B.Com 2nd Year Deficit Financing short Notes In Hindi

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प्रश्न 42 – भारतीय कर प्रणाली के दोष बताइए। 

State the demerits of Indian Tax System. 

उत्तर – भारतीय कर प्रणाली के निम्नलिखित दोष हैं- (1) भारत में प्रत्यक्ष करों की तुलना में परोक्ष करों द्वारा अधिक आय प्राप्त की जाती है, जिससे निर्धन वर्ग पर अधिक कर भार पड़ता है। (2) यद्यपि कर प्रणाली में न्याय, समानता और उत्पादकता को लाने हेतु आयकर, अधिभार, सम्पत्ति कर, उपहार कर आदि का समावेश किया गया है, तथापि इस दिशा में अभी तक कोई उल्लेखनीय सफलता नहीं मिल सकी है। (3) घोषित नीति अर्थात् समाजवादी समाज की स्थापना के बावजूद कर-संरचना देश में व्याप्त आर्थिक विषमताओं को कम नहीं कर पाती है। (4) कर प्रणाली मुद्रा-प्रसार को रोकने अर्थात् आर्थिक स्थायित्व का लक्ष्य प्राप्त करने में सफल नहीं रही है। (5) प्रणाली में सरलता, लोच, मितव्ययिता तथा समन्वयशीलता का भी अभाव पाया जाता है। (6) कर प्रणाली देश में तीव्र आर्थिक विकास के ध्येय को भी प्राप्त नहीं कर पायी है। (7) भारतीय कर प्रणाली किसी वैधानिक आधार पर स्थित नहीं है। (8) कर प्रणाली प्रत्यक्ष करारोपण, करदाताओं तथा सरकारों दोनों की दृष्टियों से असुविधाजनक है तथा कर की चोरी (Tax Evasion) को प्रोत्साहित करने वाली है।

प्रश्न 43 – गैर-प्रतिद्वंद्विता से क्या आशय है? What is meant by Non-rivalry ?  अथवाप्रत्यक्ष एवं परोक्ष कर एक-दूसरे के पूरक हैं।समझाइए।

“Direct Taxes and Indirect Taxes are complementary to each other.” Explain.

उत्तर – प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों ही करों में कुछ गुण व दोष पाए जाते हैं, अत: यह ना कठिन है कि कौन-सा कर अधिक श्रेष्ठ है। प्राचीन समय में लोग सामान्यत: परोक्ष करों श्रेण मानते थे, परन्तु अब लोकमत का झुकाव प्रत्यक्ष करों की ओर अधिक है। वस्तुतः लोक नित व्यवस्था के लिए यह आवश्यक है कि दोनों प्रकार के करों में उचित समन्वय शापित किया जाए, जिससे एक न्यायोचित कर प्रणाली स्थापित हो सके। फिर भी यह नहीं किता कि दोनों प्रकार के करों का कितनी मात्रा में मिश्रण किया जाए। वस्तुतः इस का निर्णय कि दोनों करों का किस सीमा तक समन्वय किया जाए, देश-विशेष की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा मनोवैर कुशल लोक वित्त व्यवस्था की दृष्टि से दो समय की सामान्य विचारधारा भी होकर पूरक हैं। प्रो० डी मार्को के सामान्य विचारधारा भी यही है कि प्रत्यक्ष तथा परोक्ष कर एक-दसरे के विरोधी न भोपोडीमाको के कथन-“प्रत्यक्ष तथा परोक्ष कर एक-दूसरे के पूरक हैं और परस्पर एक-दूसरे के दोषों को दूर करते हैं”–से भी इसी तथ्य की पुष्टि होती है। प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ ग्लैडस्टन ने इन दोनों करों को सुन्दर बहनों के समान माना था, जिनके बीच वे निष्पक्ष रहना चाहते थे। उनके शब्दों में, “यह केवल अनुमति योग्य नहीं, वरन् कर्त्तव्य भी है कि दोनों का सत्कार किया जाए।’ डाल्टन के शब्दों में, “प्रत्यक्ष कर और परोक्ष कर एक-दूसरे के दोषों को कम करके कर प्रणाली में साम्य की स्थापना करते हैं।”

प्रश्न 44 – सार्वजनिक आय के गैर-कर आय के स्रोत बताइए। 

Describe the Non-tax revenue sources of public revenue. 

उत्तर – गैर-कर आगम (Non-tax Revenue गैर-कर आगम से आशय सरकार की उस आय से है जो कर के अतिरिक्त अन्य साधनों से प्राप्त होती है। पहले आय के इस स्रोत का अधिक महत्त्व नहीं था क्योंकि अर्थव्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप न के बराबर था व सरकार अपनी आय के अधिकांश भाग की पूर्ति करों द्वारा ही कर लेती थी। गैर-कर आगम के स्रोत निम्नवत् हैं

(1) वाणिज्यिक आय (Commercial Revenue)-सरकार भी कम्पनियों और व्यक्तियों की भाँति अपना व्यवसाय (जैसे-भारतीय रेल, डाक विभाग आदि) चलाकर आय प्राप्त करती है। इन व्यवसायों से प्राप्त आय वाणिज्यिक आय कहलाती है।

(2) प्रशासनिक आय (Administrative Revenue)-सरकार द्वारा प्रशासनिक कार्य किए जाते हैं, परिणामस्वरूप सरकार को आय प्राप्त होती है। इस आय को प्रशासनिक आय कहा जाता है। सामान्यतः प्रशासनिक आय निम्न प्रकार की होती हैं

