकती है।  कॉपीराइट बोर्ड के आदेश या निर्णय के विरुद्ध (जो निर्णय या आदेश किसी अपील पर नहीं दिया गया है) अपील उस आदेश या निर्णय की तिथि से तीन माह के भीतर सम्बन्धित उच्च न्यायालय में की जा सकती है। किन्तु धारा 6 के अधीन कॉपीराइट बोर्ड के किभी भी निर्णय के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकेगी।

[धारा 72] 

कॉपीराइट्स-रजिस्ट्रार, कॉपीराइट बोर्ड अथवा इसके निर्णयों के विरुद्ध अपील के आदेश में यदि धन के भुगतान का आदेश दिया जाता है तो उसकी क्रियान्विती ठीक उसी प्रकार की जायेगी जैसे कि किसी न्यायालय के सिविल आदेश की, की जाती है।

[धारा 75]


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