(i) शुल्क (Fees) सार्वजनिक आय का दूसरा मुख्य साधन शुल्क अथवा फीस है। शुल्क सरकार से प्राप्त किसी विशेष लाभ के बदले में अथवा जनहित पर व्यय की गई धनराशि को पूरा करने के लिए व्यक्ति द्वारा सरकार को दिया जाता है। शुल्क का मुख्य उद्देश्य कुछ सेवाओं अथवा सुविधाओं को जनता के हित हेतु नियन्त्रित करना होता है।

(ii) लाइसेन्स शुल्क (Licence Fees) लाइसेन्स से आशय किसी व्यक्ति या फर्म को कोई विशेष कार्य करने की अनुमति प्रदान करने से है। जब सरकार द्वारा किसी को कोई लाइसेन्स दिया जाता है तो उसके लिए कुछ फीस भी ली जाती है, इसी को लाइसेन्स शुल्क कहते हैं। लाइसेन्स शुल्क में सरकारी निगमन एवं नियन्त्रण का उद्देश्य निहित होता है। उदाहरणार्थ-बन्दुक के प्रयोग करने का लाइसेन्स शुल्क, मादक पदार्थों एवं वस्तुओं के विक्रय का लाइसेन्स शुल्क आदि।

(iii) विशेष निर्धारण (Special Assessment)-जब भी किसी भूमि या सम्पत्ति में सरकार द्वारा किए गए व्यय के परिणामस्वरूप सुधार होता है तो उस भूमि अथवा सम्पत्ति के मूल्य में वृद्धि हो जाती है। उस पर सरकार एक विशेष दायित्व लगा देती है जो प्राप्त हुए लाभ के अनुपात में होता है तथा जिसको चुकाना उसके लिए अनिवार्य होता है। इसी दायित्व को विशेष निर्धारण कहा जाता है। विशेष निर्धारण को ‘विकास सेवा’ के नाम से भी जाना जाता हैं।

(iv) अर्थदण्ड या जुर्माना (Fine or Penalty)-किसी कानून को भंग करने के कारण व्यक्तियों पर सरकार द्वारा जो प्रभार लगाया जाता है उसे अर्थदण्ड अथवा जुर्माना कहा जाता है। अर्थदण्ड, आय का महत्त्वपूर्ण साधन नहीं है क्योंकि यह आय प्राप्ति के उद्देश्य से नहीं लगाया जाता, बल्कि इसका उद्देश्य जनता को अपराध करने से रोकना होता है। कोई भी सरकार यह नहीं चाहती कि अपराध और कानून तोड़ने की घटनाओं में वृद्धि हो और उनके लिए किए गए जुर्माने से उसे अधिक आय प्राप्त हो।

प्रो० डाल्टन के अनुसार, “करों की तुलना में जुर्माने का उद्देश्य आय प्राप्त करना नहीं होता वरन् अपराधियों को दण्ड देकर समाज में होने वाली बुराइयों को दूर करना अथवा रोकना होता है।”

(3) उपहार एवं अनुदान (Gifts and Grants)-सरकार को कभी-कभी उपहार एवं अनुदान के माध्यम से भी आय प्राप्त होती रहती है। सरकार को उदार धार्मिक प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों तथा धनी व्यक्तियों के माध्यम से कुछ विशेष कार्यों को सम्पन्न करने के लिए उपहारस्वरूप धनराशि अथवा सम्पत्ति प्राप्त होती है। ये उपहार मुख्यत: स्कूल, कॉलेज, चिकित्सालय तथा इसी प्रकार की सार्वजनिक संस्थाओं की स्थापना के उद्देश्य से दिए जाते हैं। सामान्यत: उपहारों की मात्रा न्यूनतम होती है, परन्तु युद्ध जैसी परिस्थितियों में सरकार को अपनी आय में वृद्धि करने हेतु बड़ी मात्रा में धनराशि एवं सम्पत्ति उपहारस्वरूप प्राप्त होती है।

प्रश्न 45 – “एक व्यक्ति अपनी आय के अनुसार व्यय करता है, जबकि सरकार अपने कार्यों को देखकर आय की व्यवस्था करती है।इस कथन को समझाइए।

“An individual spent according to his income, while government arrange according to her works.” Explain.

उत्तर – लोक तथा निजी दोनों वित्त व्यवस्थाओं के मध्य एक महत्त्वपर्ण अन्तर यह कि व्यक्ति सामान्यतः अपने साधनों के अनुसार व्यय करता है, जबकि सरकार अपने व्यय के अनसार साधनों को जुटाती है। डॉ० डाल्टन के अनुसार, “एक व्यक्ति अपनी आयात कि सरकार अपने व्ययों को देखकर आय की व्यवस्था करती है।” इसी तथ्य लेशिराज ने इन शब्दों में व्यक्त किया है, “व्यक्तिगत व्यय का निर्धारण आय सार्वजनिक वित्त में व्यय को पूरा करने हेतु आवश्यक आय जुटाई जाती है।” परन्तु यह कथन अक्षरश: सत्य नहीं है। दोनों ही कि कारण सदैव ऐसा नहीं कर पातीं। कभी-कभी ना को व्यय के साथ समायोजित करने के लिए विज आय की सीमा में रखने के लिए प्रयत्न करता है। इस लोक वित्त व्यवस्था में केवल मात्रा अथवा पाश सत्य नहीं है। दोनों ही वित्त व्यवस्थाएँ कुछ व्यावहारिक कठिनाइयों के नहीं कर पातीं। कभी-कभी, विशेष परिस्थितियों में, व्यक्ति को अपनी आय समायोजित करने के लिए विवश होना पड़ता है, जबकि राज्य अपने व्ययों को मात्रा अथवा अंश का अन्तर होता है, प्रकृति का नहीं।


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